Morena Tour Blog – करवटें बदलते बीती मुरैना स्टेशन पर रात, सुबह 7 बजे भी बंद मिला होटल
Morena Tour Blog – मुरैना, मध्य प्रदेश का वह इलाका जिसकी पहचान ही बीहड़ और बागियों से हैं. फिल्मों और टीवी सीरियलों ने भी इसे इसी तरह से चर्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सितंबर 2021 के शुरुआती हफ्ते में मैंने इसी मुरैना के सफर ( Morena Tour Blog ) का फैसला किया. मुरैना के इस सफर ( Morena Tour Blog ) में मेरी कोशिश थी कि मैं चौंसठ योगिनी मंदिर देखूं, साथ ही साथ, पांडवों की ननिहाल, हरसिद्धी माता का मंदिर, बटेश्वरा के मंदिर, करह आश्रम और पान सिंह तोमर का गांव भिड़ौसा भी घूमूं. आइए चलते हैं मुरैना के सफर पर…
हालांकि करह आश्रम तो मैं नहीं जा सका लेकिन बाकी जगहें घूमीं और जमकर घूमीं. मुरैना के ब्लॉग की सीरीज़ में आपको मैं इन सभी जगहों पर अपने सफर की जानकारी दूंगा लेकिन ब्लॉग के रूप में. मुरैना में कौन कौन सी जगहें घूमने के लिए इसके बारे में मैं आपके लिए एक अलग आर्टिकल लेकर आउंगा. हां, ब्लॉग के इस हिस्से में मैं आपको दिल्ली से मुरैना तक की यात्रा और मुश्किलों के बाद वहां मिली एक धर्मशाला का किस्सा बताउंगा. चलिए इस सफर की शुरुआत करते हैं.
Morena Tour Blog || मुरैना टूर ब्लॉग
मुरैना निकलने से पहले 10 सिंबर 2021, शुक्रवार सुबह मेरी उहापोह खत्म हो चुकी थी. मैंने मुरैना टूर ब्लॉग ( Morena Tour Blog ) की तैयारी की थी लेकिन उहापोह थी. ये उहापोह ट्रेन को लेकर थी. मैं इसी असमंजस में था कि शनिवार को शताब्दी लूं या रात की कोई गाड़ी. जब रात की गाड़ी देखी तो सिर्फ 10:50 की एक गाड़ी में थर्ड एसी में सीट खाली थी, वह भी एक. मौसम कोई गर्मी का था नहीं इसलिए मेरी कोशिश थी कि मैं स्लीपर क्लास में ही टिकट कराऊं लेकिन मौका मेरे साथ था नहीं.
थर्ड एसी जैसी किराए में ही सुबह शताब्दी थी लेकिन 6 बजे गाजियाबाद से दिल्ली पहुंचना किसी चुनौती से कम भी नहीं था. या तो मैं शनिवार सुबह 4:30 बजे घर छोड़ देता, और या तो मैं शुक्रवार देर रात स्टेशन पर जाकर बैठ जाता, ताकि सुबह की शताब्दी छूटे न. खैर, इन तभी सवालों की उलझन को सुलझाते हुए मैंने रात को 10 बजकर 50 मिनट वाली गाड़ी में एकमात्र बची थर्ड एसी वाली सीट बुक करा ली.
शुक्रवार को ऑफिस का काम तय वक्त पर निपटाकर घर पर डिनर किया और रात के 8 बजे मुरैना के लिए वहां से निकल गया. ये ट्रेन निज़ामुद्दीन से थी. वैसे तो सराय काले खां तक चलने वाली एक अंतरराज्यीय बस का विकल्प भी था मेरे पास लेकिन जब मेट्रो वहां तक तैयार है तो बस की झंझट में क्यों उलझना. मैं घर से निकलते ही सीधा राजबाग मेट्रो स्टेशन पहुंचा.
वहां से रेड लाइन वाली मेट्रो लेकर पहुंच गया वेलकम मेट्रो स्टेशन. यहां से सीधा निज़ामुद्दीन वाली मेट्रो. इस पिंक लाइन पर यह मेरा पहला सफर था. एक अंकल बगल वाली सीट पर थे. वेलकम स्टेशन पर उन्होंने मुझसे पूछा कि बेटा ये पिंक लाइन के लिए कहां से जाना होगा. मैंने उनसे कहा कि वैसे तो अंकल मैं भी पहली बार इस मेट्रो में बैठूंगा लेकिन आप फुटस्टेप्स को फॉलो कर सकते हैं.
