Darul Uloom Deoband Madrasa : दारूल उलूम देवबंद, भारत में मुस्लिमों का सबसे बड़ा मदरसा है. इस्लामिक शिक्षा के केंद्र के रूप में 30 मई 1866 में इसकी स्थापना की गई थी. आज कुल 70 एकड़ में फैले इसके कैंपस में 5 हज़ार के लगभग बच्चे बढ़ते हैं. मोहम्मद कासिम नानौतवी, फ़जल उर रहमान उस्मानी, सैय्यद मोहम्मद आबिद और बाकी लोगों की कोशिश से यह यह संभव हुआ था. महमूद देवबंदी यहां के पहले शिक्षक थे और महमूद हसन देवबंदी पहले छात्र.
इस लेख में आपको इस मदरसे ( Darul Uloom Deoband Madrasa ) की पूरी जानकारी दी जाएगी. आप दारूल उलूम देवबंद मदरसे में कैसे पहुंच सकते हैं, आप आसपास क्या कर सकते हैं, यहां की लाइब्रेरी कैसी है, देवबंद की मस्जिद की जानकारी भी आपको दी जाएगी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित देवबंद, सहारनपुर जिले में स्थित एक नगर पालिका है. देवबंद, मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के बीच स्थित है. मुज़फ़्फ़रनगर से देवबंद की दूरी 26 किलोमीटर की है और इसे तय करने में 35 मिनट लगते हैं, वहीं, सहारनपुर से देवबंद 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इस दूरी को तय करने में 50 मिनट लगते हैं.
यह तो हुई सड़क मार्ग की बात, अगर आप रेल मार्ग से देवबंद आना चाहते हैं, तो यहीं एक रेलवे स्टेशन भी है. हरिद्वार के रूट की कई गाड़ियों का यहां स्टॉपेज है. आप अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी भी वक्त का टिकट लेकर यहां आ सकते हैं. आपको इसके लिए देवबंद ही उतरना होता है.
देवबंद रेलवे स्टेशन से देवबंद मदरसे ( Darul Uloom Deoband Madrasa ) की कुल दूरी डेढ़ किलोमीटर के लगभग है. आपको स्टेशन से ही तमाम ई-रिक्शा मिल जाते हैं, जो 20 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से देवबंद पहुंचाते हैं. अगर 4 सवारी मिल जाए तो ये किराया 10 रुपये भी हो जाता है.
देवबंद एक पुराना शहर है, यहां की गलियां संकरी हैं. अगर आप स्थानीय कलेवर के साथ सफर पूरा करना चाहते हैं, तो आप इस यात्रा को पैदल भी कर सकते हैं.
दारूल उलूम देवबंद के मदरसे ( Darul Uloom Deoband Madrasa ) से लगी हुई है रशीद मस्जिद. इस मस्जिद का निर्माण 1987 में शुरू हुआ था और यह लगभग 20 साल में बनकर तैयार हुई है. इसे बनाने के लिए अव्वल दर्जे के मकराना के संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है.
देवबंद बाज़ार, मदरसे के ईर्द-गिर्द मौजूद पुरानी बसावट वाले मोहल्ले में ही है. यह बेहद बड़ा बाज़ार है. यहां के बाहरी हिस्से में आपको मिठाईयों की और कारीगरी की दुकानें मिलती हैं, तो भीतरी हिस्से यानी मदरसे के पास वाले हिस्से में इत्र, खजूर, मेवे, ड्राई फ्रूट्स, कपड़ों की.
आप यहां से कोई भी सामान खरीद सकते हैं. इत्र का मल्टिनेशनल ब्रैंड अजमल भी यहां मिलता है. इस आउटलेट में 5000 रुपये की कीमत वाला इत्र भी है.
दारूल उलूम देवबंद ( Darul Uloom Deoband Madrasa ) पूरी तरह से इस्लामिक शिक्षा पर आधारित है. इसमें अरबी, उर्दू भाषा में कई विषयों की पढ़ाई होती है.
दारूल उलूम देवबंद में दाखिले के लिए एक एंट्रेंस टेस्ट का आयोजन होता है. इस एंट्रेंस टेस्ट को पास करने के बाद छात्रों को इसमें दाखिला मिलता है. इसके बाद, छात्रों के यहां रहने से लेकर, खान-पान, पढ़ाई, सबकुछ मुफ़्त रहता है. छात्रों को अपनी ओर से एक पैसा नहीं देना होता है.
दारूल उलूम देवबंद ( Darul Uloom Deoband Madrasa ) पूरी तरह से चंदे पर चलने वाला मदरसा है. इसकी देशभर में और भी शाखाएं हैं. यह मदरसा इस सिद्धांत पर टिका है कि थोड़ा थोड़ा करके चंदा लिए जाए. मसलन, किसी से 10-10 रुपये करके चंदा लिए जाए.
ऐसा होना पर, चंदा देने वाला शख्स लंबे वक्त तक इस संस्थान से जुड़ जाता है और उसके मन में इसके लिए जुड़ाव भी बनता है.
दारूल उलूम देवबंद ( Darul Uloom Deoband Madrasa ) अपनी ऐतिहासिक लाइब्रेरी के लिए मशहूर है. हालांकि अब यहां नई लाइब्रेरी बिल्डिंग भी बनकर तैयार है. यहां की लाइब्रेरी में इस्लाम ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म पर आधारित पुस्तकें भी मौजूद हैं.
यहां की लाइब्रेरी में भगवद्गीता, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ है. स्वर्ण पुस्तक पर अंकित कुरान भी यहां है. उर्दू में लिखी ऋग्वेद यहां है. आप यह समूचा वीडियो देख सकते हैं, हमने उसे आर्टिकल में ही एंबेड कर दिया है.
अगले ब्लॉग में पढ़िए, देवबंद का मेरा अनुभव
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