Interesting Travel Facts

बरसात की वो रात, जब पहली बार ‘भूत’ से सामना हुआ!

Travel story : 2003… ये वो साल था जब मेरे घर में एक साथ 3 शादियां थीं और हमारे लिए Village Tour का वक्त. 1 जून और 14 जून को बहनों की और 21 जून को बड़े भाई की. ये वो दौर था जब घर में शादी और गवना अलग-अलग होता था. दुल्हन की विदाई गवने पर हुआ करती थी जो 3 साल, 5 साल और 7 साल पर होता था. इन शादियों ने हम बच्चों को एक्साइटेड किया हुआ था. हम रिश्तेदारों संग खूब घूमते. मिठाईयां तो खाते ही थे, साथ में नए नए कपड़े पहनकर बारातियों संग घुल-मिल भी खूब जाते थे. 21 जून को शादी का ये प्रोग्राम सम्पन्न हो गया था. अब बारी थी बेटियों (जिनकी शादी 1 और 14 जून को थी) के घर कुछ सामान पहुंचाने की. ये प्रथा के मुताबिक होने वाली रस्म होती है लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि इसे से जुड़े मेरे सफर में एक भयानक (Horror) चीज से मेरा सामना होगा.

पढ़ें- हनीमूनः जब मुन्नार में हमारे सामने ‘मौत’ हिचकोले लेने लगी

21 जून के कुछ दिन बाद (शायद 1 हफ्ते बाद) मेरे बड़े पिताजी और बड़े भाई बहन के यहां इस काम के लिए जा रहे थे. मौसम सुहावना था, तेज ठंडी हवाएं चल रही थी. मैं छत पर खड़ा काले बादलों को गिनने में व्यस्त था. तभी उनको देखकर लगे हाथ मैं भी तैयार होकर उनके साथ जाने के लिए दौड़ा आया. मैं ये जानता था कि मुझे बाइक पर बीच में बैठकर ही बहन के यहां जाना है, फिर भी खुशी खुशी जाने के लिए तैयार हो गया. बाइक चलाने का जिम्मा भैया का था और पीछे ताऊ जी बैठे. मैं बीच में बैठ लिया. हमारी ये यात्रा जौनपुर में हमारे गांव छंगापुर से शुरू हुई. बहन की ससुराल मेरे घर से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर सुल्तानपुर जिले में थी. अहम बात ये थी कि मेरी चारों बहनों का ससुराल एक ही रास्ते पर पड़ता है. इनमें अंतर भले कई किलोमीटर का हो लेकिन हम जिस बहन के यहां जा रहे थे वहां पहुंचने के लिए हमें बाकी तीन बहनों के घर तक जाने वाले रास्ते से होकर गुजरना था.

गांव-देहात में बाजार में घर का कोई शख्स अगर आपको देख ले और आप उसके यहां गए बगैर वहां से निकल जाएं तो नाराजगी हो जाती है. इसी वजह से हम बाकी बहनों के यहां होते हुए जा रहे थे. हर रिश्तेदारी में तकरीबन एक से डेढ़ घंटे लग ही जा रहे थे. इसी वजह से जिस बहन के यहां हमें जाना था, वहां हम देर से पहुंचे. बड़े पापा ने तो वहां खाना नहीं खाया लेकिन हम दो भाइयों ने जीभरकर भूख मिटाई. इस पूरे कार्य के बाद घर में सभी रिश्तेदारों से मिलना शुरू किया. जीजा जी से शुरू हुआ सफर उनके दादा के परिवारों और आसपास के 5-6 घर तक पहुंच गया. ये सब चीजें हमारा काफी समय ले गई और हमें दीदी के ससुराल में ही 8 बज गए.

पढ़ें- कश्मीर जन्नत है तो गिलगित-बाल्टिस्तान भी किसी ‘चमत्कार’ से कम नहीं!

