Ayutthaya Historical Park in Thailand : Ayutthaya का ऐतिहासिक शहर (Ayutthaya Historical Park in Thailand), सियामी साम्राज्य की दूसरी राजधानी थी. Sukhothai इस साम्राज्य की पहली राजधानी थी… अयुत्थाया 14वीं से 18वीं शताब्दी तक फला-फूला, इस दौरान यह दुनिया का सबसे बड़ा कॉस्मोपॉलिटन अर्बन एरिया था… अयुत्थाया एक ऐसे आईलैंड बसा हुआ था जिसके चारों ओर 3 नदियां थी… ये नदियां हैं Chao Phraya, Pa Sak river और Lop Buri नदी… ये नदिया समंदर को सीधा इस शहर से जोड़ती थीं… इस शहर पर दुश्मन के होने वाले हमले रोके जा सकते थे और यहां बाढ़ का भी खतरा नहीं था…
अयुत्थाया हिस्टोरिकल पार्क (Ayutthaya Historical Park in Thailand) एक ऐसी जगह है जहां दुनिया भर से टूरिस्ट आते हैं.. इस हिस्से में अयुत्थाया के पुराने शहर, फ्रा नखोन सी अयुत्थाया प्रोविंस के खंडहर हो चुके हिस्से शामिल हैं. Ayutthaya शहर की स्थापना 1351 में राजा रामाथिबोधी I ने की थी, जिनका एक नाम King U-Thong भी था…Ayutthaya शहर में यह साक्ष्य मिले हैं कि Ayutthaya की बसावट से पहले यहां अयोध्या नाम का एक शहर मौजूद था… अयोध्या से भी पहले जाएं तो मोन द्वारावती पीरियड में यहां अच्छी खासी आबादी थी… वजह थी इसका नदियों से घिरा होना… कुदरत ने इस शहर को तोहफे में नदियों की ऐसी बाउंड्री दी जिसने इसे कारोबार के लिए एकदम मुफीद बना दिया… समंदर के रास्ते बड़े बड़े जहाज सीधा चायो फ्राया रिवर से होते हुए यहां पहुंच जाते थे…
लगभग 850 ईस्वी में, खमेरों ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और फिर उन्हीं ने यहां बसाया एक नया शहर- अयोध्या… Ayutthaya का शुरुआती इतिहास इसी खमेर सेटलमेंट से जुड़ा हुआ है.. यह शहर कभी साउथ ईस्ट एशिया में सबसे संपन्न शहरों में शामिल हुआ करता था लेकिन 1767 में बर्मा की सेना ने इसे तबाह कर दिया… बर्मीज युद्ध में हारते रहे लेकिन हमले करते रहे…उन्होंने भी इस शहर पर खमेर की सत्ता कमजोर पड़ने के बाद लगभग 100 साल तक शासन किया था… 1767 में उन्हें कामयाबी मिली… और आज शहर का जो स्वरूप है, वह बर्मीज हमले का ही असर है… 1976 में साइट को एक ऐतिहासिक पार्क (Ayutthaya Historical Park in Thailand) घोषित किया गया… पार्क के एक हिस्से को 1991 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Sites) घोषित किया गया …
वर्तमान में, फ्रा नखोन सी अयुत्थाया जिला, फ्रा नखोन सी अयुत्या प्रोविंस में स्थित है. वर्ल्ड हेरिटेज साइट का कुल क्षेत्रफल 289 हेक्टेयर है…
Wat Chaiwatthanaram
Wat Kasatrathiraj
Wat Kudi Dao
Wat Lokayasutharam
Wat Mahathat
Wat Phanan Choeng
Wiharn Phra Mongkhon Bopit
Wat Phra Ram
Wat Phra Sri Sanphet
Wat Ratchaburana, Ayutthaya
Wat Yai Chai Mongkhon
Phra Chedi Suriyothai
Ayutthaya Historical Study Centre
Japanese village
Baan Hollanda (Dutch village)
Wat Phu Khao Thong
Elephant camp
वाट फ्रा सी सनफेट (Wat Phra Si Sanphet), वाट महाथाट (Wat Maha That), वाट रत्चाबुराना (Wat Ratchaburana), वाट फ्रा राम (Wat Phra Ram), वाट चायवत्थनरम (Wat Chaiwatthanaram) और वाट माहियोन्ग (Wat Maheyong) की टिकट एकसाथ खरीदने का ऑप्शन आपको मिलता है. इनकी टिकट 220 ब्हाथ की है यानी 550 रुपये इंडिन करेंसी में… आप अगर इन्हें अलग अलग घूमना चाहें तो घूम सकते हैं और तब आपको हर मंदिर की टिकट के लिए 50 ब्हाथ चुकाने होंगे… जो टूरिस्ट सभी 6 जगहें नहीं घूमना चाहते हैं, वे अक्सर अलग अलग टिकट खरीदते हैं…
सफर की शुरुआत हुई सुबह सुबह Wat Ratchaburana से…
Wat Ratchaburana, Ayutthaya हिस्टोरिकल पार्क (Ayutthaya Historical Park in Thailand) में स्थित एक बौद्ध मंदिर यानी की वाट है. मंदिर का मेन प्रांग शहर में बेहतरीन है. अयुत्थाया के आईलैंड सेक्शन में यह मंदिर वाट महाथाट के नॉर्थ में है.
