Taj Ul Masjid Bhopal – मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को झीलों का शहर कहा जाता है. अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर भोपाल ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद अधिक महत्व रखता है.
भोपाल की नायाब ऐतिहासिक इमारतों में ताज उल मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) का नाम सबसे पहले आता है.
यह मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) है. जब आप इस मस्जिद को देखेंगे, तो पहली नज़र में यह आपको दिल्ली के जामा मस्जिद की याद दिला देगी.
अगर आप ताज उल का अर्थ जानना चाहते हैं, तो हम बता दें कि इसका मतलब होता है ‘मस्जिदों का ताज’.
भोपाल की ताज उल मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) में हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है. इसमें शामिल होने देश के कोने-कोने से लोग आते हैं.
आज इस लेख में हम भोपाल की ताज उल मस्जिद की संरचना, उसके इतिहास, महत्व और निर्माण की जानकारी को आपसे साझा करेंगे.
भोपाल की सिकंदर बेगम ने ताज उल मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) बनवाने की योजना बुनी थी. वह बांकी मोहम्मद की बीवी थी. उन्हें इसे बनाने की प्रेरणा दिल्ली का जामा मस्जिद से मिली थी.
हालांकि, इतनी बड़ी मस्जिद को बनवाने के लिए बड़े फंड की भी ज़रूरत थी और यही वजह है कि यह मस्जिद अपने निर्माण के 85 साल बाद पूरी हो सकी.
साल 1868 में इसकी तामीर शुरू हुई थी, जो हजारों मजदूरों के दिन-रात काम करने के साथ 1901 तक यानी 14 साल तक जारी रही. सुल्तान शाहाजहां बेगम (1844-1901) का गाल के कैंसर की वजह से निधन हो गया.
फंड भी कम था और फिर उनका निधन भी हो गया, तो उनका सपना भी अधूरा रह गया.
कुछ समय बाद उनके नवासे और भोपाल नवाब हमीदुल्लाह खान ने भी इसमें कुछ काम करवाया, लेकिन धन की कमी के कारण फिर काम रुक गया.
कई कोशिशों के बाद, साल 1971 में इसका निर्माण फिर शुरू किया गया. यह निर्माण 1985 में जाकर पूरा हुआ.
शाहाजहां बेगम ने इसका काम शुरू करवाया था जो 1985 में मौलाना सैयद हशमत अली साहब पूरा कराया. इसमें भारत सरकार का भी योगदान था.
1861 वह वर्ष था, जब सिकंदर बेगम दिल्ली गई थीं. वह उन्होंने देखा कि अंग्रेज़ों ने जामा मस्जिद को ब्रिटिशन आर्मी की घुड़साल बना दिया है.
तब, सिकंदर बेगम ने अपनी वफ़ादारी के बूते न सिर्फ मस्जिद को दोबारा हासिल किया बल्कि यहां शाही इमाम की फिर से नियुक्ति भी की.
जामा मस्जिद देखकर भोपाल लौटीं सिकंदर बेगम ने हूबहू उसी के जैसी ताज उल मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) की नींव रखी.
हालांकि उनके जीवनकाल में इस मस्जिद का निर्माण पूरा न हो सका. उनकी मृत्यु के बाद बेटी शाहाजहां बेगम ने इसे पूरा करने का बीड़ा उठाया.
शाहाजहां बेगम ने ताज उल मस्जिद का नक्शा, वैज्ञानिक तरीके से तैयार करवाया था. उन्होंने इसके लिए ध्वनि तरंग के सिद्धांत को ध्यान में रखा और 21 ख़ाली गुंबदों की ऐसी संरचना का नक्शा तैयार करवाया कि मुख्य गुंबद के नीचे इमाम की कही बात पूरी मस्ज़िद में गूंजती है.
इस तकनीक को समझने आज भी यहां आर्किटेक्चर और इतिहास के कई विद्यार्थी आते हैं.
