शिलॉन्ग में पुलिस बाजार से एक किलोमीटर दूर बड़ा बाजार के पास पंजाबी लेन ( Punjabi Lane, Shillong ) है. इस पंजाबी लेन में सिख रहते हैं. शिलॉन्ग घूमने के बीच अगर आप यहां आते हैं, तो आपको निश्चित ही हैरानी होगी. आप सोच में पड़ जाएंगे कि पंजाब से हजारों किलोमीटर दूर शिलॉन्ग में ये सिख कैसे आए? ऐसे कई सवाल आपके मन में उठेंगे. इस कालोनी को देखकर ऐसा लगता है, मानों पूरा शिलॉन्ग एक तरफ और यहां के हालात एक तरफ… ऐसा लगता है सालों से यहां कुछ बदला ही न हो…आइए आज जानते हैं, शिलॉन्ग की पंजाबी लेन ( Punjabi Lane, Shillong ) के बारे में….
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शिलांग के बाहर रहने वाले बहुत से लोग नहीं जानते कि शिलॉन्ग के पहाड़ी क्षेत्र में सिखों की भी एक कालोनी ( Sikh Colony in Shillong ) है. ये कालोनी आज से नहीं, सदियों से है. 1857 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई से पहले ही वे पहली बार शहर में दाखिल हुए थे. यह वो दौर था जब अंग्रेज पूरे भारत में अपने पैर पसार रहे थे और 1850 के दशक में शिलॉन्ग में भी उन्होंने अपना ठिकाना बनाया.
अंग्रेजों ने पंजाब से दलितों को हाथ से मैला ढोने के लिए लाया था. इंडिया टुडे के लेख में कहा गया है कि तब स्थानीय लोग और शिलॉन्ग में इस काम को करने वालों ने सैनिकों के लिए ऐसा करने से इनकार कर दिया था. पंजाबी लेन के निवासियों का ये दावा है कि माइलीम (गांव) के सिएम (प्रमुख) ने उन्हें 1853 में स्थायी रूप से यहां बसने के लिए जमीन दी थी.
कालोनी के लोग ये भी दावा करते हैं कि 2008 में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है. पत्र में कहा गया है कि माइलीम के राजा और ब्रिटिश प्रशासन के बीच समझौता होने के बाद पंजाब के दलितों को जमीन दी गई थी. 10 दिसंबर, 1863 को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसका मतलब है कि दलित सिख शिलॉन्ग की पंजाबी लेन में 150 से ज्यादा सालों से रह रहे हैं..
सिएम, खासी हिल स्वायत्त जिला परिषद के अधिकार क्षेत्र में एक सार्वजनिक प्राधिकरण है और स्थानीय, न्यायिक और प्रशासनिक मामलों पर कार्य करता है। Mylliem के सिएम से स्वीकृति का एक शब्द कानून की तरह मान्य होना चाहिए, लेकिन यहां ये स्थिति नहीं है.
पंजाबी लेन के निवासी शिलॉन्ग नगर निगम, कैंटोनमेंट बोर्ड, राज्य सरकार के कार्यालयों, अस्पतालों और पुलिस विभाग में क्लीनर के रूप में कार्यरत हैं. 1980 के दशक में तब तक इन्हें कोई परेशानी नहीं थी जब तक हाथ से मैला ढोने का नियम चालू था लेकिन इस नियम पर पूरी तरह प्रतिबंध लगते ही परेशानी शुरू हो गई.
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1970 के दशक के दौरान एक और डेवलपमेंट हुआ. शिलॉन्ग जिला प्रशासन ने पंजाबी लेन को अवैध स्लम कॉलोनी के रूप में चिह्नित किया और निवासियों को बेदखली का आदेश जारी कर दिया. यहां के निवासियों ने मेघालय हाई कोर्ट का रुख किया. हाई कोर्ट ने 1986 में निष्कासन आदेश पर रोक लगा दी.
मैला ढोने की प्रथा बंद होने पर कालोनी के लोगों की नौकरियां गईं. साथ ही, खासी गारो और जयंतिया जनजाति के बीच उन्हें अपमान और भेदभाव झेलकर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. खासी स्टूडेंट यूनियन ने इन लोगों को यहां से बाहर निकालने के लिए कई मुहिम चलाईं.
Travel Junoon से बातचीत में स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि जब सिख यहां आए थे तब न तो ये जमीन शहर के बीच में थी और न ही भेदभाव की कोई खास वजह. आज नौकरियों को लेकर एक भावना है. खासी जनजाति के लोगों को लगता है कि बाहरी लोग उनकी जमीन पर रहेंगे, तो स्थानीय संस्कृति के खत्म होने का खतरा रहेगा. न स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. बस यही क्षेत्रवाद इस विवाद की जड़ में है.
मई 2018 में सिखों और स्थानीय खासी लोगों के बीच हुई झड़प ने उग्र रूप ले लिया. यहां की कई दुकानें फूंक दी गईं. एक पेट्रोल पंप था उसे भी नुकसान पहुंचाया गया.
शिलॉन्ग की पंजाबी लेन से कुछ पहले से ही आपको एक अलग तरह के शहर का अनुभव होता है. यहां वैसा विकास नहीं, जैसा शहर के बाकी हिस्सों में है. यहां न तो सड़के ठीक हैं, न ही मकान अच्छी स्थिति में है. आपको ये इलाका पहली नजर में किसी झुग्गी बस्ती जैसा नजर आता है. यहां का वह पेट्रोल पंप आज भी बंद है जो 2018 से पहले सही तरीके से चलता था.
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आपको यहां लोगों के नीरस चेहरे दिखाई देंगे, ऐसा लगेगा जैसे इन चेहरों के पीछे दर्द का गहरा इतिहास हो. हमें एक छोटे से बच्चे ने अपनी तकलीफ बताई. उसने कहा कि क्लास में बच्चे उसे चिढ़ाते हैं. वे कहीं भी हों, रात होने से पहले उन्हें घर लौट आना होता है.
अप्रैल 2022 में खबर आई कि शिलॉन्ग में हरिजन पंचायत समिति (एचपीसी) ने पंजाबी लेन से हटने पर सहमति दे दी लेकिन कुछ शर्तों के साथ…यह घटनाक्रम मेघालय सरकार और एचपीसी के साथ शिलॉन्ग के सचिवालय में हुई बैठक के बाद हुआ. हालांकि, एचपीसी ने कुछ शर्तें भी रखी हैं. इसमें एक शर्त सभी 342 परिवारों के लिए दूसरी लोकेशन की मांग है.
HPC secretary Gurjit Singh ने बताया कि एक परिवार 200 स्केव्यर मीटर का प्लॉट चाहता है. साथ ही, हम ये भी चाहते हैं कि उसपर घर बनाने का खर्च सरकार वहन करे. सरकार ने पंजाबी लेन के निवासियों को डबल स्टोरी अपार्टमेंट ऑफर किया था, लेकिन उसे HPC ने ठुकरा दिया.
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