वेलकम मेट्रो स्टेशन पर पिंक लाइन वाली मेट्रो का इंटरचेंज बेहद आसान है. यह कीर्ति नगर जैसा जटिल बिल्कुल नहीं. मैं कुछ ही मिनटों में पिंक लाइन मेट्रो के स्टेशन पर था. हां यह समझने में मुझे काफी वक्त लग गया कि मैं यहां से जिस मेट्रो में बैठा वह निज़ामुद्दीन ही जाएगी. बेहत घुमावदार रूट है इसका. यह मेट्रो बीच में एक स्टेशन रुकी, अब क्योंकि यह अगले ही स्टेशन तक थी इसलिए यहां उतरकर मैंने आगे तक जाने वाली दूसरी मेट्रो ली. इसी मेट्रो में एक जनाब और मिले.
इन भाई साब ने मुझसे पूछा कि क्या ये मेट्रो निज़ामुद्दीन जाएगी? मैंने उत्तर दिया कि हां जाएगी. उन्होंने फिर पूछा पक्का जाएगी? मैंने कहा कि हां जाएगी. उनका फिर सवाल हुआ कि वहां से ऑटो लेना पड़ेगा क्या? मैंने कहा कि नहीं पास ही है, वॉकिंग डिस्टेंस पर. उन्होंने फिर पूछा कि ई-रिक्शा भी नहीं. मैंने फिर कहा कि नहीं भईया. वह यहीं नहीं रुके, फिर पूछ बैठे, पक्का निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन जाएगी न? मैंने फिर उत्तर दिया… हां… वह 2-3 बार और मुझसे यही सवाल करते रहे.
मैंने उन्हें बताया कि देखिए, हम मयूर विहार स्टेशन पर हैं, तीन स्टेशन बाद निज़ामुद्दीन ही है. फिर जान पाया कि उन्होंने शाम वाली खुराक ली हुई थी. गजब हाल है! मैंने उनकी लाइफ के बारे में जानना चाहा, पता लगा कि सूरत में उनका कोई भाई रहता है, जिसके पास वह जा रहे थे. मैंने उनसे कहा कि मैं वहीं जा रहा हूं, आप मेरे साथ रहिए. अगले कुछ मिनटों की बातचीत के बाद निज़ामुद्दीन भी आ गया. जैसे ही गेट से एग्जिट की, इन भाई साब ने एक क्षण में मुझे ऐसे बाय कहा जैसे मानों निज़ामुद्दीन पहुंचने के लिए ही मुझसे बात कर रहे हों… हा हा हा…
Morena Tour Blog Rail Journey || मुरैना टूर ब्लॉग रेल जर्नी
हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर मैं कुछ ही मिनटों की वॉक के बाद पहुंच चुका था. मुरैना को लेकर मन में कई तरह के विचार भी आ रहे थे. हां, यहां एक नई बात ये हुई कि इस बार ओवरब्रिज पर चढ़ने से पहले टिकट तो चेक हुई ही लेकिन साथ में ये एक पूछताछ जैसी जगह भी थी जहां लगे हाथ मैंने अपनी ट्रेन का प्लेटफ़ॉर्म भी पता कर लिया. बताए गए प्लेटफ़ॉर्म पर मैं पहुंच चुका था. हालांकि ट्रेन का समय अभी भी एक घंटे से से ज़्यादा दूर था. बस क्या था, ज़रूरी कॉल निपटाने का इससे बेहतर वक्त कहां मिल सकता था. कॉल का सिलसिला शुरू हुआ और 40 मिनट तक चलता रहा. इतनी देर में गाड़ी भी प्लेटफ़ॉर्म पर लग चुकी थी.
बात पूरी करके, मैं अपनी बोगी में दाखिल हो गया. सीट पर बैठा ही था कि साइड लोअर सीट पर बैठे शख्स ने मुझसे बड़े हक से कहा, भाई साब कहां जाओगे…? मैंने उत्तर दिया- मुरैना. वह बोले- मुझे झांसी उतरना है, जगा दोगे? मैंने कहा कि भाई साब जहां तक मैं जानता हूं, पहले मेरा स्टेशन आएगा, फिर आपका. वह बोले- तो एक काम करो, मेरा अलार्म लगा दो. गजब का अधिकार था उनका भी. मैंने भी गरिमा रखते हुए अलार्म लगा दिया. फिर वह बोले एक और लगा दो… फिर मैंने दूसरा भी लगा दिया. अब इस छोटे से काम के लिए उनके ऐपल के फोन में मुझे खासी मेहनत करनी पड़ी.
बाद में, अपनी बर्थ से मैंने उन्हें कई और लोगों से भी उठाने का निवेदन करते देखा. ट्रेन चली तो मैंने अपना भी अलार्म लगा लिया. रात के 2:53 पर ये गाड़ी मुरैना पहुंचाती है. अब यही तो वक्त है सोने का. इसीलिए मैंने भी नीचे बैठे भाई साहब की देखा देखी दो-दो अलार्म लगा लिए थे.
