Kesar ki Kheti : कश्मीर के दक्षिणी छोड़ पर स्थित जिला पुलवामा (Pulwama) हाल ही में काफी चर्चाओं का विषय बना है। कई सालों से लगातार इस जगह पर आतंकी हरकतें होती रही हैं। लेकिन ये इलाका हमेशा से ऐसा नहीं था, बल्कि ये कश्मीर की खूबसूरत वादियों में गिना जाता था। पुलवामा जिला उत्तर में श्रीनगर, पश्चिम में पुंछ और दक्षिण-पूर्व में अनंतनाग से सटा हुआ है। साल 1979 में अनंतनाग से पुलवामा, शोपियां और त्राल तहसीलों को अलग किया गया था। जिसके बाद इस जिले का गठन हुआ और 4 तहसीलों में बांटा गया था। ये पुलवामा, पंपोर, अवंतिपोरा और त्राल बने थे।
साल 2007 में पुलवामा को 2 भागों में बांटा गया और एक और जिला शोपिया बना था। जिसके बाद मौजूदा वक्त में यहां पर 8 तहसीलें पुलवामा, त्राल, अवंतिपोरा, पंपोर, राजपोरा, शाहूरा, काकपोरा और अरिपल हैं। आपको बता दें कि श्रीनगर के डलगेट से सिर्फ 28 किलोमीटर की दूरी पर 951 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए पुलवामा की आबादी लगभग 5.70 लाख है। आबादी के लिहाज से ये भारत के 640 जिलों में से 58वें पायदान पर है। वहीं यहां पर सेक्स रेशो 1000:913 है। पुलवामा में 85.65 फीसदी शहरी आबादी और 14.35 ग्रामीण है। इस जिले के 65.41 फीसदी पुरुष और 53.81 फीसदी महिलाएं साक्षरता दर के दायरे में आती हैं।
इस जिले को दुनिया के सुंदर स्थानों में से एक माना जाता है, क्योंकि यहां का मौसम और प्राकृतिक सुंदरता सराहनीय है। यहां पर असंख्य झरने हैं और वहां से गिरता पानी, फूलों की सुगंधित खुशबू, स्वादिष्ट फल और कई अन्य प्राकृतिक नजारें देखने योग्य है। पूरे विश्व में पुल्वामा भगवा खेती के लिए मशहूर है। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर ही निर्भर है। यहां पर चावल और केसर की खेती बड़े पैमाने पर होती है। पुलवामा पूरी दुनिया में केसर के उत्पादन के लिए मशहूर है। केसर पुलवामा, पंपोर, काकापोरा में उगाई जाती है।
फलों में ये जिला सेब, बादाम, अखरोट और चेरी की खेती करता है। यहां की 70 फीसदी आबादी इन्हीं चीजों की खेती करती है, तो वहीं बाकी 30 फीसदी किसान अन्य चीजों की खेती में रहते हैं। इसके अलावा दूध के उत्पादन के लिए पुलवामा को ‘कश्मीर का आनंद’ भी कहा जाता है।
पुलवामा मुख्य रूप से राजा अवंतिवर्मन और लाल्ता दित्य के बनाए पुरातात्विक स्मारकों के लिए जाना जाता है। अवंतिवर्मन कश्मीर के राजा थे। उनका राज एक स्वर्ण काल माना जाता है। अवन्तिपुरा नगर उनके नाम पर ही है। अवंतिपुरा शहर बस्तरवान या वास्तुरवान पहाड़ की तलहटी में है, जहां पर जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग के साथ झेलम नदी बहती है। ये शहर अभी भी अवंतिपुरा के नाम से ही जाना जाता है।
अवंतिपुरा का जिक्र कल्हण ने अपने महाकाव्य राजतरंगिणी यानी की राजाओं की नदी में भी किया है। राजतरंगिणी इस जगह के इतिहास का इकलौता साहित्य प्रमाण है। कल्हण कश्मीर के राजा हर्ष देव के काल में थे। उन्होंने कश्मीर के 2500 सालों के इतिहास को समटेते हुए राजतरंगिणी को साल 1150 में लिखा था। जिसमें अंतिम 400 सालों की जानकारी विस्तार से दी गई है। 7826 श्लोकों और 8 हिस्सों में बंटी राजतरंगिणी कश्मीर के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास का कविता के रूप में वर्णन है। इसे संस्कृत महाकाव्यों का मुकुटमणि कहते हैं। राजतरंगिणी की मानें तो इस शहर की स्थापना राजा अवन्तिवर्मन के नाम पर की गई थी।
माना जाता है कि राजा अवंतिवर्मन की मृत्यु होने के बाद उनके बेटे शंकर वर्मा ने सिंहासन संभाला था और उन्होंने अपनी राजधानी के रूप में अवंतीपुरा को ही बरकरार रखा था। उन्होंने कई जगहों पर कब्जा किया। आपको बता दें कि अवन्तिवर्मन एक शांतिप्रिय शासक थे। उन्होंने अपने राज्य के विस्तार के लिए कभी सेना का उपयोग नहीं किया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण और आर्थिक विकास में लगाया था। उनके राज में यहां पर कला, वास्तुकला और शिक्षा के क्षेत्र को बहुत बढ़ावा मिला था।
श्रीनगर जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बाईं तरफ अवंती स्वामी मंदिर के अवशेष अभी भी मौजूद है। जो कि श्रीनगर से 28 किलोमीटर दूर स्थित हैं। ये अवंतिवर्मन के समृद्ध इतिहास को दर्शाता है।
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