paneer village – उत्तराखंड के लोगों का पशुपालन मुख्य व्यवसाय है. दूध उसमें सबसे अधिक महत्व रखता है. पहले लोग दूध और दूध से बना चीजों का व्यपार करते थे. पहले लोग पनीर के बारे कम जानते थे, लेकिन आज गांव-गांव में लोगों की रसोई में पनीर के अहम पकवान है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूरा गांव ही पनीर बनाता हो और हर घर में पनीर खाने के बजाय पनीर का बिजनेस होता है. आइए हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताते हैं.
हम बात कर रहे हैं टिहरी जिले के रौतू के बेली गांव की. पहाड़ के दूसरे गांवों की तरह ये गांव भी है. इस गांव की एक खास बात यह है कि यहां लोगों का मुख्य व्यवसाय आज भी दूध है. लेकिन, यहां लोग दूध नहीं बेचते. बल्कि दूध की जगह पनीर बनाकर बेचते हैं. सोशल मीडिया पर इस गांव के काफी चर्चे होते हैं. इस गांव को लोग पनीर वाला गांव तक कहते हैं.
पनीर वाला गांव बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. इस गांव के लोग कुछ साल पहले तक दूध बेचा करते थे, लेकिन दूध से उतना फायदा नहीं था, लेकिन जब से गांव में पनीर बनाने की शुरुआत हुई है तब से इस गांव की तकदीर ही बदल गई. इसी पनीर से गांव वाले तीन-चार गुना लाभ कमा रहे हैं.
पहले यहां के लोग दूध बेचकर ही थोड़ा बहुत पैसा कमाते थे. यहां से लोग देहरादून दूध बेचने जाया करते थे लेकिन 1980 के आसपास यहां पर पनीर का काम शुरू हुआ. पनीर उत्पादन यहां के लोगों का मुख्य रोजगार बन गया है, जब से यहां से उत्तरकाशी बाई पास बना है तब से पनीर यही पर बिक जाता है. पहले मसूरी में नीचे से पनीर आता था, वहां पर किसी ने बताया कि पनीर बनाओ पहले एक-दो घरों में पनीर बनता था, अब तो घर-घर पनीर बनने लगा है.
यही नहीं इस गांव में शादी करके जो बहू आती हैं सबसे पहले उन्हें पनीर बनाना सिखाया जाता है. मसूरी से कुछ किलोमीटर दूर है और पुराने समय में जब आने-जाने के रास्ते बेहद सीमित हुआ करते थे तो मसूरी में पनीर की खपत इसी गांव से पूरी की जाती थी पनीर अब एक ऐसा साधन बना है जिसने यहां के युवाओं को रोजगार भी दिया है और पलायन पर रोक भी लगाई है. ज़ाहिर है ये पनीर वाला गांव अपनी पहचान बना चुका है. यहां का पनीर भी शुद्ध और बिना मिलावट के तैयार किया जाता है. तभी तो इस गांव की रौनक बढ़ गई है. जहां पूरा गांव एक ही काम को अपना काम मान लें वहां ना सिर्फ तरक्की के दरवाज़े खुलते हैं बल्कि गांव के साथ साथ लोगों की भी किस्मत चमक जाती है.
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