Matua Community History : देशभर में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA लागू हो गया है. मोदी सरकार की तरफ से 11 मार्च को CAA के नियमों को नोटिफाइड कर दिया गया. जिसके मुताबिक गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इस कानून के तहत सरकार बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता देगी. ये फायदा केवल उन्हीं प्रवासियों/शरणार्थियों को मिलेगा जो 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके हैं.
केंद्र सरकार के इस कदम का कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं. वहीं मोदी सरकार वादा पूरा किए जाने पर अपनी पीठ थपथपा रही है. CAA के खिलाफ असम में कई संगठनों ने प्रदर्शन का एलान कर दिया है. वहीं, पश्चिम बंगाल में एक समुदाय CAA लागू होने को लेकर खुशियां मना रही है. और वो है मतुआ समुदाय (Matua Community). अब ये समुदाय है क्या और ये CAA लागू होने पर खुश क्यों हो रही है? विस्तार से जानते हैं.
मतुआ समुदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में हुई थी. मतुआ महासंघ की मूल भावना है चतुर्वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की व्यवस्था को खत्म करना. यह संप्रदाय हिंदू धर्म को मान्यता देता है लेकिन ऊंच-नीच के भेदभाव के बिना. इसकी शुरुआत समाज सुधारक हरिचंद ठाकुर ने की थी. उनका जन्म एक गरीब और दलित नामशूद्र परिवार में हुआ था. संप्रदाय से जुड़े लोग हरिचंद ठाकुर को भगवान विष्णु और कृष्ण का अवतार मानते हैं. सम्मान में उन्हें श्री श्री हरिचंद ठाकुर कहते हैं.
आजादी के बाद मतुआ संप्रदाय की शुरुआत करने वाला ठाकुर परिवार भारत आ गया. वो पश्चिम बंगाल में आकर बस गए. चूंकि बंगाल दो हिस्सों में बंट गया था, ऐसे में मतुआ महासभा को मानने वाले कई लोग पाकिस्तान के कब्जे वाले तत्कालीन पूर्वी बंगाल से भारत के पश्चिम बंगाल आ गए. हरिचंद ठाकुर की दूसरी पीढ़ी मतुआ समुदाय के केंद्र में थी. पूरा जिम्मा उनके पड़पोते प्रमथ रंजन ठाकुर पर था. बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम की एक शरणार्थी बस्ती बसाई गई. इसमें सीमापार से आने वालों खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों को रखने का इंतजाम किया गया. प्रमथ रंजन ठाकुर ने 1962 में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट हांसखली से विधानसभा का चुनाव लड़ा. जीतकर विधानसभा पहुंचे.
यहां से मतुआ समुदाय की ताकत बंगाल में लगातार बढ़ती रही. और उनकी बढ़ती ताकत के आगे धीरे-धीरे सभी नतमस्तक होते रहे. सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की ताकत कम हुई, और लेफ्ट मजबूत हुआ. बंगाल की राजनीति के जानकार बताते हैं कि लेफ्ट की ताकत बढ़ाने में मतुआ समुदाय का बड़ा हाथ रहा. 1977 के चुनाव से पहले प्रमथ रंजन ठाकुर ने लेफ्ट को समर्थन दिया. बांग्लादेश से लगे इलाकों और मतुआ महासभा के भक्तों ने लेफ्ट पार्टी के लिए जमकर वोट किया. 1977 में लेफ्ट की सरकार बनी, जो साल 2011 तक शासन में रही. इस दौरान मतुआ समुदाय का समर्थन उन्हें मिलता रहा.
मतुआ समुदाय नादिया और बांग्लादेश की सीमा से सटे उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों की 30 से अधिक विधानसभा सीटों पर किसी भी राजनीतिक दल की किस्मत का फैसला कर सकता है. कभी टीएमसी के समर्थक रहे मतुआ समुदाय के सदस्यों ने 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था.
मतुआ समुदाय ‘स्वयं-दर्शन’ या ‘आत्म-दर्शन’ में विश्वास करता है, जिसके तहत भगवान को आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से जाना जाता है. वे ‘हरिनाम संकीर्तन’ का भी अभ्यास करते हैं, जिसमें भगवान के नाम का जाप किया जाता है. मतुआ समुदाय ‘हरिचंद्र ठाकुर’ को भगवान विष्णु और कृष्ण का अवतार मानता है.
मतुआ समुदाय मुख्य रूप से बंगाल और बांग्लादेश में निवास करता है. यह समुदाय विभिन्न जातियों और सामाजिक समूहों से बना है, जो ‘हरिचंद्र ठाकुर’ की शिक्षाओं से प्रेरित हैं. मतुआ समुदाय में महिलाओं को समान अधिकार और सम्मान दिया जाता है.
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