Rishikesh Tour Blog – महीनों बाद अगर आप कहीं घूमने जाते हैं तो कैसा महसूस होता है? हम भी घूमने गए लेकिन आप इसे सालों के बाद होने वाला सफर भी कह सकते हैं. हफ्तों पहले से की जाने वाली तैयारी, शॉपिंग, घर वालों को मनाना, ऑफिस में छुट्टी के लिए अप्लाई करना, सब कुछ…. कभी कभी लगता है कि घूमने जाना भी किसी शादी समारोह जैसा ही है. कितनी तैयारी करनी पड़ती है आपको!
इस टूर के लिए मैंने नज़दीकी डेस्टिनेशन ही चुना था. इस फैसले की पहली वजह नो डाउट कोरोना की थर्ड वेव का डर था और दूसरा छोटे बच्चों का साथ होना. मैंने इस ट्रिप के लिए एक तैयारी और भी की थी और वो कैब बुक करना. आप इसे कैब न कहकर टैक्सी कह सकते हैं. टैक्सी के लिए मैं दूसरे मोहल्ले के नेगी भैया से ही गाड़ी बुक करता हूं. ये मोहल्ला हमारे पड़ोस में ही है सो कोई मुश्किल नहीं पड़ती है.
इन सब तैयारियों के बाद अब बारी थी ट्रिप की. हमारी ट्रिप ( Rishikesh Tour Blog ) शुरू हुई शनिवार सुबह को. तारीख थी 9 जुलाई 2021. सुबह सुबह गाड़ी में बैठने पर सबसे पहले पता है मन में क्या ख्याल आता है? ड्राइवर कैसा है? उसके मन में क्या चल रहा होगा? हमारे भी मन में ये सवाल था. ड्राइवर के संग जैसे ही गाड़ी में बैठे, उन्होंने बच्चों से बातें करनी शुरू कर दी. वो एक दोस्ताना माहौल बनाने की कोशिश में थे. हालांकि, ये शुरुआत बच्चों के लिए कंफर्टेबल नहीं थी. सो वो रिएक्शन नहीं दे रहे थे.
हमारी गड्डी जैसे ही राजनगर एक्सटेंशन से आगे बढ़ी, ड्राइवर भाई साब ने उसे गंगनहर पर उतार दिया. इस गंगनहर के समानांतर सड़क है जो आपको रुढ़की तक ले आती है. हालांकि, ये बात मुझे नहीं पता थी. उन्होंने जब मुझे ये बताया कि इस सड़क के रास्ते वो दो टोल बचाकर मुझे रुढ़की पहुंचा देंगे, मैं खुश हो गया. ये ‘मोगैम्बो खुश हुआ’ वाली फीलिंग जैसी ही थी. हा हा हा
अब हम गंगनहर के साथ साथ चलते चलते, बच्चों ये बताते बताते कि ये नदी है, वो देखो कैसे बह रही है, ये देखो कैसे बह रही है, चले जा रहे थे. अब मुझे लगा की विकास भाई, थोड़ा थोड़ा ऊंघने लगे थे. मैंने उनके हाव भाव देखा तो प्रीति से पूछा कि क्या कहीं रुक जाएं. विकास भाई, मुझे ये तो बता ही चुके थे कि इस रास्ते में ढाबे नहीं मिलते हैं. मैं भी उन्हें कह चुका था कि चिंता मत कीजिए, हम जहां जाते हैं पूड़ी सब्ज़ी लेकर चलते हैं. प्रीति से जब मैंने ये कहा कि कहीं रुक जाएं क्या, तो उन्होंने कहा कि हां, लेकिन बच्चे सो रहे हैं. उन्हें नहीं जगाएंगे.