वाट रत्चबुराना की स्थापना 1424 में अयुत्थाया साम्राज्य के राजा बोरोमाराचथिरत द्वितीय या Chao Sam Phraya ने की थी… उन्होंने इसे अपने दो बड़े भाइयों की क्रिमेशन साइट पर बनाया था… दोनों भाइयों ने अपने पिता इंथा राचा के शाही उत्तराधिकार के लिए आपस में युद्ध लड़ा और मारे गए…
जहां दो भाइयों का क्रिमेशन हुआ, वहां दो पगोडा बनाए गए…
1957 में मंदिर के तहखाने से बड़ी संख्या में बुद्ध की इमेज और गोल्ड की कलाकृतियों को लूट लिया गया था… बाद में चोरों को पकड़ लिया गया, लेकिन कुछ ही खजाने बरामद किए जा सके… जो चीजें बरामद हुईं, उन्हें नजदीक के चाओ सैम फ्राया म्युजियम में रखा गया…
इन सभी वाट के बाहर टुकटुक की सवारी आपको मिलती है… आप इन्हें भी बुक कर सकते हैं… इसके जरिए आप सभी मॉन्युमेंट्स घूम सकते हैं… वैसे मैंने इस दिन के लिए साइकिल हायर की था… 50 ब्हाथ पर डे के किराये पर.. यानी 125 रुपये भारतीय करेंसी… आप जहां भी जाएं आपको साइकिल स्टैंड जरूर मिलेगा… यहां तो साइकिल को तालों की भी जरूरत नहीं होती है… वैसे अपनी तसल्ली के लिए आप लॉक लगा सकते हैं…
अयुत्थाया हिस्टोरिकल पार्क में सफर का दूसरा पड़ाव था वाट महाथाट…
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वाट महाथाट के बारे में कुछ बात करें उसके पहले ये बता दें कि यहीं पर बुद्धा की मूर्ति का वह सिर भी है जो एक तरह से अयुत्थाया की आइकॉनिक इमेज बन चुकी है… जड़ों के बीच बुद्धा हर टूरिस्ट को अपनी ओर आकर्षित करते हैं…
Wat Mahathat भी एक बौद्ध मंदिर है. बात, वाट महाथाट के लोकेशन की करें तो ये फ्रा राम पार्क के नॉर्थ ईस्ट कॉर्नर पर ओल्ड अयुत्थाया में ची कुन रोड (Chi Kun Road) और नरेसुआन रोड (Naresuan Road) के बीच में स्थित है.
Wat Mahathat Ayutthaya के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक था. अयुत्थाया किंग्डम के दौर में ये बौद्ध धर्म का केंद्र था. वाट महाथाट, महल के करीब मौजूद एक शाही मोनेस्ट्री थी. राजा यहां पर रॉयल कैथिन समारोह जैसी अहम सेरेमनीज किया करते थे.
मंदिर का निर्माण साल 1374 में राजा बोरोम्मा रचाथिरत प्रथम (King Boromma Rachathirat I) ने किया था. प्रांग 17वीं शताब्दी की शुरुआत में ढह गया था… बाद में इसे नए सिरे से बनाया गया और बड़ा भी किया गया… बाद के राजाओं के काल में असेंबली हॉल और चेदी जोड़ी गईं….
