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Nashik Brahmagiri Tour : ‘जय श्री राम’ सुनकर 10 फीट दूर चला गया खतरनाक बंदरों का झुंड!

Nashik Brahmagiri Tour : भाग में आप कई अनुभवों को जान चुके होंगे. अब लेख के अगले हिस्से में मैं आपको पहाड़ी पर अपने जाने, मंदिरों में पूजा से लेकर बंदरों के डर से जुड़े घटनाक्रम को साझा कर रहा हूं. नासिक के ब्रह्मगिरी पर्वत श्रृंखला के सफर पर हमारा सामना जंगली बंदरों से हुआ. ये बंदर हमें देखते ही सामानों पर टूट गए लेकिन जैसे ही हमारे मुख से जय श्री राम निकला, बंदर 10 फीट दूर चले गए…

यहां से अंदर जाकर हम एक खुले वातावरण में आ चुके थे. ये थोड़ा मैदानी हिस्सा था, जहां से नीचे शहर दिखाई दे रहा था. रास्ते के अगल बगल कुछ दुकानें थीं जहां से हमने पानी खरीदकर पिया. पास में एक कुआं था जिसे बड़ी चारदीवारी बनाकर घेर दिया गया था. ये पूरा हिस्सा थोड़ा उबड़ खाबड़ था लेकिन था बेहद सुंदर. यहां थोड़ा ठहरने का मन हुआ लेकिन तभी नीचे उतर रहे लोगों ने हमसे कहा- ‘थोड़ा जल्दी पहुंच जाइए, यहां 4 बजे के बाद खतरा है.’ ये सुनते ही हमने अपने कदम बढ़ा लिए. यहां से आगे चढ़ने के लिए कोई सीढ़ी नहीं थी. पत्थरों पर ही रास्ते बन गए थे, जिनसे आगे का सफर पूरा किया जा रहा था.

साढ़े 4 घंटे बाद शिखर पर पहुंचे

इस मैदानी हिस्से से ऊपर पहाड़ की चोटी थी, जिसे ब्रह्मगिरी पर्वत श्रृंखला का पीक पॉइंट भी कहते हैं. 12 बजे चढ़ाई शुरू करने के बाद हमने लगभग 4 घंटे बिता दिए थे लेकिन अभी भी हम मंजिल से दूर थे. इस चढ़ाई में जो रास्ता था वो चट्टानों पर बना था और सीढ़ियां वहां थी नहीं इसलिए सावधानी की अधिक जरूरत थी. हम सभी एक के पीछे एक हो गए और रास्ते को जांचकर एक एक पांव ध्यान से आगे बढ़ाने लगे. क्योंकि अब मंजिल बहुत दूर नहीं थी इसलिए हम सभी उत्साहित थे. इसी उत्साह ने अगले 10 मिनट में हमें पर्वत श्रृंखला की चोटा पर पहुंचा दिया था.

यहां आकर तो मानों मैं खुद को अलग ही दुनिया में महसूस कर रहा था. मैंने तेज चल रही हवाओं को खुद में समेटने की या उनमें सिमट जाने की खुली छूट दे रखी थी. मैंने अपने दोनों हाथ फैला दिए और तेज हवाओं का मजा लेने लगा. मैंने ढेर सारे वीडियोज बनाए और तस्वीरें क्लिक कीं. यहां एक रास्ता तो ऐसा था जिसे अक्सर हम किताबों या तस्वीरों में स्वर्ग की सीढ़ी जैसे रास्ते के रूप में देखते आए हैं. हम सभी इसमें व्यस्त हो गए थे. तभी अचानक प्रीति की आवाज आई, उसने चिल्लाकर कहा ‘पीहू’… हम सभी ने देखा पीहू खाई की तरफ भागी जा रही थी. ऐसा वो भी खेल खेल में कर रही थी लेकिन अकेले. प्रीति ने एक झटके में दौड़कर उसे पकड़ा. अगर 3 सेकेंड की भी देर होती तो कुछ भी खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती थी. आप भी अगर इस सफर पर जाएं तो ध्यान रखें, छोटे बच्चें या तो न ही लेकर जाएं और लेकर जाएं भी तो उन्हें गोदी में उठाने का साहस लेकर जाएं और लगातार उनपर ध्यान रखें.

