Maharishi Patanjali History : योग भारत में आदि अनादि काल से चलती आ रही एक Spiritual Exercise सिस्टम है. जिसको हमारे ऋषि मुनियों ने हमें विरासत में दिया है. इस विरासत को ना केवल हमने स्वीकार किया और ना केवल हमने अपने जीवन में उतारा बल्कि विश्वभर में इसका प्रचार प्रसार किया. इस योग में महर्षि पतंजलि का मूल योगदान है. ये वो व्यक्ति थे जिन्होंने योग को वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया. योग सूत्र नाम की एक पुस्तक इन्होंने लिखी. ये एक महान चिकित्सक थे, एक बहुत ही महान आध्यात्मिक गुरु भी थे. इसी कड़ी में आज के आर्टिकल में हम आपको बताएंगे महर्षि पतंजलि के बारे में सबकुछ…
योग के जनक महर्षि पतंजलि के जन्म से जुड़ी काफी विश्वसनीय जानकारियां नहीं मिलती हैं. इस बारे में अलग-अलग बातें हैं. हालांकि कई जगहों पर जिक्र है कि वे पुष्यमित्र शुंग (195-142 ई.पू.) के शासनकाल में हुए थे. उत्तरप्रदेश के गोंडा में जन्मे पतंजलि आगे चलकर काशी में बस गए. काशी में पतंजलि पर इतनी आस्था थी कि उन्हें मनुष्य न मानकर शेषनाग का अवतार माना जाने लगा.
महर्षि पतंजलि का नाम आने पर अक्सर पाणिनी का भी जिक्र होता है. कुछ विद्वानों के अनुसार पतंजलि ने काशी में पाणिनी से शिक्षा ली थी और बाद में उनके शिष्य की तरह काफी काम भी किए. पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी पर अपनी टीका लिखी, जिसे महाभाष्य भी कहा गया. हालांकि कुछ का कहना है कि योग के जनक पतंजलि और अष्टाध्यायी पर टीका लिखने वाले, दो अलग-अलग लोग थे.
वैसे ज्यादातर का मानना यही है कि शिष्य के तौर पर महान प्रतिभाशाली पतंजलि ने ही ये सारे काम किए. साल 1914 में अंग्रेज इतिहासकार और लेखक जेम्स वुड ने भी इसी बात का समर्थन किया. वहीं साल 1922 में संस्कृत के जानकार सुरेंद्रनाथ दासगुप्ता ने भी पतंजलि के योग शास्त्र और महाभाष्य की भाषा को मिलाते हुए यही तर्क दिया कि दोनों ही ग्रंथ पतंजलि ने लिखे थे.
अष्टाध्यायी पर टीका पतंजलि की अकेली उपलब्धि नहीं, बल्कि सबसे ज्यादा इन्हें योग के लिए जाना जाता है. उन्होंने योग सूत्र लिखा, जिसमें कुल 196 योग मुद्राओं को सहेजा गया है. बता दें कि पतंजलि से पहले भी योग था लेकिन उन्होंने इसे धर्म और अंधविश्वास से बाहर निकाला और एक जगह जमा किया ताकि जानकारों की मदद से आम लोगों तक पहुंच सके. योग को ध्यान के साथ भी जोड़ा ताकि शरीर के साथ मानसिक ताकत भी बढ़े.
उसी दौरान उनकी लिखी बातें भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं में अनुवाद की जाने लगीं. ये संभवतः पहले ऐसे भारतीय ग्रंथों में था, जिसका दूसरे देशों में अनुवाद हुआ. यहां तक कि ये अरब देशों तक में पहुंच गया. विकिपीडिया पर इसका जिक्र मिलता है. हालांकि तेजी से लोकप्रिय होने के बाद एकाएक योग गायब हुआ और लगभग 700 सालों तक चलन से बाहर रहा. ये 12वीं से 19वीं सदी के बीच का समय था. तब दुनिया कई तरह के बदलावों से गुजर रही थी और व्यापार-व्यावसाय के साथ दबदबा बनाना और अपने धर्म को फैलाना सबसे बड़ा मकसद था. इसी दौर में योग पीछे चला गया.
1. समाधि पद (चिंतन पर अध्याय)
यह सेक्शन योग की अवधारणा और उसके लक्ष्य का परिचय देता है. समाधि (ईश्वर के साथ मिलन) की स्थिति प्राप्त करना है. यह विभिन्न प्रकार की मानसिक एक्टिविटी, मन के उतार-चढ़ाव और शांत और केंद्रित मन प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं पर बात करता है.
2. साधना पद (अभ्यास पर अध्याय)
महर्षि पतंजलि के योग पर तो उन्होंने अकेले शरीर की शुद्धि की बात नहीं की, बल्कि सबसे ज्यादा जिस बात पर जोर दिया, वो है अष्टांग योग. इसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि शामिल हैं. इस तरह से योग को टुकड़ों में बांटकर योग के इस जनक ने इसे आम लोगों तक पहुंचाया.