जब बर्मी लोगों ने अयुत्थाया पर आक्रमण किया और 1767 में बड़े पैमाने पर इस नष्ट कर दिया तो इस वाट महाथाट में आग लगा दी गई थी… 20वीं सदी की शुरुआत में सेंट्रल प्रांग फिर से ढह गया और इसके बाद इसे नहीं बनाया गया…
वाट महाथाट का डिजाइन कंबोडिया में अंगकोर के प्राचीन खमेर माउंटेन मंदिरों के कॉन्सेप्ट पर तैयार किया गया था.
अयुत्थाया में कुल 400 से ज्यादा प्राचीन मंदिर हैं… खंडहर हो चुके इन मंदिरों में से सिर्फ दर्जन भर को ही रीस्टोर किया जा सका है… Wat Phra Si-sanpeth, अयुत्थाया महल का अवशेष है… हर साल दुनिया भर के टूरिस्ट यहां आते हैं…यह मंदिर ऐतिहासिक वाट फ्रा राम, वाट महाथाट और वाट रत्चबुराना जैसे मंदिरों के साथ है… ये सब मिलकर इस जगह को high historical value वाला कॉम्प्लैक्स बनाते हैं..
1350 में राजा यू-थोंग यानी किंग रमाथिबोधी I ने वाट फ्रा सी सनफेट की जगह पर एक शाही महल बनाने का आदेश दिया था… ये वो वक्त था जब अयुत्थाया को राजधानी बनाया जा रहा था…महल 1351 में बनकर तैयार हुआ और राजा रामथिबोधी ने अपने राज्य की राजधानी के रूप में अयुत्थाया की स्थापना की. महल में लकड़ी की तीन इमारतें थीं… इनका नाम था “पैथुन महा प्रसाद”, “फिचयोन महा प्रसाद”, और “ऐसावन महा प्रसाद”…
1351 में महल को अंतिम रूप देने पर, उन्होंने अयुत्थाया को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया और उन्हें राजा रामाथिबोधी प्रथम की उपाधि दी गई… 1448 में राजा बोरोममात्राइलोक्कनट ने उत्तर में एक नया महल बनाया और पुराने महल के मैदान को एक पवित्र स्थल में बदल दिया… यही जगह वाट फ्रा सी सनफेट कही गई… उनके बेटे, राजा रामाथिबोदी II ने दो स्तूप और जोड़े, थाई भाषा में स्तूप को चेदिस के नाम से जाना जाता है…यहां एक कतार में यही तीन स्तूप बने हुए हैं जिनमें अयुत्थाया के 3 राजाओं की राख को रखा गया था.. इसे 1492 में बनाया गया.. इसमें राजा रामाथिबोदी II, उनके पिता राजा बोरोममात्रिलोक्कनत और उनके भाई, राजा बोरोमाराचा III की राख को दफनाया गया था…
सीधे नए महल से सटा, वाट फ्रा सी संफेट अयुत्थाया का शाही मंदिर बन गया और यहां सबसे महत्वपूर्ण समारोह आयोजित किए जाने लगे थे. यह शाही परिवार के निजी चैपल के रूप में भी काम करता था और शहर के ज्यादातर दूसरे धार्मिक केंद्रों के उलट, कॉम्प्लैक्स में किसी भी बुद्धिस्ट मोंक को ठहरने की परमिशन नहीं थी… इसे राजा के मंदिर के रूप में जाना जाता था क्योंकि इसका इस्तेमाल शाही परिवार द्वारा समारोहों के लिए किया जाता था.
