Vidisha Royal Family History – बीजा मंडल या विजय मंदिर की यात्रा पूरी हो चुकी थी. मैंने किसी के घर की छत भी तलाश ली थी और मंदिर के मुख्य हिस्से की पूरी तस्वीर भी ले ली थी. अब वक्त था एक अनसुने किस्से को जानने का. मुझे तकदीर मानो यहां खुद लेकर गई.
बात ये है कि जब मैं किसी के घर की छत पर खड़ा होकर विजय मंदिर की तस्वीर ले रहा था, उसी वक्त मुझे मंदिर के दाहिनी ओर एक हवेलीनुमा भवन दिखाई दिया. इस भवन को देखकर ही मन में उत्सुकता पैदा हो गई थी.
मैंने जब स्थानीय लोगों से पूछा तो पता चला कि वह ठाकुर साहब की हवेली है. बस फिर क्या था, एक और ठिकाना ( Vidisha Royal Family History ) मिल गया था मुझे इस विदिशा को जानने समझने के लिए.
विदिशा में बीजा मंडल से लगभग 200 मीटर की दूरी पर ये हवेली थी. जब मैं यहां पहुंचा तो मुख्य द्वार पर कुछ ललड़के बैठे दिखाई दिए. मैंने उनसे अपना परिचय दिया तो उन्होंने मुझे अंदर जाने दिया.
सबसे पहले तो यहां आकर मुझे किसी बॉलीवुड फिल्म के दृश्य जैसा महसूस हुआ. जिसे देखो हर कोई इन्हें ठाकुर साहब कहे जा रहा था 😀
अंदर बाईं तरफ हवेली का मुख्य हिस्सा था. यहां दरवाज़े से प्रवेश करके मैंने आवाज़ लगाई. एक सेवक आए. मैंने उनसे कहा कि ठाकुर जी से मिलना था. बाहर नेमप्लेट पर राठौड़ वंश के तीन नाम अलग अलग अंकित थे.
कुछ देर बाद एक युवक आए लेकिन वह किसी को विदा कर रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा- मैं बस अभी आया. विदा करके वह वापस हुए और मेरे नज़दीक आकर बैठे.
यह थे सिद्धार्थ सिंह राठौड़. मैंने उनसे कहा कि ये वीडियो इंटरव्यू होगा तो आप तैयार हो लें. उन्होंने कहा- ठीक है. वह गए और कुर्ता डालकर आ गए.
सिद्धार्थ आए थो मुझे अपने साथ ड्राइंग रूम में ले गए. वहां चाय तैयार थी. उन्होंने आग्रह किया तो चाय ली. फिर बातचीत शुरू हुई.
सिद्धार्थ ने बताया कि उनका परिवार यहां का शाही परिवार है. आज यहां कुटुंब के 5 परिवारों की हवेलियां हैं लेकिन रायसेन से लेकर मध्य प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में आज भी उनके खानदान के लोग बसे हुए हैं.
उन्होंने कहा कि हम चंदेरे राठौड़ हैं, चंद्रसेन के वंशज. मैं पहली बार किसी शाही परिवार के घर में था. ये अहसास काफी अलग थी.
कई बार ट्रैवल शो देखे थे जिसमें एंकर किसी शाही परिवार के घर जाकर खाना बनाता है लेकिन मैं पहली बार किसी शाही घराने ( Vidisha Royal Family History ) में था.
सिद्धार्थ ने बताया कि उनके पूर्वज जब यहां के राजा थे तब एक दौर ऐसा भी था कि दिल्ली के तख्त पर औरंगज़ेब काबिज़ था. एक बार औरंगज़ेब की एक बेगम का काफ़िला यहां से गुज़र रहा था.
तब सिद्धार्थ के जो पूर्वज यहां के राजा थे, उन्होंने काफिले को रुकवाया और अपनी हवेली में बेगम को मां का दर्जा देकर शरण दी.
