Who Was Samrat Mihir Bhoj : भारतीय उपमहाद्वीप पर 49 वर्षों तक शासन करने वाले मिहिर भोज ( Samrat Mihir Bhoj ) की राजधानी कन्नौज थी. कन्नौज आज उत्तर प्रदेश का जिला है लेकिन इनके शासनकाल में इसका विस्तार नर्मदा के उत्तर में और हिमालय की तराई तक था. पूर्व में यह पश्चिम बंगाल की सीमा तक फैला हुआ था.
मिहिर भोज ( Samrat Mihir Bhoj ) ने अरब आक्रमणों को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी. इनसे पहले राजा रामभद्र इनके पिता थे. सम्राट मिहिर भोज ( Samrat Mihir Bhoj ) के शासनकाल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है.
यह इस बात को इंगित करता है कि यह भगवान विष्णु के उपासक थे. सम्राट मिहिर भोज ( Samrat Mihir Bhoj ) के बाद, इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल ने सत्ता की बागडोर संभाली थी.
मिहिर भोज ( Samrat Mihir Bhoj ) को इनके नाम भोज से अधिक जाना जाता है. इसी नाम से हुए दूसरे राजाओं से विभेदित करने के लिए उन्हें प्रथम भोज (भोज I) भी कहा जाता है. इतिहासकार सतीशचंद्र के मुताबिक़ इन्हें उज्जैन के शासक “भोज परमार से भिन्न दिखाने के लिए कभी-कभी मिहिर भोज भी कहा जाता है.
हालांकि, रमा शंकर त्रिपाठी ग्वालियर से प्राप्त अभिलेख के हवाले से लिखते हैं कि इसमें उनका प्रथम नाम (अभिधान) “मिहिर” लिखा गया है, जो सूर्य का पर्यायवाची शब्द है. उपाधि के बारे में सतीश चन्द्र का कथन है कि “भोज विष्णुभक्त थे और उन्होंने ‘आदि वाराह’ की उपाधि धारण की जो कि उनके शासनकाल के कुछ सिक्कों पर भी अंकित मिलती है”.
भारतीय इतिहास के मध्यकाल में भोज के शासनकाल के दौर को “तीन साम्राज्यों के युग” के नाम से जाना जाता है. यह वह काल था जब पश्चिम-उत्तर भारत (इसमें आज के पाकिस्तान का क्षेत्र भी शामिल है) में इनके शासन का वर्चस्व था.
इस दौरान पूर्वी भारत पर बंगाल के पाल राजाओं का शासन था जबकि दक्कन में राष्ट्रकूट राजा शक्तिशाली थे. इन तीनों सत्ताओं के आपसी टकराव का बिंदु कन्नौज पर शासन था. इतिहासकार इसे कन्नौज त्रिकोण का नाम भी देते हैं.
कई जगह ऐसा भी उल्लेख है कि मिहिर भोज ( Samrat Mihir Bhoj ) के मित्रों में काबुल, कश्मीर, नेपाल और असम के राजा हुआ करते थे. वहीं, अरब के खलीफ़ा मौतसिम वासिक, मुन्तशिर, मौतमिदादी सम्राट के सबसे बड़े दुश्मनों में थे.
अरबों ने कई बार हमले की कोशिश की लेकिन सम्राट मिहिर भोज ने हर हमले को नाकाम कर दिया. मिहिर भोज का 72 साल की उम्र में निधन हो गया था.
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