Ahmednagar to be renamed after Ahilyabai Holkar
Ahmednagar to be renamed after Ahilyabai Holkar : महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की, कि पश्चिमी महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का नाम बदलकर 18वीं सदी की इंदौर राज्य की मशहूर शासक अहिल्यादेवी होल्कर के नाम पर रखा जाएगा. सरकार के इस फैसले के बाद लोगों के अंदर अहिल्यादेवी होल्कर को जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गई है. आज के आर्टिकल में हम आपको बताएंगे अहिल्याबाई होल्कर कौन थी…
अहिल्या बाई का जन्म 1725 में एक मराठी हिंदू परिवार में महाराष्ट्र के चौंडी गांव (वर्तमान अहमदनगर जिला) में मनकोजी शिंदे और सुशीला शिंदे के घर हुआ था. उनके पिता मनकोजी शिंदे, एक सम्मानित धनगर परिवार के वंशज, पाटिल के रूप में सेवा करते थे. अहिल्या के पिता ने उन्हें पढ़ना और लिखना सिखाया, भले ही तब महिलाओं को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी.
इंदौर के होल्कर शासक मल्हार राव होल्कर ने आठ साल की उम्र में अपने बेटे खांडेराव से उनकी शादी कर दी थी. राजस्थान में 1754 की लड़ाई में खांडेराव की जान चली गई. 1761 में पानीपत की लड़ाई निम्नलिखित घटनाओं से पहले की है. 1765 में खुद मल्हार राव की मृत्यु हो गई, और खांडेराव के बेटे, जिन्होंने कुछ वर्षों के लिए उन्हें राजा बनाया, जबकि अहिल्याबाई ने रीजेंट के रूप में सेवा की, 1767 में उनकी मृत्यु हो गई. फिर, 1767 में, अहिल्याबाई को इंदौर की रानी का ताज पहनाया गया.
अहिल्याबाई ने देशभर में कई प्रसिद्ध तीर्थस्थलों पर मंदिरों, घाटों, कुओं और बावड़ियों का निर्माण कराया. इतना ही नहीं, उन्होंने सड़कें भी बनवाईं, अन्न क्षेत्र खोले, प्याऊ बनवाए और शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन के लिए मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति भी की. रानी अहिल्याबाई ने बड़ी संख्या में धार्मिक स्थलों के निर्माण कराए. उनके इन कामों की पूरी जानकारी तो फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं लेकिन प्राप्त दस्तावेजों से जो मिलता है वह इस प्रकार है.
सोमनाथ – एक महादेव मंदिर का निर्माण. यह मंदिर न तो बहुत बड़ा है, न ही बहुत छोटा, यानी एक मध्यम श्रेणी का बना हुआ था. इसके साथ ही सोमनाथ के मुख्य मंदिर के आसपास सिंहद्वार और दालानों का निर्माण करवाया.
त्रयंबक- यहां पत्थर का एक सुन्दर तालाब और दो छोटे-छोटे मंदिरों का निर्माण. गया- विष्णुपद मंदिर के पास ही एक दो मंजिला मंदिर का निर्माण जिसमें भगवान राम, जानकी और लक्ष्मण और हनुमान जी की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं.
पुष्कर- एक मंदिर और धर्मशाला बनवाई. वृन्दावन- एक अन्न क्षेत्र और एक लाल पत्थर की बावड़ी बनवाई. आलमपुर- सोनभद्र नदी के तट पर बसे इस स्थान पर अपने ससुर की स्मृति में एक देवालय स्थापित करवाया. भगवान विष्णु का एक मंदिर भी यहां बना हुआ है.
हरिद्वार- पिंडदान के लिए एक स्थान का निर्माण करवाया. काशी- सुप्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट का निर्माण करवाया. राजघाट और अस्सी संगम के मध्य विश्वनाथ जी का सुनहरा मंदिर है. यह मंदिर 51 फुट ऊंचा और पत्थर का बना हुआ है. मंदिर के पश्चिम में गुंबजदार जगमोहन और इसके पश्चिम में दंडपाणीश्वर का पूर्व मुखी शिखरदार मंदिर है.
इन मंदिरों का निर्माण अहिल्याबाई ने ही करवाया था. काशी के पास ही तुलसीघाट के नजदीक लोलार्ककुंड के चारों ओर कीमती पत्थरों से जीर्णोद्धार करवाया. इस कुंड का उल्लेख महाभारत और स्कन्दपुराण दोनों में मिलता हैं.