महाराज को यह आशंका थी कि डकैत संभवतः काफिले पर हमला करके लूटपाट कर सकते हैं इसलिए उन्होंने ऐसा किया. लेकिन औरंगज़ेब के किसी सेनापति ने उसे ये बता दिया कि उसकी बेगम का अपहरण हो गया है.
बस क्या था, लाव लश्कर लेकर औरंगज़ेब ने बोल दिया धावा विदिशा पर. बेगम के हस्तक्षेप से युद्ध तो रुक गया लेकिन औरंगज़ेब ने बीजा मंडल में तबाही मचा दी.
सिद्धार्थ ने बताया कि औरंगज़ेब की हठधर्मिता ऐसी थी कि वह हर मूर्ति को खंडित कर देने पर उतारू था. उसे पता था कि हिंदू खंडित मूर्ति की पूजा नहीं करते हैं इसलिए उसने एक मूर्ति नहीं छोड़ी.
औरंगज़ेब की सेना ने तोप से मंदिर को उड़ा दिया. यहां मंदिर के ऊपर उसने आलमगीरी मस्जिद बनवा दी. उसने विदिशा का नाम भी बदलकर आलमगीरी ही कर दिया था लेकिन ये नाम वजूद में रह न सका.
औरंगज़ेब ने तब विदिशा के महाराज के आगे एक शर्त और रखी. उसने कहा कि तुम्हारे घर से किसी एक बेटे को अपना मज़हब बदलना होगा. महाराज भी क्या करते. एक बेटे को मुस्लिम होना पड़ा.
हालांकि उस पुत्र का वंश आगे नहीं बढ़ सका. उसकी कोई संतान नहीं हुई. ये कहानियां सुनकर दोस्तों मेरे दर्द की कोई सीमा नहीं थी. आप इस बातचीत का पूरा वीडियो देख सकते हैं. हमने उसे एंबेड कर दिया है.
सिद्धार्थ सिंह राठौड़ ने बताया कि यह रियासत उन्हें सिंधिया ने दी थी. उन्होंने इसे संभालने के लिए इन्हें नियुक्त किया था. वह किसी तरह का लगान नहीं लेते थे. उन्होंने मुझे कुंवर और भंवर का अंतर भी बताया. कुंवर वह होता है जिसके पिता जीवित होते हैं और भंवर के पिता जीवित नहीं होते हैं.
सिद्धार्थ ने मुझे इस रियासत के राजा से मिलवाया. यह उनके चाचा थे. सिद्धार्थ उनसे मिलवाने के लिए मुझे एक दूसरे हवेली के परिसर में ले गए. यहां राधा-कृष्ण का 1 हज़ार साल पुराना मंदिर भी है.
यहां राजा नींद ले रहे थे. उन्हें जगाया गया. उन्होंने मुझे सिंधिया स्कूल के दिनों की धुंधली यादें सुनाई. कई बातें बताईं. आप ये बातचीत भी वीडियो में देख सकते हैं.
सिद्धार्थ ने बताया कि हर साल दशहरे के अवसर पर यहां एक झांकी निकलती है जिसमें राजा साहब पूरे पारंपरिक परिधान में रथ पर सवार होकर निकलते हैं.
राजा से मिलकर मैं भावुक हो चला था. उम्र के अंतिम पायदान पर खड़े वयोवृद्ध शख्स ने मुझे गुलामी का दौर भी सुना दिया था. एक ऐसा वाक्य बताया जिसे अंग्रेज़ हमें सूचीबद्ध करते थे. उसका उल्लेख मैं नहीं कर सकता.
आज़ादी और ये दौर हमें कितनी मुश्किलों से मिला है, सच में दोस्तों. मेरी आंखों में आंसू थे. मैं बारम्बार ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था.
सिद्धार्थ जी ने एक लड़के से कहकर मुझे बस स्टॉप तक छुड़वाया. उनके ही आग्रह पर मैंने सांची जाने का निर्णय लिया था. अगले ब्लॉग में आप पढ़ेंगे सांची के स्तूप की मेरी यात्रा का वृत्तांत.
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