Rishikesh to Hindolakhan Tour Blog : हम सुबह साढ़े 6 बजे हरिद्वार पहुंच चुके थे. बस अड्डे के अंदर, बस से उतरते ही सामने ऋषिकेश के लिए बस खड़ी मिल गई. हम तुरंत ही उसमें चढ़ गए थे. हालांकि अंदर हमारे बैठते ही, एक 15 लोगों का ग्रुप भी आ गया, इससे बस में भीड़ हो गई. सोशल डिस्टेंसिंग की तो मानों धज्जियां उड़ गई थीं. हालांकि, बात वही है न! अपनी सुरक्षा अपने हाथ. मैं, मास्क टाइट करके, हाथों को लगातार सैनिटाइज कर रहा था. अगले आधे घंटे से थोड़ा ज्यादा वक्त में, हम ऋषिकेश पहुंच चुके थे.
ऋषिकेश के सफरनामे का शुरुआती घटनाक्रम मैं पिछले ब्लॉग में बता चुका हूं. इसे आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर भी पढ़ सकते हैं. मैं और संजू, नटराज चौक के तरफ बढ़ चले थे. नटराज चौक के रास्ते में ही हमें एक लोकल वीइकल मिल गया. हिंडोलाखाल, नरेंद्र नगर तक के लिए 50 रुपये किराया था. हम इसी गाड़ी में बैठ गए. नटराज चौक से कुछ ही दूरी पर इसमें एक शख्स लहसुन की बोरियां लेकर बैठा. हालांकि, बोरियां गाड़ी के ऊपर थीं लेकिन मेरा जिज्ञासु मन उससे सवाल किए बिना रह न सका.
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मैंने पूछा, भाई साहब लहसुन कहां से लेकर आ रहे हो? उसने बताया कि ऋषिकेश में गांव से. यहां खेती होती है. वह शख्स सहारनपुर का था और लहसुन बेचने चंबा जा रहा था. उसे देर शाम तक वापिस ऋषिकेश लौटना भी था. मैंने पूछा कि क्या वह मार्जिन निकाल लेता है? उसने तपाक से उत्तर दिया, हां, आराम से. मैं रोज यही करता हूं. मैं सोचने लगा, कितने तरीके हैं कमाई करने के. हर पल पर हमारे लिए अवसर हैं.
गाड़ी चले जा रही थी और साथ ही, मैं देखे जा रहा था, ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट को. पिछले साल भी मैं इसी रास्ते से गुजरा था. तब सड़क का काम चल रहा था. धूल उड़ रही थी. अब चकाचक सड़क तैयार थी. ऐसी की जैसे हवाई पट्टी. रास्ते में नरेंद्र नगर भी आया. जो कभी राजा का शहर हुआ करता था. आज यहां के महल में आलीशान भव्य होटल चल रहा है. स्पा तो यहां का कमाल का है. सुना है, विराट कोहली और अमिताभ जैसे स्टार्स, ऋषिकेश टूर पर यहीं ठहरते हैं.
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अब हम नरेंद्र नगर से आगे बढ़ चले थे. अगले कुछ ही मिनट में हिंडोलाखाल आ गया. हिंडोलाखाल एक छोटी सी मार्केट का नाम है, जहां से कुंजापुरी मंदिर के लिए एक रास्ता शुरू होता है. आप कुंजापुरी मंदिर के लिए या तो यहीं से व्हीकल बुक कर सकते हैं या फिर ट्रेक भी कर सकते हैं. सड़क रास्ते से ये दूरी 4 किलोमीटर है जबकि ट्रेक में आप 2 से ढाई किलोमीटर की दूरी को तय करते हैं.
खैर, हिंडोलाखाल पहुंचकर हमारी पहली कोशिश किसी स्थानीय दुकान में नाश्ता करके वहीं सामान रख देने की थी. ताकि, ट्रेक के दौरान सामान का बोझ मुसीबत न बने. हम हिंडोलाखाल में पहुंचे मार्केट की आखिरी दुकान में. यहां हमने देखा कि खाने के लिए वही समोसे, बन बटर और मैगी ही उपलब्ध है. हमने दुकानदार से मैगी बनाने के लिए कहा. मैं दुकानदार से स्थानीय चीज़ों को लेकर बात करने लगा. मैंने उससे पूछा कि आपका नाम क्या है? उसने कहा- हम पुंढीर है. बस क्या, मुझे याद आ गए हमारे पुंढीर जी. मैंने दुकान वाले पुंढीर से को अपने परिचित पुंढीर जी की फोटो दिखाई, वह उन्हें पहचान गए.
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उन्होंने कहा कि ये तो हमारे ही गांव के हैं. बस फिर क्या, मैंने मिला दिया पुंढीर जी को कॉल. पुंढीर जी ने आने की बात कही और सामने थी गरमागरम मैगी. मैंने और संजू ने मैगी शुरू कर दी और इतने में वहां आ गए हमारे पुंढीर जी. बस फिर क्या. खूब जम गया रंग, जब मिल गिए तीन दोस्त. पुंढीर जी ने मुझसे दिल्ली में भारतीय विद्या भवन के BVBFTS डिपार्टमेंट से जुड़े सभी लोगों का हालचाल जाना. दरअसल, पुंढीर जी और मैं दोनों ही इस डिपार्टमेंट के स्टडी टूर पर बच्चों को ट्रेनिंग देने का काम करते हैं. वहीं, मेरा परिचय पुंढीर जी से हुआ था. पुंढीर जी ने चाय पी और हमने वहीं सामान रखा.
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पुंढीर जी स्थानीय राजनीति में सक्रिय हैं. जब भी मुझे किसी तरह की मदद चाहिए होती है, उनसे पूछ लेता हूं. उन्होंने हमें ट्रेकिंग का रास्ता बताया. बता दूं कि कुंजापुरी मंदिर मैं इससे पहले गया था लेकिन सड़क मार्ग से. ट्रेकिंग का रास्ता मुझे पता नहीं था. पुंढीर जी से जानकारी लेकर और उनको विदा कर हम बढ़ चले थे ट्रेक के लिए. हां जाते जाते, दुकान वाले पुंढीर जी से भोजन के लिए भी कह गए थे. हमने उन्हें छोले पूड़ी के लिए कहा था. ताकि वापस आते ही खाकर हम आगे के सफर के लिए बढ़ जाएं और हमारा समय बर्बाद न हो.
(आगे की यात्रा को बढ़िए अगले ब्लॉग में)
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