Tosh Village Tour Blog, Part-2 | तोष गांव की यात्रा के इस ब्लॉग ( Tosh Village Tour Blog ) में आप वहां की मेरी सुबह और दिन भर की यात्रा के अनुभव को पढ़ेंगे. ये यात्रा मैंने अपने दोस्त संजय के साथ अप्रैल 2021 के महीने में की थी. 2 से 4 तारीख के बीच.
तोष गांव में बिताई गई पहली रात और उससे पहले मलाणा गांव, कसौल गांव की यात्रा के ब्लॉग को भी आप www.traveljunoon.com पर पढ़ चुके हैं. अगर आप इस ब्लॉग ( Tosh Village Tour Blog ) को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो नीचे स्क्रॉल करके या Travel Blog सेक्शन में जाकर आप मेरे सभी ब्लॉग पढ़ सकते हैं.
अब बात करते हैं तोष गांव की मेरी सुबह और दिन भर के घटनाक्रम के बारे में. तोष गांव ( Tosh Village Tour Blog ) की ये सुबह मेरे लिए एकदम नया अनुभव लेकर आई थी. सुबह सुबह 6 बजे आंख मीझते मैं कमरे से बाहर आया. रूम से बाहर निकलते ही, सामने जो नज़ारा मुझे दिखा उसने मुझे हैरान कर दिया. मुझे ऐसा लगा कि जैसे सामने जन्नत है. बर्फ से ढकी किसी भी पर्वत श्रृंखला को पहली बार मैं आंखों के सामने बेहद पास से देख पा रहा था. आप इसे तोष गांव के हमारे व्लॉग में ज़रूर देखिए.
ये नज़ारा देखते ही मैंने संजू को नींद से जगाया और बाहर बुलाया. संजू जैसे ही बाहर आया उसके मुंह से भी वही शब्द निकले जो मेरे मुंह से कुछ ही देर पहले निकले थे.गजब का व्यू था दोस्तों, दिल, दिमाग, तबीयत सब हरी हो गई थी. ये व्यू देखकर हमने यहां एक छोटा सा वीडियो शूट किया. फिर, हम फ्रेश होने के लिए चल दिए.
झटपट पैकिंग करके, नहा धोकर हम तैयार थे तोष गांव घूमने के लिए. हमने एक तरह से चेकआउट ही कर दिया था बस सामान वहीं होटेल रूम में ही था. हमने कैमरा, मोबाइल, पावर बैंक, आदि रख लिए थे. हम तोष गांव के जिस होटल में रुके थे, उसके सामने ही एक स्थानीय घर था, जिसमें एक चिमनी थी. इस चिमनी में से धुआं निकलता देखा. समझ गए थे कि ये सुबह का चूल्हा है जिसपर खाना बन रहा होगा.
अब रसोई से उठता धुआं देखकर भूख न लगे, ऐसा कैसे हो सकता है. भूख बढ़ गई थी. हम भी बढ़ चले थे. निकलते ही भेड़ों का बाड़ दिखाई दिया. भेड़ों को देखा और फिर बगल ही एक पतली सी पगडंडी पर चलने लगे. चलते-चलते हम एक दुकान पर पहुंचें. इस दुकान पर मैगी ऑर्डर की. पहाड़ों पर यही एक ऑप्शन तो मिलता है हमें. हम बैठकर कुछ सोच रहे थे कि एक बुजुर्ग अंकल वहां आकर बैठे.
ये अंकल अपने खेतों को देखने जा रहे थे जो कुटला गांव में था. बात करते-करते मैंने उनसे तोष गांव की कहानी पूछी. उनकी रुचि तो थी बताने की लेकिन उन्होंने कहा कि किसी और से पूछो, वह सही तरीके से हिंदी बोल नहीं पाएंगे. हमने भी उनके इस अनुरोध को समझा और उनसे उनकी दिनचर्या आदि के बारे में पूछने लगे.
