Pahari House: कनातल के इस घर जैसा सुकून 5 स्टार होटलों में भी नहीं!
Pahari House: बचपन में मैं अपनी कल्पनाओं को कागज पर उकेरता था. कभी कभी किए जाने वाले इस अभ्यास में मैं कागज पर सीनरी बनाया करता था. इसे सभी बच्चे बनाते होंगे. कागज पर पेंसिल और रंगों से मैं यूं ही घुच्च मुच्च कर दिया करता था. सीनरी में एक मैदान होता था. एक पहाड़ जिसमें से सूरज उगता था. एक झोपड़ी और बहता हुआ पानी होता था. पानी में कुछ मछलियां भी होती थी. पहाड़ में उगते सूरज और उस घर को, जो मेरी कल्पना में था, उसे मैंने कभी सजीव रूप में नहीं देखा था. लेकिन कनातल में कुछ घरों ने मुझे उसी सीनरी की याद दिला दी.
घुमक्कड़ी तो हम में से सभी करते हैं लेकिन ठहरकर कुदरत से बतियाने का, उसे समझने और समझाने का वक्त कम के पास ही होता है. पहाड़ी हाउस की कल्पना ने ही मुझे रोमांचित किया हुआ था. यही वजह थी कि दिल्ली से निकलने से पहले मैंने पहाड़ी हाउस की कुछ तस्वीरें अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट की थीं. तस्वीरें देखकर ही मेरे पास 14 दोस्तों के फोन कॉल आ गए थे. सभी ने मुझसे उन्हें साथ ले चलने को कहा लेकिन क्योंकि हमारी गाड़ी में जगह नहीं थी इसलिए मुझे सभी को ना कहना पड़ा.
ऋषिकेश से आगे उत्तराखंड की वो मेरी पहली यात्रा थी. ऋषिकेश से आगे नरेंद्र नगर, नरेंद्र नगर से आगे टिहरी, और टिहरी से आगे कनातल. कनातल… दूर तक मैदान, हरियाली और कहीं कहीं तिनकों जैसे बिखरे हुए घर. पहाड़ का हर हिस्सा जैसे कितनी कहानियां कह देना चाह रहा था. मैं पहली बार खुद को पर्वतों की गोद में खेलता महसूस कर रहा था. हम ऋषिकेश से चलकर सीधा कनातल पहुंचे थे. कनातल का पहाड़ी हाउस, मुझे, मेरे साथियों को उस सुकून के पास ले गया जिसके नजदीक अधिकतर लोग कभी पहुंच नहीं पाते हैं.
पहाड़ी हाउस की तरफ कदम बढ़ते जा रहे थे और मैं खुद को दूसरे लोक में महसूस करता जा रहा था. ये घर ग्रामीण शैली के बने हुए हैं. बाहर मौसम में गर्मी भी हो तो इनके अंदर शीतलता बनी रहती है. अंदर न सिर्फ सोने और रहने का बेहतर इंतजाम है बल्कि शौच और स्नान के लिए भी अच्छी व्यवस्था की हुई है. एक लेखक, गीतकार, कवि या कोई भी रचनात्मक शख्स यहां रहकर अपनी रचनात्मकता को अंजाम दे सकता है. पहाड़ी हाउस की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, यहां पर आपको स्थानीय व्यंजन परोसे जाते हैं. स्थानीय संस्कृति से आपका परिचय कराया जाता है.
इसके साथ ही, आसपास के गांवों में आपको विलेज टूर के लिए भी लेकर जाया जाता है. पहाड़ी हाउस के विलेज टूर में ही सबसे पहले मैंने पहाड़ी लोगों के दिल को जाना. उनकी मासूमियत और अच्छाई ने मुझे भीतर तक छू लिया. हुआ यूं … कि हम सभी एक गाइड के साथ विलेज टूर पर निकले. ये आयोजन भी पहाड़ी हाउस संचालक की तरफ से ही था. हमें गांवों में लेकर जाया गया और वहां की न सिर्फ सैर कराई गई बल्कि स्थानीय घरों को भी हमने बेहद करीब से जाना. एक घर, जहां हमें नाश्ता करना था, वहां की मुखिया एक महिला थी, हम वहां जाकर रुके. वहां महिला के पुत्र-पुत्री के अलावा घर के पुरुष सदस्यों से हमारा परिचय कराया गया. ये घर कुछ ऐसा था, जैसा आपने फिल्मों के बड़े होटल्स में देखा होगा. सामने हरी पहाड़ियां आपका स्वागत करती प्रतीत हो रही थीं.
हम यहां कुर्सी पर आराम से बैठे. चूंकि वो घर एकांत में था और पानी का घोर अभाव था इसलिए हमें बेहद कम पानी उपलब्ध कराया गया. हमारे कुछ साथी इस बात से अनजान थे. उन्होंने घर की मुखिया से और पानी मांगा, महिला ने बिना किसी बात की परवाह किए एक बाल्टी पानी मंगाया. हमारे साथी जब उससे हाथ मुंह भी धोने लगे तब गाइड ने हमें जानकारी दी कि वहां पानी बेहद कम मात्रा में उपलब्ध हो पाता है इसलिए हम सिर्फ इसे पीयें ही. हालांकि, वह महिला इतने पर भी सिर्फ मुस्कुरा ही रही थीं. क्या आप दिल्ली में ऐसे दृश्य की कल्पना कर सकते हैं? शायद नहीं…
इसके बाद बारी आई, पकौड़ों और चाय की… हमने फटाफट पकौड़ों की प्लेट साफ कर दी. इसके बाद एक, दो, तीन प्लेटें और आई, सभी का यही हाल हुआ. हम भूखों की तरह उन चाय पकौड़ों पर टूट पड़े थे लेकिन गृह स्वामिनी के चेहरे पर चिंता की एक लकीर हमें दिखाई नहीं दे रही थीं. वह लगातार हमारी आवभगत में लगी हुई थीं. महिला ने आखिर में अपने परिवार से हमारा परिचय कराया. महिला की पुत्री क्षेत्र के ही एक कॉलेज से बीएससी कर रही थीं. इसके लिए हर रोज उन्हें बस से कई किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी. बस की यात्रा और घर से वहां तक पहुंचने की कल्पना मात्र से ही मैं सिहर उठा. इतने जोखिम और दुर्गम इलाके में रहकर भी वहां के लोग इतने मधुर थे, यह बात मुझे बेहद पसंद आई.
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अब हम वापस पहाड़ी हाउस की तरफ चल दिए थे. पहाड़ी हाउस पर लौटकर हमने आसपास के दृश्यों को कैमरे के फ्रेम में उतारना शुरू कर दिया. हमने पहाड़ी हाउस के घरों के अंदर बाहर के दृश्यों को रिकॉर्ड किया. वहां ठहरे हुए टूरिस्टों से बात की और उनके एक्सपीरियंस शेयर किए. तस्वीरें खिंचवाने से हम कैसे चूक सकते थे. सो हमने उसमें जरा भी देर नहीं की. यहां आकर हमारा ड्राइवर जो दिल्ली से लेकर कनातल तक सहमा हुआ था, उसने भी अपना फोन निकालकर सेल्फी लेनी शुरू कर दी थी. हम सभी तरोताजा हो चुके थे और ऐसा किसी जूस या डाइट से नहीं बल्कि कुदरत, स्थानीय लोगों और पहाड़ी हाउस की बदौलत था…
Pahadi House kanatal is really a good place to visit once in life. I got a real touch with nature at pahadi house
Thanks to pahadi house Team
Regards
yeah. everyone can feel real beauty there !