साइट में ज्यादातर स्ट्रक्चर को रीस्टोर नहीं किया गया
1767 में बर्मीज सेना द्वारा शहर को पूरी तरह से नष्ट किए जाने तक थाईलैंड की प्राचीन राजधानी अयुत्थाया में पुराने रॉयल पैलेस के स्थान पर वाट फ्रा सी संफेट सबसे पवित्र मंदिर था. यह राजधानी का सबसे भव्य और सबसे सुंदर मंदिर था…
वाट कॉम्प्लैक्स में आप क्यू आर कोड स्कैन करके इनके बारे में जान भी सकते हैं… वो भी मोबाइल पर चलते फिरते… है न कमाल की बात… Ayutthaya Historical Park in Thailand की यात्रा में अभी और भी बहुत कुछ बाकी है…
Wat Phra Si Sanphet के बगल में है Wihan Phra Mongkhon Bophit (विहान फ्रा मोंगखोन बोफिट)
इस विहान (विहार, या उपदेश हॉल) में फ्रा मोंगकोन बोफिट बुद्ध की छवि है… 1767 में बर्मी सेनाओं के बर्बर हमले से बची कुछ मूर्तियों में से ये एक है… मूर्ति की ऊंचाई 17 मीटर है… बेस को जोड़कर… इसे ईंट और कांसे से बनाया गय़ा है… मशहूर फोटोग्राफर और स्कॉलर माइकल फ्रीमैन ने बताया था कि मूर्ति का निर्माण पहली बार अयुत्थाया काल में किया गया हो सकता है क्योंकि इसमें सुखोताई प्रभाव दिखाई देता है… ये एक स्टाइल है जो राजा बोरोम त्रिलोकनाथ (1448-88) के शासनकाल के दौरान प्रमुखता से मौजूद रहा था…
अयुत्थाया भर में जहां खंडहर ज्यादा दिखाई देते हैं, ये मंदिर आपको एक नई ताजगी का अहसास कराता है… ये एक ऐक्टिव टेंपल कंपाउंड है. दिनभर में यहां कई लोग बुद्ध की पूजा के लिए पहुंचते हैं…
Royal Chronicles of Ayutthaya में इसे लेकर कहा गया है कि इसे King Songtham (r. 1620-28) के काल में पूर्व की ओर ले जाया गया था… दिलचस्प बात यह है कि यह Wat Phra Si Sanphet (वाट फ्रा सी संफेट) के एकदम नजदीक है, इसलिए इस पूरे एरिया को एक ही वक्त में देखा जा सकता है… अब सफर बढ़ चला एक और मंदिर की ओर.. जिसका नाम है- वाट फ्रा राम (Wat Phra Ram)
वाट फ्रा राम, जैसा की नाम से ही पता चलता है यह हिंदू देवता राम से जुड़ा एक मंदिर है… Wat Phra Ram, प्रतु चाई उप-जिले (Pratu Chai Sub-district) में Ayutthaya के Historical Park में स्थित एक मंदिर का खंडहर है… ब्यूंग फ्रा राम (Bueng Phra Ram) नाम के एक दलदली क्षेत्र में ग्रैंड पैलेस (Grand Palace) और वाट फ्रा सी संफेट (Wat Phra Si Sanphet) के करीब है. इस मंदिर को अयुत्थाया के पहले राजा, सम्राट रामथिबोधी I (1351-1369) के अंत्येष्टि स्थल पर किया गया था…रमाथिबोधी फर्स्ट की आस्था हिंदू और बौद्ध धर्म में बराबर थी… उनका धर्म बौद्ध था लेकिन हिंदू धर्म और प्रभु श्री राम में आस्था की वजह से ही उनके अंत्येष्टि स्थल पर ये मंदिर बनाया गया…
इसे बनाने की इजाजत उनके बेटे ने दी थी… कहा जाता है कि किंग रमाथिबोधी की मृत्यु के बाद बनाया गया यह पहला मंदिर था… इस मंदिर के खजाने को लंबे वक्त तक लूटा गया…
इस मंदिर का प्रांग (मंदिर का गोपुरम) काफी प्रभावशाली है…हालांकि मंदिर के अन्य हिस्से बर्बाद हो गए हैं… यहां के दूसरे मंदिरों और महलों के निर्माण के लिए इस दलदल के नीचे की मिट्टी को खोदा गया था..
