Must visit Pratap Gaurav Kendra National Shrine located in Udaipur
Pratap Gaurav Center- महाराणा प्रताप का नाम आते ही उनसे जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का भी जिक्र होता है. इनमें सबसे पहले प्रताप की रणभूमि हल्दीघाटी, चावण्ड, गोगुन्दा व मायरा की गुफा आदि प्रमुख हैं, लेकिन राज्य सरकार के लिए संघ की ओर से बनाया गया प्रताप गौरव केन्द्र अहम है.
प्रताप गौरव केंद्र नेशनल तीर्थ उदयपुर शहर, राजस्थान राज्य, भारत में टाइगर हिल में एक पर्यटक स्थल है. वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति द्वारा शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य महाराणा प्रताप और क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत के बारे में आधुनिक तकनीक की मदद से जानकारी प्रदान करना है. यह केन्द्र विभिन्न प्रदर्शनियों के माध्यम से मेवाड़ के पूर्व साम्राज्य के प्रसिद्ध राजा महाराणा प्रताप के जीवन, वीरता और उपलब्धियों के बारे में जानकारी देता है.
इसमें मेवाड़ के ऐतिहासिक इतिहास को आकृतियों और प्रतिमाओं के जरिए संजोया गया है, लगभग 20 एकड़ में फैली इस जगह का चप्पा-चप्पा मेवाड़ के गौरवमयी इतिहास की गाथा कहता है. इसमें मेवाड़ और राजस्थान के शूरवीर महाराणा प्रताप से जुड़ी करीब 60 चित्र और कलाकृतियां मौज़ूद हैं.
अरावली के अत्यन्त सुरम्य पहाड़ों के बीच स्थित महाराणा प्रताप गौरव केंद्र में महाराणा प्रताप की 57 फीट ऊंची प्रतिमा यहां की सबसे ज्यादा शान बढ़ाती है. इसके साथ ही यहां भारत माता का मंदिर और अखण्ड भारत का नक्शा भी लगाया गया है.
दूसरी ओर, प्रताप से जुड़े प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों की सार-संभाल की ओर सरकार ने ध्यान नहीं दिया है. चावण्ड स्थित प्रताप का समाधि स्थल, मायरा की गुफा तक पर्यटक नहीं पहुंच पाते हैं. सरकार ने विद्यार्थियों में संस्कृति, संस्कार, पर्यटन, इतिहास संबंधी ज्ञानवद्र्धन, देशभक्ति, वीरता एवं कर्तव्य भावना विकसित करने को आधार बनाया है.
केन्द्र पर आने से विद्यार्थियों को महाराणा प्रताप से जुड़ी जानकारी जरूर उपलब्ध हो पाएगी, लेकिन ऐतिहासिक चीजें नहीं देखने को मिलेगी.
इसके बदले सरकार अगर मोती मगरी, हल्दीघाटी, चावण्ड, गोगुन्दा, मायरा की गुफा आदि ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन करवाए तो विद्यार्थी प्रताप की वीरता से जुड़े वास्तविक इतिहास से रूबरू हो सकेंगे.
केंद्र में दर्शकों को महाराणा प्रताप व उनके जीवन से जुड़ी 25 घटनाओं के बारे में जीवंत जानकारी मिलेगी. मैकेनाइज्ड मॉडल्स ऐतिहासिक घटनाओं का जीवंत अहसास कराएंगे. इनमें पन्नाधाय का बलिदान, हाड़ी रानी का त्याग, मीरा बाई की भक्ति, रानी पद्मिनी का जौहर आदि घटनाएं मॉडल्स के रूप में प्रदर्शित होंगी.
महाराणा प्रताप की 57 फीट ऊंची प्रतिमा, 300 विशिष्ट चित्रों की प्रदर्शनी, राष्ट्रीय गौरव दीर्घा, मेवाड़ की प्रमुख जीवंत झांकियां, मेवाड़ शोध केंद्र, लाइट एंड शो कार्यक्रम, प्रताप गौरव केंद्र का भव्य मॉडल, मेवाड़ के भक्तिधाम, भारत माता का मंदिर और ध्यान कक्ष
और शस्त्रागार व हल्दीघाटी युद्ध का चित्रण देख सकेंगे.
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था. महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है. उनके पिता महाराणा उदयसिंह और माता जीवत कंवर या जयवंत कंवर थीं. वह राणा सांगा के पोते थे. महाराणा प्रताप को बचपन में सभी ‘कीका’ नाम लेकर पुकारा करते थे. राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है.
जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदयसिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है. महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे. उनके कुल देवता एकलिंग महादेव हैं. मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है. एकलिंग महादेव का मंदिर उदयपुर में स्थित है. मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी.
महाराणा प्रताप ने भगवान एकलिंगजी की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुख से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे. अकबर ने उन्हें समझाने के लिए चार बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था.महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था.
युद्ध की विभीषिका के बीच राणा उदयसिंह ने चित्तौड़ त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला और वहां उदयपुर के नाम से नया नगर बसाया जो उनकी राजधानी भी बनी. उदयसिंह ने अपनी मृत्यु के समय भटियानी रानी के प्रति आसक्ति के चलते अपने छोटे पुत्र जगमल को गद्दी सौंप दी थी. जबकि, प्रताप ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण स्वाभाविक उत्तराधिकारी थे. उदयसिंह के फैसले का उस समय सरदारों और जागीरदारों ने भी विरोध किया था.
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