Sach Pass की तस्वीर
Sach Pass : साच पास का यह इलाका कितना दुर्गम और एकाकी है, इसका अनुमान आप इससे लगा सकते हैं कि इस क्षेत्र की संस्कृति पर किताब (पांगी-भरमौरः जीवन और संस्कृति) सम्पादित करने वाले हिमाचल हिंदी अकादमी के सेवा निवृत्त अधिकारी तुलसी रमण बताते हैं कि अदम्य इच्छा के बावज़ूद वे आज तक इस ओर नहीं आ सके हैं. सिर्फ वे ही नहीं, पहाड़ी चित्रकला के प्रसिद्ध चित्रकार और कला-इतिहासकार – चम्बा निवासी, पद्मश्री विजय शर्मा भी स्पीति और पांगी की कलाओं के अध्ययन के लिए इस पार जाना चाहते हैं लेकिन आज तक आ नहीं पाए हैं.
शायद आपको यह जानना रोचक लगे कि मैंने इस यात्रा के लिए अनेक जानकारियां तुलसी रमण द्वारा संपादित उपरोक्त किताब और विजय शर्मा द्वारा उपलब्ध करवाई गई किताब ‘री-डिस्कवरिंग चम्बा’ से ही जुटाई हैं. मंडी के भारत यादव ने भी दो-तीन पहले मेरे फेसबुक वॉल पर टिप्पणी करते हुए एक मंडयाली लोकोक्ति का जिक्र किया था – “माँगी खाणा, पर पांगी नी जाणा” लेकिन उनकी टिप्पणी देखने से पहले ही हम पंगा ले चुके थे. यानी, पांगी के लिए रवाना हो चुके थे. दरअसल, इंटरनेट कनेक्शन की दिक्कत के कारण अक्सर ही यात्रा-डायरी के हिस्से फेसबुक पर दो-तीन दिन बाद ही डाल पाता हूँ. [कई बार तो चीजें फ़्लैश बैक में ही दर्ज भी करता हूँ :)]
यात्राओं के दौरान हमेशा यह द्वंद्व बना रहता है कि देखूं-महसूस करूँ या लिखने में समय जाया करूँ? लेकिन महान यात्री राहुल सांकृत्यायन की धमकी भरी बात ध्यान में आती है. वे श्रेष्ठ यात्री उसे कहते हैं, जो अपनी यात्राओं को लिखित रूप में दर्ज करे, अन्य प्रकार के स्वांतः सुखाय पर्यटन को वे निरर्थक-अनुपयोगी मानते थे.
बहरहाल, हिंदी साहित्य के घनघोर अध्येता मंडी (चैलचौक) के विजय विशाल ने भी मेरे फेसबुक प्रोफाइल पर आकर बताया है कि उन्होंने 1980 के दशक में चम्बा से पांगी घाटी तक की यात्रा पैदल की थी, और रात ग्लेशियर पर बिताई थी. हिमाचल भाषा अकादमी के सेवानिवृत्त निदेशक सुदर्शन वशिष्ठ ने भी कहा है कि वे सतरुंडी से पैदल ही साच दर्रा पार कर गए थे, जबकि उस दौरान बर्फ पड़ रही थी. उन दिनों जीप बैरागढ़ से कुछ दूर तक ही जा पाती थी.
लेकिन उपरोक्त सभी टिप्पणियां आज (1 जुलाई, की रात को) देख पा रहा हूं. देवीकोठी से कुछ किलोमीटर आगे बढ़ते ही बीएसएनल और जिओ समेत सभी मोबाइल बढ़ते ही गायब हो जाते हैं. पांगी तहसील के मुख्यालय किल्लाड़ पहुंचने पर बीएसएनल मुश्किल से अपना टावर पकड़ पाता है. इसका इंटरनेट यहां मिरमिराता हुआ यदा-कदा ही आता है. यहां जिस फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस में रुका हूं, उसके चौकीदार देवी सिंह ने बताया कि यहां एक छोटा सा साइबर कैफे भी है, जो सेटेलाइट से चलता है.
हाँ, यहाँ भी जिओ का 4 जी (LTE) टावर लग चुका है और कुछ ही महीनों में चालू होने वाला है। लेकिन इन दिनों तो किलाड़ से आगे बढ़ते ही पांगी घाटी में कहीं भी कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है. कुछ प्रमुख गांवों में बीएसएनल के टेलीफोन बूथ हैं, जहाँ लोग कई-कई घंटों की उतराई पार कर बाहर रह रहे परिजनों व अपनी फसलों को खरीदने आने वाले शहरी व्यापारियों को फोन करने आते हैं. इन बूथों पर सुबह 10 बजे से शाम 6-7 बजे तक लंबी लाइनें लगी रहती है. शाम उतरने पर ये बूथ खाली हो जाते हैं क्योंकि फोन करने आये लोगों को 3-3, 4-4 घंटे की चढ़ाई चढ़ कर अपने गांवों की ओर लौटना होता है.