किंग यूथॉन्ग मॉन्युमेंट (King U-Thong Monument) और वाट फ्रा राम (Wat Phra Ram) के बीच 350 मीटर की दूरी है…
अब तक जो भी स्थल देखे वो सभी नजदीक थे लेकिन अभी लिस्ट में दो जगहें बाकी थी… अब टिकट वसूल करने की मजबूरी कहिए या हिस्टोरिकल पार्क की यात्रा को पूरा करने का जुनून… वाट चायवत्थनरम (Wat Chaiwatthanaram) और वाट माहियोन्ग भी जाना जरूरी था… वाट फ्रा राम से वाट चायवत्थनरम की दूरी साढ़े 3 किलोमीटर की है…
आपको रास्ते में कुछ फ्रूट और फूड ऑप्शंस भी मिलते हैं… फ्रूट दिखते ही मैंने झट से खरीद लिया जैकफ्रूट… 20 ब्हाथ में…
अयुत्थाया शहर के चारों ओर नदियां हैं, तो शहर में हैं नहरें… इससे बेहतर भला क्या होगा…
Ayutthaya period में, हाथियों को पकड़ने जैसी एक्टिविटीज को सम्राट या शाही परिवार के सदस्यों के लिए किसी फेस्टिव इवेंट जैसा लम्हा होता था…
अयुत्थाया में Elephant palace, पा टॉन रोड पर स्थित है… ये जगह हाथियों और महावत की आरामगाह के तौर पर भी काम करती है… जो हाथी बीमारी या उम्र की वजह से रिटायर हो जाते हैं उन्हें Royal Kraal में रखा जाता है और जो हाथी सेवा में रहते हैं उन्हें अयुत्थाया फ्लोटिंग मार्केट के पास बने एलिफेंट विलेज में रखा जाता है…
अयुत्थाया में एलिफेंट राइड करनी हो तो 350 से 450 ब्हाथ तक की टिकट लगती है…
सफर में, खाते पीते, छांव देखकर आराम करते करते… पहुंच गया वाट छाईवत्थनरम…
Wat Chaiwatthanaram, Chao Phraya River के पश्चिमी किनारे पर स्थित है… ये Ayutthaya का दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा है… Ayutthaya Historical Park की यात्रा में जब मैं यहां पहुंचा तो सबसे पहले मिले भारत के स्टूडेंट्स… कमाल के बच्चे… ये सभी आंध्र प्रदेश की एक यूनिवर्सिटी से थे… स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत ये सभी कुछ हफ्तों की इंटर्नशिप के लिए किंग महिडोल यूनिवर्सिटी आए हुए थे… और वहां से Wat Chaiwatthanaram… इन्होंने मुझे किंग महिडोल यूनिवर्सिटी घूमने का ऑफर दिया और बाद में मैं वहां गया भी… क्या कमाल की यूनिवर्सिटी है दोस्तों… मुलाकात, बात और फोटोग्राफी के बाद चल दिया Wat Chaiwatthanaram के अंदर… बच्चे सैर कर चुके थे तो ये चल दिए अपने कैंपस की ओर…
Wat Chaiwatthanaram, Ayutthaya Historical Park का लार्ज कंपाउंड है… हालांकि, ये अयुत्थाया में UNESCO World Heritage Site का हिस्सा नहीं है. यहां आप सड़क से या नाव के जरिए पहुंच सकते हैं… शाम को मैंने चायो फ्राया रिवर में बोट सफारी की तो यहां दोबारा आना हुआ था… हालांकि तब मैं अंदर नहीं गया था…
मंदिर का निर्माण 1630 में राजा प्रसाद थोंग ने अपने शासनकाल के पहले मंदिर के रूप में किया था… उन्होंने इसे यहां अपनी मां के निवास के स्मारक के रूप में बनाया था…मंदिर के नाम का शाब्दिक अर्थ है लंबे शासन और गौरवशाली युग का मंदिर…हालांकि प्रिंस डामरोंग का मानना था कि इसे लोंगवेक (Longvek) पर अयुत्या साम्राज्य की जीत (Ayutthaya Kingdom’s victory) का जश्न मनाने के लिए बनाया गया था…
दोस्तों, थाईलैंड एक भाषा-एक धर्म-एक संस्कृति वाला देश है… थाई लोग आज भी अपनी परंपराओं से गहराई से जुड़े हुए हैं…Wat Chaiwatthanaram के बाहर बाजार है… यहां शाही लिबास भी मिलते हैं… थाई लोग इन कपड़ों को खरीदकर पहनते हैं और यहां फोटो खिंचवाते हैं… शाही दौर से जुड़ाव का अद्भुत तरीका आपको थाईलैंड में दूसरी जगह भी दिखाई देता है…
