भिड़ौसा गांव ( Bhidosa Village ) पहुंचकर मेरी गलतफ़हमी दूर हो चुकी थी. मैं अभी तक अपने गांव को सुदूर क्षेत्र का समझता था, जो शहर से दूर हो, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं न हों. लेकिन यहां ( Bhidosa Village ) तो मैंने और भी बहुत कुछ देखा जो नहीं था. जैसे- कोई स्कूल मुझे नहीं दिखा, अच्छा बाज़ार नहीं दिखा, गांव में रास्ते अच्छे नहीं थे और सबसे बड़ी बात ये कि लोगों के दिलों दिमाग पर लड़ाई के किस्से ही ज़्यादा हावी थे. बदले की आग मुझे कईयों के सीने में जलती दिखाई दी. यह चंबल की उस कहावत को सच साबित कर रहा था जिसे हम अक्सर ही सुनते हैं – जाको बैरी जीवित बैठो, ताके जीवन को धिक्कार या फिर जाको बैरी जीवित घूमें, वाको जीवन है बेकार…
गांव ( Bhidosa Village ) में सबसे पहले मुझे ट्रैक्टर पर बिठाने वाली टोली ही मिली. मैं आगे बढ़ता उससे पहले ही, माथे का अंगोछा हटाते इन लोगों ने कहा कि हमारे गांव में जमीन का सीमांकन सही ढंग से नहीं है. राजस्व वाले आज तक इसे सही नहीं कर सके हैं और इसी नापजोख की खामी की वजह से गांव में लड़ाई आम बात है. प्रशासन की गलती की कीमत आम आदमी चुका रहा है. उन्होंने कहा कि जब तक नाप जोख नहीं होगा, गांव में शांति नहीं हो सकती है.
पान सिंह तोमर के गांव ( Bhidosa Village ) का हर रास्ता नाले की गंदगी से पटा पड़ा था. रास्ते में कीचड़ जगह जगह फैली मिली. मैंने कुछ नौजवान लड़कों से बात करते करते पूछा भी लेकिन वह बोले कि जो भी काम होता है, घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए मार्ग ऐसा दिखाई दे रहा है.
जब मैं पान सिंह तोमर के घर गया तो मुझे वहां उनकी बहू मिलीं. उनसे काफी बात हुई, आप वीडियो में उसे ज़रूर देखिएगा. चलते चलते मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं उस परिवार से मिल सकता हूं जिसके साथ आपकी लड़ाई है. उन्होंने मुझे इनकार कर दिया. कहा, क्या करने जाओगे. दुश्मन लोग हैं. वे नहीं चाहते, उन्हें अच्छा नहीं लगता… मैंने मन में सोचा गांव को एक फिल्म से पहचान मिली, अब तो हर बीती बात भुला देनी चाहिए.
मंदिर के स्वामी जी से मैंने बात की. उन्होंने कहा कि यहां लोगों की सोच सिर्फ लड़ाई-झगड़े तक ही सीमित है. कोई भी उन्नति प्रगति की बात नहीं करता है. आप गांव ( Bhidosa Village ) घूम आओ, आपको एक शख्स तरक्की पसंद नहीं मिलेगा. हर किसी पर सिर्फ बदले का जुनून सवार है.
मंदिर के स्वामी जी मुझे एक और शख्स से मिलवाने ले गए. ये मुझे बेहद अक्खड़मिजाज के लगे. मैं इनके पास जाकर बैठा तो ऐसा मानिए कि सिर पकड़ लिया. उन्होंने कहा कि बांसवारी तो आम है गांव में. कोई अधर्म करेगा तो हम भी पीछे नहीं हटेंगे. मरने-मारने का जुनून दिखाई दिया इनपर. सच में दोस्तों, इस गुस्से से हम कितना कुछ गंवा देते हैं.
मेरा यही मानना है कि गुस्सा किसी को कुछ देता नहीं है, और बीत जाने वाला समय फिर लौटता नहीं है. अगर सरकार का कहीं दोष है तो गांव ( Bhidosa Village ) के लोग भी तो साथ बैठ सकते हैं. क्यों वे अपने वक्त को इस दुश्मनी की वजह से बर्बाद होने दे रहे हैं. खैर, पान सिंह तोमर के गांव ( Bhidosa Village ) की यात्रा यहीं पूरी हुई. अगले ब्लॉग में पढ़िएगा ककनमठ मंदिर की यात्रा का वृत्तांत. धन्यवाद
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