River linking project : मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार ने 30 जून 2024 को 72,000 करोड़ रुपये की पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदी जोड़ो परियोजना के Implementation के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की मौजूदगी में भोपाल में एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए गए.
इस लिंक परियोजना का उद्देश्य पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों, मध्य प्रदेश के मालवा और चंबल क्षेत्रों में पेयजल और औद्योगिक जल उपलब्ध कराना है. इसके अलावा दोनों राज्यों में कम से कम 2.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध कराना . इसमें राज्यों में रूट टैंकों का पूरकीकरण भी शामिल है.
लिंक परियोजना से चंबल बेसिन के उपलब्ध जल संसाधनों को सर्वोत्तम और किफायती तरीके से उपयोग करने में मदद मिलेगी. MOU पर हस्ताक्षर करने के बाद एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यादव ने कहा कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के लिए इन नदियों की जल धाराओं का उपयोग करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है. उन्होंने कहा कि परियोजना के implementation के लिए दोनों राज्यों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं.
यादव ने कहा, “इस समझौते के बाद मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर, श्योपुर और राजगढ़ समेत 13 जिलों में पेयजल और सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हो सकेगा. राजस्थान और मध्य प्रदेश में पानी की एक-एक बूंद का उपयोग होगा, जो दोनों राज्यों के विकास में एक नया अध्याय लिखेगा.” पानी की कमी की समस्या के समाधान के अलावा यादव ने पर्यटन, चिकित्सा, खनन और अन्य क्षेत्रों में दोनों राज्यों के बीच संभावित समझौतों की पहचान की.शर्मा ने कहा कि इस परियोजना से राजस्थान के 13 जिलों को लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा, “नदी जोड़ो परियोजना से मध्य प्रदेश और राजस्थान को लाभ होगा, जिससे आपसी संबंध भी मजबूत होंगे. कुछ योजनाओं को मध्य प्रदेश और राजस्थान मिलकर आगे बढ़ा सकते हैं.”
इसी कड़ी में हम आपको आज के आर्टिकल में आपको बताएंगे की नदी परियोजना का इतिहास क्या है और कहा से इसकी शुरुआत कहा से हुई.
‘राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना’ अपने किस्म की एक अनोखी योजना है. इस योजना के तहत देश में कुल 30 रिवर- लिंक बनाने की योजना है, जिनसे कुल 37 नदियों को एक-दूसरे से जोड़ा जाएगा. इसके लिए 15,000 कि.मी. लंबी नई नहरों का निर्माण प्रस्तावित है. यह परियोजना दो चरणों में होगी. एक हिस्सा हिमालयी नदियों के विकास का होगा, जिसमें कुल 14 लिंक चुने गए हैं. गंगा , यमुना, कोसी , सतलज, जैसी नदियां इसका हिस्सा है. जबकि दूसरा भाग प्रायद्वीप नदियों (दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने वाली) के विकास का है, जिसके तहत 16 लिंक बनाने की योजना है. महानदी , गोदावरी, कृष्णा , कावेरी , नर्मदा इत्यादि इसका इसका हिस्सा है.
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में कोसी- मेची नदी को जोड़ने के लिए 4900 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत किये जाने के कारण यह योजना ख़बरों में है. बजट 2022-23 में, 44,605 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ केन -बेतवा लिंक परियोजना के कार्यान्वयन के लिए घोषणा की जा चुकी . आइये इस परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं.
भारत की नदियों को आपस में जोड़ने का विचार पहली बार 1858 में मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्य अभियंता सर आर्थर कॉटन द्वारा रखा गया था. ताकि ईस्ट इंडिया कंपनी को बंदरगाहों की सुविधा प्राप्त हो सके और दक्षिण-पूर्वी प्रांतों में बार-बार आने वाले सूखे से भी निपटा जा सके.
1960 में तत्कालीन ऊर्जा और सिंचाई राज्य मंत्री के.एल राव ने इस प्रस्ताव पर विचार किया और गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा .
1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की स्थापना की.
2002 में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 2003 तक नदियों को जोड़ने की योजना को अंतिम रूप देने और 2016 तक इसे implementation करने के लिए कहा. इसके लिए सरकार ने 2003 में एक टास्क फोर्स का गठन किया.
2014 में केन- बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना को कैबिनेट की मंजूरी मिली. हालांकि, पर्यावरणविदों के विरोध का सामना करने के कारण इस परियोजना में देरी हुई.
केंद्र सरकार ने हाल ही में कोसी- मेची नदी को जोड़ने के लिए 4900 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है. केन -बेतवा लिंक के बाद इसे नदियों को जोड़ने का देश का दूसरा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बताया जा रहा है. बजट 2022-23 में, 44,605 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ केन-बेतवा लिंक परियोजना के execution के लिए घोषणा की गई है. इस परियोजना में दाऊधन बांध बनाकर केन और बेतवा नदी को नहर के जरिये जोड़ना, लोअर ओर्र परियोजना, कोठा बैराज और बीना संकुल बहुउद्देश्यीय परियोजना के माध्यम से केन नदी के पानी को बेतवा नदी में पहुंचाने का लक्ष्य है.