मैंने कहा कि हां, ठीक है. विकास भाई को मैंने बोल दिया कि जो कोई चाय की दुकान दिख जाए वहां रोक देना आप. विकास भाई ने कहा कि जल्दी रुक जाते हैं वर्ना पेड़ खत्म हो जाएंगे. बस फिर क्या था, मैंने उनसे कहा कि हां और इतने में ही सामने मुझे सड़क के बीचों बीच बोर्ड दिखा कि यूपी में पधारने के लिए धन्यवाद! इसका सीधा सा अर्थ था कि हम उत्तराखंड की सीमा में आ चुके थे. कमाल हो गया था दोस्तों, ढाई घंटे में इस गंगनहर की चमचमाती सड़क ने हमें उत्तराखंड में प्रवेश करा दिया था.
इत्ते एक जगह छोटा बैराज था. इस बैराज के दाहिनी तरफ एक चाय का ढाबा था. ये सपनों में दिखी किसी दुकान जैसा था या कॉमिक्स या मोटू-पतलू के समोसे वाले जैसा, ये मैं समझा नहीं पा रहा हूं आपको. हां ये मोटू पतलू के समोसे वाले जैसा ही था. यहां हम एक बरगद के पेड़ की छांव में रुके. पास में नहर थी. और बगल में दुकान. वहीं, कुछ आम वाले आम बेच रहे थे. मुझे ये खोखे के बगल में एक छोटू हैंडपंप भी दिखा. ये रहा होगा कम से कम 25 साल पुराना. काई जमी हुई थी. लेकिन क्यूटनेस आज भी ऐसी है कईयों को मुंह चिढ़ा दे.
विकास भाई, वहीं एक बेंच पर जाकर बैठ गए थे. श्रीमती जी से परांठे लेकर जब विकास भईया को देने गया, तब इस हैंडपंप पर जाकर एक घूंट पानी भी पी आया. कसम से दोस्तों, शीतलता ऐसी की फ्रीज फेल. शुद्धता भी कमाल ही होगी. वैसे हमारी जीभ शुद्धता के मामले में सिर्फ खारेपन से खीज खाती है तो मैं भी खारेपन से दूर रहता हूं लेकिन ये पानी कमाल का था. गाड़ी में पूड़ी सब्जी और आचार खाकर यहां दोबारा आया और दनदनाकर पानी पी लिया. आत्मा को जैसे तृप्ति मिल गई हो.
हरिद्वार का टोल टैक्स
Rishikesh Tour Blog के लिए अब यहां से अब निकल चले. विकास भाई ने हमारा अभी तक का टोल तो बचा दिया था लेकिन अभ हरिद्वार में एंट्री करने के बाद एक टोल आने वाला था, हमारे स्वागत के लिए. मैंने गिनकर चालीस रुपये हाथ में निकाल लिए थे. चमचमाती सड़क पर जैसे ही टोल आया, वहां तो अलग ही कहानी चल रही थी. भारतीय किसान यूनियन के बुजुर्ग कार्यकर्ता वहां खड़े होकर गाड़ियों को हाथ दे देकर आगे बढ़ा रहे थे. उन्होंने इस टोल को फ्री किया हुआ था. यहां से हम आगे बढ़ चले थे. सुहाने मौसम की आस में, बारिश की आस में, झूमते बादलों की आस में…
हर की पैड़ी बदल चुकी है
हरिद्वार में हर की पैड़ी वाले रास्ते से जब हम गुजर रहे थे तो कमाल का नजारा था. मां गंगा का विहंगम नजारा और भोलेनाथ की प्रतिमा बगल में थी. हम रास्ते से गुजर रहे थे. मुझे ध्यान आया वो साल जब यहां से नीलकंठ तक की पदयात्रा की थी मैंने, अभिषेक और चंदन के साथ. पहली बार बच्चों को ये जगह दिखा रहा था. उनसे मैंने कहा कि वापसी में हम यहां आएंगे. मौसम की जिस खुशी की आस में मैं था उससे पहले मुझे झटपट हरिद्वार पहुंच जाने की खुशी हो रही थी. क्या कमाल का रास्ता बना दिया है सरकार ने. वाकई, वोट इसीलिए तो करते हैं हम लोग. हां, ये सोच ही रहा था कि जैसे मानो नजर लग गई. भयानक जाम हमारा स्वागत करने के लिए जैसे छटपटा रहा था.
