Kasol Tour Blog – Chalal Village Trek के पिछले ब्लॉग के बाद, इस ब्लॉग में आप Kasol Tour Blog के बारे में पढ़ेंगे. Kasol अपनी मार्केट और इजरायलियों के बारे में जाना जाता है. हम Kasol की अपनी यात्रा के इस ब्लॉग में आपको वहां की मार्केट, खान-पान, कल्चर के बारे में बताएंगे. तो आइए चलते हैं Kasol Tour Blog के इस सफ़र पर…
हम Chalal Village घूम चुके थे. वापसी की राह पर हमें एक जगह पार्वती नदी का शांत किनारा दिखाई दिया. यहीं किनारे पर हम काफ़ी देर बैठे, थकान को मिटाया. यहाँ पर विपिन के कुछ दिल्लीवाले दोस्त भी मिल गए. इन सभी का एक ही जिम था. जिम में तो कभी बात नहीं हुई थी लेकिन हमें फ़ोटो खिंचवाते देख, उन्होंने विपिन को पहचान लिया और शुरू हो गया मुलाक़ातों का दौर.
वो दो कपल्स थे. वो भी पत्थरों पर बैठकर, पानी में पैर डुबोकर तस्वीरें खिंचवा रहे थे. उन्होंने हमें बताया कि अगले दिन वो खीरगंगा ट्रेक के लिए जाएँगे. विपिन का प्लान भी अगले दिन खीरगंगा का ही था. सो, उन्होंने अपना प्लान फ़िक्स कर लिया. मुझे और संजय को मलाना निकलना था, किसी भी हालत में लेकिन कैसे निकलना है, ये नहीं पता था.
अब हम नदी का किनारा छोड़कर छलाल ट्रेक से कसौल की तरफ़ बढ़ने लगे. यहीं रास्ते में हमें पीठ पर भारी भारी रेफ्रिजरेटर उठाए लोग दिखे. ये लोग कसौल से सामान लेकर छलाल जा रहे थे. ग़ज़ब की जीवटता थी इन लोगों में. मैंने पूछा कि इतनी मेहनत का कितना पैसा मिलता है उन्हें, उन्होंने बताया कि 300 रुपये. ये मुझे बहुत कम लगा. ये सचमुच हाड़ तोड़ देने वाली मेहनत थी.
अब हम उसी ब्रिज पर आ गए, जहां दोपहर को पहुँचे थे. दोपहर में तो हम इस ब्रिज पर नहीं चढ़े थे लेकिन अब हमने इसी ब्रिज पर चढ़कर पार्वती नदी को पार करना शुरू कर दिया. ब्रिज पर से अंधेरे में लिपटा कसौल दिखाई दे रहा था. रोशनियों की झिलमिलाहट एक रूमानी अहसास पैदा कर रही थी. ब्रिज की खामोशी देखकर ऐसा लगा कि पूरा कसौल सो चुका है लेकिन जैसे ही हमने ब्रिज पार किया, मानों एक नई दुनिया हमारे सामने थे.
इस दुनिया में, यंगस्टर्स की भीड़, शॉपिंग प्लेस, फ़ूड मार्केट थे. मैं तो चकाचौंध देखकर ही दंग रह गया. ये देखकर मुझे गोवा के बागा बीच की याद आ गई. जब आप बागा बीच जाते हैं तो एक मार्केट से होकर गुजरते हैं. ये कुछ कुछ वैसा ही था. कसौल ( Kasol Tour Blog ) में, मेरा पहला वास्ता पड़ा मोमोज से. मैं तो नॉन वेज खाता नहीं हूँ लेकिन दोस्तों ने नॉन वेज मोमों यानी चिकन मोमोज लिए. ये 100 रुपये के थे और इसमें 10 पीस थे. साइज़ तो ठीक ठाक थे लेकिन रेट थोड़ा ज़्यादा लगा मुझे. हालाँकि रेट वेट छोड़िए, दुकानों पर ऐसी भीड़ थी कि पूछिए मत. हमने जहां से मोमों लिए उन्होंने स्टॉक रखे हुए थे. जैसे ही उनके बर्तन ख़ाली हुए पीछे से लड़के और मोमों ले आए. ग़ज़ब की इकॉनमी चल रही है भैया यहाँ तो.
मोमोज की दुकान के बाद हम कसौल मार्केट की तरफ़ बढ़े. यहाँ आपको German Bakery बहुत दिखाई देती है. एक जर्मन बेकरी पर मैंने इसमें बनने वाले आइटम्स के बारे में जाना. उन्होंने मुझे रम बॉल बनाने की विधि बताई. अपने किचेन में ले गए. सभी चीज़ें दिखाईं. मैंने उनसे पूछा कि यहां जर्मन बेकरी ही क्यों है, और ये नाम क्यों पड़ा. वो कोई सटीक उत्तर तो नहीं दे पाए लेकिन ये ज़रूर कहा कि पहले यहां सिर्फ एक ही जर्मन बेकरी हुआ करती थी लेकिन अब तो बहुत सारी हो गई हैं. उन्होंने ईमानदारी से हमें पहली जर्मन बेकरी के बारे में भी बताया जो उनकी दुकान से कुछ ही दूरी पर थी.