थाईलैंड में अगर आपको पानी खरीदना हो, कुछ चिप्स-कोल्ड ड्रिंक लेना हो, शेक या मेडिसिन लेनी हो तो सबसे बेहतर ऑप्शन है 7 11… यहां चीजें बाहर से सस्ती मिलती हैं… मैंने Wat Chaiwatthanaram से लौटते वक्त यहां से एक संसक्रीन खरीदा… धूप बहुत ज्यादा थी… हालांकि प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक और वाटर मैं पहले ही एक दुकान से खरीद चुका था…
थाईलैंड में साइकिल किराये पर लेने में कोई समस्या नहीं है,…. सस्ता और किफायती साधन है… सड़क पर भी आसानी से चला सकते हैं लेकिन मुश्किल तब होती है जब आपको कोई पुल पार करना होता है… Wat Chaiwatthanaram आते हुए और यहां से लौटते वक्त नदी का पुल पार करना था और चढ़ाई में बहुत मुश्किल हुई…
यही हाल आगे तब हुआ जब वाट माहियोन्ग (Wat Maheyong) गया… Wat Chaiwatthanaram से Wat Maheyong की दूरी 10 किलोमीटर की है… दोनों अयुत्थाया के दो किनारों पर हैं… एक और बात ये कि Wat Maheyong मैं एक दिन पहले भी आया था… जब स्कूटी से अयुत्थाया को घूम रहा था लेकिन तब इसके अंदर नहीं गया था… न मुझे पता था कि इसकी टिकट हिस्टोरिकल पार्क की टिकटों के साथ मिलती है…एक बार फिर यहां आना हुआ…
वाट महेओंग थाईलैंड के अयुत्या में एक बौद्ध मंदिर है… यह मूल रूप से 1438 में राजा बोरोमाराचथिरत द्वितीय (King Borommarachathirat II) के शासनकाल के दौरान बनाया गया था, और 1711 में राजा थाई सा ने इसे रीस्टोर किया था…
इस मंदिर की प्रमुख इमारतें इसके चेदि (स्तूप) और उबोसोत (ऑर्डिनेशन हॉल) हैं… Wat Maheyong के बाहरी हिस्से में वीरानगी सबसे ज्यादा थी लेकिन इससे लगा हुआ ही इसका एक्सटैंडेड पार्ट है और यहां सच मानिए आपको अयुत्थाया के सभी वाट से बेहतर महसूस होगा…
यहां मेडिटेशन के लिए लड़कियां आती हैं… मेडिटेशन की क्लास में गजब का नजारा दिखाई दिया… सफेद वस्त्र पहने लड़कियां आंख बंद करके डूबी हुई दिखाई दीं…… बागीचे की ठंडक ने मानों मेरी थकान दूर कर दी थी… यहां भी बुद्ध की दो प्रतिमाएं हैं… यहां एक फिलिपींस के लड़के से मुलाकात हुई… धर्म को लेकर काफी चर्चा हुई उसके साथ… कैंपस में ही कैंटीन भी है…
Wat Maheyong से चल दिया था अपने गेस्ट हाउस पीयू की ओर… जो यहां से 5 किलोमीटर दूर था… इसी दिन मुझे बोट सफारी भी करनी थी…जो 3 बजे से शुरू होती है… साइकिल तेज चलाते हुए जाने लगा… तभी रास्ते में एक कोई अपने जैसा दिखाई दिया… मैंने तुरंत साइकिल घुमाई और उसे रोका… बात हुई तो पता चला कि ये भिवानी के भानु थे… कंबोडिया होते हुए यहां आए थे… बताया कि कंबोडिया तो बहुत महंगा है, बहुत लूट है वहां… 1 डॉलर से कम में कुछ देते ही नहीं है…
ये जहां ठहरे थे वहां ब्रेकफास्ट और डिनर दोनों इन्क्लूड था… कमाल ये कि ये भाई साहब पैदल ही चले जा रहे थे वाट माहियोन्ग की ओर… हमने फोटो खींची और एक दूसरे को अलविदा कहा…
Ayutthaya Historical Park in Thailand पर केंद्रित ये कैसा लगा, आर्टिकल पर अपनी राय जरूर दें…मिलते हैं अगले लेख में… इसे आखिर तक पढ़ने के लिए आपका ढेर सारा शुक्रिया…
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