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Mehrauli Archeological Park-Lal Kot का क्या है इतिहास? जानिए Anangpal Tomar II के बारे में

भारत की राजधानी दिल्ली का इतिहास बेहद विस्तृत है. हम सभी लोग जानते हैं Delhi को सात बार बसाया गया है, वो भी अलग- अलग जगहों पर ,उन्हीं सात जगहों में से एक है Mehrauli, जिसे अक्सर Delhi का पहला शहर माना जाता है. इसकी उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में Tomar dynasty के साथ हुई. तोमर राजवंश के काल में 1060 ई. में Delhi का पहला किलाबंद शहर Lal Kot बनवाया गया था. Anangpur से शासन करने वाले तोमरों ने Lal Kot का विस्तार किया. यह बाद में चौहान शासक पृथ्वीराज के अधीन किला राय पिथौरा बन गया. Mehrauli मामलुक वंश की राजधानी थी और खिलजी और Mugal Dynasties सहित शासन की विभिन्न अवधियों का गवाह रही. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे Mehrauli में स्थित धरोहर के बारे में विस्तार से… .

Lal Kot का इतिहास

किला राय पिथौरा या Lal Kot  जिसका शाब्दिक अर्थ राय पिथौरा का किला है. ये वर्तमान Delhi में एक किलाबंद परिसर था, जिसमें Qutub Minar परिसर भी शामिल है. इसका निर्माण Rajput Tomar शासक Anangpal Tomar द्वितीय के शासनकाल में लगभग 1052 से 1060 ई. के बीच हुआ था.  किले की दीवारों के अवशेष दक्षिण Delhi में बिखरे हुए हैं, ये वर्तमान साकेत, कुतुब परिसर के आसपास Mehrauli, संजय वन, किशनगढ़ और वसंत कुंज क्षेत्रों में दिखाई देते हैं.

माना जाता है कि Lal Kot का निर्माण तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय के शासनकाल में हुआ था. उन्होंने सौंख स्थान (मथुरा) से लौह स्तंभ लाया और इसे वर्ष 1052 में Delhi में स्थापित किया, जैसा कि इस पर लगे शिलालेखों से स्पष्ट है. लौह स्तंभ को केंद्र मानकर कई महल और मंदिर बनाए गए और अंत में उनके चारों ओर Lal Kot किला बनाया गया. Lal Kot का निर्माण वर्ष 1060 में पूरा हुआ. किले की परिधि 2 मील से अधिक थी और किले की दीवारें 60 फीट ऊंची और 30 फीट मोटी थीं.

Anangpal II ने Indraprastha को आबाद करने और इसे इसका वर्तमान नाम Delhi देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.  11वीं शताब्दी में जब वे सिंहासन पर बैठे तो यह क्षेत्र खंडहर था, उन्होंने ही Lal Kot किला और Anangtal Baoli का निर्माण करवाया था. इस क्षेत्र पर तोमर शासन को कई शिलालेखों और सिक्कों से प्रमाणित किया गया है और उनके वंश का पता महाभारत के पांडवों से लगाया जा सकता है.

Lal Kot की दीवार

Lal Kot Delhi का मूल ‘लाल किला’ था. जिसे हम आज लाल किला  कहते हैं, उसे मूल रूप से Mugal सम्राट शाहजह द्वारा निर्मित किला-ए-मुबारक कहा जाता था.

Anangpal II कौन थे

Anangpal II जिन्हें Anangpal Tomar के नाम से जाना जाता है Tomar dynasty के एक भारतीय शासक थे. उन्हें 11वीं शताब्दी में Delhi की स्थापना और उसे आबाद करने के लिए जाना जाता है. उन्हें अक्सर Delhi के Tomar Dynasty के संस्थापक Anangpal I के साथ भ्रमित किया जाता है, जिन्होंने 8वीं शताब्दी के दौरान शासन किया था.

