G20 Summit: देश की राजधानी दिल्ली में चल रहे G20 Summit में भारत की विरासत का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है. पहले जब पीएम मोदी भारत मंडपम (Bharat Mandapam) में अतिथियों का स्वागत कर रहे थे, तब वहां उनके पीछे कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) के पहिये की प्रतिकृति लगाई गई थी, जिसके बारे में पीएम मोदी खुद मेहमानों को बता रहे थे. वहीं, अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिनर के लिए अतिथियों का स्वागत कर रहे थे और यहां उनके ठीक पीछे बिहार स्थित Nalanda University फोटो दिखाई दे रही थी. प्रधानमंत्री को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक सहित जी20 के कुछ नेताओं को Nalanda University के महत्व के बारे में समझाते हुए भी देखा गया.
नालंदा विश्वविद्यालय: ज्ञान और बुद्धिमत्ता का प्राचीन प्रतीक || Nalanda University: Ancient Symbol of Knowledge and Wisdom
5वीं शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय को इतिहासकार दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय मानते हैं. इसकी समृद्ध विरासत ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार के प्रति प्राचीन भारत के समर्पण को दर्शाती है. औपचारिक डिनर में, नालंदा महाविहार की एक छवि ने गर्व से एक तरफ जी 20 लोगो को प्रदर्शित किया, जबकि भारत की राष्ट्रपति थीम, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ – एक पृथ्वी. एक परिवार. एक भविष्य,” ने दूसरे की शोभा बढ़ाई.
नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक खूबसूरत नमूना || Nalanda University a beautiful example of architecture
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विश्वविद्यालय में तीन सौ कमरे, सात बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए नौ मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें तीन लाख से भी अधिक किताबें थीं.
बेहद शानदार था नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University was very wonderful
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था. उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे. मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जो अब नष्ट हो चुकी हैं. नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इनके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है.
दुनियाभर से नालंदा पढ़ने आते थे छात्र ||Students used to come to Nalanda from all over the world to study
बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे. इस विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की से आते थे. यहां करीब दो हजार शिक्षक पढ़ाते थे. इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी. नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी, लेकिन अब यह एक खंडहर बनकर रह चुका है, जहां दुनियाभर से लोग घूमने के लिए आते हैं.
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