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Murudeshwar Temple History : जानें रावण क्यों नहीं हो सका अमर, मुरुदेश्वर मंदिर से जुड़ा इतिहास

Murudeshwar Temple History – सावन का महीना चल रहा है और आप अगर भगवान शिव के दर्शन करना चाहते हैं तो पहली फ्लाइट पकड़कर कर्नाटक पहुंच जाएं. शिव शंकर भोले की सबसे दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति कर्नाटक के मेंगलोर में बसे भटकल तहसील में स्थापित है, जिसे मुरुदेश्वर मंदिर (Murudeshwar Temple) के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव के कई नाम हैं इनमें एक नाम मुरुदेश्वर (Murudeshwar ) भी है. इस कारण इस मंदिर का नाम Murudeshwar Temple पड़ा.  यहां भगवान शिव की स्थापित मूर्ति सिलवर रंग की है, जो देखने में बेहद ही खूबसूरत है. सूरज की रौशनी पड़ते ही यह मूर्ति चांदी की तरह चमक उठती है.

यह मंदिर कस्बा अरब सागर के तट पर स्थित है और मंगलुरू से 165 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर स्थापित है. Murudeshwar Temple सागरतट, कर्णाटक के सब से सुन्दर तटों में से एक है.

मंदिर का इतिहास रावण से जुड़ा – History of the temple connected with Ravan

इस मंदिर का इतिहास रावण से जुड़ा हुआ है, इसलिए भी यह मंदिर विशेष है. कन्दुका पहाड़ी तीन ओर से पानी से घिरा हुआ है. पर्यटकों के लिए यहां आना मतलब दिन बन जाना जैसा है. एक तरफ भगवान भोले के दर्शन तो दूसरी तरफ समुद्र से घिरी यह जगह है, जो अपने आपमें स्वर्ग से कम नहीं है.

पढ़ें : Mallikarjun Jyotirlinga और Srisailam Mandir : नाराज कार्तिकेय को मनाने यहीं आए थे शिव-पार्वती

मुरुदेश्वर मंदिर का इतिहास – History of Murudeshwar Temple

अब बढ़ते हैं उस मान्यता की ओर जिसके लिए ये मंदिर प्रसिद्ध है. कथाओ में बताया गया है कि रावण जब अमरता का वरदान पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने उसकी तपस्या से खुश होकर उसे एक शिवलिंग दिया, जिसे ‘आत्मलिंग’ कहा जाता है और कहा कि अगर तुम अमर होना चाहते हो तो इसे लंका ले जाकर स्थापित कर देना, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दोगे, ये वहीं स्थापित हो जाएगा.

रावण ने शिवलिंग को धरती पर रखा

भगवान शिव के कहेनुसार रावण शिवलिंग को लेकर लंका की ओर जा रहा था, लेकिन बीच रास्ते में ही उसने शिवलिंग को धरती पर रख दिया, जिससे वो वहीं पर स्थापित हो गया. इससे रावण को क्रोध आ गया और उसने शिवलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया. इसी क्रम में जिस वस्त्र से शिवलिंग ढंका हुआ था, वह म्रिदेश्वर के कन्दुका पर्वत पर जा गिरा. म्रिदेश्वर को ही अब Murudeshwar के नाम से जाना जाता है. शिव पुराण में इस कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है.

पढ़ें : Janaki Temple in Nepal : जहां से जुड़ी हैं रामायण की जड़ें, क्यों कहते हैं नौलखा मंदिर?

दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति – Second Largest Statue

मुरुदेश्वर मंदिर ( Murudeshwar Temple) के बाहर बनी शिव भगवान की मूर्ति विश्व की दूसरी सबसे ऊँची शिव मूर्ति है और इसकी ऊँचाई 123 फीट है. अरब सागर में बहुत दूर से इसे देखा जा सकता है. इसे बनाने में दो साल लगे थे और शिवमोग्गा के काशीनाथ और अन्य मूर्तिकारों ने इसे बनाया था. इसका निर्माण उसी स्थानीय आर एन शेट्टी ने करवाया था. लगभग 5 करोड़ भारतीय रुपयों की लागत आई थी. इस मूर्ति को इस तरह बनवाया गया है कि सूरज की किरणे इस पर पड़ती रहें और यह चमकती रहे.

मेंगलोर में होटल – Hotel in Menglor

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आप यहां पहुंचने के बाद ठहरे कहां. भटकल के आसपास आपकों कई होटल और लॉज मिल जाएंगे जहां ठहर कर आसानी से इस पूरी जगह का आनंद उठा सकते है. यहां मौजूद होटल रेस्टोरेंट आपके बजट में आसानी से आ जाएंगे. कुछ होटल की लिस्ट यहां मौजूद है, जो आपके इस सफर में आपके लिए मददगार साबित होगा.

श्री विनायक रेजीडेंसी (Shree Vinayaka Residency)

आरएनएस गेस्ट हाउस (RNS Guest House)

होटल कोला पैराडाइज़ (Hotel Kola Paradise)

सेंट्रल लॉज (Central Lodge)

पंचवज्रा होमस्टे (Panchavajra Homestay)

राजा गोपुर – Raja Gopur

गोपरा आम तौर पर किसी भी हिंदू मंदिर का मुख्य द्वार होता है. राजागोपुरा 20 मंजिला इमारत है, जो कि मुरुदेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार है. श्रद्धालु इस गोपुरा में लिफ्ट का इस्तेमाल कर ऊपरी मंजिल अपर पहुंचकर मुरुदेश्वर मंदिर और शिव प्रतिमा और मीलों दूर तक फैले समुंद्र को देख सकते हैं. Murudeshwar Temple के आसपास किला, गार्डन और वो तमाम चीजे जहां आप पूरा दिन गुजार सकते हैं.

इस आर्टिकल के मदद से आप इस मंदिर के इतिहास से तो रू-ब-रू हो ही गए होंगे. लेकिन मंदिर के साक्षात दर्शन के लिए आप को मुरुदेश्वर आना होगा  और भगवान शिव के दर्शन कर बम भोले का जाप कर मंत्रमुग्ध होना होगा.

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