Pattaya History: नमस्कार दोस्तों, ट्रैवल जुनून में आप सभी का स्वागत है. आज हम जानेंगे थाईलैंड के पटाया शहर (Pattaya City of Thailand) के बनने की कहानी को… पटाया जिस रूप में आज दिखाई देता है, वो तस्वीर इसे कैसे मिली और सदियों पुराने एक गांव से आज के पटाया तक का सफर कैसे पूरा हुआ, ये भी हम जानेंगे… अगर आप हमारे चैनल पर पहली बार आए हैं, तो हमें सब्सक्राइब जरूर करें, बेल आइकॉन पर बटन जरूर दबाएं… हिन्दी में दिलचस्प ब्लॉग पढ़ने के लिए लॉग इन करें www.traveljunoon.com पर… आइए बढ़ते हैं सफर में आगे…
26 अप्रैल 1961 का दिन… समंदर किनारे बसे एक गांव में लगभग 100 सैनिक पहला कदम रखते हैं. सैनिकों की वर्दी पर अमेरिकी ध्वज लगा हुआ था. ये सैनिक 1 हजार किलोमीटर दूर समंदर किनारे बसे एक दूसरे देश से आए थे… तब गर्मी से तप रही इस जमीन को Gulf of Thailand की ओर से आती हवाएं ठंडा कर रही थीं… और वियतनाम युद्ध (Vietnam War) में हिस्सा ले रहे इन सैनिकों को इसी ठंडक की तलाश थी…
युद्ध लड़ रहे इन सैनिकों को खुद को तरोताजा करके नए जोश के साथ उन्हें दोबारा इस जंग में कूदना था… ये सैनिक जिस जगह आए थे, ये जगह तब मछुआरों के गांव से ज्यादा कुछ भी नहीं थी… लेकिन सैनिकों के इस कदम ने यहां नींव रख दी थी, भविष्य के एक ऐसे महानगर की, जहां दुनिया भर के लोगों का जमघट लगने वाला था…
Pattaya को मूल रूप से Pad Tha Ya कहा जाता था. इस नाम का मतलब था “बरसात के मौसम की शुरुआत में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने वाली हवा”. वक्त के साथ इसे पटाया के नाम से जाना जाने लगा.
इसका पहला दर्ज उल्लेख तब हुआ जब 1767 में Phraya Tak की सेना, जिसे बाद में राजा तकसिन के नाम से जाना गया, उनकी सेना ने Nai Klom की बर्मी सेना का सामना किया. डरकर, नाइ क्लॉम ने बिना किसी लड़ाई के आत्मसमर्पण कर दिया. जिस स्थान पर दोनों सेनाएं मिलीं, उसे थाप फ्राया कहा जाता था, जिसका मतलब है “फ़्राया की सेना” और उस घटना के सम्मान में, दक्षिण पटाया और जोमटियन समुद्र तट के बीच की सड़क को Thappraya Road कहा जाता है.
दक्षिण पटाया में, Bali Hai Pier और Walking Street के आसपास का क्षेत्र काफी शानदार है और यहां पुराने गांव थे…बेशक आज कोई निशान नहीं बाकी है लेकिन अगर आप वॉकिंग स्ट्रीट की कुछ सड़कों पर टहलें तो आप देख सकते हैं कि पुरानी गलियाँ कितनी संकरी थीं… हां वो इतनी चौड़ी जरूर हैं कि इसमें बैलगाड़ी चल सके…
सदियों पहले के दौर से 1959 तक ये सिर्फ Chonburi का sub-district था
ये कहना बिल्कुल सही होगा कि आज दुनिया पटाया को जिस रूप में देखती है, उसकी वजह एक युद्ध ही है… ये युद्ध था वियतनाम युद्ध (Vietnam War) और इसी युद्ध ने पटाया शहर को जन्म दिया…. 1955 में वियतनाम में फ्रांस की हार के बाद देश उत्तर और दक्षिण में बंट गया… इसके बाद वियतनाम धीरे धीरे युद्ध की ओर बढ़ता जा रहा था…
1960 के बाद से अमेरिका, कम्युनिस्ट शासन वाले उत्तरी हिस्से को हराने के लिए दक्षिणी हिस्से की मदद कर रहा था. हालांकि ये मदद सीधे तौर पर नहीं थी… 1964 और 65 में कम्युनिस्ट शासन वाला उत्तरी हिस्सा उग्र हो गया और अमेरिकी नौसैनिक जहाजों पर हमला कर दिया… इसके बाद अमेरिका ने युद्ध में सीधे तौर पर उतरने का फैसला कर लिया.. और वियतनाम के जंगी मैदान में अपने सैनिक उतारने शुरू कर दिए…
वियतनाम में युद्ध हो रहा था, दुनिया सीधे तौर पर दो धड़ों में बंटी नजर आ रही थी… और थाईलैंड के इस खूबसूरत गांव में खामोशी छाई हुई थी… यहां रोज की तरह मछलियां पकड़ने और नमक बनाने का काम चलता रहता था…
तब Thailand के उत्तर-पूर्वी समुद्रतट पर समंदर किनारे बसे छोटे से गांव पटाया में मछुआरों, किसानों और कारोबारियों की बस्तियां हुआ करती थी… इनका युद्ध से कोई लेना देना नहीं था… इनकी जनसंख्या सिर्फ कुछ हज़ार लोगों तक थी और ये थाई शैली में बने छोटे छोटे घरों में रहा करते थे…
ये बसावट सेंट्रल, नॉर्थ पटाया और नकलुआ में थी…Si Racha and Sattahip के बीच भी कई गांव बने हुए थे..
