Travel History

Kharai Camels : India के इस राज्य में आपको दिखेंगे तैरते हुए ऊंट, जानें इन खास खराई ऊंट के बारे में

Kharai Camels :  ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है. ऐसा इसीलिए क्योंकि ऊंचे गर्दन वाला यह जीव रेत के बीच भी तेजी से भागता है. गर्म दिनों में कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है. हालांकि, कम ही लोग होंगे जो यह जानते होंगे कि ऊंटों की एक ऐसी प्रजाति भी है जो रेत के साथ-साथ उफनते समंदर में भी इतनी आसानी से यात्रा कर सकती है. खराई प्रजाति के ये ऊंट गुजरात में पाए जाते हैं. खराई यानी खारे पानी का ऊंट.

तैरने वाले इन ऊंटों को गुजरात के कच्छ क्षेत्र में आसानी से दे सकते हैं. इनका खाना समुद्र के आसपास उगने वाले खर-पतवार और मैंग्रोव हैं. मैंग्रोव से तात्पर्य उन पेड़-पौधों से हैं जो तटीय क्षेत्र में पाए जाते हैं और खारे पानी में भी जीवित रहते हैं.

कैसे हुई खराई ऊंट की उत्पत्ति || How did the Kharai camel originate?

ऊंट की उत्पत्ति के पीछे एक अनोखो मिथक भी जुड़ा हुआ है। कच्छ की किदवंतियों में कहते हैं कि 400 वर्ष पहले रैबारी परिवार के दो भाई एक ऊंट के मालिकाना हक को लेकर झगड़ पड़े. मामले को सुलझाने के लिए वे सांवला पीर के दर पर गए. पीर ने मोम का एक विशाल ऊंट बनाया जो कि असली ऊंट जैसा दिख रहा था. पीर ने दोनों भाइयों को अपना-अपना ऊंट चुनने को कहा. बड़ा भाई ने असली ऊंट पहचान लिया और छोटे के हिस्से में मोम का नकली ऊंट आया.

सांवला पीर ने छोटे भाई को मोम के ऊंट को समुद्र में विसर्जित करने की सलाह दी. ऐसा करने के बाद हजारों ऊंट समुद्र में से निकलकर छोटे भाई के पीछे हो चले.ये सब खराई ऊंट थे. रैबारी और जाट, दो समुदाय के लोग इस ऊंट को परंपरागत रूप से पालते आ रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि राजाओं ने इन दोनों समुदाय को ऊंट पालने की जिम्मेदारी दी थी. इस ऊंट से जुड़ा इतिहास कुछ धुंधला सा हो सकता है लेकिन इतना जरूर है कि इस प्रजाति के ऊंटों को काफी सम्मान से देखा जाता हैय कुछ वर्ष पहले तक इन्हें इतना पवित्र माना जाता था कि इससे निकला दूध और ऊन का Buy और sell नहीं होता था.

नर ऊंटों का उपयोग छोटी गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है, जिससे व्यापारी अपना सामान अंदरुनी गांवों में ले जाते हैं. महज ढुलाई के लिए ऊंट का उपयोग होने की वजह से पालकों की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है.

घट रही है खराई ऊंटों की जनसंख्या || The population of Kharai camels is decreasing

अब बदलते वक्त में साथ खराई ऊंटों  के जीवन को भी प्रभावित करने लगी है. अब मैंग्रोव के जंगल खत्म हो रहे हैं और आए दिन भूख की वजह से ऊंटों की मृत्यु हो रही  है.  इस खास प्रजाति के ऊंटों की संख्या तेजी से कम हो रही है. इस तरह पानी में तैर सकने वाले अनोखे खराई ऊंट विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 में ऊंटों की इस प्रजाति की संख्या 4,000 थी जो अब घटकर 2,000 से कम बची है।

टापू पर मानसून बिताने जाते हैं खराई ऊंट || Kharai camels go to spend monsoon on the island

बारिश के मौसम में मैंग्रोव के टापू तट से दूर हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में हर वर्ष इस मौसम में ऊंट, तैरकर टापू पर जाते हैं और वहीं रहते हैं.  इन ऊंटों के साथ इनके पालक भी वही रहते हैं और ऊंटनी के दूध पीकर अपना पेट भरते हैं.