Tomar Dynast का Pandavas से क्या रिश्ता क्या  था

Tomar Dynasty (तोमर वंश) की वंशावली पांडवों विशेष रूप से अर्जुन, उनके बेटे अभिमन्यु और पोते परीक्षित से जुड़ी है. उन्हें चंद्रवंशी राजपूत माना जाता है. ये Pandavas से जुड़ा एक वंश है. Tomar ने 8वीं-12वीं शताब्दियों के दौरान वर्तमान Delhi और हरियाणा के बहुत बड़े हिस्से पर शासन किया. तोमर वंश की उत्पत्ति Mahabharata के पांच पांडव भाइयों में से एक अर्जुन से हुई है. ये राजपूत कुलों की एक शाखा है.

Mehrauli Archaeological Park

जरा सोचकर देखिए, कि आप किसी ऐसी जगह कदम रख रहे हैं जहां एक हज़ार साल या बारह सौ साल का इतिहास आपकी आंखों के सामने मौजूद हो, तो आपको कैसा महसूस होगा. दक्षिण Delhi के बीचों-बीच बसा है Mehrauli Archaeological Park. यूं तो ये पार्क 200 एकड़ में फैला है लेकिन Mehrauli में मौजूद धरोहरें इस ऐतिहासिक पार्क की सीमाओं के पार भी मौजूद हैं. UNESCO के World Heritage Site Qutub Minar के बगल में मौजूद इस जगह Delhi के अलग अलग शासकों के बनाए 50 से ज्यादा ऐतिहासिक स्मारक आज भी देखे जा सकते हैं.

इस जगह को क्या बात अलग करती है, दरअसल, ये वो जगह है जिसने 1 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक लगातार हमले देखे हैं, शासकों को बदलते देखा है. Tomar Rajputs ने वर्ष 1060 में Lal Kot का निर्माण किया था, इसके बाद Khilji, Tughlaq, Lodhi, Mugal और यहां तक कि ब्रिटिश राज के दौरान के निशान भी यहां मिलते हैं.

Mehrauli Archaeological Park के पूरे परिसर और बाहरी क्षेत्र में ऐसी कई इमारते हैं, जिनके बारे में हम सभी को जानना चाहिए. कई इमारतें ऐसी हैं, जिनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिलती है. इस परिसर को कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम से जाना जाता है, जो भारत का पहला इस्लामिक शासक था.

Mehrauli शहर इस Archaeological Park के पश्चिमी किनारे पर स्थित है. किसी समय Mehrauli एक छोटा शहर हुआ करता था. इसे इसका नाम मिहिरपुरी से मिला है. मिहिर का अर्थ है सूर्य इसलिए ये माना जाता है कि इतिहास में किसी समय इसी जगह पर एक Sun Temple भी बनाया गया होगा. ये कभी एक छोटा शहर था जो अब एक व्यस्त शहर का व्यस्त महानगर बन गया है. 12वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुए Delhi सल्तनत के दौर से लेकर आज तक लोग यहां बसते रहे हैं.

इस Archaeological Park  की मुख्य धरोहरों में Tomb of Balban, Jamali-Kamali का मकबरा और मस्जिद, Quli Khan का मकबरा, Rajon ki Baoli, Metcalfe’s folly, Metcalfe bridge, घोड़ों के अस्तबल, Madhi मस्जिद,कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी दरगाह, जफर महल हैं. काकी दरगाह और जफर महल जैसी कई धरोहरें हैं, जो Mehrauli शहर में पार्क के बाहर स्थित है. और भी कई धरोहरें हैं जो Mugal या दूसरे शासकों के दौर में बनाई गईं. कईयों के निशान मिलते हैं, और कई ऐसी हैं जिनके बारे में कोई भी सटीक जानकारी नहीं है.

Sultan Giyasuddin Balban का मकबरा

Delhi के Sultan Giyasuddin Balban ने यहां 1266 से 1287 तक शासन किया था. Sultan Giyasuddin Balban का मकबरा भी Mehrauli Archaeological Park में स्थित है. मकबरे का entrance pre-Turk Indian architectural style से मेल खाता है. मलबे के पत्थरों से बने इस ढांचे के सभी तरफ़ मेहराबदार द्वार हैं. इब्न बतूता और बरनी ने उल्लेख किया है कि बलबन के शव को इस मकबरे में दफनाया गया था. बतूता ने लिखा है कि बलबन ने खुद इस ढांचे को बनवाया था और इसका नाम दार-उल अमन रखा था. हालांकि 11.5 मीटर के चौकोर मकबरे पर कोई शिलालेख नहीं है.