गाड़ी ट्रैफिक में रुक गई. इतने में बगल वाली कार से एक आदमी निकला और आगे वाली कैब के ड्राइवर को लगा धमकाने. शायद उसने उसकी गाड़ी को चोट पहुंचा दी थी. इतनी धूप और गुस्सा उस शख्स का मानों सातवें आसमान पर. ये बुरे नजारे भी मानों देखने ही थे हमें. गाड़ी आगे बढ़ चली थी.
ऋषिकेश में आरटीपीसीआर की चेकिंग
विकास भाई को मैंने बता दिया था कि मेरी आरटीपीसीआर की रिपोर्ट आ चुकी है लेकिन वाइफ़ की अभी नहीं आई है. उनके कहने पर ही, गाड़ी में बैठने के बाद मैंने http://smartcitydehradun.uk.gov.in/pravasi-registration पर खुद को रजिस्टर कर ई-पास भी बनवाया था. लेकिन अब रिपोर्ट को लेकर थोड़ी सी परेशानी थी. हालांकि हमें ये पता था कि रिपोर्ट न होने पर ऑन द स्पॉट भी टेस्ट होते हैं लेकिन वक्त खराब न हो जाए इसलिए विकास भाई ने गाड़ी को ऋषिकेश में बैराज वाले रास्ते से गंगा की दूसरी तरफ ले लिया. ये रास्ता जंगलों से होकर सीधा तपोवन होते हुए मोहन चट्टी जाता है. इस रास्ते में एक जगह आरटीपीसीआर रिपोर्ट की चेकिंग हुई. मैंने अपनी रिपोर्ट दिखा दी और हमें आगे जाने दिया गया. इसके बाद, नीलकंठ जाने के लिए गंगा नदी पर बने पुल के तिराहे पर चेकिंग मिली. हालांकि यहां हमसे नहीं पूछा गया.
Rishikesh Tour Blog में यहां लगा कि हमने जंग जीत ली हो. ये वाली फीलिंग भी कमाल की होती है दोस्तों. अब यहां से हम बढ़ चले आगे. बच्चों को ये बताते बताते कि इसी रास्ते पर जानवर आ जाते हैं, रात को.
जब पहुंचे मोहनचट्टी के कैंप पर
हमें मोहनचट्टी पर बने अपने कैंप जाना था. मोहनचट्टी नाम ऐसा है कि इसने पहले से ही कैंप को लेकर तस्वीर क्रिएट कर दी थी. सुंदर सी. हां, कैंप के लिए हम मुश्किल रास्तों से ही पहुंचे. मैंने ओनर से पूछा था कि हम कैसे पहुंच सकते हैं तो उन्होंने मुझे कहा था कि नीचे आकर नदी पार करनी होगी और नदी पार करके हम गाड़ी से ही वहां तक आ सकते हैं. इतनी उलझन सी हुई कि हम नीलकंठ वाले रास्ते पर ही आगे बढ़ गए थे. इंटरनेट कनेक्शन भी शून्य था. जब दोबारा फोन किया तो उन्होंने फिर से हमें गाइड किया.
हम जिस सुनहरे रास्ते पर थे वहां से नीचे की तरफ एक डगमग कराता रास्ता जाता है, सभी कैंप यहीं पर लाइन से बने हैं. जिस कैंप पर हमें जाना था वो एकदम आगे था. उसके लिए एक छोटी सी बरसाती नदी को पार करना होता है. हम सात किलोमीटर गाड़ी को पीछे लाए और फिर इस डगमग करते रास्ते पर आगे बढ़े. जब हम बरसाती नदी के किनारे पहुंचे दो दूसरी तरफ एक गाड़ी अटकी दिखाई दी. इस गाड़ी का बंपर किसी पत्थर के लगने से बिगड़ गया था.