इसके बाद, थोड़ी ही देर में वहां एक और शख्स आए. इनसे बात की तो पता चला कि ये एक रिटायर्ड सरकारी अफसर हैं. उनका बेटा आईआईटी चेन्नई में पढ़ता है और वह यहां कुटला गांव में पहले वाले बुजुर्ग शख्स की भांति अपने खेतों की देखभाल करने जा रहे थे. मैंने अंकल को अपने बारे में बताया. पहले तो उन्होंने परहेज़ किया और कहा कि वे सरकारी अफसर रहे हैं, कुछ भी इधर उधर हो गया तो मुश्किल हो जाएगी.
आगे आगे जैसे जैसे बातों का कारवां आगे बढ़ा. वे हमारे साथ घुलते-मिलते चले गए. फिर, एक जगह उन्होंने खुद ही कहा कि चलिए कैमरा ऑन कर लीजिए. कैमरा ऑन होते ही उन्होंने हमें तोष गांव का पुराना इतिहास, यहां वुकास के कार्य और लोगों के बारे में जानकारी दी. एक वक्त था जब असली तोष गांव सिर्फ यहां मौजूद ऋषि जमदग्नि के मंदिर तक ही हुआ करता था. और यही गांव तकरीबन 20 साल पहले जल गया था. लेकिन फिर यहां के लोगों की जीवटता ने यहां इस गांव को फिर से आबाद कर दिया.
मैंने इन शख्स से पूछा कि क्या वजह से कि सरकार ने सड़क नहीं बनवाई है, उन्होंने कहा कि ये जो सड़क थी वो भी डैम निर्माण में लगी कंपनी ने बनवाई थी. अब क्योंकि डैम का कार्य भी पूरा हो चुका है और कंपनी भी यहां से जाने वाली है इसलिए वे भी ध्यान नहीं देते और सड़क बदतर स्थिति में है. बहुत तकलीफ पहुंची ये सब देखकर. एक तो लोगों के लिए वैसे ही कुदरती तौर पर यहां जीवन बेहद मुश्किल है और दूसरा सरकार ने इसे दुर्गम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. क्या काम ऐसी सरकार का जो लोगों की ज़िंदगी को ही आसान न बना सके.
अब बारी थी चलने की. इन शख्स से हम विदा लेने लगे तो उन्होंने कहा कि चलिए हमारे साथ ही. आगे एक वाटरफॉल है. बहुत दूर नहीं है. तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी है. कुछ ही देर में पहुंच जाएंगे. हमें और क्या चाहिए था भला. हम भी सहर्ष ही तैयार हो गए. हमारे साथ रिटायर्ड शख्स थे और साथ में पीछे पीछे वह बुजुर्ग अंकल.
वह शख्स जिस रास्ते को तीन-साढ़े तीन किलोमीटर का बता रहे थे उसने तो मानों मेरी हालत पस्त कर दी. हालांकि वह शख्स मुझे हर कदम पर वहां की खेती, लोगों की लाइफस्टाइल और अलग अलग जगहों पर मौजूद डैम दिखाते जा रहे थे. रास्ते में उन्होंने ऐसी जगह भी दिखाई जहां चरवाहे ठहरा करते थे. गजब की यात्रा थी ये भी. थकते-थकते हम उस जगह पहुंचे जहां से हमें वाटरफॉल का शोर सुनाई देने लगा था और उसका पानी भी दिखाई देने लगा था. यहां तो तबीयत ही खुश हो गई थी.
थकान भूले. वाटरफॉल के और नजदीक पहुंचे. यहां पानी के ऊपर लकड़ी का एक छोटा सा पुल था. दोनों शख्स यहां से कुटला के लिए आगे बढ़ चले थे. उन्होंने हमें फिर से साथ चलने का प्रस्ताव दिया लेकिन समय की मजबूरी की वजह से हम उनके साथ नहीं जा सके. यहां पर हमने उन्हें अलविदा कहा और पूरा वाटरफॉल देखने लगे. कैमरे में सबकुछ रिकॉर्ड किया. अब हम एक कैंपिंग तक पहुंचें जहां एक अकेला लड़का मिला. वह वहां का जिम्मा संभाल रहा था. लड़के से बातचीत की. उन्होंने हमारे लिए चाय बनाई. दोस्तों सच में, क्या गजब की चाय थी. 40 रुपये में मिलने वाली कसौल की चाय से लाख गुना बेहतर थी तोष की ये आतिथ्य से भरी चाय.
