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Mirza Nazaf Khan : महान सैन्य जनरल मिर्जा नज़फ खां ने कैसे बदल डाला भारत का इतिहास?

Mirza Nazaf Khan : दोस्तों, आप Delhi में Najafgarh गांव के बारे में सुनते पढ़ते होंगे, Najafgarh नाले का भी जिक्र देखते होंगे और Najaf Khan Road  से भी जरूर गुजरे होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये नजफ खां कौन हैं और क्या है इनका इतिहास? Najaf Khan  India के इतिहास में एक बेहतरीन जनरल रहे हैं, Najaf Khan ने  Marathas के साथ मिलकर Delhi की गद्दी पर फिर से Mughal Sultanate को स्थापित किया था.  दुश्मनों से लड़ने के लिए 6 हजार नागा बाबाओं का एक दस्ता तैयार किया था और इन्हीं ने Aligarh को उसका नाम भी दिया था. इनकी सेना में Begum Samru के पति Reinhart Sombre भी थे, वही Begum Samru जो Chandni Chowk में एक तवायफ थी. वो आगे चलकर मेरठ के सरधना की जागीरदार बनी. Begum Samru के बारे में हम आपको अपने पिछले वीडियो में बता चुके हैं. आइए आपको आज लेकर चलते हैं इतिहास के दौर में और बताते हैं भारतीय इतिहास के योद्धा Najaf Khan के बारे में…

Mirza Najaf Khan… एक Shia Muslims और Persian military strategist थे. उन्होंने बंगाल के नवाब के लिए भी काम किया और Mughal Emperor के लिए भी… 18th-century के आखिरी दौर में वो उत्तर भारत की राजनीति में बड़ी शख्सियत के रूप में उभरे… South-West Delhi में बसे Najafgarh इलाके में नजफ खान ने एक बड़ा किला बनवाया. इस किले का मकसद Delhi को British, Sikhs और  Rohillas के हमले से बचाना था. ये सभी तब Delhi में Mughal Empireके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहे थे. बदकिस्मती से, आज इस किले का कोई निशान नहीं है…

इससे भी बड़ी बात ये है कि Delhi के आम बाशिंदे आज Najaf Khan के अहमियत से वाकिफ नहीं हैं…ऐसा तब है जब शहर भर में कई जगह उनके नाम दिखाई देते हैं. राजस्थान के सीकर से बहकर आने वाली साहिबी नदी दिल्ली में ढांसा गांव से प्रवेश करती है, यहां आकर ये नदी नज़फगढ़ नाला बन जाती है.

इसके अलावा, नजफगढ़ में स्थित नजफगढ़ झील में भी किसी जमाने में Sahibi River का पानी पहुंचता था. मॉनसून के दौरान, झील फैल जाया करती थी, जिससे 300 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा का इलाका पानी में डूब जाता था. 1960 के दशक में, दिल्ली के बाढ़ नियंत्रण विभाग ने झील को यमुना नदी से जोड़ने वाला एक चैनल बनाया. इस प्रयास का उद्देश्य बाढ़ को रोकना था.

दिल्ली में नजफ खान का नाम एक और जगह दिखाई देता है. ये जगह दिल्ली के लोधी एस्टेट एरिया में है. नजफ खां रोड आपको सीधा इनके मकबरे तक लेकर जाती है…

मिर्जा नजफ खां को जानने के लिए हमें सबसे पहले जाना होगा प्लासी के युद्ध की ओर. जो वर्ष 1757 में हुई थी.

प्लासी के युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने बंगाल के नवाब Siraj-ud-Daula को गद्दी से हटा दिया था और अपने वफादार मीर जाफर को गद्दी पर बिठा दिया था. हालाँकि, मीर जाफ़र जल्द ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की लगातार हो रही मांगों से नाराज होने लगा और उसने अंग्रेजों के खिलाफ जाकर डचों के साथ गठबंधन करने की कोशिश की. लेकिन उसकी सारी योजना नाकाम हो गई. अंग्रेजों का उसपर से भरोसा टूटा, तो उन्होंने 1760 में उसके दामाद मीर कासिम को उसकी जगह गद्दी पर बिठाया. लेकिन उनकी उम्मीदें फिर गलत साबित हुईं.

Mir Qasim का भी अंग्रेजों के साथ टकराव हुआ. उसने लोकल कारोबारियों के लिए taxes हटा दिए थे. इस कदम की वजह से 1763 तक दोनों के बीच संघर्ष होता रहा.

मीर कासिम के वफादार जनरल में से एक थे मिर्जा नजफ खां. ये Persia के शानदार सफ़वीद घराने से ताल्लुक रखने वाली घुड़सवार सेना के कमांडर थे, वो उसी वक्त अपनी बहन इस्फहान के साथ भारत आए थे. पर्शिया यानी ईरान में सफ़वीदों को नादिर शाह के हाथों शिकस्त मिली थी और उनका पतन हो गया था. लेकिन 1735 ई. में दिल्ली के मुग़ल दरबार में पहुंचे Najaf Khan ने तेज़ी से फेमस हासिल की.

Najaf Khan, Mir Qasim के रैंकों में एक अहम शख्सियत थे. उन्होंने East India Company की गतिविधियों के बारे में खुफिया जानकारी जुटाई और 1763 ई. में मुर्शिदाबाद की लड़ाई के दौरान, Nawab Mir Jafar के वफ़ादार सैनिकों के साथ मिलकर ब्रिटिश कैंप पर घात लगाने के लिए दलदली इलाकों से अपने सैनिकों को ले जाने के लिए स्थानीय गाइडों का इस्तेमाल किया. इससे कंपनी को काफ़ी नुकसान हुआ.