Tomb of Balban India में बना पहला true arch & true dome था. इसमें मेहराब बनाने की कोशिश की गई, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली. ऐसा इसलिए क्योंकि ये भारत में Islamic rule का शुरुआती दौर था और तब ज्यादातर कारीगर भारतीय थे और वे सच्चा मेहराब बनाने की कला से परिचित नहीं थे.

Tomb of Balban के बगल में एक rectangular structure है जिसे बलबन के बेटे मोहम्मद का मकबरा माना जाता है. बलबन के बेटे की मृत्यु 1285-86 में मंगोलों से लड़ते हुए हुई थी. युद्ध के मैदान में उनकी मृत्यु के कारण उसे खान-ए-शहीद की उपाधि मिली. आज भी ये मकबरा खान-ए-शहीद के मकबरे के नाम से जाना जाता है.

Adham khan के मकबरे के बारे में

Akbar की नर्स महम अंगा के दो बेटे थे, आधम खान और कुली खान. इन दोनों का मकबरा Mehrauli Archaeological Park में मौजूद है. पहले आपको बताते हैं आधम खान के मकबरे के बारे में. Mehrauli गांव के बाहरी इलाके में एक पहाड़ी की चोटी पर एक अष्टकोणीय मकबरा है। ये आधम खान का मकबरा है. ये एक दीवार से घिरा हुआ है जिसके कोनों पर मीनारें हैं. बरामदे में तीन द्वार हैं, जिनमें हर तरफ मेहराब हैं.

Adham khan Akbar की धाय मां का बेटा और Mugal फौज का एक सिपहसालार था. महाराजा मान सिंह से आधम खान की बेटी बीबी मुबारक की शादी भी हुई थी. अकबर के वजीर-ए-आज़म अतगा ख़ान के साथ दुश्मनी के चलते आधम खान ने उसकी हत्या कर दी. जिसके बाद क्रोध में अकबर ने आधम ख़ान को आगरा किले की दीवार से सिर के बल फेंक देने का आदेश दे दिया. इससे आधम ख़ान की मौत हो गई। आधम की मौत के चालीसवें दिन ग़म के मारे उसकी मां महम अंगा की भी मौत हो गई। मां बेटे दोनों को Mehrauli में बने इसी मकबरे में दफनाया गया. मकबरे का निर्माण अकबर ने करवाया. इतिहासकारों का मानना है कि ये मकबरा जानबूझकर लोधी वंश की इमारतों की अष्टकोणीय शैली में बनवाया गया. शायद ऐसा आधम को गद्दार करार देने के लिए किया गया. क्योंकि मुग़लों की नज़र में लोदी सुल्तान गद्दार थे. एक समय इसे भी ब्रिटिश अफसरों के रहने के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.

Delhi की बावलियां

Mehrauli Archaeological Park और Delhi में कई बावलियां मिलती हैं. महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क में अनंगताल स्थित है. दिल्ली में कई ऐतिहासिक बावलियाँ हैं, जिनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं – अग्रसेन की बावली (हेली रोड), राजों की बावली (महरौली), और गंधक की बावली (महरौली). महरौली में कई बावलियां स्थित है. बावली को बावड़ी भी कहा जाता है. ये एक प्राचीन जल संरक्षण संरचना है, जिन्हें सीढ़ीदार कुओं के रूप में बनाया जाता था. ये बावलियाँ न केवल पानी का भंडारण करती थीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी थीं. दिल्ली की बावलियाँ अपनी स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के लिए आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

Hauz-e-Shamshi

हौज़-ए-शम्सी जल संग्रह करने के लिए निर्मित किया गया एक जलाशय है. इसे शम्शी तालाब भी कहते हैं। इसका निर्माण वर्ष 1230 में ग़ुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने करवाया था. इल्तुतमिश, गुलाम वंश का तीसरा सुल्तान था। उसने साल 1211 से 1236 तक Delhi सल्तनत पर राज किया. वो कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद भी था. इल्तुतमिश की मौत के बाद उसे कुतुबमीनार के पास ही दफना दिया गया था.