मंदिर का सफर भी यादगार

हम तस्वीर खिंचवाकर मस्ती कर ही रहे थे कि महेश भैया ने कहा कि अभी मंदिर तो दूर है. ये सुनकर मैंने पूछा कि अभी सफर बाकी है क्या? उन्होंने कहा कि हां, अभी तो उद्गम स्थल गए नहीं और न ही शिव की जटा वाले मंदिर में… ये दोनों मंदिर इस पहा़ड़ी के शीर्ष स्थल (जहां हम खड़े थे) से दूसरे तरफ थे. हम उन्हें देख पा रहे थे. हम जहां खड़े थे ये दोनों मंदिर उस जगह से लगभग 80 फीट नीचे अलग अलग कोनों पर स्थित दिखाई दिए. इन दोनों के बीच का रास्ता खाई के मुहाना था जिसे सुसाइड पॉइंट भी कहते हैं, आप इस दृश्य की जिस भी तरह से कल्पना कर सकते हैं, आप सही ही होंगे.

अब हमने दूसरी तरफ उतरना शुरू किया. मैं ग्रुप में सबसे आगे था. ये चट्टानों पर बना रास्ता था, जिसपर धीरे धीरे कदम रखकर हम उतर रहे थे. ध्यान रखें, पहाड़ी सफर पर उतरना चढ़ने से ज्यादा खतरनाक होता है. वो भी तब जब आप बारिश और पानी के अलग अलग स्रोतों, झरनों के बीच से गुजर रहे हों. जिस रास्ते से हम नीचे की तरफ बढ़ रहे थे, वहां एक जगह से पहाड़ से आया पानी बहकर नीचे जा रहा था. यहां मेंरा संतुलन बिगड़ा और मैं फिसल गया. यहां भी किस्मत की बात ये रही कि कोना होने की वजह से एक टर्न पर मैं अपने आप रुक गया. मेरी गोद में मेरी बेटी पीहू थी, जो अब थो़ड़ा डर गई थी. कुछ पल मैं उसे यूं ही देखता रहा और वो मुझे… फिर उसने मेरा हाल पूछने जैसी आवाज में कहा- पापा? मैंने कुछ न कहते हुए उसके माथे को चूम लिया.

इतने में मेरे बाकी साथी पास आ चुके थे. पानी बह रहा था, मेरे कपड़े गंदे हो चुके थे लेकिन मेरा मन वहां से उठने का नहीं था. इसी बीच मुझे सहारा देकर किसी ने ऊपर की तरफ खींच लिया. मेरी बाईं कोहनी में चोट आई थी. अब मैं एक एक कदम धीरे धीरे आगे बढ़ाने लगा. अगले 15 मिनट में हम नीचे मंदिर पहुंच चुके थे. मंदिर में पंडित ताला लगाकर वापस जा ही रहे थे लेकिन हमें देखकर रुक गए. यहां प्रसाद लेकर हम परिसर के अंदर पहुंचे. यहां पर भी कई बंदर आ पहुंचे. छोटे छोटे तो कई सारे… मैं और प्रीति पंडित के इशारे पर गर्भगृह में चले गए. यहां हमने विधिवत पूजा की. इसके बाद दीदी-जीजाजी आए और फिर महेश भैया का परिवार. हम गर्भगृह से बाहर खड़े हुए. यहां अंदर एक आंगन था जो तालाब की शक्ल में था. गोदावरी का पानी एख मुखनुमा आकृति से बहकर आ रहा था. हम में से कोई वहां से पवित्र जल खाली बोतलों में भर चुका था. मैं सुंदरता को देख ही रहा था कि एक बड़ा बंदर फिर से प्रीति से उलझने की कोशिश करने लगा. अचानक मेरी भांजी आयुषि के हाथ की थाली पर बंदर ने जोर से हमला किया और प्रसाद लेकर भाग गया.

