Vijay Mandir, Vidisha – मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर विदिशा शहर ( Vidisha City in Madhya Pradesh ) स्थित है. विदिशा का प्राचीन नाम भेलसा था. इस भेलसा की जड़ें और विदिशा की पहचान जुड़ी है यहां के विजय मंदिर ( Vijay Mandir, Vidisha ) यानी कि बीजा मंडल मंदिर (Bija Mandal ) से.
विजय मंदिर ( Vijay Mandir ) परमार राजाओं द्वारा बनवाया गया ये विजय मंदिर देवी चर्चिका को समर्पित था. अभिलेख में परमार शासक नर बर्मन का भी उल्लेख मिलता है. ऐसा माना जाता है कि देवी चर्चिका का एक अन्य नाम विजया भी था और इसी वजह से इस मंदिर को विजय मंदिर ( Vijay Mandir ) की पहचान मिली.
औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोपों से उड़ाकर इसपर एक मस्जिद का निर्माण कर दिया था. उसने इस मस्जिद का नाम अलमगीरी मस्जिद ( Alamgiri Mosque ) रखकर, विदिशा का नाम भी आलमगीरी ( Alamgiri ) कर दिया था.
हालांकि कालांतर में ना तो वह मस्जिद बची है और न ही बचा है आलमगिरी ( Alamgiri ) नाम. साल 1991 की एक रात यहां भीषण बारिश हुई. तब मंदिर के उत्तरी किनारे की मिट्टी भरभराकर दरक गई. तब अंदर से कुछ प्राचीन मूर्तियां नज़र आईं. अगर उस बारिश ने सच सामने न लाया होता तो आज भी यहां नमाज ही अदा हो रही होती.
विदिशा के सफर के किस्से में आज आप जानेंगे बीजामंडल ( Bija Mandal ) यानी विजय मंदिर ( Vijay Mandir ) की यात्रा के वृत्तांत को. विदिशा में रात बिताने के बाद सुबह सुबह मैं निकला था बीजामंडल मंदिर ( Bija Mandal ) की यात्रा पर.
इस ब्लॉग में आप इसी विजय मंदिर ( Vijay Mandir ) की यात्रा के ब्लॉग को पढ़ेंगे और जानेंगे इस बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर के इतिहास को. चलिए इस सफर की शुरुआत करते हैं.
विदिशा रेलवे स्टेशन से 50 रुपये में ऑटो बुक करके मैं बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर के लिए निकल चुका था. ऑटो गलियों से होकर जा रहा था. मुझे ये समझते देर न लगी कि विदिशा शहर सदियों पुराना है और सदियों पुरानी उसकी ये बसावट भी है. गलियों में दो-तीन बार रास्ता भटकने के बाद ऑटो ने मुझे बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर के मुख्य दरवाज़े पर छोड़ा.
ये बाउंड्री वॉल का दरवाज़ा था. सच कहूं तो मंदिर जैसा यहां अब कुछ शेष है ही नहीं. जब मैंने मंदिर के परिसर में प्रवेश किया तो सबसे पहले मुझे दाहिनी ओर कुछ डेवलपमेंट के कार्य होते नज़र आए. सामने एक म्यूज़ियम था जिसका मेरे सामने वाला दरवाज़ा लॉक था.
यह देखकर मैंने सहसा ही अंदाज़ा लगा लिया कि म्यूज़ियम बंद है. हालांकि बाद में मैं इस म्यूज़ियम में गया भी. इसका एक दूसरा प्रवेश द्वार भी है और वहां से अंदर जाने का दरवाज़ा खुला था.
मैं म्यूज़ियम के बराबर मौजूद रास्ते से आगे बढ़ा. यह मेरी दाहिनी ओर था. यह एक पथ था जो एक गार्डन के बीच से गुज़र रहा था. यह मार्ग आपको बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर के मुख्य हिस्से तक लेकर जाता है.
इस मार्ग के दोनों ओर और बगीचे भर में जहां-तहां वह शिलाएं रखी हुई दिखाई दीं जो यहां खुदाई से मिली थीं. कहीं मूर्तियां थीं, कहीं चौखट, कहीं ज़मीन के हिस्से. कई खंड तो ऐसे थे कि वह पहचान में ही नहीं आ रहे थे.
जब मैं बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर के मुख्य हिस्से के समीप पहुंचा तो देखा कि यहां कुछ शेष है ही नहीं. सदियों पहले ही किस तरह से इसको ध्वस्त किया गया था, इसका दर्द मैं आज देख पा रहा था. किस विध्वंसकारी सोच के तहत यहां मंदिर को ज़मीदोंज़ किया गया होगा. यह देखकर मेरे दुख की कोई सीमा नहीं रही.
