Maa Vaishno Devi Yatra Tour Blog – हर भारतवासी का सपना होता है कि वह जीवन में एक बार मां वैष्णों देवी के मंदिर की यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) ज़रूर पूरी करे. मां के दर्शन की अभिलाषा मेरे मन में भी थी.
इसी अभिलाषा को पूरा करने के लिए मैंने माता-पिता, भैया-भाभी के साथ, अपना, पत्नी और बच्चों का टिकट करा लिया था. सच में दोस्तों, मां के दर्शन की अभिलाषा ऐसी थी कि आज भी सब मानों सवप्न जैसा लगता है. 4 छोटे बच्चों को लेकर हमने कब कैसे यह यात्रा पूरी की, आज भी यकीन नहीं होगी.
हां, इस यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) में कई अनुभव मिले. हालांकि, जो सबसे खट्टा अनुभव था, वह मैं आज आपसे इस ब्लॉग के माध्यम से शेयर करूंगा. यह अनुभव, मां वैष्णो देवी के मंदिर की यात्रा करने वाले हर भक्त की आंखें खोल देगा.
हम सभी ने मां वैष्णों देवी के मंदिर की यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) पूरी कर ली थी. यात्रा करने के बाद, हम सभी बेहद खुश थे. खुशी ऐसी थी कि हमने नीचे आने का रास्ता 3 घंटे में ही नाप लिया था. हां, रास्ते में कई जगह रुके भी थे.
मां वैष्णों देवी के मंदिर की यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) के लिए जब हम जा रहे थे, तब हमने ताराकोट मार्ग को चुना था. वापसी में, अर्धकुंवारी से हम पुराने मार्ग पर आगे बढ़ने लगे. हमें लगा कि नया मार्ग तो देख लिया है, पुराने मार्ग पर क्या कुछ है, वह भी देख लेंगे. अगले कुछ मिनटों में हम एकदम ढलान पर आ चुके थे.
सुबह सुबह पुराने मार्ग पर ज़्यादा घोड़े-खच्चर भी नहीं मिले और न ही ज़्यादा भीड़. सो, हम जल्दी जल्दी आ गए. 7 बजे से पहले हम नीचे उतर चुके थे.
मां वैष्णों देवी के मंदिर की यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) के बाद इस वापसी की यात्रा में दुकानें दिखनी शुरू हो चुकी थीं. कुछ मसाज की दुकानें थी जहां कुछ पैसे लेकर पैरों और कंधों को आराम दिया जाता है, कुछ फोटोशूट की, कई दुकानें खरीदारी से संबंधित थीं. और ढेरों दुकानें प्रसाद की थीं.
हम सभी सोचते हैं कि अगर किसी धार्मिक स्थल पर जाएं तो वहां से प्रसाद ज़रूर लें. मैं भगवान, देवी-देवताओं की तस्वीरें तो नहीं लेता और न ही कोई प्रतीक. हां, प्रसाद लेने की कोशिश ज़रूर रहती है.
इस यात्रा में भी मेरी कोशिश यही थी कि मैं प्रसाद ले चलूं. मुझे याद आया बचपन का वह दौर जब ताऊजी वैष्णों देवी की यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) पर गए थे. वह उनकी कंपनी का टूर था. ताऊजी तब बोरा भरकर अखरोट लाए थे और हम कई दिन उसे खाते रहे थे.
जब मुझे अखरोट दिखा तो वह गुज़रा बचपन भी सामने आ गया. मैंने सोचा, क्यों न लगे हाथ अखरोट खरीद लिए जाएं. फिर कहां ये मौका मिलेगा. मैं एक दुकान पर रुका.
मैंने अखरोट देखे, तो रेट भी मुझे दिल्ली की अपेक्षा कम ही लगे. पुरानी दिल्ली की खारी बावली में भी जिस दाम पर अखरोट मिलते हैं, उससे काफी सस्ते अखरोट थे यहां. मेरे कहने पर दुकानदार ने उंगलियों से ही एक अखरोट तोड़कर दिखाया.
बस क्या था, मेरी थकावट ज्यादा जांच पड़ताल के मूड में थी नहीं. मन तो कर रहा था कि बस बिस्तर मिल जाए और सो जाऊँ. फिर क्या था, मैंने पैसे निकाले और 3-4 किलो अखरोट खरीद लिए.
अखरोट, प्रसाद, इत्यादि लेकर हम अपने होटल में लौट आए. होटल में हमने खाना रूम में ही खाया और सो गए. रात की ट्रेन थी, इसलिए हम सभी आराम से उठे.
जम्मू के अखरोट को लेकर ये एक्साइटमेंट तब फुर्र हुई जब दिल्ली में प्रसाद की पोटली खोली गई. अखरोट न तो उंगलियों से फूटे, न दांत से, न सिलबट्टे से… हा हा हा.
दुकानदार पर तो बहुत गुस्सा आया. भगवान से भी लोग डरते नहीं है दोस्तों. क्या दौर आ गया है. यही बातें मन में कौंधने लगी. फिर ठहरा और सोचा कि गलती तो मेरी भी है न!
मुझे अखरोट खरीदने से पहले खुद जांचने चाहिए थे. माता-पिता ने भी मुझे कहा कि पैसे तो हमारे गए हैं, तो हमें ही सजग रहना चाहिए था.
अब करने को तो कुछ था नहीं, सो मैंने यह निश्चय ज़रूर कर लिया था कि भले ही सामान 1 रुपये का क्यों न खरीदूं, पूरी तरह जांच पड़ताल किए बगैर बिल्कुल नहीं खरीदूंगा.
आप भी अगर मां वैष्णों देवी के मंदिर की यात्रा ( Maa Vaishno Devi Yatra ) पर जाते हैं, तो अखरोट खरीदने की जल्दबाज़ी में मेरी तरह गलती न कर बैठिएगा. इस ब्लॉग का मकसद सिर्फ और सिर्फ आपको सजग करना था.
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