G20 Summit : PM मोदी ने वैश्विक नेताओं को दिखाया Sabarmati Ashram, जानें उसके बारे में
G20 Summit : प्रधानमंत्री Narendra Modi ने 10 सितंबर को जी20 नेताओं और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अन्य प्रमुखों के साथ Rajghat पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी. इस अवसर पर पीएम मोदी मे सभी वैश्विक नेताओं का स्वागत Sabarmati Ashram पोस्टर के सामने किया. इसके साथ ही सभी वैश्विक नेताओं को Sabarmati Ashram के बारे में बताया. दोस्तों क्या आप जानते हैं Sabarmati Ashram का बापू से क्या रिश्ता है और उसकी क्या अहमियत है.आज के आर्टिक में हम आपको बताते हैं Sabarmati Ashram के बारे में सबकुछ…
United Kingdom Prime Minister Rishi Sunak, Canadian Prime Minister Justin Trudeau, President of the Union of Comoros and Chairperson of the African Union (AU), Azali Assoumani, Nigerian President Bola Ahmed Tinubu, Spain’s Vice-President Nadia Calvino, Minister of Economy of United Mexican States, Raquel Buenrostro Sánchez ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी और पुष्पांजलि भी अर्पित की.
पीएम मोदी ने नेताओं का स्वागत खादी शॉल के साथ किया. इस मौके पर राजघाट रंग-बिरंगे फूलों से सजाया हुआ था. जी20 शिखर सम्मेलन के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में सुरक्षा भी बढ़ा दी गई थी. यातायात सुचारू रखने के लिए भी आवश्यक इंतजाम किये गये.
अहमदाबाद एक मनोरम शहर है जो कई ऐतिहासिक खजानों से भरपूर है और अपनी लुभावनी कहानियों से टूरिस्ट को प्रेरित करता है. अहमदाबाद के नाम से जाना जाने वाला यह स्थान भारत के स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य केंद्र रहा है क्योंकि यहां महत्वपूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन शुरू किए गए थे.शहर का एक प्रमुख स्थल साबरमती आश्रम है जहां बापूजी अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ रहते थे. हरिजन आश्रम और सत्याग्रह आश्रम के रूप में अधिक फेमस यह गैर-लाभकारी संगठन टाउन हॉल से चार मील दूर साबरमती नदी के तट पर स्थित है.
साबरमती आश्रम का इतिहास || History of Sabarmati Ashram
देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी का गुजरात से गहरा नाता था. अहमदाबाद को महात्मा गांधी और सरदार पटेल के राजनीतिक-सांस्कृतिक शहर के रूप में जाना जाता था. यह वह स्थान है जहां महात्मा गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ बारह वर्षों तक रहे थे.
आश्रम का महत्व इस तथ्य से है कि यहीं से गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च का नेतृत्व किया था जिसे नमक सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है. इसके महत्व के कारण आश्रम को अब एक राष्ट्रीय स्मारक माना जाता है. गांधीजी ने अपने फॉलोअर्स के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक दांडी मार्च शुरू किया जो साबरमती से 241 मील दूर स्थित है.
25 मई 1915 को दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधीजी अहमदाबाद के कोचरब में रहने लगे. वह खुद को पशुपालन, गाय प्रजनन और खेती सहित कई गतिविधियों में संलग्न करना चाहते थे, इसलिए वह साबरमती नदी के तट पर एक खुले क्षेत्र में चले गए थे.
किंवदंतियों में कहा गया है कि प्रसिद्ध संत दधीचि ऋषि एक बार इस स्थान पर रहते थे. कहा जाता है कि भगवान शिव के एक प्रबल भक्त दधीचि या दध्यांच ने अपने जीवन का बलिदान दिया था ताकि उनकी हड्डियों से परमवीर चक्र या वज्र नामक सबसे बड़ा हथियार बनाया जा सके.
1917 से 1930 तक गांधीजी उस आश्रम में रहे जिसका नाम प्रसिद्ध नदी साबरमती के नाम पर रखा गया है. नमक सत्याग्रह या दांडी मार्च ब्रिटिश शासन से आजादी की मांग करने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय आंदोलनों में से एक है.
राजघाट का इतिहास || History of Rajghat
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर, राजघाट पुरानी दिल्ली में यमुना नदी के तट पर स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित एक स्मारक है. राजघाट महात्मा गांधी का अंतिम विश्राम स्थल है. महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार उनकी हत्या के एक दिन बाद 31 जनवरी 1948 को राजघाट पर किया गया था. स्मारक का डिज़ाइन वनु जी. भूटा द्वारा किया गया था, जिनका उद्देश्य इसे महात्मा के जीवन की सादगी को प्रतिबिंबित करना था. इसने अपने वास्तुशिल्प डिजाइन के लिए कई पुरस्कार जीते हैं.
महात्मा गांधी का स्मारक पत्थर काले पत्थर से बने एक साधारण चौकोर मंच पर रखा गया है, जिस पर हे राम शब्द अंकित हैं. इसे आकाश की ओर खुला छोड़ दिया जाता है जबकि इसके एक सिरे पर अनन्त लौ जलती रहती है.जिस सड़क पर यह स्थित है उसे महात्मा गांधी रोड के नाम से भी जाना जाता है.
यह फव्वारों और असंख्य पेड़ों से युक्त एक अच्छी तरह से बनाए गए बगीचे के बीच स्थित है जो इस क्षेत्र को एक शांत वातावरण देता है. स्मारक के पास, महारानी एलिजाबेथ द्वितीय, हो ची मिन्ह, पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री गफ व्हिटमैन और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर जैसे गणमान्य व्यक्तियों द्वारा लगाए गए लेबल वाले पेड़ हैं. बगीचे के चारों ओर विभिन्न भाषाओं में गांधी द्वारा लिखे गए उद्धरण और विचार उकेरे गए हैं.
राजघाट की दीवारों में प्रवेश करने से पहले सभी मेहमानों को अपने जूते उतारने होंगे. राजघाट के उत्तर में जवाहरलाल नेहरू का दाह संस्कार स्थल है जिसे शांति वन के नाम से जाना जाता है. इसके पास ही इंदिरा गांधी, जिनकी 1984 में हत्या कर दी गई थी और उनके दो बेटों संजय (1980) और राजीव (1991) का दाह संस्कार स्थल है. राजघाट के सामने गांधी राष्ट्रीय म्यूजियम है जिसमें गांधीजी की कुछ चीज़ें रखी हुई हैं.