नदियों को आपस में जोड़ने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि देश में सभी नदियों में एक समान जल- स्तर बनाने की कोशिश की जा सके. देश के कई हिस्से में सूखे की समस्या है जबकि कई अन्य हिस्से हर साल बाढ़ की समस्या का सामना करते है. नदियों को आपस में जोड़ने से इनमे जल स्तर का संतुलन बना रहेगा और इन दोनों आपदाओं में कमी आने की उम्मीद है.
हम जानते हैं कि भारत की हिमालयी नदिया बारहमासी हैं क्योंकि वे बारिश के साथ-साथ हिमालय के ग्लेशियरों से भी पोषित होती हैं. जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं क्योंकि वे मुख्य रूप से दक्षिण -पश्चिम मानसून से वर्षा पर निर्भर हैं. इसके कारण, गंगा के मैदान बाढ़ से प्रभावित हैं और प्रायद्वीपीय राज्य सूखे से पीड़ित हैं. यदि हिमालयी नदियों के अतिरिक्त पानी को मैदानी इलाकों से प्रायद्वीपीय नदियों में पहुंचा दिया जाये तो बाढ़ और सूखे की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
जैसा कि उपर बताया गया है , इस परियोजना में लगभग 3000 भंडारण बांधों के नेटवर्क द्वारा भारत की 37 नदियों को आपस में जोड़कर जल- अतिरिक्त बेसिन से पानी की कमी वाले बेसिन में पानी के ट्रांसफर की hypothesis की गई है. यह एक विशाल जल ग्रिड का निर्माण करेगा.
यह परियोजना दो चरणों में होगी. एक हिस्सा हिमालयी नदियों के विकास का होगा, जिसमें कुल 14 लिंक चुने गए हैं .जबकि दूसरा भाग प्रायद्वीप नदियों (दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने वाली) के विकास का है, जिसके तहत 16 लिंक बनाने की योजना है. गंगा और ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों पर भी स्टोरेज डैम बनाए जाएंगे. गंगा और यमुना को जोड़ने का भी प्रस्ताव है. गंगा -ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में बाढ़ को नियंत्रित करने के अलावा, यह राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को भी लाभान्वित करेगा. गंगा -ब्रह्मपुत्र में हर साल आने वाली बाढ़ के कारण बिहार और असम सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. इसके उप -घटक के तौर पर गंगा की पूर्वी सहायक नदियों को साबरमती और चंबल नदी प्रणालियों से जोड़ना भी लक्षित है.
वहीँ दक्षिण भारत की नदियों महानदी और गोदावरी से अधिशेष पानी कृष्णा, कावेरी, पेन्नार और वैगई नदियों में स्थानांतरित किए जाने का लक्ष्य है । इसके तहत, चार उप-घटक हैं: 1.महानदी और गोदावरी नदी घाटियों को कावेरी, कृष्णा और वैगई नदी प्रणालियों से जोड़ना; 2.केन से बेतवा नदी, और पार्वती और कालीसिंध नदियां चंबल नदी तक, 3.तापी के दक्षिण में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को जोड़ना, और 4.पश्चिम की ओर बहने वाली कुछ नदियों को पूर्व की ओर बहने वाली नदियों से जोड़ना.
नदियों के प्रस्तावित ‘इंटरलिंकिंग’ परियोजनाओं से कई लाभ होंगे. जैसा की हमने समझा, इसका सबसे पहला लाभ तो यह है कि नदियों को आपस में जोड़ना उन क्षेत्रों से अतिरिक्त पानी को ट्रांसफर करने का एक तरीका है जो बहुत अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं. इस तरह, यह बाढ़ और सूखे दोनों को नियंत्रित कर सकता है. इससे देश के कई हिस्सों में जल संकट को हल करने में भी मदद मिलेगी. इस प्रोजेक्ट से जलविद्युत उत्पादन में भी मदद मिलेगी. इस प्रोजेक्ट में कई बांधों और जलाशयों का निर्माण प्रस्तावित है. एक अनुमान के अनुसार यदि पूरी परियोजना को अंजाम दिया जाए तो इससे लगभग 34000 मेगा वाट बिजली पैदा की जा सकती है.
नदियों में जल स्तर के संतुलन से जल प्रदूषण नियंत्रण, नौवहन, सिंचाई , मत्स्य पालन, वन्यजीव संरक्षण आदि में काफी मदद मिलेगी. सींचाई एक महत्वपूर्ण घटक है. अनियमित बारिश से कृषि उत्पादन में समस्याएं आती हैं जब मानसून अप्रत्याशित रूप से व्यवहार करता है. सिंचाई सुविधाओं में सुधार होने पर इसे हल किया जा सकता है. यह प्रोजेक्ट पानी की कमी वाले स्थानों में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी.
इस योजना का एक अन्य लाभ यह होगा कि अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन प्रणाली का लाभ लिया जा सकेगा. इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में मछली पालन आदि के रूप में आय का एक वैकल्पिक स्रोत होगा.