हमने उन्हें मदद का ऑफर दिया और फिर संभलकर इस नदी को पार करने लगे. लाइफ में पहली बार मैं ऐसे किसी नदी को पार कर रहा था. गाड़ी झट से दूसरी तरफ पहुंच गई. अब देखते ही देखते कैंप भी आ गया.
ऋषिकेश में क्यों कराई कैंप में बुकिंग
दरअसल, Rishikesh Tour Blog के लिए हमारा पूरा ट्रिप एक गांव में बने रिसॉर्ट में होना था. अब चूंकि ये रिसॉर्ट पूरी तरह फुल हो गया था इसलिए मुझे कैंप में बुकिंग करानी पड़ी. वैसे मैं आपको किसी ऐसे कैंप में ठहरने का सुझाव कतई नहीं देना चाहूंगा वो भी तब जब फैमिली आपके साथ हो. हालांकि, कोई अच्छा कैंप मिले तो आप ज़रूर रुकें. लेकिन इसमें ठहरना मुझे पसंद नहीं आया. हम यहां सिर्फ एक रात के लिए रुके थे और अगले दिन अपने रिसॉर्ट के लिए निकल गए थे.
कैंप में कैसा माहौल था, कैसा था खान-पान
किसी कैंप में ठहरने का ये मेरा पहला अनुभव था. हम जब यहां पहुंचे तो ऐसा लगा कि काम चल जाएगा. कैंप में चार फोल्डिंग थी, लकड़ी की प्लाई वाली. और बस मुश्किल से खड़े होने की जगह. एक पर हमने अपने लगेज रख दिए. फिर तपाक से फ्रेश हुए. इतने में महसूस हुआ कि कूलर में मोटर नहीं चल रही थी और इस वजह से पानी वाली ठंडक नहीं मिल पा रही थी. किचेन के पास खड़े एक शख्स को आवाज़ लगाई. वो भागा भागा आया और तार को सही किया, फिर मोटर चल दी. कुछ ही देर में लंच का टाइम हो गया.
ओनर से मैंने रिक्वेस्ट की थी कि ड्राइवर के खाने का बंदोबस्त कर दे. वह इस बात के लिए राजी हो गए थे. लंच के लिए भूख तो बढ़ी हुई थी लेकिन दोस्तों खाना ऐसा था कि बस काम चलाऊ. ऐसा साधारण खाना मैंने शायद ही कभी किसी साधारण से ढाबे पर खाया हो. लेकिन जब मैंने कैंप के रेट पर गौर किया और सोचा कि मार्जिन और कमाई के लिए कैसे ये सब मैनेज करते होंगे तब समझ आया. भोजन के बाद मैंने सोचा क्यों न नदी तक चला जाए, बच्चे खुश हो जाएंगे लेकिन प्रीति ने सुझाव दिया कि बच्चे धूप को सह नहीं पाएंगे, अभी सो जाते हैं, शाम को चलेंगे.
ऋषिकेश के कैंप में कैसी रही शाम
ऋषिकेश ( Rishikesh Tour Blog ) में मोहनचट्टी में बने इस कैंप में हम शाम को 5 बजे सोकर उठ गए थे. स्नैक्स टाइम 7 का था इसलिए चल दिए नदी में नहाने के लिए. नदी तक का सफर तकरीबन 200 मीटर का था. जब बच्चे वहां पहुंचे तो पानी देखते ही छपाक से कूद पड़े. ये पानी अपेक्षाकृत काफी गर्म था. ये पहली बार था जब मैं किसी प्राकृतिक नदी के इतने गर्म पानी में था. हां, बच्चों ने खूब मस्ती की और हमारी श्रीमती जी ने भी. पानी में थोड़ी थोड़ी काई थी इसलिए कपड़े पर उसके निशान अभी तक हैं.