शाहाजहा बेगम ने इस मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) के लिए पत्थर विदेश से मंगवाया और उस ज़माने में इसकी कीमत 15 लाख रुपये थी.
इस पत्थर को मौलवियों के कहने पर इसलिए इस्तेमाल नहीं किया गया क्योंकि इसमें अक्स दिखता था. आज भी ऐसे कुछ पत्थर ‘दारुल उलूम’ में रखे हुए हैं.
मस्जिद में दो 18 मंज़िला ऊंची मीनारे हैं. इसके अलावा मस्जिद में तीन बड़े गुंबद भी है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं.
मस्जिद के बीचों-बीच पानी से भरा एक बड़ा सा वज़ुखाना भी है, ठीक वैसा ही जैसा दिल्ली के जामा मस्जिद में है.
मस्जिद के भीतर बड़ा दालान, संगमरमर का फर्श और स्तंभ बनाए गए हैं.
मोतिया तालाब और ताज-उल-मस्जिद को मिलाकर इसका कुल क्षेत्रफल 14 लाख 52 हजार स्क्वेयर फीट है.
ताज उल मस्जिद में सुर्ख लाल रंग की मीनारें बनाई गई हैं. इनमें सोने के स्पाइक जड़े गए हैं.
गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद में दो सफ़ेद गुंबदनुमा मीनारें हैं.
इन मीनारों को मदरसे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.
ताज-उल-मस्जिद का प्रवेश द्वार दो मंजिला है. सफेद संगमरमर की तीन बुलंद गुंबदों और दो आसमान छूती गुलाबी मिनारें इसकी खासियत हैं।
इसके उत्तरी हिस्से में पर्दे के खास इंतजाम के साथ जनाना नमाजगाह भी बनी है. उस दौर में यहां औरतें भी नमाज अदा करतीं थीं.
गुलाबी पत्थर से बनी इस मस्जिद में दो विशाल सफ़ेद गुंबद हैं. मुख्य इमारत पर तीन सफ़ेद गुंबद और हैं.
1971 में भारत सरकार के दख़ल के बाद ताज-उल-मस्जिद ( Taj Ul Masjid Bhopal ) को तैयार किया गया. अब जो ताज उल मस्जिद है, उसके निर्माण का श्रेय मौलाना मुहम्मद इमरान को जाता है.
यह मस्जिद, आज एशिया की छठी सबसे बड़ी मस्जिद है लेकिन अगर मूल नक्शे के हिसाब से वुजू के लिए बने 800×800 फीट के मोतिया तालाब को भी इसमें शामिल किया जाए तो अपनी लिखी किताब में अख्तर हुसैन के दावे के मुताबिक यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद होगी.
मोतिया तालाब और ताज-उल-मस्जिद को मिलाकर मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 14 लाख 52 हजार स्क्वेयर फीट है जो मक्का-मदीना के बाद सबसे ज्यादा है. इस लिहाज से इसे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद कहा जाता है.
भोपाल के रेलवे स्टेशन से इस मस्जिद की दूसरी तीन किलोमीटर की है. स्टेशन से यहां पहुंचने में 8 से 10 मिनट का वक्त लगता है. भोपाल के राजा भोज एयरपोर्ट शहर से 15 किलोमीटर दूर है.
एयरपोर्ट से यहां तक का टैक्सी किराया 200 रुपये के लगभग है. आप शहर के किसी भी कोने से यहां के लिए ऑटो या टैक्सी बुक कर सकते हैं.
जितनी बड़ी यह मस्जिद है, उतने ही ज्यादा इसके चाहने वाले. उर्स में तो यहां बहुत ज्यादा भीड़ होती है. वैसे तो इस मस्जिद की यात्रा आप कभी भी कर सकते हैं और इसके लिए कोई फीस भी नहां है लेकिन शुक्रवार को यहां सिर्फ मुस्लिमों को ही दाखिल होने की अनुमति रहती है.
ताज उल मस्जिद भोपाल, NH 12, Kohefiza, Bhopal, Madhya Pradesh 462001, India
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