History Of Morbi Bridge : गुजरात के मोरबी में रविवार को एक पुल के गिरने से करीब 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. कई लोग अभी भी लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है. बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त पुल पर 500-700 लोग सवार थे. अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस पुल में ऐसा क्या था कि इतनी बड़ी संख्या में लोग एक साथ जमा हो गए. (History Of Morbi Bridge) जबकि इस ब्रिज की क्षमता 100 लोगों की थी. यहां हम आपको इस ब्रिज से जुड़ी सारी जानकारी बताने जा रहे हैं.
माछू नदी पर बने इस पुल का इतिहास करीब 140 साल पुराना है. इस ब्रिज की बात करें तो यह गुजरात के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक बन गया था. यहां रोजाना बड़ी संख्या में लोग आते थे.
क्योंकि यह पुल हवा में झूलता था और यह बिल्कुल ऋषिकेश के राम और लक्ष्मण झूले जैसा था, इसलिए यहां बड़ी संख्या में लोग आते थे. रविवार को इस पुल पर एक साथ 500-700 लोग जमा हो गए और पुल बोझ नहीं उठा सका. (History Of Morbi Bridge) पुल टूट कर नदी में गिर गया, जिससे लोग बह गए.
मोरबी का छोटा शहर अहमदाबाद से लगभग 200 किमी, कार द्वारा लगभग चार घंटे की दूरी पर स्थित है. 200,000 से कम की आबादी वाला यह शहर माचू नदी पर स्थित है. 1877 में जब शहर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन था, मोरबी के पूर्व शासक सर वाघजी ठाकोर द्वारा कथित तौर पर 230 मीटर का निलंबन पुल बनाया गया था. मोरबी में माचू नदी पर बने इस पुल का निर्माण वर्ष 1879 में पूरा हुआ था और इसका उद्घाटन मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने किया था.
उस वक्त इसे बनाने में करीब साढ़े तीन लाख रुपये खर्च हुए थे. इस पुल के निर्माण के लिए सारी सामग्री ब्रिटेन से आई थी. निर्माण से लेकर हादसे से पहले तक इस पुल की कई बार मरम्मत की जा चुकी है. इस ब्रिज की लंबाई 765 फीट थी. सीधे शब्दों में कहें तो यह पुल 1.25 मीटर चौड़ा और 230 मीटर लंबा था.
मोरबी की जिला कलेक्ट्रेट वेबसाइट के अनुसार, 1922 तक गुजरात पर शासन करने वाले ठाकोर ने “मोरबी के शासकों की प्रगतिशील और वैज्ञानिक नेचर” के प्रतीक के रूप में पुल का निर्माण किया.
उस समय पुल बनाने का मकसद नज़रबाग पैलेस को जोड़ने के लिए था, जहां शाही दरबारगढ़ पैलेस में रहते थे. आज यह दरबारगढ़ पैलेस हेरिटेज होटल को शहर के बाकी हिस्सों से जोड़ता है और एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है.
यह पुल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का भी गवाह रहा है. यह भारत के सबसे पुराने पुलों में से एक था, इसलिए यह एक पर्यटन स्थल बन गया था. इस ब्रिज पर जाने के लिए 15 रुपये फीस ली जाती थी.
11 अगस्त, 1979 को माछू नदी पर बना एक बांध ढह जाने से कम से कम 1,500 लोग मारे गए और 13000 से अधिक जानवर मारे गए. लगातार बारिश के कारण स्थानीय नदियों में बाढ़ आ गई और माचू बांध उफान पर था. दोपहर 3.15 बजे बांध टूट गया और 15 मिनट के भीतर बांध का पानी पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था.
इस दुखद दुर्घटना के कुछ दिनों बाद जब इंदिरा गांधी मोरबी गईं, तो दुर्गंध के कारण उनके लिए अपना दौरा करना बहुत मुश्किल था. भारत की सबसे बड़ी बांध आपदाओं में से एक में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई.
19वीं सदी का पुल, जो बाढ़ से बच गया था, 2001 के गुजरात भूकंप में गंभीर क्षति हुई जिसने राज्य के कई हिस्सों को जर्जर अवस्था में छोड़ दिया. भुज में भूकंप के केंद्र से महज 150 किलोमीटर दूर मोरबी को भारी नुकसान हुआ है.
यह पुल पिछले 6 महीने से मरम्मत के चलते आम जनता के लिए बंद था. इसे 25 अक्टूबर से फिर से जनता के लिए खोल दिया गया. इन 6 महीनों में पुल की मरम्मत पर करीब 2 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस पुल के रखरखाव की जिम्मेदारी फिलहाल ओधवजी पटेल के स्वामित्व वाले ओरेवा ग्रुप के पास है.
इस समूह ने मार्च 2022 से मार्च 2037 तक 15 वर्षों के लिए मोरबी नगर पालिका के साथ एक समझौता किया था, इस समझौते के आधार पर, इस पुल के रखरखाव, सफाई, सुरक्षा और टोल संग्रह जैसी सभी जिम्मेदारी ओरेवा समूह के पास है.
जिंदल ग्रुप ने इस पुल के लिए 25 साल की गारंटी दी थी, हालांकि 100 लोगों को एक साथ पुल पर चढ़ने की इजाजत थी, लेकिन सरकार की तीन एजेंसियों द्वारा इस पुल के फिटनेस प्रमाण पत्र की जांच की जानी बाकी थी, लेकिन जय सुख भाई जल्दी में दिवाली में. पटेल ने इस पुल का उद्घाटन अपनी पोती के हाथों किया था. बताया गया है कि हादसे के वक्त पुल पर 500-700 लोग सवार थे.
दीपावली की छुट्टी और रविवार होने के कारण प्रमुख पर्यटक आकर्षण पुल पर पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ी. हादसा के समय मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि त्रासदी होने से पहले, कुछ लोगों को पुल पर कूदते और उसके बड़े तारों को खींचते हुए देखा गया था.
उन्होंने बताया कि पुल गिरने पर लोग एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े. कई पीड़ितों को खुद को नदी में गिरने से बचाने के लिए पुल के किनारे से लटकते देखा गया.
ढहने से कुछ समय पहले के फुटेज में युवकों के एक ग्रुप को तस्वीरें लेते हुए दिखाया गया है, जबकि अन्य लोग नदी में गिरने से ठीक पहले पुल को हिलाने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि धातु के तार टूट गए थे.
ढहने के बाद, पुल का जो कुछ बचा था, वह धातु के कैरिजवे का हिस्सा था, जो एक छोर से नदी के पानी में नीचे लटक रहा था, इसकी मोटी केबल जगह-जगह टूट गई थी.
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