औरंगज़ेब ने जब बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर को ध्वस्त किया था तब उसने यहीं पर एक मस्जिद का निर्माण भी कर दिया था. मंदिर के ऊपर बनी मस्जिद तो अब नहीं है लेकिन वह चार पिलर यहां ज़रूर खड़े हैं जिनपर मस्जिद का निर्माण किया गया था.
मंदिर की सीढ़ियां चढ़कर मैंने पाया कि ऊपर एक और मंजिल है जिसपर जाने के लिए रास्ता भी है लेकिन शटर से उसे बंद कर दिया गया है. शटर के दूसरी ओर खंडित हो चुकी वैसी ही आकृतियां रखी हुई थीं जो शायद बगीचे में मौजूद आकृतियों या शिलाओं से ज्यादा मूल्यवान थीं.
भारत के नए संसद भवन का आकार इसी मंदिर से प्रेरित है. तस्वीरों में आपने इस मंदिर का जो डिजाइन देखा है उसपर कभी भव्य मंदिर खड़ा था लेकिन आज यहां अवशेष भी जड़ हो चुके से लगते हैं. ऐसा लगता है कि अवशेष भी मृतप्राय हो चुके हैं. मैंने इसे एक फ्रेम में लेने की कोशिश की लेकिन बगैर सामने वाले दरवाज़े के बाहर गए और किसी घर की छत पर चढ़े ये संभव नहीं था.
वापसी में अब मैं म्यूज़िम में गया. म्यूज़िम में न सिर्फ देवी चर्चिका की बल्कि अलग अलग हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं. ये सभी खंडित अवस्था में हैं. भगवान गणेश की प्रतिमा को भी नहीं छोड़ा गया था. मैं उस मूर्ति को यहां दिखा भी नहीं सकता. किसी भी मूर्ति को नहीं बख्शा गया था.
हर मूर्ति पर उस बर्बरता की कहानी है जिसे सदियों पहले औरंगज़ेब और उसकी सेना ने दिखाया था. उसने मंदिर को तोप से उड़ा दिया और मूर्तियों का यह हाल कर दिया. आप अगर इस म्यूज़ियम की यात्रा करते हैं तो दिल थामकर रखिएगा.
मैंने दिल्ली में उग्रसेन की बावड़ी देखी है, फिरोजशाह कोटला किले में मौजूद बावड़ी भी देखी है लेकिन विजय मंदिर परिसर की ये बावली सचमुच अद्भुत है. मैंने पहले बार किसी बावड़ी को इतने करीब से देखा. ये दरअसल है तो एक बावड़ी लेकिन इसका पानी आता है एक कुएं से.
कुआं भी समीप ही है. मुझे बताया गया कि कभी भी इस कुएं का पानी कम नहीं हुआ. एक बार 4-4 मोटरें लगाई गईं इसकी सफाई के लिए, तब भी इस कुएं का कोई ओर छोर नहीं मिला. इस बावड़ी की शिलाओं पर कई पौराणिक आकृतियां मौजूद हैं.
जब मैं पास ही रह रहे यहां के शाही राठौड़ परिवार के घर पर गया, तब उन्होंने बताया कि उनकी हवेली में मौजूद कुएं और विजय मंदिर की बावड़ी के बीच एक गुप्त रास्ता बना हुआ है. उन्होंने मुझे ऊपर से उसे दिखाया भी. बीजा मंडल परिसर में मौजूद बावड़ी के बगल में एक दो कब्रें भी मौजूद हैं.
बीजा मंडल ( Bija Mandal ) मंदिर का पूरा नज़ारा कैमरे में कैद करने की तमन्ना था, सो मैं गलियों से होते हुए मंदिर की दूसरी ओर वाले हिस्से में पहुंचा. यहां बाहर एक शिलापट्टिका है जिसपर विजय मंदिर लिखा हुआ है. इसी पर औरंगज़ेब की बर्बरता की कहानी भी लिखी है.
इस दरवाज़े पर आकर मैंने एक घर के बाहर खड़े कुछ लड़कों से मैंने उनके मकान की छत पर जाने का अनुरोध किया. वे तैयार हो गए. ये मुझे अपने घर की छत पर ले गए. यहां से मैंने बीजा मंडल मंदिर का सामने का हिस्सा अपने कैमरे में उतारा. कमाल का दृश्य था दोस्तों.
ट्रेन से – विजय मंदिर जाने के लिए आप नजदीकी रेलवे स्टेशन विदिशा आ सकते हैं. विदिशा से यह कुछ ही किलोमीटर दूर है.
सड़क मार्ग से – बीजा मंडल विदिशा नगर में अशोकनगर हाईवे पर है. बीजा मंडल मंदिर हाईवे सड़क से कुछ दूरी पर अंदर बस्ती में है. आप यहां कार से या बाइक से जा सकते हैं.
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