मैंग्रोव के जंगल पर ऊंट साल में आठ महीने निर्भर रहते हैं. खाने को समुद्र के किनारे हरे पत्ते और पीने को बारिश का जमा हुआ पानी मिल जाता है.गर्मियों में ये ऊंट अपने पालक के साथ गावों की तरफ लौटते हैं जहां उनके खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है.

Kalika Temple Gujarat : महमूद बेगड़ा जिसने ध्वस्त कर दिया था कालिका मंदिर का शिखर, अब मोदी ने फहराया ध्वज!

बढ़ते औद्योगिकीकरण से खत्म हो रहे मैंग्रोव

वर्ष 2001 में भुज में आए भुकंप के बाद कच्छ क्षेत्र पर भी इसका काफी असर हुआ. इसके बाद शहर को दोबारा से विकास की रफ्तार देने के लिए समुद्र के किनारे निर्माण काम तेजी से हुए. यहां नमक और सीमेंट की ढेरों फ्रैक्ट्रियां लगाईं गईं. फैक्ट्रियों की वजह से ज्वार का पानी मैंग्रोव तक नहीं पहुंच पाता है जिससे वहां सूखा पड़ने लगता है. ऐसा नमक की फैक्ट्रियों के लिए बने मेढ़ों की वजह से होता है. पानी न मिलने पर पेड़ सूख जाते हैं जिसके बाद मशीनों से उसे उखाड़ दिया जाता है. नमक की फैक्ट्रियों की वजह से ऊंट मैंग्रोव की टापुओं तक नहीं पहुंच पाते हैं. सहजीवन संस्था पिछले कई वर्षों से खराई ऊंटों के संरक्षण का काम कर रही है.

कच्छ के अब्दसा, भचाऊ, लखपत, और मुन्द्रा जैसे स्थानों पर खराई ऊंट पाए जाते हैं. इन्हीं इलाकों में तेजी से उद्योगों का विकास भी हुआ है. इस वजह से टापुओं तक ऊंट का जाना मुश्किल हो गया है. नाव को रखने के लिए बने स्थल भी ऊंट और टापुओं के बीच आते हैं. कुल मिलाकर इन ऊंटों को अब अपना प्रिय भोजन (मैंग्रोव) मिल पाता है. इससे इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

देश के ये 12 मंदिर साबित करते हैं कि यौन संबंध को लेकर हमारे पूर्वज कितने सहज थे

Recent Posts

Rangbhari Ekadashi 2025: जानें, रंगभरी एकादशी का महत्व और वाराणसी में होली मनाने की रस्में

Rangbhari Ekadashi 2025: हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी… Read More

16 hours ago

Char Dham Yatra 2025 : कब से शुरू होगी चारधाम यात्रा, क्या होंगे VIP नियम?

Char Dham Yatra 2025 : उत्तराखंड की चार धाम यात्रा 30 अप्रैल, 2025 को गंगोत्री… Read More

2 weeks ago

Concentration बढ़ाना चाहते हैं? सुबह उठकर करें ये 5 एक्सरसाइज, तनाव और चिंता होगी दूर

आज की भागदौड़ भरी दुनिया में एकाग्रता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है.… Read More

2 weeks ago

Spring Season 2025 : वसंत ऋतु में भारत की ये 5 जगहें जरूर घूमें

Spring Season 2025 : वसंत ऋतु सबसे सुखद मौसमों में से एक है, जिसमें फूल… Read More

2 weeks ago

Dharamshala Travel Blog Day 1 : धर्मशाला में कैसा रहा हमारी यात्रा का पहला दिन, जानें पूरा ट्रैवल ब्लॉग

Dharamshala travel Blog Day 1 धर्मशाला उत्तर भारत का एक शहर है. यह हिमाचल प्रदेश… Read More

2 weeks ago

Vietnam Travel Blog : क्या आप जल्द ही वियतनाम जाने की योजना बना रहे हैं? तो जानिए कैसे कम खर्च में यात्रा करें

Vietnam Travel Blog : वियतनाम एक खूबसूरत देश है जो अपनी समृद्ध संस्कृति, शानदार लैंडस्केप… Read More

3 weeks ago