Orchha Travel Blog : मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में बेतवा नदी की बाहों में बसा है ओरछा। स्थित है। ओरछा बुन्देलखण्ड के राजा रूद्र प्रताप सिंह द्वरा सन् 1501 में स्थापित किया गया था। ये झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। महाराजा रूद्र प्रताप सिंह ओरछा के पहले शासक थे। ओरछा का मतलब है गुप्त स्थान। ओरछा में पहला कदम रखते ही आपको ऐसा महसूस होगा कि जैसे इतिहास के पन्नों में मन खो गया है। जहां पर सैनिक अस्त्र-शस्त्र लेकर महल में चारों तरफ सुरक्षा के लिए तैनात हो। चारों ओर संगीत की मधुर धुन गूंजती हो। रानियां परदे के पीछे से दरबार को देख रही हों और राजा दरबारियों के साथ अपनी बैठक में बैठे हों। हालांकि अब न तो राजा रहे और ना ही राजघरानें लेकिन ओरछा कि विरासत हर कण में मौजूद है। आज ओरछा पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक मुख्य केंद्र बना हुआ है। वास्तुकला के प्रतीक, बुंदेलखन्ड राज्य के महल, किले, भव्य मंदिर और इस राज्य के संस्कृति से जुड़ी प्रतिमा, चित्रकला आदि से आप खुद को यहां से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।
क्या-क्या देखें ओरछा में
ओरछा किला बेतवा नदी के द्वीप पर स्थित है। ये एक बेहद ही सुंदर जगह है और इसके अलावा किले के पास महल और मंदिर भी हैं। किले के अंदर देखे जाने वाले तीन सबसे महत्वपूर्ण महल जहांगीर महल, राज महल और प्रसिद्ध राय परवीन महल हैं। जहांगीर महल वास्तुकला को दर्शाता है। महल में शानदार बहुमंजिला बालकनी है। वहीं राज महल ओरछा किले में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। राय परवीन महल जो कि अब खंडहर में बदल चुका है। इसके आस-पास शानदार बगीचों के साथ एक सुंदर महल था। राय परवीन एक कवि और नर्तक थे। उनके आकर्षण ने राजा इंद्रमणी को इतना आकर्षित किया कि उसके लिए महल बनाया गया। वहीं इस किले के पास राम राजा मंदिर है जो कि ओरछा में एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, ये पहले महल हुआ करता था। ये महल मंदिर में बदल गया। ये एकमात्र ऐसा स्थान है जिसमें राम की पूजा एक राजा के रूप में की जाती है।
17वीं सदी में मशहूर बुंदेला राजपूत राजाओं द्वारा चतुरभुज मंदिर को बनाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की विशेष जगह राजा द्वारा उनके महल की बालकनी से भगवान कृष्ण को देखने में सक्षम बनाने के लिए तय की गई थी। मंदिर की ऊपरी मंजिल की कला भी अद्भुत हैं।
400 साल पहले बने इस किले ने कई कठिन समय देखे हैं। ये किला राजा बीर सिंह द्वारा एक चट्टानी पहाड़ी पर बनाया गया था। शहर के केंद्र में बना विशाल किला जिसे रानी झांसी का किला भी कहते हैं। ये किला 49 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है।
ये वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी 1994 में स्थापित की गई थी, यहां पर पाए जाने वाले कुछ जानवरों में बाघ, तेंदुए, लंगूर, जैकल, स्लोथ भालू, नीले बैल, बंदर और मोर शामिल हैं। ये जगह पक्षियों के लिए भी एक घर है क्योंकि यहां पर पक्षियों की लगभग 200 प्रजातियां हैं। इस जगह पर जाने वाले प्रवासी पक्षियों में किंगफिशर, वुडटरेकर उल्लू, जंगल झाड़ी बटेर, काले हंस और हंस शामिल हैं।
लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण सन् 1662 में हुआ था। ये मंदिर अतीत के कारीगरों की खूबसूरत रचनात्मकता को दर्शाता है क्योंकि ये वास्तुशिल्प शैली मंदिर और किले का मिश्रण है। मंदिर में मुख्य रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा होती है। दीवारों और छत पर हुई कलाकारी से मंदिर की शोभा औऱ ज्यादा बढ़ती है। हालांकि रखरखाव की कमी की वजह से मंदिर को दोबारा से 1793 में पृथ्वी सिंह ने बनवाया था।
दीनमन हार्डोल का किला || Fortress of Dinman Hardol
दीनमन हार्डौल का महल राजकुमार हार्डोल का सम्मान करने के लिए बनाया गया था, जिन्होंने खुद को साबित करने के लिए अपनी जिंदगी का बलिदान कर दिया था। उन्होंने अपने बड़े भाई झुहर के करीबी मूल्यों को साबित किया था। हार्डोल ने जीवन को खत्म करने का निर्णय कर आत्महत्या कर ली थी। क्योंकि जब उनके भाई ने उनपर अपनी पत्नी के साथ प्रेम प्रसंग होने का संदेह किया था, तो उन्होंने भाई के लिए अपने सम्मान को प्रकट करने के लिए ये कदम उठाया था। 17वीं सदी में बना ये महल ना तो सिर्फ राजकुमार हार्डौल की ईमानदारी का प्रमाण है, बल्कि अतीत की वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
ओरछा जाने के लिए वायू, सड़क और रेल तीनों मार्ग है। ओरछा जाने के लिए सबसे पास हवाईअड्डा झांसी का है, जो कि सिर्फ 16 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप टैक्सी या फिर बस लेकर जा सकते हैं। वहीं सबसे पास का रेलवे स्टेशन भी झांसी का ही है। यहां पर भारत के अलग अलग हिस्सों से ट्रेन आती है। वहीं अगर आप सड़क के रास्ते से यहां जाना चाहते हैं तो मध्यप्रदेश के हर जिले से ओरछा जाने की सुविधा अपलब्ध है। राज्य के महत्वपूर्ण स्थानों से आपको ओरछा के लिए नियमित रूप से बसें मिल जाती है।
कब जाएं ओरछा || When to visit Orchha
ओरछा जाने का सबसे अच्छा वक्त अक्टूबर से मार्च का है। इन महीनों को ओरछा जाने के लिए सबसे पसंदीदा माना जाता है। सर्दियों के साथ-साथ इन महीनों में त्योहारों का वक्त भी होता है तो यहां पर जाना सबसे सही रहता है।
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