दीदी के घर से हमारी बाइक 8-सवा आठ बजे निकली. रास्ते में करौंदी कला में एक दूसरी बहन के ससुरजी मिले. वह हमसे रुकने का अनुरोध करने लगे. उन्होंने कहा कि रात काफी है. रात उनके घर पर बिताकर तड़के हम गांव के लिए निकल सकते हैं. ताऊ जी उनसे बात कर ही रहे थे कि झमाझम बारिश शुरू हो गई. बारिश से बचने के लिए हम तीनों वहीं बाजार की ही एक दुकान के नीचे खड़े हो गए. हमें बारिश के रुकने का बेसब्री से इंतजार था लेकिन वह तो मानों तय करके आई थी कि आज रुकना ही नहीं है. तकरीबन 40-45 मिनट बाद बारिश काफी कम हुई. हालांकि बूंदाबांदी अभी भी हो रही थी. हमने तय किया कि अब वहां से निकलेंगे.

गांव में 7 बजे भी सुनसान जैसा माहौल हो जाता है और वह तो 9 बजे से भी ज्यादा का समय हो रहा था. लेकिन हमें तो घर के लिए निकलना ही था. इसलिए भैया ने बाइक पर मोर्चा संभाला और बाकी हम दो उसपर बैठ गए. गांव के रास्ते में एक जगह खासी चर्चित है. इस जगह किसी जमाने में लुटेरों का आतंक रहा करता था. मैंने यहां के किस्से घर में बहुत सुने थे. उस दिन पहली बार इतनी रात को हमें वहां से निकलना था. इसलिए मेरा डर से बुरा हाल था. मैं बाइक के बीच में था और खुद को ‘सेफ जोन’ में समझ रहा था लेकिन भैया के कंधे से ऊपर नजरें करके देखने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. पूरा रास्ता कीचड़ से सना हुआ था. जरा सी चूक से बाइक स्लिप कर सकती थी. सड़क तो गांवों में आज भी बुरे हाल में है 16 साल पहले उसका क्या हाल होगा आप समझ ही सकते हैं.

पढ़ें- विज्ञान को चेलैंज करता है मेहंदीपुर धाम, भूतों को मिलती है थर्ड डिग्री

ढकवा नाम की वो जगह जो चोर-लुटेरों के लिए बदनाम थी, हम उसके पहले थे. रास्ते में शरपत के बड़े बड़े पेड़ हमें घेरे हुए थे और बाइक दौड़े चली जा रही थी. वहां आसपास, कई किलोमीटर जहां तक मैं देख पा भी रहा था तो सिर्फ बाइक की हेडलाइट की रोशनी ही नजर आ रही थी. बाकी कहीं रोशनी का निशान न था. मैं बार बार इस डर से सहमा जा रहा कि कहीं शरपत के पीछे से लाठी लिए लोगों का झुंड न आ जाए. बारिश की बूंदाबांदी के बीच भी इस डर से मेरा गला सूख चुका था. मैंने एक बार फिर भैया के कंधे से नजरें उठाई और आगे देखा. मैंने देखा कि सामने एक बड़ा सा बिच्छू सड़क पार कर रहा था. उसकी लंबाई करीब 3 फीट रही होगी. इसके 4 सेकेंड बाद ही एक काली बिल्ली हमारा रास्ता काटकर चली गई.

ये देखकर मेरा दिमाग ही मानों सुन्न हो चुका था. मैंने अपनी आंखे बंद की और भगवान को याद करने लगा. इतने में मेरे कान में किसी मंत्र की ध्वनि गूंजी. मैंने आंखें खोली तो पाया कि ताऊजी धीरे धीरे कोई मंत्र बुदबुदाए जा रहे थे. बस फिर क्या, मेरा डर चरम सीमा पर पहुंच गया. इतने में ताऊजी ने भैया से कहा कि वह बाइक रोक दें. उन्होंने ऐसा बिल्ली के रास्ता काटने की वजह से कहा था. भैया ने बाइक रोकी और मुझसे कहा कि मैं स्टार्ट रखने के लिए उसका क्लच थामे रहूं. ताऊ और भैया, दोनों ने बाथरूम किया और फिर आकर बाइक पर बैठ गए. इसके बाद हमारा सफर फिर शुरू हुआ.