कुछ गिनती की संख्या में गेस्ट हाउस, बार और दुकानें थीं और ये संकरी सड़क के किनारे कतार में बने हुए थे… यहां तक पहुंचने के लिए किसी तरह का ट्रांसपोर्ट नहीं था… और न ही रास्ता… यहां तक कि मोटरसाइकिल या साइकिल से भी यहां तक पहुंचा नहीं जा सकता था… गांव में भैंस और गायों की संख्या मोटरकारों से कहीं ज्यादा थी…
पटाया में अमेरिकी सैनिक आने लगे थे लेकिन ये पूरी तरह पश्चिमी रंग में नहीं रंगा था… वेस्टर्न सिगरेट्स, फूड और बियर बहुत महंगी थी और रईस ही इसका स्वाद चख पाते थे… टीवी पटाया में कहीं कहीं ही दिखाई देती थी… घरों में लोग रेडियो और ग्रामोफोन से ही मनोरंजन करते थे… पटाया सुनहरे ताड़ के पेड़ों से घिरा था और इसका किनारा बेहद शांत था…
पटाया खाड़ी के समुद्री किनारे पर अब टेंट और कुर्सियां रखी दिखाई देती हैं… सालों पहले यहां राइस व्हिस्की और रम परोसे जाते थे और वो भी छोटी छोटी बांस से बनी झोपड़ियों में… पटाया में तब भी टूरिस्ट आते थे लेकिन सिर्फ थाईलैंड से ही… कई ऐसे थे जो पटाया में ही रहा करते थे और कई ऐसे जो यहां बनें घरों को किराये पर लेकर कुछ दिन यहां बिताया करते थे…
वियतनाम युद्ध को लेकर अमेरिका और थाईलैंड में एक समझौता हुआ था. इस समझौते से अमेरिका को थाईलैंड में एयरफोर्स और सैन्य ठिकाने बनाने की अनुमति मिल गई थी. 1961 से 1975 तक, अमेरिकी वायु सेना ने पूरे थाईलैंड में विमान तैनात किए, और इन विमानों को उत्तरी वियतनाम पर हवाई हमलों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था…Takhli Royal Thai Air force Base, बैंकॉक से 144 मील की दूरी पर था… यहां पहला अमेरिकी बेस बना था…Korat, Ubon, U-Tapao, Don Muang और Udorn में दूसरे कई विमान तैनात किए गए थे… ये सैन्य अड्डे थाईलैंड भर में बने लेकिन इनमें से एक पटाया से सिर्फ 30 मिनट की ड्राइव पर बना जिसका नाम था U’Tapao Air-force Base… ये जगह थी Sattahip
जैसे-जैसे अमेरिकी अड्डे बनते गए, वैसे वैसे अमेरिकी सैनिकों की संख्या भी बढ़ती गई. U’Tapao Air-force Base नजदीक था, इसलिए पटाया में अमेरिकी सैनिकों के मनोरंजन के लिए बार खुलते चले गए… थाई लोगों को अमेरिकियों में बड़ा अवसर दिखाई दिया… वे पैसे कमाने से कहां चूकने वाले थे…
U’Tapao Air-force Base पर काम करने वाले कर्मचारी और सैनिक अपने मनोरंजन के लिए खूबसूरत गांव पटाया पहुंचने लगे और जल्द ही उन्हें देखते देखते युद्ध में हिस्सा ले रहे सैनिक भी अपनी थकावट दूर करने यहां आने लगे… इन सैनिकों को वियतनाम से rest and relaxation के लिए पटाया लाया जाने लगा था… इसे शॉर्ट फॉर्म में R & R भी कहते हैं…पटाया में तब आधिकारिक आर एंड आर कैंप भी बनाया गया था… वियतनाम के मुश्किल हालात में महीनों तक युद्ध लड़ने के बाद थके सैनिकों के लिए पटाया किसी जन्नत से कम नहीं था…
