Govardhan Puja: Govardhan Puja is very old story
Govardhan Puja : प्रकृति जीवन का आधार है. पेड़-पौधे और पशु-पक्षी ही मिलकर हमें आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करते हैं. हिंदू धर्म में प्रकृति की महत्ता को दर्शाने के लिए कई पेड़ों और जानवरों को भगवान का दर्जा दिया गया है. इसी परंपरा को और भी आगे ले जाते हैं हमारे पर्व जैसे नाग पंचमी और गोवर्धन पूजा. आज हम जानेंगे गोवर्धन पूजा के बारे में.
दिवाली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है. लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं. गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है. गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है. देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं. गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है.
Govardhan Parvat Parikrama – कृष्ण खुद देकर गए जिसकी पूजा का संदेश
दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर उत्तर भारत में मनाया जाने वाला गोवर्धनपूजा पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा. इसमें हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना (तस्वीर या प्रतिमूर्ति) बनाकर उनका पूजन करते है. इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान [पर्वत] को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है.
Govardhan puja : जानें क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजा, क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी. मगर भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता. वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है. इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए.
इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया, पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया. इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है. यह परंपरा आज भी जारी है.
माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें. आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है. आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है. लेकिन यह एक अफसोस की बात है कि जिस गाय को हम मां के समान मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं उसकी देखभाल की हमें कोई चिंता नहीं.
यूं तो देश में गो-हत्या एक अपराध है लेकिन इसके बावजूद कई मौकों पर देश के कई हिस्सों में हम गैर कानूनी गो-हत्या की खबरें सुनते हैं. गो-मांस के शौकीनों को समझना चाहिए कि वह कितनी महत्वपूर्ण जीव की हत्या कर अपना पेट भरते हैं. इस गोवर्धन पूजा के अवसर पर आइए एक संकल्प लें कि अपने स्तर पर हम सभी गो-रक्षा की भरपूर कोशिश करेंगे और सिर्फ गाएं ही नहीं संपूर्ण प्रकृति की रक्षा के लिए तत्पर रहेंगे.
Rangbhari Ekadashi 2025: हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी… Read More
Char Dham Yatra 2025 : उत्तराखंड की चार धाम यात्रा 30 अप्रैल, 2025 को गंगोत्री… Read More
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में एकाग्रता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है.… Read More
Spring Season 2025 : वसंत ऋतु सबसे सुखद मौसमों में से एक है, जिसमें फूल… Read More
Dharamshala travel Blog Day 1 धर्मशाला उत्तर भारत का एक शहर है. यह हिमाचल प्रदेश… Read More
Vietnam Travel Blog : वियतनाम एक खूबसूरत देश है जो अपनी समृद्ध संस्कृति, शानदार लैंडस्केप… Read More