जर्मन बेकरी के बाद हम कसौल के मार्केट में आगे बढ़ चले थे. यहाँ आपको कपड़े, बैग्स और जूलरी टंगी दिखाई देती है. ये जो बैग हैं इनमें से कुछ Weed से ही बनते हैं. हमने कई शॉपिंग वालों से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ. इस मार्केट से आगे बढ़े तो हमें एक रेस्टोरेंट के बाहर इज़रायली भाषा में लिखा हुआ कुछ दिखाई दिया. हम इस रेस्टोरेंट में गए. वहाँ के शख़्स ने कैमरे पर आने से इनकार कर दिया लेकिन ऑडियो के लिए वो तैयार हो गए. मैंने उनसे पूछा कि इज़रायली भाषा में क्या लिखा हुआ है, उन्होंने कहा कि ये भोज सेमिबोरेकस लिखा है. भोज इंडियन नाम है और सेमिबोरेकस इज़रायली. इसके बाद, उन्होंने इज़रायलियों और कसौल के रिश्ते के बारे में काफ़ी बातें की, आप इसका ज़िक्र हमारे वीडियो में देख सकते हैं.
हम यहाँ से आगे बढ़े. दाहिनी तरफ़ हमें एक वाइन शॉप दिखाई दी. इस शॉप के ओनर बेहद खुले दिल के थे. उन्होंने हमें एक से बढ़कर एक हिमाचल मेड़ वाइन दिखाई. ये वाइन सिर्फ़ हिमाचल में ही मिलती हैं, इससे बाहर इन्हें बेचना अपराध है. उन्होंने हमें एक ख़ास वाइन दिखाई जो बेहद ऊँचाई पर उगने वाले फूलों के रस से बनाई जाती है. हमने जब उनसे पूछा कि आप किस वाइन को प्रिफर करेंगे तो उन्होंने इसी वाइन का सुझाव दिया. वाइन की इस वैरायटी की जानकारी आप हमारे वीडियो में देख सकते हैं.
इस मज़ेदार बातचीत के बाद सफ़र आगे बढ़ा. इस सफ़र में ऐसा लगा कि जैसे ईश्वर ने ही सब फ़िक्स कर रखा है. बातें मुलाक़ातें होती रहीं, शानदार बातें पता चलती रहीं. लेकिन हाँ, अभी रुकिए, सबसे मज़ेदार क़िस्सा बाक़ी है अभी. अब मैं एक ऐसे रेस्टोरेंट के बाहर पहुँचा जो ग़ज़ब की डेकोरेशन से जगमगा रहा था. इस रेस्टोरेंट के बाहर मैं इसे देख रहा था. बग़ल में एक शख़्स इसकी फ़ोटो खींचते दिखे. मैंने इनसे पूछा कि क्या इसके ओनर से बात हो सकती है, उन्होंने कहा कि बताइए, मैं ही ओनर हूँ. बस फिर क्या था. मेरे अनुरोध पर पहले तो उन्होंने इनकार किया और कहा कि कल आइएगा. बोले अभी काम काफ़ी है. इतना कहकर वो अंदर चले गए. जब हम वहाँ से पीछे मुड़ने को हुए तो आए और कहा कि आ जाइए. हमारे भाई साहब हैं वो आपको सब बता देंगे.
इस कैफ़े के ओनर दो भाई थे. और जिनसे हमारी बात हुई थी वो छोटे भाई थे. उन्होंने हमें अपने बड़े भाई से मिलवाया. उनके बड़े भाई से हम किचेन में मिले. उन्होंने खुलकर हमसे बात की. अपने खाने के बारे में बताया, कैफ़े की शुरुआत कैसे हुई ये बताया, और ये भी बताया कि वो यहाँ रेस्क्यू ऑपरेशन का काम भी करते हैं और बीते साल इज़रायली टूरिस्ट को रेस्क्यू करने पर उन्हें इज़रायली एंबेसी से सर्टिफिकेट भी मिला था. दिल से सम्मान निकला उनके लिए दोस्तों. उन्होंने हमें अगले दिन पूरी टीम के साथ लंच का ऑफ़र भी दे डाला. खैर, ये तो हमारे लिए संभव नहीं था तो हमने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया.
हम जैसे ही बाहर निकले, संजय के दिमाग़ की बत्ती जल उठी. उसने कहा कि यार लंच न सही, इनसे मलाना तक के लिए गाड़ी का इंतज़ाम करने को बोल दे. वाह क्या आइडिया था. हम भागे भागे वापस गए. बड़े भाई साहब से रिक्वेस्ट की, उन्होंने छोटे से बात करने को कहा, छोटे भी आए. 2000 से शुरू हुई बात 1500 पर आकर डन हो गई. इनके साथ जाने से हमें वहाँ के स्थानीय लोगों से बातचीत का मौक़ा आसानी से मिल जाता. छोटे वाले भाई जी के वहाँ काफ़ी संपर्क थे. बस क्या था, तबीयत खुश हो गई. यहाँ लगा कि ईश्वर हमारे साथ है.
Kasol Tour Blog के बाद अगले ब्लॉग में पढ़िए वापस CHOJ Village पहुँचने का क़िस्सा और कैंप वालों की एक नादानी कैसे हमारे लिए मुसीबत बनते बनते बची….
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