Jama Masjid Delhi Complete History and Tour Guide || लाल पत्थरों से तामीर की गई इस बुलंद मस्जिद को एकटक देखने पर इतिहास का दौर आंखों के सामने उभरने लगता है. इसने मुगल सल्तनत की बुलंदी को देखा है, घोड़ों के टापों की आवाज़ को झेला है, बदकिस्मती का दौर बीता और फिर यहां रवानी लौटी लेकिन वह दौर जिसने इसे बनाया, मानों इसकी दीवारें आज भी उसे शिद्दत से याद कर रही हों…. ऐसा ही लगता है इसे एकटक देखते रहने पर
दिल्ली देश का दिल है, और देश के दिल का भी एक दिल है, जो बसता है पुरानी दिल्ली में… पुरानी दिल्ली के अपने सफर में एक दिन हमने गुज़ारा जामा मस्जिद ( Jama Masjid Delhi ) में… जामा मस्जिद ( Jama Masjid Delhi ) का एक दूसरा भी नाम है – मस्जिद ए जहाँ नुमा और इस नाम को कम ही लोग जानते हैं. मस्जिद – ए – जहांनुमा का अर्थ है दुनिया पर जीत का नज़रिया रखने वाली मस्जिद।
यह मस्जिद 1650-1656 के दौर में तब बनाई गई थी जब मुगल बादशाह शाह जहां का दौर चल रहा था और मुगलिया सल्तनत अपने शिखर पर थी. मस्जिद का शुभारंभ किया था इसके पहले इमाम सैयद अब्दुल गफ़ूर शाह बुखारी, जो उज्बेकिस्तान के बुखारा से खासतौर से इसके लिए बुलाए गए थे. तब से लेकर आज तक इसी परिवार की पीढ़ियां इस मस्जिद में इमाम का पद संभालती रही हैं. पुरानी दिल्ली यानी मुगलों के शहर शाहजहानाबाद में स्थित इस मस्ज़िद के नाम 1857 में मुगिलया दौर के अंत तक शाही मस्जिद का खिताब रहा.
इस मस्जिद ( Jama Masjid Delhi ) के तीन गेट चार मीनारें और 40 मीटर की लम्बी छोटी मीनारें है जो लाल बालुई पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित है. जामा मस्जिद ( Jama Masjid Delhi ) का पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। मुगल काल में इस द्वार का इस्तेमाल शाही परिवार करता था.
इस मस्जिद ( Jama Masjid Delhi ) का डिजाइन आर्किटेक्ट उस्ताद खलील ने कराया था और इसे तैयार करने में 5 हजार मज़दूरों ने कड़ी मशक्कत की थी.. इसमें भारतीय, अरब, फारसी, तुर्क और यूरोपीय कारीगर भी थे. मुगल शासन के वज़ीर सदाउल्लाह खान की देखरेख में यह पूरा कार्य हुआ था. उस तौर में इसपर 10 लाख रुपये का खर्च आया था. मस्जिद का शुभारंभ 23 जुलाई 1656 को हुआ था.
जामा मस्जिद ( Jama Masjid Delhi ) पवित्र शहर मक्का, सऊदी अरब की ओर उन्मुख है, जो पश्चिम में स्थित है. शाहजहां ने दिल्ली, आगरा, अजमेर और लाहौर में कई मस्जिदें बनवाई. इस मस्जिद के निर्माण में शाहजहां ने ऊंचाई वाली ज़मीन (पहाड़ी भोज़ाल) को चुना था इस वजह से इसकी आभा और बढ़ जाती है. इस छोटी सी पहाड़ी को मस्जिद की बनाने के लिए चुना गया। यह शाहजहाँ के दरबार के ठीक सामने थी।
1673 में शाहजहाँ के बेटे औरंगजेब ने लाहौर में बादशाही मस्जिद बनवाई थी जिसकी वास्तुकला और डिजाइन दिल्ली की जामा मस्जिद से खासा मेल खाती है.