ओह, मैं बर्फ़ीले दर्रे की आज की रोमांचक यात्रा के दृश्यों को दर्ज करने बैठा था, लेकिन फोन-इंटरनेट संबंधी ब्यौरों में उलझ गया. दरसअल मैं इंटरनेट को मौजूदा समय के सबसे ताकतवर परिवर्तनकारी माध्यम के रूप में देखता हूँ. इन इलाकों के हाथ में भी जब कुछ महीने बाद इंटरनेट की ताकत आ जाएगी, तो ये वैसे नहीं रह जाएंगे, जैसे आज हैं. यह विमर्श ही निर्रथक है कि – वह बदलाव बुरा होगा, या अच्छा! उसे होना ही है, चाहे देर जितनी लगे। फिर, जो चीज हम दिल्ली-पटना-शिमला वालों को अच्छी लगती है उसे इन जनजातीय इलाकों के लिये बुरा बताने का क्या तुक है?
आज अपराह्न भी जब मैं देवीकोठी से साच दर्रे की ओर बढ़ रहा तो इंटरनेट का ही भरोसा साथ था. चम्बा जिला प्रशासन ने खराब मौसम के कारण 30 जून तक भू-स्खलन वाले रास्तों में न जाने की चेतावनी जारी की थी. हालांकि उसके अधिकारी भी यह सलाह देने में असमर्थ थे कि 1 जुलाई को साच दर्रा पार किया जा सकता है या नहीं?
लेकिन इंटरनेट बता रहा था कि चम्बा और भरमौर में मौसम 30 जून तक खराब रहेगा, लेकिन साच दर्रा पर 29 जून की शाम से मौसम में सुधार होने लगेगा. 30 को दोपहर तक मौसम काफी खुल जायेगा तथा बारिश और बर्फबारी की संभावना बहुत कम रह जाएगी। 4 जुलाई से मौसम फिर खराब होने लगेगा और साच पर हल्की बर्फबारी की संभावना रहेगी. इसी जानकारी के आधार पर हमने तय किया कि आज ही दर्रा पार कर जाएं. उसके बाद मौसम खराब हुआ करे.
यहां (किलाड़, पांगी) से हम किश्तवाड़ (कश्मीर) वाले रास्ते पर निकलेंगे. रोमांचक यात्राओं के शौकीन सैलानियों ने लिखा है कि वह (किलाड़-किश्तवाड़) दुनिया की सबसे खतरनाक सड़क है. पांगी से बाहर निकलने का एक और रास्ता केलंग से होते हुए रोहतांग से है. रोहतांग का अर्थ है लाशों का दर्रा. एक जमाना था जब इसे पार करने की कोशिश में स्पीति घाटी के लोगों की लाशें बिछ जातीं थी लेकिन अब तो रोहतांग बर्फ देखने-छूने के इच्छुक सैलानियों के बीच लोकप्रिय, गंदगी और भीड़ भरा पिकनिक स्पॉट है. हालांकि अब भी उसे सर्दियों में पार करना भयावह है.
एक और विषयांतर की इजाजत दें तो सन 2002-2003 की एक घटना बताना चाहूंगा. उन दिनों मैं शिमला में अखबार की नौकरी करता था. कवि अजेय उन दिनों रोहतांग पार केलंग में रहते थे. वे स्पीति घाटी के ही रहने वाले हैं तथा उन दिनों केलंग में सरकारी नौकरी करते थे. उस समय तक एक कवि के रूप में उनकी पहचान नहीं बनी थी और शिमला-मंडी के भी लेखक उनकी कविताएं से कम ही परिचित थे.
वह सदियों का मौसम था. जहाँ तक याद पड़ता है, मधुकर भारती, राजेन टोडरिया (दोनों अब दिवंगत), मोहन साहिल, देवरानी आदि के साथ मिलकर मैंने एक अनऔपचारिक सी कविता गोष्ठी की योजना बनाई थी. मैंने उस गोष्ठी में आने के लिए अजेय को भी कहा. वे आने को तैयार भी हो गए लेकिन मुझे पता नहीं था कि मैं उनसे क्या करवाने जा रहा हूँ.
वे कविता गोष्ठी से एक दिन पहले भोर में 4 बजे बजे शिमला के माल रोड पर अवतरित हुए और मैं उन्हें अपने साथ अपने किराए के घर में लाने के लिए गया तो मालूम चला कि वे उस भीषण बर्फीले मौसम में रोहतांग दर्रा पैदल पार करके आये हैं! अजेय उस इलाके एकमात्र प्रकाशित हिंदी कवि हैं. उनकी कविताएं पिछले सालों में सभी प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में छपी हैं. अजेय अपनी कविताओं में उस अनूठी बौद्ध घाटी के विराट आध्यात्मिक अनुभवों के साथ मौजूद रहते हैं.