नैतिक सिद्धांत (यम और नियम),
शारीरिक मुद्राएँ (आसन),
श्वास नियंत्रण (प्राणायाम),
इंद्रिय वापसी (प्रत्याहार),
एकाग्रता (धारणा),
ध्यान (ध्यान),
परम अवशोषण (समाधि)।
3. विभूति पाद (उपलब्धियों पर अध्याय)
यह सेक्शन समर्पित योग अभ्यास से उत्पन्न होने वाली असाधारण शक्तियों और उपलब्धियों की खोज करता है. यह आंतरिक शक्तियों (सिद्धियों) की खेती पर चर्चा करता है, जैसे कि दिव्यदृष्टि, उत्तोलन, और दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता, साथ ही इन क्षमताओं से न जुड़ने के महत्व पर भी जोर देता है.
4. कैवल्य पाद (मुक्ति पर अध्याय)
अंतिम अध्याय कैवल्य की स्थिति पर केंद्रित है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति या परम स्वतंत्रता को संदर्भित करता है. इसमें आत्मा (पुरुष) की प्रकृति, दुख (क्लेश) के कारणों और अज्ञानता पर विजय पाने तथा मुक्ति पाने के साधनों पर चर्चा की गई है.
योग में पतंजलि की भूमिका और योगदान
मुनिवर पतंजलि ने अपने कार्य, योग सूत्र के माध्यम से योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1. योग का व्यवस्थितकरण:
पतंजलि के योग सूत्र ने योग को समझने और अभ्यास करने के लिए एक व्यवस्थित और व्यापक रूपरेखा प्रदान की. उन्होंने योग की विविध शिक्षाओं और प्रथाओं को एक संरचित प्रणाली में व्यवस्थित किया, जिसे अष्टांग योग के रूप में जाना जाता है, जिसमें आठ अंग या चरण शामिल हैं.
2. आठ अंगों का विवरण
पतंजलि ने अपने योग सूत्र में योग के आठ अंगों (अष्टांग योग) को स्पष्ट किया. नैतिक सिद्धांत (यम और नियम), शारीरिक मुद्राएँ (आसन), श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) और ध्यान (ध्यान) सहित ये अंग योग के अभ्यास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जो न केवल भौतिक शरीर बल्कि मन और आत्मा को भी संबोधित करते हैं.
3. मन की खोज
पतंजलि ने मन की प्रकृति और उसके कामकाज में गहराई से खोज की. उन्होंने instincts की अवधारणा पेश की. मन के उतार-चढ़ाव या संशोधन हैं, और आध्यात्मिक प्राप्ति के साधन के रूप में एक शांत और केंद्रित मन की खेती के महत्व पर प्रकाश डाला.
4. समाधि पर जोर
पतंजलि ने समाधि की अवधारणा को स्पष्ट किया. परमात्मा के साथ अवशोषण या मिलन की स्थिति है. उन्होंने विभिन्न प्रकार की समाधि का वर्णन किया और चेतना की इस उच्च अवस्था को प्राप्त करने के लिए अभ्यास और तकनीकों की रूपरेखा तैयार की. पतंजलि के अनुसार समाधि को योग का अंतिम लक्ष्य माना जाता है.
5. नैतिक दिशा-निर्देश
पतंजलि ने यम और नियम के नाम से जाने जाने वाले नैतिक सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की, जो योग के अभ्यासियों के लिए नैतिक दिशा-निर्देश के रूप में काम करते हैं. इन सिद्धांतों में अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, पवित्रता, संतोष, आत्म-अनुशासन, आत्म-अध्ययन और उच्च शक्ति के प्रति समर्पण शामिल हैं. वे आध्यात्मिक विकास और परिवर्तन चाहने वाले व्यक्तियों के लिए एक नैतिक आधार प्रदान करते हैं.
पतंजलि द्वारा अष्टांग की अवधारणा
अष्टांग योग की अवधारणा, जैसा कि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में स्पष्ट किया है, योग के आठ अंगों को संदर्भित करती है. अष्टांग का शाब्दिक अर्थ संस्कृत में “आठ अंग” है, और यह योग के अभ्यास और प्राप्ति के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है.ये आठ अंग योगिक पथ के विभिन्न चरणों या घटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलू शामिल हैं। वे इस प्रकार हैं:
1. यम (संयम)
यम नैतिक सिद्धांत हैं जो किसी के व्यवहार और दूसरों के साथ संबंधों का मार्गदर्शन करते हैं। इनमें शामिल हैं:
अहिंसा (अहिंसा),
सत्य (सत्य),
चोरी न करना (अस्तेय),
यौन संयम (ब्रह्मचर्य),
अपरिग्रह (अपरिग्रह)।
इन संयमों का अभ्यास करने से जीवन के प्रति सामंजस्यपूर्ण और नैतिक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलती है।
2. नियम (पालन)
नियम व्यक्तिगत पालन या अनुशासन हैं जो व्यक्तिगत व्यवहार और आत्म-अनुशासन पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इनमें शामिल हैं:
स्वच्छता (शौच),
संतोष (संतोष),
आत्म-अनुशासन (तपस),
स्वाध्याय (स्वाध्याय),
उच्च शक्ति के प्रति समर्पण (ईश्वर प्रणिधान)।
नियम आत्म-जागरूकता, आत्म-सुधार और ईश्वर के साथ गहरा संबंध विकसित करते हैं।
3. आसन (शारीरिक मुद्राएँ):
आसन योग में अभ्यास की जाने वाली शारीरिक मुद्राएं हैं. पतंजलि ने एक स्थिर और आरामदायक मुद्रा विकसित करने के महत्व पर जोर दिया. शरीर को ध्यान के लिए तैयार करने में मदद करता है, शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है और संतुलन और लचीलेपन को बढ़ावा देता है.