नहाकर हम गीले ही कैंप में आए. कपड़े चेंज किए और स्नैक्स के लिए आ गए कैफेटेरिया में. स्नैक्स में उबले चने और पास्ता था. साथ में थी चाय. हमारी चिंता यही थी कि बच्चे खा लें. बच्चों ने पास्ता खाया. क्योंकि दोपहर को भी तीखेपन की वजह से उन्होंने कुछ नहीं खाया था. अगर अभी भी नहीं खाते तो हमारी परेशानी बढ़ जाती. साथ में रखे बिस्किट से ही हमारा काम चल रहा था. स्नैक्स के बाद हमने टेंट के सामने रखी कुर्सियों पर बैठकर शाम को निहारना शुरू किया. बच्चे दूसरे बच्चों के साथ उधम मचा रहे थे और कभी कभी अडवेंचर एक्टिविटी कर ले रहे थे.
शाम थोड़ी और ढल गई थी. 8 बजे से कुछ ज्यादा. उस कैंप साइट में 15 टेंट थे और तकरीबन 12 टेंट के सामने सभी ने शाम की पार्टी की तैयारी कर ली थी. हमारी तरह एक ही कपल था जो बैठा तो था लेकिन वहां बोतलें नहीं छलक रही थीं. वह दोनों मिरिंडा पी रहे थे. देखा देखी मैं भी गया थम्सअप ले आया. ये एमआरपी से 20 रुपये महंगी मिली. हमने भी थम्सअप खोल ली और नमकीन के साथ पीने लगे उसे.
शाम को ये आनंद था जो आपको लेना ज़रूर चाहिए. खुद को रिबूट करने के लिए. घर में कितना भी रह लो, काम खत्म नहीं होता. लेकिन बाहर आप काम को खुद से और खुद को काम से दूर रख पाते हैं. परिवार भी इंजॉय करता है सो अलग. देर तक वहीं बैठकर बतियाते रहे और फिर आ गए कमरे में.
मोहनचट्टी के कैंप में डिनर
मुझे उम्मीद थी कि डिनर थोड़ा बेहतर होगा और मीठे में कुछ मिलेगा लेकिन वही ढाक के तीन पात. मीठे में मिला भी क्या हमेशा की तरह कटोरी में रखी चीनी. हा हा हा. यहां मैंने खाना खाया नहीं बल्कि उसे निगला. सच में. मन में तो ये ख्याल आ गया कि जल्दी सुबह हो और भागूं यहां से. प्रीति से नहीं कही ये बात मैंने. खाना खाकर हम रूम में आए और सोने की तैयारी में लग गए. नदी के कपड़े अभी गीले ही थी तो उन्हें धोकर बाहर पौधों पर डाल दिए.
कैसी थी ऋषिकेश की वह सुबह
ऋषिकेश ( Rishikesh Tour Blog ) की अगली सुबह हम श्रीमान-श्रीमती जी सुबह सुबह नदी के किनारे चल दिए. मैंने थोड़ा फर्जी का मेडिटेशन किया फिर दोनों ने तस्वीरें खिंचवाई. प्रीति को चिंता ये थी कि कहीं बच्चे उठ न जाएं. वो उठकर सबसे पहले मां को ढूंढते हैं, नहीं मिलती तो रोने लगते हैं. प्रीति लगातार टेंट की तरफ देखे जा रही थी. उनके जोर देने पर मैं भी टेंट आ गया. और देखिए, आते ही बेटा उठा और रोने लगा. हमने बच्चों को तैयार किया और नाश्ते का इंतजार करने लगे.
इस बीच हमने पैकिंग कर ली. सारा सामान बांध लिया. ब्रेकफास्ट में पोहे थे और पूरी-सब्जी. ये थोड़ा सही मामला था. अपने टाइप का भी था और स्वाद भी सही था. मैंने जी भरकर नाश्ता किया. बच्चों के लिए थोड़े से पोहे रख भी लिए. और फिर चल दिए अपने बुक कराए रिसॉर्ट की तरफ. हां, पहले हमने नीलकंठ जाने का प्लान बना लिया था तो गाड़ी पहले नीलकंठ की तरफ चल दी.
( Rishikesh Tour Blog )
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