पढ़ें- नगालैंड का ‘भोजन’, जो ‘चिकन प्रेमियों’ के भी होश उड़ा दे!

हम ढकवा पहुंच गए थे. यहां पर एक पुल पड़ता है जिसे लेकर कई तरह की कहानियां गांव गांव में तैरती हैं. हमारी बाइक जैसे ही इस पुल पर पहुंची कई चीजें मेरे दिमाग में उभरने लगीं. हमें रास्ते भर में न तो एक भी गाड़ी दिखाई दी थी और न ही कोई शख्स. इस सुनसान रास्ते में मेरा हौसल सिर्फ मेरे भैया और ताऊजी ही थे. शरपत के पौधे अभी भी हमें घेरे हुए थे. रास्ता सुनसान था और डरावना भी. इतने में हमारी बाइक के सामने मैंने जो देखा वो होश उड़ा देने के लिए काफी था. सफेद साड़ी में एक बूढ़ी महिला चले जा रही थी. बाइक की रोशनी ने उसकी साड़ी की चमक और बढ़ा दी थी. बुढ़िया के कंधे पर एक लाल रंग का गट्ठर था जिसे उसने लाठी के सहारे डिगाया हुआ था. बाइक की हेडलाइट ने इन दोनों की रोशनी को और ताजा कर दिया था और आज भी वही रोशनी मेरे जहन में जिंदा है.

वह बूढ़ी महिला सड़क पर दाहिनी ओर चल रही थी. बाइक उसके बराबर में आई तो मैंने गर्दन दाहिनी ओर करके उसका चेहरा देखना चाहा लेकिन वह तो एकदम अंधेरा था. चेहरा मानों वहां था ही नहीं. इतने में मैंने सुना कि ताऊ जी के मंत्रोच्चारण और तेज हो गए थे. मैंने चेहरा आगे किया और मानों गुप्प होकर आंखें बंद कर वहीं बैठ गया. मेरी आंख इसके बात तभी खुली जब हमारा घर नहीं आ गया. घर आकर मैंने ताऊजी से उस बूढ़ी औरत के बारे में पूछा. मैं उनसे सुनना चाह रहा था कि वह कोई भूत थी लेकिन ताऊ जी बात को टाल गए. आज भी मैं वो किस्सा याद करता हूं तो स्मृतियां ताजा हो जाती हैं. इस कहानी को 4-5 बार मैं कई लोगों से बता चुका हूं लेकिन आज लिख पहली बार रहा हूं. यकीन मानिए मेरे रोंगटे खड़े हो चुके हैं.

Recent Posts

Kupwara Travel Blog : जानें, कुपवाड़ा जिले के बारे में सारी जानकारी

Kupwara Travel Blog :  कुपवाड़ा जिला, जो 1979 में तत्कालीन जिला बारामुल्ला से अलग होकर… Read More

5 hours ago

Ujjain Mahakal Bhasma Aarti Darshan : जानें,उज्जैन महाकाल भस्म आरती दर्शन,शीतकालीन कार्यक्रम और टिकट की कीमतें

Ujjain Mahakal Bhasma Aarti Darshan :  उज्जैन महाकाल भस्म आरती दर्शन के साथ दिव्य आनंद… Read More

2 days ago

Kulgam Travel Blog : कुलगाम में घूमने की ये जगहें हैं बेहतरीन

Kulgam Travel Blog :  कुलगाम शब्द का अर्थ है "कुल" जिसका अर्थ है "संपूर्ण" और… Read More

2 days ago

Vastu Tips For Glass Items : समृद्धि को आकर्षित करने के लिए घर पर इन नियमों का पालन करें

Vastu Tips For Glass Items : बहुत से लोग अपने रहने की जगह को सजाने… Read More

3 days ago

Travel Tips For Women : महिलाओं के लिए टॉप 3 ट्रैवल-फ्रेंडली टॉयलेट सीट सैनिटाइजर

Travel Tips For Women : महिलाओं के लिए यात्रा करना मज़ेदार और सशक्त बनाने वाला… Read More

3 days ago