Dadi Poti Tomb : दिल्ली के श्री अरबिंदो मार्केट के पास दो मध्यकालीन इमारतें हैं जिन्हें ‘दादी-पोती के मकबरे के नाम से जाना जाता है. दिखने में खूबसूरत ये दोनों ही मकबरे दिल्ली के कई अन्य मकबरों की तरह ही गुमनामी के शिकार हैं और यहां किन्हें दफ़नाया गया है, ये भी अभी स्पष्ट नहीं है. आज के आर्टिकल में हम आपको बताएंगे दादी-पोती के मकबरे (Dadi Poti Tomb) के बारे में.
बताया जाता है कि इस जगह पर एक बूढ़ी महिला अपनी पोती के साथ आया करती थी और जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके मकबरों को बनवाया गया था. एक अन्य कहानी ये है कि बड़ा वाला मकबरा (दादी का) किसी मालकिन का है, और छोटा वाला (पोती का) उसकी सहायिका का. एक बात जोकि बाकी मकबरों से बेहद अलग थी, वह थी पोती के मकबरे के ऊपर बनी लालटेननुमा आकृति, जोकि कुछ हद तक इसे राजपूताना कोण भी देती है. ऐसी कुछ और कथाएं भी जरूर होंगी, मगर अंदर पत्थर के वह कब्र किन लोगों के हैं, ये तब भी साफ नहीं हो पाया है.
अब एक बात और, दादी-पोती के मकबरे में एक और विशेष बात ये थी कि छोटा वाला यानि पोती का मकबरा, दादी के मकबरे से पहले निर्मित हुआ था. रचना के हिसाब से भी दोनों अलग-अलग आकृति, वक्त और शासनकाल की हैं. एक ओर जहां पोती के मकबरे का निर्माण तुगलक काल में 1321 से लेकर 1414 ईसवीं के बीच हुआ, दादी के मकबरे को लोदी काल के दौरान 1451 से लेकर 1526 के बीच बनाया गया था. अगर आपको मकबरों और इतिहास की कुछ गहन जानकारी होगी, तो शायद आप ये अनुमान भी लगा सकते हैं कि इन मकबरों की प्रेरणा कहीं-न-कहीं बड़े खान के मकबरा व छोटे खान के मकबरे से ही ली गई है.
हौज खास में एक ही इलाके में कई मकबरे हैं और उनमें दादी का मकबरा शायद सबसे बड़ा है. लोगों को इस जगह की जानकारी नहीं. दादी के मकबरे के अंदर छह कब्र हैं, जोकि किसी एक परिवार की हैं. लोदी काल की परम्परा के अनुसार आप उनपर कुरान की आयतें भी देख सकते हैं. सम्भव है कि जब आप यहां जाएं तो कुछ लोग आपको कब्र के आसपास भी बेफिक्र सोते हुए मिल जायें. छत पर जाने के लिए सीढ़ी भी है. छत से हौज खास का एक बेहतरीन नजारा दिखाई देता है. अगर आप भी वहां जाएं, तो ऊपर छत पर जाने की कोशिश में तारों से सावधानी जरूर रखियेगा.
दादी-पोती का मकबरा कैसे जाएं- नजदीकी मेट्रो स्टेशन हौज खास है.
दादी-पोती का मकबरा जाने का समय- सुबह से लेकर शाम तक कभी भी जा सकते हैं.
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