पटाया के समुद्री किनारे पर बनी बांस की झोपड़ियां जल्द ही अमेरिकी सैनिकों से भरी नजर आने लगी… यहां बने घर, गेस्ट हाउस बन गए और पहले जो थोड़े बहुत गेस्ट हाउस थे, वो बार और गेस्ट हाउस दोनों में तब्दील हो गए… अमेरिकियों की संख्या बहुत ज्यादा होने लगी थी और अब इसे संभालने के लिए होटल भी बनने लगे…पटाया के लोग अब मछलियां पकड़कर या नमक की खेती करते पैसे नहीं कमा रहे थे, अब बार और गेस्ट हाउस उनकी जेबें भर रहा था… इस नई चमक धमक में एक और कारोबार था जो थाईलैंड वासियों पर पैसे बरसाने जा रहा था… और ये कारोबार था अय्याशी का…
ये कहना सही नहीं होगा कि पटाया में प्रॉस्टिट्यूशन की शुरुआत अमेरिकी सैनिकों ने ही की थी…थके सैनिक सेक्स चाहते थे लेकिन उनके आने से पहले पटाया में वेश्यालय मौजूद थे…. और जब सैनिक आए, तो बार, गेस्ट हाउस, घर हर जगह ये काम होने लगा था…
जल्द ही यह बात थाईलैंड के दूर दराज के कोनों तक फैल गई कि अमेरिकी सैनिक बेहतर वक्त की तलाश में हैं… उनके पास ढेरों पैसा है और वे महिलाओं की तलाश कर रहे हैं… बातें दूर तक पहुंचीं… तो लड़कियां पटाया पहुंचने लगीं… कुछ ने फ्रीलांसर के तौर पर काम किया, कुछ को मसाज पार्लर में जगह मिलने लगी और कई बार में नौकरी करने लगीं…
1964 में नगर पालिका का दर्जा नकलुआ से दक्षिण पटाया तक बढ़ाया गया था. 1970 के दशक के अंत तक, कई होटल, शॉपिंग सेंटर, रेस्टोरेंट और एंटरटेनमेंट स्पॉट्स खुल गए थे और बैंकॉक से मोटरवे बनने के बाद अब राजधानी से पटाया केवल दो घंटे की ड्राइव पर है.
1975 में वियतनाम से अमेरिकीयों के जाने के बाद भी, पटाया ने मुड़कर वापस नहीं देखा… वह एक टूरिस्ट मैग्नेट बन चुका था और महानगर बनने की ओर बढ़ रहा था… बैंकॉक आने वाले पर्यटक यहां आने लगे थे… वीकेंड्स पर पटाया और Jomtien टूरिस्टों से भरे रहते थे…
पटाया के तेजी से विस्तार के कारण, राष्ट्रीय सरकार ने इसे शहर का दर्जा दिया, और “पटाया शहर” 29 नवंबर 1978 को अस्तित्व में आया.
पूर्वी तट पर स्थित रिज़ॉर्ट्स तेजी से बने… 1986 में पटाया में 8 हजार होटेल के कमरे थे और दस साल बाद इनकी संख्या 30 हजार हो गई थी…
रात होते ही पटाया रोशनी से जगमगा उठता है, इस रोशनी में वो सब मिलता है जिसके लिए टूरिस्ट यहां आते हैं… ऐसी रात शायद ही किसी दूसरे शहर को नसीब होती हो…
वियतनाम युद्ध के शुरुआती वर्षों में, अमेरिकी सैनिकों की खिदमत के बावजूद पटाया 70 के दशक के अंत और 80 के दशक की शुरुआत तक बहुत हद तक बदल नहीं पाया था. 70 के दशक की शुरुआत में पटाया में कुछ ही होटल थे. लेकिन 1970 के दशक के अंत में चीजें तेजी से बदलीं… फ्लाइट्स बढ़ी… जानकारी भी बढ़ी और फिर.. पटाया आने वाले पर्यटकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखी गई, खास तौर से यूरोपीय और अमेरिकी पर्यटक की संख्या में…
इस समय तक सेक्स टूरिज्म के तौर पर पटाया तेजी से उभरा… पटाया की इस पहचान ने दूर दूर से मुसाफिरों को यहां खींचा… सेक्स टूरिस्ट बढ़ा तो पटाया में लड़कियों की संख्या भी बढ़ने लगी…
पटाया को उसकी अश्लीलता ने ऐसी शोहरत दी, कि दुनिया के कोने कोने से लोग यहां आने लगे… अलग अलग तरह के बार खुलने लगे थे… अभी भी बड़ी संख्या में girlie bars हैं, go-go bars, short time bars, gentleman clubs और theme pubs हैं.
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