मुरैना से विदा लेकर अब बारी थी विदिशा भ्रमण ( Vidisha Tour Blog ) की. इस ब्लॉग ( Vidisha Tour Blog ) में आप विदिशा में बिताए गए मेरे एक दिन के छोटे से सफर की वृत्तांत पढ़ेंगे...
Vidisha Tour Blog : मुरैना से विदा लेकर अब बारी थी विदिशा भ्रमण ( Vidisha Tour Blog ) की. इस ब्लॉग ( Vidisha Tour Blog ) में आप विदिशा में बिताए गए मेरे एक दिन के छोटे से सफर की वृत्तांत पढ़ेंगे. इस एक दिन में मैंने यहां पहुंचने के बाद बीजामंडल मंदिर ( Bijamandal ) का दौरा किया था. बीजामंडल को ही विजय मंदिर ( Vijay Mandir, Vidisha ) के नाम से भी जाना जाता है. इसके बाद मैंने बगल में ही एक शाही परिवार से मुलाकात की. ये राठौड़ परिवार सदियों से यहां रह रहा है. इस परिवार की कहानी जानने के बाद मैं सांची की यात्रा पर निकला. आपको ये सभी बातें विदिशा यात्रा के ब्लॉग की सीरीज में जानने को मिलेंगी.
मुरैना से ट्रेन मिल चुकी थी. ये ट्रेन वक्त पर थी. ट्रेन में बैठते ही सबसे पहला ध्यान अमूमन पैसेंजर्स पर ही जाता है. इस ट्रेन में भी मेरे साथ ऐसा ही हुआ. मैंने आजू-बाजू नज़र डाली तो कुछ लड़के दिखे. उनके ही कुछ और दोस्त आगे पीछे सवार थे. वह सभी पंजाब से आ रहे थे.
नीचे दो लड़कियां सवार थीं. ये दिल्ली के शाहदरा से आ रही थीं. जबलपुर जा रही थीं. दोनों कज़न बहनें थीं. छोटी बहन पहली बार अकेले सफर कर रही थी. अकेले मतलब माता-पिता के बगैर. बड़ी बहन लगातार फोन पर बातें कर रही थीं.
मोबाइल पर उनकी बातचीत का शोर ऐसा था कि पूरे डिब्बे तक आवाज़ें जा रही थीं. इसे देखकर मुझे वह दौर आ गया, जब घर में पहली बार लैंडलाइन फोन लगा था. तब घर के कुछ बड़े लोग उसमें भी इसी तरह बात करते थे. हा हा हा…
इसी तरह, लोगों का मिजाज़ पढ़ते और बतियाते वक्त चले जा रहा था. फिर आया झांसी… भोजन बुक किया था. वह आया तो देखा कि जो पैकिंग थी वह फटी हुई थी. अब क्या करता… हा ना करते करते फैसला किया कि नहीं लेना है.
प्लेटफ़ॉर्म उतरकर छोले कुल्चे लिए. एक कोल्डड्रिंक भी ली. यह खाकर लेट गया. आधी रात को ट्रेन ने विदिशा रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया था.
मुरैना में तो रात को मैं स्टेशन पर ही रहा था लेकिन विदिशा ( Vidisha Tour Blog ) में कदम अपने आप स्टेशन से बाहर ले गए. इसकी वजह ये थी कि मुरैना में रात गहरा चुकी थी. दो बज रहे थे और यहां अभी 12 ही बजे थे. सो ये पता था कि कोशिश करने पर कुछ ठिकाना मिल सकता है.
यहां स्टेशन से निकलते ही एक जैन भोजनालय करके रेस्टोरेंट दिखाई दिया. एक वही खुला रेस्टोरेंट दिखा जहां चहल-पहल थी. बाकी तो सब शटर डाउन कर चुके थे. यहां लॉज उपलब्ध है लिखा देखकर मैं इसकी ओर और भी ज्यादा आकर्षित हो गया था.
मैंने कमरे की बात की, तो उन्होंने एक लड़का मेरे साथ भेज दिया. वह लड़का पीछे गलियों में होते हुए मुझे उनके कमरे तक ले गया. ये गलियां अंधेरे में इतनी डूबी थी कि कोई भी डर सकता था. जब उनका लॉज आया तो देखा कि नीचे नींद में डूबे मज़दूर 80 के दशक की बॉलीवुड फिल्म देख रहे थे.