जय श्री राम सुनकर 10 फीट दूर चले गए बंदर

आयुषि सहम गई थी. उधर प्रीति अभी भी बंदरों के बीच थी. इतने में मेरे जीजाजी आए और उन्होंने प्रीति से समान अपने पास ले लिया और हम सभी बाहर आ गए. बंदरों को झुंड अभी भी हमारे पीछे पीछे थे. बाहर आकर जीजाजी ने नारियल फोड़ा उसका पानी पिया और फिर बंदर को उसके दोनों हिस्से दे दिया. इसके बाद भी एक बंदर उनके सामान लेने के लिए उनसे उलझता रहा. जीजाजी ने दोनों हाथ जोड़कर जय श्री राम कहा. यह सुनकर बंदर वहां से अपने आप चला गया. पता नहीं ये क्या था, लेकिन मेरी जिंदगी में देखा गया अब तक का पहला वाकया जब कोई बंदर जय श्री राम सुनकर आपसे दूर चला गया.

हम मंदिर से निकलकर दूसरे कोने पर स्थित भगवान शिव की जटा वाले मंदिर की तरफ बढ़ने लगे. मंदिर तो सामने दिख रहा था लेकिन दूरी लगभग एक किलोमीटर थी और चट्टानों का रास्ता भी अब हिम्मत तोड़ने लगा था. हम जहां चल रहे थे उसके बराबर में रेलिंग्स थी और नीचे सीधी खड़ी खाई. हम संभल संभलकर आगे बढ़ रहे थे. रास्ते में हमें कई जगह केंकड़े, मछलियां भी दिखाईं दी. बच्चे उन्हें देखकर खुश हो गए. तभी एक एक कर फिर कई बंदर हमारे पीछे आ गए. चूंकि अब सारा सामान जीजाजी के पास था इसलिए बंदर उन्हीं के पास जा रहे थे. जीजाजी जय श्री राम कहते और बंदर दूर चले जाते. ऐसा 4 बार हुआ.

वक्त 4.30 से ज्यादा हो चुका था इसलिए भगवान शिव की जटा वाला मंदिर बंद हो चुका था. हमने बाहर से दर्शन किए और फिर ऊंचाई वाली चोटी की तरफ बढ़े. जहां  से हमें नीचे वापस आना था. शाम गहरा रही थी. 4 बजकर 45 मिनट पर ही यहां ऐसा माहौल था जैसे साढ़े 7 बज रहे हों. बादलों ने हमें घेरा हुआ था. हम 25 फीट से दूर खड़े शख्स दो देख नहीं पा रहे थे और ठंड भी बहुत तेज थी. इन्हीं सब बातों को देखकर हमने वहां और नहीं रहने का फैसला किया और नीचे आने लगे. हमें अचरज तब हुआ जब हमने कई लड़कों के ग्रुप्स को अभी भी वहां मौज मस्ती करते देखा. कुछ लोग तो अभी भी ऊपर आ रहे थे. मैं उन्हें बताते आ रहा था कि जा रहे हैं तो जाइए लेकिन दोनों मंदिर 4 बजे बंद हो जाते हैं और जल्दी उतरने की कोशिश भी करिएगा.

मैं उतरता जा रहा था और उन सभी भावों और अनुभवों की गांठ भी बांधे जा रहा था जो इस सफर में मेरे साथ गुजरे थे. मैं एक एक पग पर कुछ नया महसूस करके यहां से लौट रहा था. हर बात के लिए कागज और लेखनी सही नहीं रहती है. कई बातें सीने में सहेजकर रखी जाती हैं. मेरे लिए ये जिंदगी का पहला रोमांचक अनुभव था. मैं उत्तराखंड के सुदूर इलाकों में गया हूं, ट्रैकिंग करता रहा हूं लेकिन पहली बार खतरा मुझे और मेरी फैमिली को छूकर गुजरा था. ये सफर मैं कभी नहीं भूल सकूंगा. आप भी अगर यहां या ऐसी किसी जगह जाएं तो अपना, परिवार को, साथियों का पूरा ख्याल रखें.

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