Old Parliament House अब इतिहास हो बन चुका है. यहां कभी प्रधानमंत्री Jawaharlal Nehru ने अपना प्रसिद्ध भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” दिया था और 15 अगस्त 1947 को आधी रात को भारत को आजादी मिली थी. यहीं पर हमारे कुछ महानतम नेताओं, समाज सुधारक, बुद्धिजीवी और 75 वर्षों में हमारे इतिहास को आकार देने वाले लोग बैठे हैं, खड़े हुए हैं और बहस की है.’
Old Parliament House के तीन अहम खंड- लोकसभा, राज्यसभा और सेंट्रल हॉल ने देश की आजादी मिलने से लेकर आज तक इसने कई गौरवान्वित करने वाले क्षण देखे हैं. Old Parliament House में भारत का संविधान लिखा. यहीं पर बाबासाहेब अम्बेडकर जैसे दिग्गजों ने हमारे राष्ट्र की नींव को आकार दिया था. Old Parliament House के निर्माण में छह वर्ष (1921-1927) लगे. मूल रूप से ‘हाउस ऑफ पार्लियामेंट’ कही जाने वाली इस इमारत में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद कार्यरत थी.
क्या किसी मंदिर से प्रभावित है डिजाइन || Is the design influenced by any temple
माना जाता है कि 1927 में बनकर तैयार हुए गोलाकार संसद भवन का डिजाइन मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित चौसठ योगिनी के मंदिर से प्रभावित है, आप अगर पुराने संसद भवन और इस मंदिर को देखेंगे तो आपको काफी समानताएं नजर आएंगी, हालांकि इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है.
कैसे चुनी गई जगह|| How was the place chosen
पुराने संसद भवन के निर्माण के लिए जगह चुनने के लिए बकायदा कमेटी बनाई गई जिसने अलग-अलग तरीकों से इसके लिए जगह की खोज की. कमेटी ने शाहजहां के बसाए शाहजहानाबाद के पास उस वक्त मौजूद मालचा गांव और उसके पास मौजूद एक किले के बीच की जगह, जिसे रायसिना की पहाड़ियां (Raisina Hills) कहा जाता था, को इसके लिए चुना. इसे समतल किया गया और फिर शुरू हुआ भवन का निर्माण. रायसिना हिल्स में ही राष्ट्रपति भवन, नया संसद भवन नॉर्थ-साउथ ब्लॉक जैसी खूबसूरत इमारतें मौजूद हैं. इस जगह को समतल कर पुराने संसद भवन का डिजाइन बनाया गया और 1921 में इसका निर्माण शुरू कर दिया गया. 6 सालों बाद ये भवन बनकर तैयार हुआ.
कितना खर्च आया था? कौन से पत्थर हुए इस्तेमाल || How much did it cost? What stones were used
96 साल पहले बने संसद भवन को बनाने में उस वक्त 83 लाख रुपये खर्च हुए थे. इस शानदार इमारत को बनाने में लाल और बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया.
वास्तुकला का शानदार उदाहरण || Amazing example of architecture
वास्तुकला के बेजोड़ उदाहरण और करीब एक सदी तक भारत की नियति को दिशा देने के प्रतीक और अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए ऐतिहासिक पुराने संसद भवन का उद्धाटन तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने 18 जनवरी, 1927 को किया था, जिसके बाद से यह इमारत कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम की साक्षी बनी. भारत के लोकतंत्र के मंदिर के तौर पर पूजा जाने वाला पुराना संसद भवन बीते करीब साढ़े नौ दशक में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी शासन का साक्षी बना और इसके कक्षों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे क्रांतिकारियों भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंके गए बम के धमाकों की गूंज सुनी. इस इमारत ने देश में आजादी का सवेरा होते देखा और इसे 15 अगस्त 1974 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक ट्राइस्ट विद डेस्टिनी (नियति से साक्षात्कार) भाषण की गवाह बनने का भी सौभाग्य मिला.
पहली मंजिल पर लाल बलुआ पत्थर के 144 स्तंभ वाला गोलाकार पुराना संसद भवन वास्तुकला का शानदार नमूना है. पुरानी इमारत का उस समय बहुत धूमधाम से उद्घाटन किया गया था जब ब्रितानी राज की नयी शाही राजधानी नई दिल्ली का रायसीना हिल क्षेत्र में निर्माण किया जा रहा था. अभिलेखीय दस्तावेजों और दुर्लभ पुरानी तस्वीरों के अनुसार, इस भव्य इमारत के उद्घाटन के लिए 18 जनवरी, 1927 को एक भव्य आयोजन किया गया था. उस समय इसे काउंसिल हाउस के रूप में जाना जाता था.
12 फरवरी, 1921 को संसद भवन की आधारशिला || Foundation stone of Parliament House on February 12, 1921
एक सदी पहले, जब राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया अभी जारी थी और आजादी 26 साल दूर थी, तब ब्रिटेन के ड्यूक ऑफ कनॉट ने 12 फरवरी, 1921 को संसद भवन की आधारशिला रखी थी और कहा था कि यह भवन भारत के पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में खड़ा रहेगा, जिसमें देश और भी ऊंची नियति हासिल करेगा. कुल 560 फुट के व्यास और एक-तिहाई मील की परिधि वाली इस इमारत को सर हर्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था, जिन्हें सर एडविन लुटियंस के साथ रायसीना हिल क्षेत्र में नई शाही राजधानी को डिजाइन करने के लिए चुना गया था.
न्यू डेल्ही – मेकिंग ऑफ ए कैपिटल पुस्तक के अनुसार, लॉर्ड इरविन अपनी गाड़ी में ग्रेट प्लेस (अब विजय चौक) पहुंचे थे और फिर उन्होंने सर हर्बर्ट बेकर द्वारा उन्हें सौंपी गई सुनहरी चाबी से काउंसिल हाउस का दरवाजा खोला था. उस समय घरेलू और विदेशी मीडिया में संसद भवन के उद्घाटन ने उसी तरह खूब सुर्खियां बटोरी थीं, जिस तरह इन दिनों नए संसद भवन की उद्घाटन से पहले मीडिया में खूब चर्चा है.
पुराने संसद भवन की यात्रा ब्रिटेन के तत्कालीन महाराजा किंग जॉर्ज पंचम के शासन के तहत निर्मित भारत की नई राजधानी की यात्रा भी है, जिसे उन्होंने इस भवन के उद्घाटन से एक महीने पहले 1926 में नई दिल्ली नाम दिया था. लुटियंस और बेकर ने नई शाही राजधानी को आकार दिया, जिसमें वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) का निर्माण किया गया और नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक को नई दिल्ली का केंद्र बनाया गया. लॉर्ड इरविन ने 1927 में पुराने संसद भवन का उद्घाटन किया था. सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास के तहत निर्मित नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही भारत एक नए अध्याय की शुरुआत करे.
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