1803 में मुगलों का शाहजहानाबाद अंग्रेज़ी हुकूमत के अंतर्गत आ गया. अंग्रेजों ने मुगल बादशाहों के बसाए इस शहर को अपने कब्ज़े में ले लिया. हालांकि मुगल शहंशाह मस्ज़िद का शाही मुखिया बना रहा अंग्रेजों ने शाहजहानाबाद पर अधिकार कर लिया। मुगल सम्राट मस्जिद का शाही मुखिया बना रहा, लेकिन मुगल सत्ता और संरक्षण अब जीर्ण शीर्ण हो चुका था.
शुरुआत में अंग्रेज़ों ने जामा मस्जिद की मरम्मत और जीर्णोद्धार का काम भी किया. यहां सामाजिक और राजनीतिक चर्चाएं हुआ करती थीं लेकिन 1857 की क्रांति ने सबकुछ बदल रख दिया. 1857 की क्रांति को लेकर अंग्रेजों का मानना था कि इसे पूरी तरह से मुस्लिमों ने ही भड़काया है और इसकी साज़िश शहर की मस्ज़िदों में ही लिखी गई.
उन्होंने फिर कई मस्ज़िदों को ध्वस्त कर दिया. बाकी बची मस्जिदों में सभा और नमाज़ पर प्रतिबंध लगा दिया. इस मस्जिद से कुछ ही दूरी पर खूनी दरवाज़ा है, यहां मुगल सल्तनत के बचे हुए वारिसों को गोली मार दी गई थी.
अंग्रेजों ने आखिर में इसे अपने सिख और यूरोपीय सैनिकों के लिए बैरक के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. हालांकि देश के दूसरे मुस्लिम नवाबों की कोशिश के बाद 1862 में यह मस्जिद वापस मुस्लिम समाज को दे दी गई. लेकिन अब शर्तें लगाई जा चुकी थी और मस्जिद में होने वाली हर गतिविधि सख्ती के घेरे में थी.
1947 में बकरीद के मौके पर अबुल कलाम आज़ाद ने यहीं से ऐतिहासिक भाषण दिया था.
इसमें प्रवेश के लिए तीन बड़े दरवाजे हैं। मस्जिद में दो मीनारें हैं जिनकी ऊंचाई 40 मीटर (करीब 131.2 फीट) है. इस मस्जिद के बरामदे में करीब 25 हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं.
जामा मस्जिद दिल्ली की यात्रा करने के लिए कुछ नियम भी हैं, जैसे शॉर्ट्स और स्कर्ट यहां पहनने से बचना चाहिए, नमाज़ के वक्त टूरिस्ट अंदर नहीं जा सकते हैं.
मस्जिद में अंदर दाखिल होने के लिए कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है लेकिन 200-300 रुपये फोटोग्राफी के लिए चार्ज किया जाता है. मीनार पर चढ़ने का शुल्क 50 रुपये है.
कमज़ोर दिल वालों को और हार्ट पेशेंट को हमारा सुझाव है कि वह इस मीनार पर चढ़ने से बचें. वैसे यहां से जो नजारा दिखता है, वह भी कमाल का होता है.
अगर आप अपनी गाड़ी से यहां आते हैं तो उत्तरी नगर निगम की मीना बाज़ार कार पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर सकते हैं. बस से आने के लिए यहां जामा मस्जिद बस स्टाप बना हुआ है, आप डीटीसी की किसी भी एसी या नॉन एसी बस से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं. दिल्ली में पर्यटन के लिए चलने वाली हो हो बस सर्विस भी यहां आती है. यहां से सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन भी जामा मस्जिद है. यह वायलेट लाइन पर है. आप यहां से मस्जिद पैदल भी पहुंच सकते हैं.
कई कहानियों, पड़ावों, से गुज़री इस मस्जिद के इतिहास में अनगिनत पन्ने हैं जो कई अनसुने किस्से लेकर बैठे हैं.
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