Paan Singh Tomar’s Village Bhidosa – पान सिंह तोमर का गांव भिड़ौसा. मैं यहां पहुंच चुका था. यहां पहुंचने के लिए मैंने जिस जिस जगह से होकर यात्रा की उसका वृत्तांत भी आपको सुना चुका हूं. मैंने सबसे पहले निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से ट्रेन ली और मुरैना रेलवे स्टेशन उतरा. स्टेशन पर आधी रात को उतरने के बाद सुबह तक मुरैना के इसी स्टेशन पर नींद ली और फिर धर्मशाला में कमरा लिया. धर्मशाला स्टेशन से पास ही है, आप चलकर वहां पहुंच सकते हैं. इसका नाम वैश्य धर्मशाला है. सुबह नहा धोकर बस लेकर सिंहोनिया होते हुए पीपरी उतरकर भिड़ौसा की तरफ बढ़ा और ग्रामीणों की मदद से गांव में दाखिल हुआ. इस ब्लॉग में आप पान सिंह तोमर के गांव ( Paan Singh Tomar’s Village Bhidosa ) और घर पहुंचने पर मेरे अनुभव के बारे में पढ़ेंगे. इसके साथ ही, गांव के मंदिर के बारे में और वहां के आतिथ्य के बारे में भी मैं आपको बताउंगा.
पान सिंह तोमर के गांव भिड़ौसा ( Paan Singh Tomar’s Village Bhidosa ) में मैं जिस ट्रैक्टर पर बैठकर पहुंचा था, उसी ट्रैक्टर पर बैठे एक शख्स पान सिंह तोमर के पड़ोसी थे. वह मुझे उनके घर तक ले गए. घर पर, उनकी एक बहू मिलीं. वह पान सिंह तोमर के खास घराने की थीं. मुझे देखकर वह खुश हो गईं. बैठने के लिए चारपाई निकाली. पंखा ऑन कर दिया. फिर उन्होंने मुझे कई बातें बताईं. वह जगह दिखाई जहां पान सिंह तोमर की मां को बंदूक की बट से दूसरे घर के लोगों ने मारा था. उन्होंने बातों बातों में कहा कि जब फिल्म बन रही थी तब पुलिस फोर्स के साथ कई लोग आए थे. मैंने पूछा- तिग्मांशु धूलिया होंगे, उन्होंने कहा कि मुझे नाम नहीं पता… बस बहुत लोग थे.
उन्होंने मुझे वह जगह दिखाई जहां पान सिंह तोमर फिल्म की शूटिंग हुई थी. ये जगह घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर ही है. यहां एक सेट का निर्माण भी किया गया था जो आज भी वैसे का वैसा ही है. पान सिंह तोमर के गांव की यात्रा का पूरा वीडियो आप Travel Junoon Youtube Channel पर देख सकते हैं. इन महिला से कई और भी बातें हुईं. इसके बाद मैं गांव के मंदिर में गया. इस गांव में मंसा देवी की मूर्ति की स्थापना पान सिंह तोमर ने ही की थी. यहां के पुजारी बेहद रोचक पर्सनैलिटी हैं. उन्होंने बताया कि वे पहले डॉक्टर रहे हैं और बीते 8 महीने से यहां पर हैं. इस मंदिर के बारे में उन्होंने कहा कि पीछे खुदाई में कई ऐतिहासिक शिलाएं मिली हैं. उनसे बात करते करते मेरा ध्यान मंदिर के बगल में बह रही आसन नदी पर गया. वे बोले कि ये इकलौता ऐसा मंदिर है जहां श्मशान घाट, नदी और गांव एक साथ है.
इनसे बात करके मैं जब जाने को हुआ तो उन्होंने पूछा कि अब कहां जाएंगे आप? मैंने उत्तर दिया कि पहले तो पान सिंह तोमर के घर वापस जाऊंगा क्योंकि एक तस्वीर खींचनी बाकी रह गई है और इसके बाद सिंघोनिया के ककनमठ मंदिर. वे बोले- बहुत दूर है, साधन कोई नहीं, जा नहीं पाओगे. मैं रुका, और बोला कि हां दूर तो है लेकिन पहुंच जाऊंगा. बस फिर क्या वे दो पल रुके और बोले रुको मैं लेकर चलता हूं. मैंने पूछा कि कैसे, बोले बाइक से. मैंने राहत की सांस ली. कमाल की शख्सियत हैं स्वामी जी. पत्नी आईबीएम में मैनेजर और बेटी आईआईटी में. और ये सब छोड़कर यहां बीहड़ में… वे बोले मैं तैयार होता हूं आप पान सिंह तोमर के यहां से हो आओ.
मैं वापस पान सिंह तोमर के घर ( Paan Singh Tomar’s House ) गया. वहां उनके परिवार के लोगों के साथ फोटो खिंचवाई. और फिर आने लगा मंदिर की ओर. अब जो शख्स मेरे साथ थे उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि उनके घर भोजन करता चलूं. मैंने इनकार किया. लेकिन वे माने नहीं. कई बार अनुरोध किया और कहा कि बस दो रोटी खा लो. गजब का प्रेम था वह भी. घर पर उनकी बिटिया थीं जो गाजियाबाद में ही रहती हैं. उन्होंने भोजन परोसा. मटके से पानी निकालकर दिया. एक पल के लिए तो मैं भावुक हो गया. भोजन कर ही रहा था कि स्वामी जी आ गए. मैं जल्दी करने लगा तो बोले आराम से खाओ, गांव में कोई दिखावा नहीं. खाकर और मटके का पानी पीकर मैं निकल चला स्वामी जी के साथ ककरमठ के रास्ते पर.
अगले ब्लॉग में मैं आपको गांव ( Paan Singh Tomar’s Village Bhidosa ) की एक ऐसी समस्या के बारे में बताउंगा जिसे आज तक सरकार सुलझा नहीं सकी है. और तो और गांव में लोगों के दिल तो बड़े हैं लेकिन दिमाग बहुत छोटे, कारण लड़ाई और मार पिटाई. इसके बारे में जानकर बेहद दुख हुआ. ये किस्सा आज भी जारी है. अगले ब्लॉग में फिर मिलते हैं, अपना ध्यान रखिएगा. शुक्रिया
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