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण):
प्राणायाम में श्वास को विनियमित और नियंत्रित करना शामिल है. पतंजलि ने मन को शांत करने, प्राण (जीवन शक्ति) को बढ़ाने और शरीर और मन के बीच गहरा संबंध स्थापित करने के साधन के रूप में सांस नियंत्रण के महत्व पर प्रकाश डाला. ऊर्जा चैनलों को शुद्ध करने और मन की शांत और केंद्रित स्थिति को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न श्वास तकनीकों का उपयोग किया जाता है.
5. प्रत्याहार (इंद्रिय वापसी):
प्रत्याहार में इंद्रियों को बाहरी विकर्षणों और उत्तेजनाओं से दूर करना शामिल है. ध्यान को अंदर की ओर मोड़कर और संवेदी इनपुट से अलग करके, व्यक्ति मन पर अधिक नियंत्रण प्राप्त कर सकता है और आंतरिक जागरूकता विकसित कर सकता है.
6. धारणा (एकाग्रता):
धारणा एकाग्रता के अभ्यास को संदर्भित करती है, मन को एक बिंदु या वस्तु पर केंद्रित करना. यह अटूट ध्यान मानसिक स्थिरता विकसित करने में मदद करता है और मन को ध्यान की गहरी अवस्थाओं के लिए तैयार करता है.
7. ध्यान (मेडिटेशन):
ध्यान ध्यान या निरंतर चिंतन की अवस्था है. निरंतर और निर्बाध ध्यान के माध्यम से, अभ्यासी मन के सामान्य उतार-चढ़ाव से परे, गहन अवशोषण की स्थिति में प्रवेश करता है.
8. समाधि (अवशोषण):
समाधि योग की अंतिम अवस्था है, जहां साधक ध्यान की वस्तु के साथ एकता और एकता की स्थिति का अनुभव करता है. इस अवस्था में, व्यक्तिगत चेतना सार्वभौमिक चेतना के साथ विलीन हो जाती है, जिससे गहन आध्यात्मिक अनुभूति और मुक्ति प्राप्त होती है.
1. पतंजलि कब रहते थे?
माना जाता है कि पतंजलि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और चौथी शताब्दी ईसवी के बीच रहते थे.
2. पतंजलि किस लिए जाने जाते हैं?
पतंजलि मुख्य रूप से योग सूत्रों के संकलन के लिए जाने जाते हैं, जो योग को समझने और अभ्यास करने के लिए एक व्यवस्थित रूपरेखा प्रदान करते हैं.
3. योग सूत्रों का क्या महत्व है?
योग सूत्रों को योग के क्षेत्र में उनकी दार्शनिक अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक मार्गदर्शन के लिए अत्यधिक माना जाता है. वे विभिन्न संस्कृतियों और पीढ़ियों में योग की समझ और अभ्यास को आकार देने में सहायक रहे हैं.
4. योग के आठ अंग क्या हैं?
योग के आठ अंग, जिन्हें अष्टांग योग के रूप में जाना जाता है, योग सूत्रों में उल्लिखित हैं। इनमें नैतिक सिद्धांत (यम और नियम), शारीरिक मुद्राएँ (आसन), श्वास नियंत्रण (प्राणायाम), इंद्रिय वापसी (प्रत्याहार), एकाग्रता (धारणा), ध्यान (ध्यान), और अंतिम अवशोषण (समाधि) शामिल हैं.
5. पतंजलि ने आज योग को कैसे प्रभावित किया?
पतंजलि की शिक्षाओं और योग सूत्रों का योग की वैश्विक लोकप्रियता और समझ पर गहरा प्रभाव पड़ा है. उन्होंने मन, शरीर और आत्मा के एकीकरण पर जोर देते हुए समकालीन योग प्रथाओं के लिए एक दार्शनिक और व्यावहारिक आधार प्रदान किया है.
6. क्या पतंजलि योग सूत्रों के अलावा किसी अन्य कार्य से जुड़े हैं?
हालाँकि पतंजलि योग सूत्रों के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनके द्वारा लिखे गए कुछ अन्य कार्य भी हैं, जैसे कि महाभाष्य, जो संस्कृत भाषा के व्याकरण पर एक टिप्पणी है.
7. पतंजलि को योग का जनक क्यों कहा जाता है?
योग के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान और उनके कार्य, योग सूत्र के गहन प्रभाव के कारण पतंजलि को अक्सर “योग का जनक” कहा जाता है.
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