बद्रीनाथ और केदारनाथ- धर्मशालाओं का निर्माण करवाया. बद्रीनाथ में तीर्थयात्रियों और साधुओं के लिए सदावर्त यानी हमेशा अन्न बांटने का व्रत लिया था.
देवप्रयाग- इस स्थान पर पर अहिल्याबाई ने तीर्थयात्रियों और साधुओं के लिए सदावर्त यानी हमेशा अन्न बांटने का व्रत लिया था. गंगोत्री- यहां विश्वनाथ, केदारनाथ, भैरव और अन्नपूर्णा चार मंदिरों सहित पांच-छह धर्मशालाओं का निर्माण करवाया.
बिठूर (कानपुर के पास)- ब्रह्माघाट सहित गंगा नदी पर कई घाटों का निर्माण. ओंकारेश्वर- एक बावड़ी बनवाई और महादेव के मंदिर में नित्य पूजन के लिए लिंगार्चन की व्यवस्था की.
हंडिया- हर्दा के पास नर्मदा के तट पर स्थित इस स्थान पर एक धर्मशाला और भोजनालय का निर्माण.
इसके अवाला उन्होंने अयोध्या और नासिक में भगवान राम के मंदिर का निर्माण किया. उज्जैन में चिंतामणि गणपति मंदिर का निर्माण कराया. आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम और महाराष्ट्र में परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग का भी कायाकल्प किया.
अहिल्याबाई ने हंडिया, पैठण और कई अन्य तीर्थस्थलों पर सरायों (यात्रियों के रुकने हेतु) का निर्माण किया. मध्य प्रदेश के धार स्थित चिकल्दा में नर्मदा परिक्रमा में आने वाले भक्तों के लिए भोजनालय की स्थापना की.
सुलपेश्वर में उन्होंने महादेव के एक विशाल मंदिर और भोजनालय का निर्माण करवाया. मध्य प्रदेश के खरगोन स्थित मंडलेश्वर में उन्होंने मंदिर और विश्राम गृह बनवाए. मांडू में उन्होंने नीलकंठ महादेव मंदिर की स्थापना की.
जिले की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, महाराष्ट्र के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित, अहमदनगर 240 ईसा पूर्व से कुछ प्रमुख राज्यों का हिस्सा रहा है, “जब मौर्य सम्राट अशोक के संदर्भ में आसपास का उल्लेख किया गया है.”
मध्ययुगीन काल में, इस क्षेत्र पर राष्ट्रकूट राजवंश, पश्चिमी चालुक्यों और फिर दिल्ली सल्तनत का शासन था. पिछले मामले में, शासन प्रत्यक्ष नहीं था, और अफगान सैनिक अलादीन हसन गंगू द्वारा विद्रोह के कारण दक्कन में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई. बाद के वर्षों में, अहमदनगर, जिसे तब निज़ामशाही के नाम से जाना जाता था, उस साम्राज्य से उभरने वाले पाँच स्वतंत्र राज्यों में से एक बन गया.
1486 में, मलिक अहमद निज़ाम शाह ने बहमनी सल्तनत के प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया. उसने 1490 में बहमनी साम्राज्य के राजा को सफलतापूर्वक पराजित किया, जिसने उसे सत्ता से बेदखल करने की कोशिश की थी. चार साल बाद, उसने सीना नदी के बाएं किनारे पर, जहां उसने सेना को हराया था, के करीब एक शहर की नींव रखी. उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा: अहमदनगर. निजाम शाह ने बाद में दौलताबाद के किले पर भी कब्जा कर लिया और वहां अपनी सेना तैनात कर दी.
Rangbhari Ekadashi 2025: हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी… Read More
Char Dham Yatra 2025 : उत्तराखंड की चार धाम यात्रा 30 अप्रैल, 2025 को गंगोत्री… Read More
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में एकाग्रता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है.… Read More
Spring Season 2025 : वसंत ऋतु सबसे सुखद मौसमों में से एक है, जिसमें फूल… Read More
Dharamshala travel Blog Day 1 धर्मशाला उत्तर भारत का एक शहर है. यह हिमाचल प्रदेश… Read More
Vietnam Travel Blog : वियतनाम एक खूबसूरत देश है जो अपनी समृद्ध संस्कृति, शानदार लैंडस्केप… Read More