Morena Tour Blog Station Night
तड़के तीन बजे मैं मुरैना स्टेशन पर खड़ा था. मैंने अपने पास कई सामान रखे थे. इसमें कैमरा, मोबाइल, ट्राइपॉड, मोनोपॉड, माइक आदि थे. मुझसे आगे वहां के एक स्थानीय शख्स भी थे. उतरते ही मैंने सबसे पहले उनसे होटेल के बारे में पता किया था. उन्होंने मुझे बाईं ओर इशारा करके बताया कि इस तरफ आपको होटेल मिल जाएंगे. अब दोस्तों, न जाने क्या हुआ कि मुझसे आगे बढ़ा ही नहीं गया और मैं वहीं एक कुर्सी पर लेट गया. पिट्ठू बैक को छाती से चिपकाए. सिर के नीचे लगेज बैग रखकर. मुरैना स्टेशन खुले वातावरण में है, हवा तो चल रही थी और पंखा भी लेकिन मच्छर हावी हुए तो शॉल निकाल ली. शॉल ओढ़ ली, कभी वह गिरती, कभी मैं डगमगाने लगता. यही सब करके करते सुबह के 6 बज गए.
Morena Tour Blog Hotel Experience
सुबह 6 बजे मुरैना स्टेशन से बाहर निकला, उसी ओर, जिस तरफ मुझे बताया गया था. मैं चलते चलते होटल वाली डगर पर पहुंच गया. सबसे पहले एक होटल आया. यहां नीचे दुकानें थी और ऊपर होटल. ऊपर जाने का कोई रास्ता दिखा ही नहीं. जस्ट डायल से लेकर कहां कहां से उसका नंबर निकाला, कॉल किया तो मिला ही नहीं. फिर इसके आगे बने एक और होटल गया. वहां का नंबर तुरंत ऑनलाइन मिल गया. ओनर का ही था. फोन किया तो वह बोले कि लड़के को बुला लीजिए घंटी बजा बजाकर.
दोस्तों, आधे घंटे बेल बजाता रहा, कोई आया ही नहीं. मुझे लगा कि अगर ऐसे ही बेल पर ही अटका रहा तो मेरा प्लान कहीं खराब न हो जाए. अब बताइए अगर मैं स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर यहां आधी रात को आ गया होता तो क्या होता. स्टेशन पर कम से कम सेफ्टी तो थी. तो आप भी इस बात को गांठ बांध लें. रात के वक्त अगर अनिश्चय की स्थिति हो तो स्टेशन ही सबसे उत्तम उपाय होता है. अब मुझे गुस्सा आ रहा था. एक ई-रिक्शा वाले को रोका और उनसे पूछा कि यहीं कहीं एक धर्मशाला भी है न.
धर्मशाला के बारे में मैं पहले ही पता कर चुका था लेकिन वह मेरा आखिरी विकल्प था. ई-रिक्शा वाले ने मुझे 10 रुपये में धर्मशाला के सामने खड़ा कर दिया. दरवाज़ा यहां भी बंद मिला. कुछ देर खटखटाने पर एक बुज़ुर्ग शख्स आए और उन्होंने दरवाज़ा खोला. वह बोले- आप रुकिए जो डायरी में हिसाब-किताब दर्ज करते हैं, चाय पीने गए हैं. कुछ देर इंतज़ार किया, वह भी आ गए.
जब कागज़ी कार्रवाई पूरी हुई तब बुज़ुर्ग शख्स मुझे कमरा दिखाने गए. जिस कमरे में गए वहां सीलन थी और वॉशरूम भी गंदा था. मैंने निवेदन किया फिर उन्होंने मुझे एक नया बना कमरा दिया. हालांकि इसमें भी दीवार पर पान की पीके थीं. गजब लोग हैं. दीवार पर थूकने की ज़रूरत होती है इन्हें. वॉशरूम है, वहां ही थूक लो. खैर, क्या करता, एक पीक मेरे इरादे को क्या डिगाती. मजबूरी कहिए या कुछ और. मैंने कमरा ले लिया. किराया भी साढ़े तीन सौ रुपये था.
कमरा लेकर सांस आई. अब लगा कि मेरा प्लान फिट रहा. राहत ये थी कि अब तक सब मेरे शेड्यूल में था. क्या पता अगर होटल की घंटी आधे घंटे तक न बजाता तो यहां थोड़ा पहले आ जाता लेकिन जो हुआ सो हुआ. आधे घंटे की नींद के बाद इस वैश्य धर्मशाला, मुरैना में स्नान करके मैं रेडी हो गया था. अब बारी थी मुरैना में मेरे पहले दिन के सफर की. अगले ब्लॉग में आप मेरे पहले दिन का सफर पढ़ेंगे जो कि यात्रा का दूसरा दिन रहेगा. अपना ध्यान रखिएगा.
पान सिंह तोमर का गांव || Paan Singh Tomar Village
आर्टिकल में एंबेड किया गया वीडियो पान सिंह तोमर के गांव भिडौसा का है. भिड़ौसा गांव मुरैना में ही स्थित है. इस वीडियो को हमने Morena यात्रा के दौरान शूट किया था.