Madhi Mosque

Madhi Mosque  एक शानदार स्मारक है, लेकिन बेहद ही कम लोग इसके बारे में जानते हैं. बहुत से लोगों को इसके बारे में इसलिए भी नहीं पता क्योंकि इस स्मारक के नाम या जानकारी के साथ कोई नोटिस बोर्ड यहां नहीं है. माना जाता है कि ये संरचना 15वीं शताब्दी की है, यानी कि The Lodhi era के दौर की. लेकिन सटीक तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. ये Mehrauli Archaeological Park  के बगल में स्थित है, यानि की पार्क की बाउंड्री के बाहर. अंदर एक सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहता है.

Dadabari Jain Temple

अब हम आपको Mehrauli Archaeological Park  के बाहर की एक और धरोहर के बारे में बताएंगे. ये धरोहर है Dadabari Jain Temple. ये संरचना 1144 से 1162 तक Madanpal के शासनकाल के दौरान 1167 में बनाई गई थी.Madhi Mosque के बगल में स्थित ये मंदिर 12वीं सदी के Jain Saint Siri Jinchandra Suri को समर्पित था. Shahjahanabad यानि की अपनी पुरानी Delhi के दिगंबर जैन लाल मंदिर से सभी वाकिफ होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि दादाबाड़ी जैन मंदिर ही Delhi का सबसे पुराना जैन मंदिर है.

Dargah of Qutubuddin Bakhtiar Kaki

Mehrauli Archaeological Park  के बाहर ही एक और ऐतिहासिक धरोहर है. ये धरोहर है Dargah of Qutubuddin Bakhtiar Kaki. काकी, ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के अध्यात्मिक उत्तराधिकारी और शिष्य थे. मेहरौली में जफर महल के नजदीक स्थित उनकी दरगाह Delhi की सबसे प्राचीन दरगाहों में से एक हैं. कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को कुतुब साहिब के नाम से जाना जाता है, वो इल्तुतमिश के आध्यात्मिक गुरु थे. कुतुब परिसर से 750 किमी दक्षिण-पश्चिम में काकी की दरगाह स्थित है. पहले ये उनका निवास और खानकाह या शिक्षण कक्ष था. काकी की मृत्यु के बाद इसे एक दरगाह में परिवर्तित कर दिया गया.

इस मजार को उनकी कब्र पर बनाया गया. काकी के शिष्य बाबा फरीद को भी यहीं दफनाया गया है. दरगाह के उत्तर में एक द्वार है जिस पर शिलालेख है. इस शिलालेख के अनुसार इस द्वार का निर्माण 1541 से 1542 में sher shah suri के शासनकाल में शेख खलीलुल हक ने कराया था. कुछ लोग बताते हैं कि Mugal सम्राट औरंगजेब ने पश्चिमी दीवार सहित कुछ संरचनाओं की मरम्मत कराई थी.

Zafar Mahal

अब हम आपको बताएंगे Zafar Mahal के बारे में ये  Mugal दौर की आखिरी इमारत है. जफर महल Mehrauli में सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के ठीक बगल में बना हुआ है. इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के हवाले से लेखक-फिल्म निर्माता सोहेल हाशमी इस महल के बारे में तफ्तीश से बताते हैं. उन्होंने बताया है कि Akbar Shah II के पुत्र मिर्जा जहांगीर को उस समय के British Resident पर हमला करने के जुर्म में दो साल के लिए इलाहाबाद किले में कैद कर लिया गया था. रिहा होने पर उनकी मां ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए Shahjahanabad से Mehrauli दरगाह तक नंगे पैर चलने का फैसला किया.