इस लड़के ने बहुत अच्छा माहौल बना दिया. अब बारी थी वापस लौटने की. वापसी में हमें कुछ और यूनिक चीज़ें कवर करनी थी. सो, हम चलने लगे वापसी की तरफ. लौटते वक्त हमें पता चला कि एक किसान परिवार है जो राजमा की खेती करता है. काफी मिन्नतों के बाद घर की महिला बात करने को तैयार हुईं. उनकी बेटियां कटोरी में राजमें लेकर आई. फिर हमने उनसे बात की. बातचीत के माहौल के बाद हम बढ़ चले आगे अपने होटल की तरफ.
थोड़ा भटके लेकिन आखिरकार होटेल पहुंच ही गए. होटल से सामान लिया और फिर वहीं पुराने तोष गांव पहुंच गए. ऋषि जमदग्नि का मंदिर और सामने वही जसमीत ढाबा. तोष के इस पुराने स्थल पर हमने मंदिर को देखा, इसका भी एक हिस्सा शूट किया. अब चल दिए पेट पूजा करने. हम ये सब कर रहे थे और साथ में विपिन भाई और वासु को कॉल भी किए जा रहे थे. उनका नंबर नहीं लग रहा था. हम समझ गए थे कि वे अभी ऊपर ही होंगे और नेटवर्क नहीं आ रहा होगा.
मैं ये सोच रहा था कि अगर उनसे बात हो जाती तो हम प्लानिंग कर लेते और मैं उन्हें तोष आने से मना कर देता. अगर वे गलती से तोष आ जाते तो बहुत वक्त खराब हो जाता. कई बार कॉल करने के बाद भी हमें कामयाबी नहीं मिल रही थी. जसमीत ढाबे पर हमने ब्रेकफास्ट का सेकेंड सीज़न भी पूरा कर लिया था. आलू प्याज के परांठे खाकर ऐसा लगा जैसे सब चंगा सी. खाकर हमने एक एक RED BULL भी पी. मुझे नहीं पता था कि इससे कोई एनर्जी मिलती है, संजय ने कहा तो पिया. असर के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. हां, MRP से 20 रुपये महंदी मिली थी ये वहां पर.
ब्रेकफास्ट करके हम अब लौटने लगे. तोष गांव का प्राथमिक स्कूल देखा. गांव से बाहर आ चुके थे. यहां पर हमने अपने वीडियो का समापन किया. अब हमारी अगली मंज़िल थी मणिकर्ण गुरुद्वारा. थकान हमें चूर कर चुकी थी. स्मार्ट डिसीज़न तो ये था कि बरसैणी तक के लिए पैदल ही चल देते लेकिन हमने जल्दबाजी में टैक्सी कर ली, और वो भी 300 रुपये में. जब रास्ते में कुछ टूरिस्टों को पैदल चलते देखा और झटपट वहां पहुंच भी गए तब जाकर दिमाग की बत्ती खुली. खैर, जो हुआ सो हुआ. बरसैणी से हमें बस मिल गई जो कुछ ही किराए में हमें मणिकर्ण पहुंचा देती है. आप इसकी पूरी जानकारी के लिए तोष व्लॉग ज़रूर देखें.
अगले ब्लॉग में मणिकर्ण की हमारी यात्रा और वहां के अनुभव के बारे में पढ़ें. हम आपको मणिकर्ण की कहानी भी दिखा चुके हैं, वीडियो में. इस वीडियो के लिए लॉग इन करें – www.youtube.com/traveljunoonvlog पर.
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