नदी को जोड़ने की परियोजना से जुड़े कई लाभों के बावजूद, कई बाधाओं के कारण इस परियोजना को शुरू करने में देर हुई । इस सम्बन्ध में सबसे पहली चुनौती है विस्थापन एवं पुनर्वास का मुद्दा । नई नहरों एवं बांधों के निर्माण के कारण लोगों के विस्थापन की आशंका है । इस परियोजना पर लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है । अतः लागत और जनशक्ति के आधार पर भी इस परियोजना पर सवाल उठाए जाते हैं ।
पर्यावरणविदों को डर है कि यह परियोजना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देगी. इस तरह के विस्थापन और संशोधनों के कारण नदी प्रणालियों के वन्यजीव, वनस्पति और जीव प्रभावित होंगे. कई नेशनल गार्डन और नदी प्रणालियों के भीतर आते हैं । परियोजना को लागू करते समय इन सभी बातों का ध्यान रखना होगा कि वे जलमग्न न हो जाएं । इसके अलावा परियोजना समुद्र में ताजे पानी के प्रवाह को भी कम कर सकती है, जिससे समुद्री जलीय जीवन प्रभावित हो सकता है.
इन सब कारणों से राज्यों को भरोसे में लेना कठिन हो गया है. केरल, सिक्किम, आंध्र प्रदेश आदि जैसे कई राज्यों ने नदी को जोड़ने की परियोजना का विरोध किया है । यहाँ तक कि परियोजना के हिमालयी घटक में बांध बनाने और नदियों को आपस में जोड़ने का प्रभाव पड़ोसी पाकिस्तान,नेपाल , एवं बांग्लादेश जैसे हमारे पड़ोसी देशों पर भी पड़ेगा. परियोजना को लागू करते समय इन सब चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा । बांग्लादेश ने तो ब्रह्मपुत्र से गंगा में पानी के हस्तांतरण का विरोध किया है ।
विशेषज्ञों के अनुसार हर नदी का अपना एक पारिस्थितिक तंत्र होता है. ऐसे में नदी के साथ प्रयोग करना, या उसकी दिशा को बदलना उस पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकता है । विशेषज्ञ आशंका जाहिर करते हैं कि नदियों को आपस में जोड़ने से एक बड़ा पर्यावरणीय संकट भी पैदा हो सकता है । उनका मानना है कि नदियों को जोड़ने के बजाए छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण व वर्षा जल संग्रहण जैसे उपाय अधिक कारगर हो सकते हैं ।
यह देश की पहली ऐसी नदी जोड़ो परियोजना है जिस पर काम शुरू हुआ है. इसके तहत मध्य प्रदेश की केन नदी का अतिरिक्त पानी नहरों के माध्यम से बेतवा नदी में स्थानांतरित किये जाने की योजना है. इस परियोजना में 221 कि.मी. लंबी केन- बेतवा लिंक नहर के माध्यम से मध्यप्रदेश की 2 प्रमुख नदियों केन व बेतवा को जोड़ने की परिकल्पना की गई है. ये दोनों यमुना की सहायक नदियां हैं. यह परियोजना आठ वर्षों में पूरी होगी. यह परियोजना बुंदेलखंड क्षेत्र में है, जो कि एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है .
अतः इस परियोजना से इस क्षेत्र को विशेष लाभ होगा. इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत के उत्पादन की योजना है . हालांकि इस परियोजना में कुछ चुनौतियांं भी हैं. सबसे पहली चुनौती है पन्ना टाइगर रिज़र्व का जलमग्न होना. पर्यावरणविदों ने आशंका जताई है कि इस परियोजना से मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिज़र्व जलमग्न हो जाएगा जिससे वन्यजीवों के समक्ष संकट उत्पन्न होगा. इसी हेतु दुर्गावती टाइगर रिजर्व का निर्माण किया गया है. यह अभयारण्य पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों को आवास प्रदान करेगा, जिसका लगभग 25% हिस्सा केन-बेतवा नदियों को जोड़ने के कारण जलमग्न हो जाने की आशंका है. बाघों के अलावा, यह रिजर्व सांभर, चीतल, ब्लू बुल, चिंकारा और चौसिंघा जैसी प्रजातियों का भी आवास है.
इसके तहत तीन नदियों पार, तापी तथा नर्मदा को आपस में जोड़ने का प्रस्ताव है. इस परियोजना में मुख्य रूप से 7 बांधों -झेरी, मोहनकावचली, पाइखेड़, चसमांडवा, चिक्कर, डाबदार और केलवान; 395 किलोमीटर लंबी एक नहर और 6 बिजलीघरों का निर्माण शामिल है. पार नदी महाराष्ट्र के नासिक से निकलती है, तापी मध्यप्रदेश स्थित सतपुड़ा के जंगलों से निकलती है और नर्मदा का उद्गम अमरकंटक की पहाड़ी से होता है । ये सभी नदियाँ मध्य भारत में बहती हैं.
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