Delhi के फूल बेचने वालों को यह बिलकुल भी नहीं पसंद आया कि एक Mugal रानी इतना दर्द सहन करे. उन्होंने Mirza Jahangi की मां को आसानी से चलने के लिए पूरे रास्ते को फूलों से ढकने का फैसला किया। फूल बेचने वालों की इस मदद को देखने के बाद उनके सम्मान में ‘फूलवालों की सैर’ नाम से मेला आयोजित होने लगा। जल्द ही ये एक हफ्ते तक चलने वाला मेला एक वार्षिक आयोजन बन गया। इस मेले के दौरान, पूरा दरबार Mehrauli शिफ्ट हो जाता था. तब अकबर शाह द्वितीय ने यहां इस महल का निर्माण करने का फैसला किया था.  इससे पहले महल को कोई नाम नहीं दिया गया था। इसका नामकरण अगली सदी में हुआ, जब Akbar Shah के उत्तराधिकारी Bahadur Shah Zafar II आए. उन्होंने पहले महल तक जाने वाले एक भव्य द्वार का निर्माण करवाया. जल्द ही, महल को जफर महल कहा जाने लगा. बहादुर शाह जफर की ख्वाहिश इसी महल में दफ्न होने की थी, वो यहां गर्मियां भी बिताया करते थे.

Yogmaya Temple

Mehrauli में एक बेहद प्राचीन हिंदू मंदिर भी है. ये मंदिर है देवी योगमाया का मंदिर. Yogmaya Temple Qutub Minar से सौ मीटर की दूरी पर है.  Delhi के लोगों के बीच ये मंदिर कम मशहूर है, लेकिन Mehrauli में रहने वाले लोग रोज इस मंदिर में पूजा करने आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार Mehrauli को पहले योगमाया देवता के नाम पर योगिनीपुरम कहा जाता था.  मंदिर 5000 साल पुराना बताया जाता है.  Yogmaya lord krishna की बहन थीं, जिनका जन्‍म उन्‍हीं के साथ हुआ था.  Yogmaya वह देवी हैं, जिन्‍हें कृष्ण के पिता ने Yamuna River को पार करके लाया गया था और कृष्ण की जगह पर देवकी के बगल में रख दिया था। कंस ने इन्हें भी देवकी के अन्‍य संतानों की तरह मारना चाहा, लेकिन देवी योगमाया उसके हाथों से छिटककर आकाश में चली गई थीं और अपने वास्तिवक रूप में सामने आकर कंस की मृत्यु की भविष्यवाणी की.

दोस्तों, आइए जानते हैं कि आप Mehrauli Archaeological Park  या आसपास बनी धरोहरों तक कैसे पहुंच सकते हैं. इन सभी स्थलों के लिए नजदीकी Metro Station Qutub Minar है. पार्क Mehrauli मेट्रो स्टेशन से 500 मीटर दूर है जबकि दादाबाड़ी जैन मंदिर उसके ठीक सामने.

अगर आप ऑटो या कार से आ रहे हैं, तो ऑरबिंदो मार्ग या Mehrauli बदरपुर रोड से आते वक्त पार्क आपके दाहिनी ओर पड़ेगा. लाडो सराय की ट्रैफिक लाइट से इसकी दूरी 150 मीटर की है. आपको यहां तक आने के लिए एक यू टर्न लेना होगा. गुड़गांव से आते वक्त पार्क आपके बाईं ओर पड़ेगा.

अगर आप बस से यहां आना चाहते हैं, तो Ahinsa Sthal बस स्टैंड तक की बस लें.

आशा करते हैं कि Delhi के ऐतिहासिक शहर Mehrauli पर दी गई हमारी ये जानकारी आपको पसंद आई होगी. दोस्तों से इस आर्टिकल को शेयर करें.

Komal Mishra

मैं हूं कोमल... Travel Junoon पर हम अक्षरों से घुमक्कड़ी का रंग जमाते हैं... यानी घुमक्कड़ी अनलिमिटेड टाइप की... हम कुछ किस्से कहते हैं, थोड़ी कहानियां बताते हैं... Travel Junoon पर हमें पढ़िए भी और Facebook पेज-Youtube चैनल से जुड़िए भी... दोस्तों, फॉलो और सब्सक्राइब जरूर करें...

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