Uttarakhand Migration : पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के कभी काम नहीं आते. Uttarakhand Migration ऐसी कहावतें सालों से सुनते पढ़ते हम भी जवान हो चुके हैं. रोजगार न होने की वजह से पहाड़ों से भारी संख्या में पलायन होता रहता है. उत्तराखंड (Uttarakhand) में गांव के गांव इसी वजह से खाली हो चुके हैं. घरों के नाम पर सिर्फ खाली झोपड़ियां बाकी हैं. इन्हें जैसे अपनों के आने का इंतजार हो. उत्तराखंड के दूर दराज के कस्बों की यही हकीकत है. गांवों में आपको सिर्फ बूढ़े दिखाई देंगे. स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए दूर दराज के कस्बो का ही भरोसा होता है इसलिए यहां कौन ठहरना चाहेगा? अपनी माटी अपनी जमीन से दूर होकर लोग दो जून की रोटी के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करने को मजबूर हैं.
उत्तराखंड में अलकनंदा नदी, भागीरथी नदी, भिलांगा नदी, धौलीगंगा नदी, गंगा नदी, गौला नदी, गोरी गंगा नदी, काली नदी, कोसी नदी, मंदाकिनी नदी, नंदाकिनी नदी, नायर नदी (पूर्वी), नायर नदी (पश्चिमी), पिंडर नदी, रामगंगा नदी (पश्चिमी नदी), रामगंगा नदी (पूर्वी नदी), सरयू नदी, टोंस नदी, यमुना नदी के उद्गम हैं. लेकिन इन सभी नदियों में से कितनी उत्तराखंड के काम आती हैं, यह प्रश्न विचारणीय है.
पानी और जवानी की कहानी कहते उत्तराखंड में कई गांव हैं. एक ऐसे ही एक गांव में हैं केसर सिंह. यह कोई 65 साल पहले जोहार घाटी के अंतिम गांव मिलम में सड़क मजदूर का काम करने गए थे. उन दिनों घाटी के सम्पन्न शौक व्यापारी व्यापार करने बेहद जोखिम भरे रास्ते तय करके तिब्बत की ज्ञानिमा मंडी जाया करते थे. सदियों से भारत और तिब्बत के बीच चला आ रहा वह व्यापार तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद खत्म हो गया.
केसर सिंह का गांव बोथी गोरीगंगा नदी की उस दुर्गम पहाड़ी की पसलियों के बीच धंसा हुआ है जिसके ठीक सामने कहावतों में समूचे संसार की शान से टक्कर लेता मुन्स्यारी बसा हुआ है- ‘सार संसार एक मुन्स्यार’ यह अलग बात है कि सम्पन्नता व्यापारियों का विशेषाधिकार थी. राज्य निर्धनता का था और केसरसिंह उस राज्य के सबसे पुराने बाशिंदे. अपने चौरासी साल के जीवन में सबसे लम्बी यात्रा उन्होंने बागेश्वर की की थी. उस समय पांच रुपए का टिकट लगता था. हल्द्वानी-देहरादून आज भी केसर सिंह के लिए किसी परीलोक जैसे हैं. केसर सिंह के लिए जहां राजे-महाराजे बसते हैं.
रोजगार आज भी उनके जीवन की सबसे बड़ी दिक्कत है. “दैत्य हुआ साला रोजगार … पकड़ में नहीं आने वाला हुआ. सत्तर साल से ढूंढ रहे हैं रोजगार … पिछले साल रोड में 3-4 दिन पत्थर फोड़े तब 1100 रुपए मिले थे…” थोड़े बहुत खेत थे. उन्हें दो बेटों में बांट दिया. बेटे अलग हो गए तो बोथी गांव के जर्जर पैतृक मकान में अब बस दो बूढ़े रहते हैं. 12 साल के थे जब केसर सिंह बारात लेकर गए थे तीखी चढ़ाई वाली धार के उस तरफ चुलकोट गांव से अपनी नौ साल की दुल्हन लाने. बताते हैं कि यहीं खप गई बुढ़िया की सारी जिन्नगी साब इसी बोथी-जौलढूंगा में बकरी चराते!
हिमालय बुबू की कृपा हुई तो ज़्यादा बीमार नहीं पड़े कभी. “कभी कुछ हो गया तो?” – इस सवाल का बहुत आसान जवाब है केसर सिंह के पास. “चल देना हुआ सब छोड़ छाड़ के. और क्या! बहुत हो गया मरते मरते मरना.” 800 पए पेंशन आती है फापा गांव के डाकखाने में हर महीने के पहले हफ्ते. उसके आते ही अगले महीने का इंतजार. अभी 3 महीने हुए बड़ी-बड़ी मशीनें लगाकर सड़क पहुंचा दी गई है बोथी और उससे आगे जौलढूंगा तक.”सड़क से कुछ फ़ायदा होगा? इस सवाल पर वे कहते हैं- फायदा उन्हीं का होने वाला हुआ जिनका हमेशा होता है. सरकार हुई. उसी की मर्जी चलने वाली हुई …” फिर पूछा- “आज कल किसकी सरकार है? “होगी किसी की! दो-चार साल पहले इन्द्रा गांधी की थी. हमको क्या फरक पड़ने वाला हुआ.”
Ashok Pande की वॉल से प्राप्त जानकारी के आधार पर
Anantnag Travel Blog : अनंतनाग जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के सबसे खूबसूरत… Read More
Chhath Puja 2024 Day 3 : छठ पूजा कोई त्योहार नहीं है लेकिन इस त्योहार… Read More
High Uric Acid Control : लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे लोगों में हाई… Read More
Kharna puja 2024 : चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन खरना मनाया जाता है.… Read More
Chhath Puja 2024 : महापर्व छठ 5 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू हो… Read More
Dev Diwali 2024: देव दिवाली हिंदू महीने कार्तिक की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है.… Read More