थकावट के बाद भी फिल्मों का शौक उन्हें जगाए हुए था. ऊंघते और आंखे मलते एक शख्स से मेरे साथ आए लड़के ने कहा कि इन्हें कमरा दिखा दो. वह युवक सीढ़ियां चढ़ाकर मुझे कमरे में ले गया. सच मानिए दोस्तों, ऐसा बुरा कमरा, ठहरने के लिहाज से कभी नहीं देखा था.
मैंने उस शख्स को झिड़का और कहा कि यह कैसा कमरा दिखा रहे हो यार. सदियों पुराना कमरा है. उसने एहसान भरे अंदाज़ में कहा कि पूरा कमरा अकेला आपका ही है. मैंने बोला- भाई तुम 10 को ले आओ लेकिन सही कमरा तो दिखाओ.
वह बोला- अब यही है… बाकी सभी फुल हैं. मैंने सोचा कि जब इन कमरों की इतनी डिमांड है तो बाकी का यहां क्या हाल होगा. फिर मुझे वह अंधेरी गली और विदिशा स्टेशन से बाहर का वह चौराहा याद आने लगा जहां अकेला जैन रेस्टोरेंट खुला था.
मैंने भी मन मसोसकर उसे पैसे थमाए और कुंडी लगा ली. सुबह सामने दौड़ रही ट्रेनों की आवाज़ से नींद खुली.
रात को बारिश हुई थी सो सुबह ठंड से भरी थी. मैं नहा धोकर सामान पैक कर चुका था. कमरे में ताला मारकर निकल चला था बीजामंडल मंदिर के लिए. जिस संकरी गली से रात को होकर इस लॉज तक आया था, अब वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.
पुराने मकान और बगल में चलती ट्रेन किसी फिल्मी शॉट की तरह लग रही थी. यहीं मुझे दिखी एक दुकान जहां बन रही थी कचौड़ियां और मरोड़े. मैंने उनके एक कचौड़ी देने को कहा. कचौड़ी में सेव डालकर उन्होंने मुझे थमाया.
कचौड़ी हाथ में आते ही मैंने उसकी तस्वीर खींचकर इंस्टाग्राम पर पिक्चर अपलोड की. फिर उनसे आग्रह किया कि क्या मैं आपकी शॉप का वीडियो बना सकता हूं? उन्होंने तुरंत इजाजत दी और स्पेशली मरोड़े बनाकर भी खिलाए.
पैसे देने के लिए मैंने हर जतन कर लिया लेकिन उन्होंने पैसे लिए नहीं. अगर आप भी विदिशा जाएं तो स्टेशन के बाद इस पहलवान ढाबे पर नाश्ता ज़रूर करें. बहुत शानदार शख्सियत हैं इनकी. आप यह पूरा वीडियो नीचे देख सकते हैं.
विदिशा स्टेशन से बीजामंडल मंदिर जाने के लिए ऑटो मिल जाता है. वैसे तो यह दूरी ढाई से तीन किलोमीटर की ही है लेकिन लेट न जाऊं, इस डर से ऑटो कर लिया था. वैसे तो दुकान वाले भाई जी ने ऑटो वाले को वहीं से कहा था मुझे जाने के लिए सो उसी के साथ चल दिया था बीजामंडल.
ऑटो से बीजामंडल जाने के लिए स्टेशन से अकेले सवारी होने पर 50 रुपये का किराया लगता है. कुछ और सवारी हों तो ये किराया कम भी हो सकता है. ऑटो मुझे संकरी गलियों से होते हुए बीजामंडल मंदिर तक ले गया.
बीजामंडल मंदिर के कई दरवाज़े हैं. वैसे तो एक दरवाज़ा ही खुला है लेकिन अगर आपको इसे सामने से देखना हो तो आपको एक बार फिर गलियों से चहलकदमी करते हुए उस दूसरे दरवाज़े तक आना होता है. मुझे क्योंकि एक ऐसा शॉट चाहिए था जिसमें यह मंदिर सामने से पूरा दिखाई दे, इसलिए मैंने न सिर्फ दूसरे दरवाज़े तक आने का फैसला किया, बल्कि किसी और के घर की छत पर भी चढ़ा.
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