सर्दियों में पैदल रोहतांग पार कर – मौत से खेलते हुए – उनका हम शहरी लोगों को अपनी कविताएं सुनाने आना – अभिव्यक्ति की उनकी अदम्य बेचैनी का प्रमाण थी. विषयांतर काफी हो गया. रात भी काफी हो गई है. कल सुबह-सुबह ही सेचु घाटी की परमार भुटोरी, और चस्क भुटोरी की ओर निकलूंगा. इन दोनों समेत पांगी में कुल पांच भुटोरियाँ (चस्क, परमार, हिलुवटान, सुराल और हुडान) हैं. ये भुटोरियाँ बौद्ध मतालम्बियों के गांव हैं, जो पंगवालों (हिन्दू!) के गांवों से काफी ऊपर बसे हैं. हर भुटेरी में एक प्राचीन गोंपा है.
हत्त-तेरीकी! फिर विषयांतर।
अब विषय की ओर लौटता हूं।
मैंने आज का विषय चुना था- ‘ साच दर्रे की खौफ़नाक, रोमांचक और कातिल खूबसूरती से भरे दृश्यों का वर्णन’। लेकिन मैं इस ठंडी रात में अपनी ऊर्जा उसमें क्यों लगाऊं? मेरे और बेटी कीर्ति के मोबाइल कैमरे से ली गई साच दर्रे की तस्वीरें और वीडियो अपनी कहानी खुद कह देंगे. मैं तो सिर्फ यह बता कर सोने जाता हूँ कि – जब हम देवीकोठी से कोई 18-20 किलोमीटर आगे सतरुंडी चेक पोस्ट पहुंचे तो वहाँ मौजूद पुलिस अधिकारी ने हमारी कार रुकवा ली. उसने हमारे परिचय-पत्र (आधार-कार्ड) मांगे, ड्राइवर मोहम्मद रफी समेत हम सभी लोगों को कार से उतरवाया और कार की नंबर प्लेट के सामने खड़ा कर हमारा वीडियो बनाया. साथ ही मुझसे एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करवाये. पुलिस-अधिकारी ने उसमें जो लिखा था, उसका आशय था कि उसने हमें “साच दर्रे (Sach Pass) के खतरों से अवगत करा दिया है तथा हमें सतरुंडी सिर्फ 20 किलोमीटर आगे जा कर लौट आने की सलाह दी है. अगर हम उसके आगे जाते हैं, तो ऐसा हम अपने जोखिम पर करेंगे. कोई दुर्घटना होने पर पुलिस अथवा प्रशासन मदद करने में सक्षम नहीं होगा.”
सतरुंडी चेक पोस्ट पर साच पास होकर किल्लाड़ की ओर जाने वाले अन्य स्थानीय लोगों, छोटे व्यापारियों को भी उनकी गाड़ियों से उतरने के लिए कहा जा रहा था, उनकी वीडियो बनाई जा रही थी तथा उनसे उपरोक्त रजिस्टर पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे थे, जो 20 किलोमीटर यानी, साच टॉप से आगे -पांगी घाटी न जाने के बारे में था. पुलिस-अधिकारी ने मुझे बताया कि “दुर्गम रास्तों के अलावा यह क्षेत्र कश्मीर से लगा है. पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादी इधर भी कई हत्याकांडों को अंजाम दे चुके हैं इसलिये अतिरिक्त सतर्कता बरती जाती है.”
अब जोखिम का क्या है! क्या इधर दिल्ली से ज्यादा मौतें सड़क दुर्घटना में होती हैं या मुम्बई से बड़े आतंकी हत्याकांड इधर हुए हैं? जोखिम की ऐसी की तैसी, सोने चलता हूँ. यहाँ तो बिना दवा लिए ही बड़ी तेज नींद आ रही है. दिल्ली में तो बिना दो गोलियों की आती ही नहीं।
(सभी तस्वीरें : हिमाचल प्रदेश स्थित साच दर्रा,1400 फुट की)
डायरी/नोट्स, 1 जुलाई, 2018, किलाड़ (पांगी घाटी), रात्रि 11.50
Rangbhari Ekadashi 2025: हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी… Read More
Char Dham Yatra 2025 : उत्तराखंड की चार धाम यात्रा 30 अप्रैल, 2025 को गंगोत्री… Read More
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में एकाग्रता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है.… Read More
Spring Season 2025 : वसंत ऋतु सबसे सुखद मौसमों में से एक है, जिसमें फूल… Read More
Dharamshala travel Blog Day 1 धर्मशाला उत्तर भारत का एक शहर है. यह हिमाचल प्रदेश… Read More
Vietnam Travel Blog : वियतनाम एक खूबसूरत देश है जो अपनी समृद्ध संस्कृति, शानदार लैंडस्केप… Read More