अपनी वीरता और करिश्माई नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध, नजफ़ खान ने अपने सैनिकों से अटूट वफ़ादारी हासिल की. उन्होंने strategic alliances की पैरवी की और मीर कासिम को अवध के नवाब शुजा-उद-दौला के साथ मिलकर East India Company के खिलाफ़ एक Mughal alliance बनाने का आग्रह किया,

हालांकि, Najaf Khan के प्रयासों के बावजूद, गठबंधन लड़खड़ा गया, और 1764 ई. में बक्सर की निर्णायक लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा. East India कंपनी को भी नुकसान उठाना पड़ा.

East India Company  ने शुजा-उद-दौला को अवध के नवाब के पद से नहीं हटाया, लेकिन उसके राज्य की सीमा घटा दी थी.  उससे पर्याप्त युद्ध क्षतिपूर्ति भी ली. आखिरकार, अवध में सत्ता अंग्रेजों के पास चली गई. इन बदलावों के बावजूद, नजफ़ खान का करियर फलता-फूलता रहा. अपनी कूटनीतिक सूझ-बूझ का फायदा उठाते हुए, उसने अपनी बहन की शादी शुजा-उद-दौला से तय कर डाली और अवध के डिप्टी वज़ीर के पद पर आसीन हो गए.

इस बीच, Buxar  की लड़ाई में अपनी हार के बाद, Mughal Emperor Shah आलम द्वितीय का शासन Allahabad के आसपास ही आ सिमटा था. Delhi और Red Fort के भीतर मुगल सिंहासन लौटने की लालसा उसके मन में तैरने लगी थी. ये जगह तब रोहिल्ला सरदार ज़बीता खान के कब्जे में थी. रोहिल्ला मूल रूप से दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों में बसने वाले अफगान थे. उन्होंने कमजोर हो चुकी Mughal authority का फायदा उठाया और दिल्ली के चारों ओर अपना नियंत्रण बढ़ाने लगे.

इस अवधि के दौरान, मराठों ने 1761 ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अपनी हार के बाद उत्तरी भारत के इलाकों को फिर से हासिल करने की कोशिशें शुरू कर दी थीं. अंतर्विरोधों के बावजूद, Maratha Commander Mahadji Scindia और तुकोजी होलकर एक गठबंधन बनाने पर एकमत हो गए थे. उनका मकसद था कि शाह आलम द्वितीय को दिल्ली की गद्दी पर नाममात्र के बादशाह के तौर पर स्थापित किया जाए. शाह आलम द्वितीय की दिल्ली वापसी के लिए उन्हें एक कुशल सैन्य लीडर की जरूरत थी और उनकी तलाश आकर खत्म हुई  मिर्ज़ा नजफ़ खान पर.

Mughal Emperor ने अपने इस नए सेनापति के साथ Allahabad से Delhi तक की अपनी यात्रा की योजना तैयार की. उनका पहला काम डीग के जाट राजा को हराना था, उसके बाद रोहिल्ला नेता Zabita Khan का सामना करना था. Delhi और Agra के बीच की भूमि पर जाट राजा का प्रभुत्व एक महत्वपूर्ण बाधा बन गया, जिसे रोहिलखंड में आगे बढ़ने से पहले उन्हें फिर से जीतना पड़ा. 17 जनवरी 1772 ई. को शाह आलम द्वितीय ने नजफ़ खान और महादजी सिंधिया के साथ मिलकर इस अभियान  की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने ज़बीता खान के कब्जे वाले पत्थरगढ़ किले पर धावा बोला. पत्थरगढ़ को ही आज बिजनौर जिले के नजीबाबाद के रूप में जाना जाता है.

युद्ध के दौरान, एक महत्वपूर्ण पल तब आया जब Najaf Khan ने अपनी ऊंटों की सेना को चतुराई से चंडीघाट पर The River Ganges के बीच में एक द्वीप पर पहुँचाया, जिससे ज़बीता खान को पीछे हटना पड़ा और पत्थरगढ़ में शरण लेनी पड़ी. नजफ़ खान ने इस किले की घेराबंदी को प्रभावी ढंग से तोड़ दिया, इसकी पानी की आपूर्ति को काट दिया, जिससे आखिरकार Shah Alam द्वितीय के लिए Red Fort में सिंहासन पर दोबारा बैठने का रास्ता साफ हो गया. नजफ़ खान की कुशलता से खुश होकर बादशाह ने उन्हें हांसी और हिसार में जागीरें दीं.

Najaf Khan की महत्वाकांक्षाएं यहीं समाप्त नहीं हुईं. इन सम्पदाओं से आए राजस्व का इस्तेमाल करते हुए, उसने अपने सैनिकों को ट्रेनिंग दिलाई और बेसहारा हो चुके रोहिल्लाओं और भाड़े के यूरोपीय सैनिकों को अपनी सेना में जोड़ा. इन भाड़े के सैनिकों में वाल्टर रेनहार्ड्ट सोंभ्रे भी थे जिन्हें भारतीय समरू कहकर बुलाने लगे थे. नजफ़ खान ने लगभग 6,000 नागा संन्यासियों को शॉक ट्रूप्स के रूप में भर्ती किया था.

अपनी पिछली जीत के बाद, नजफ़ खान ने मुगल साम्राज्य के क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक अभियान शुरू किया. 27 अगस्त, 1773 ई. को, उन्होंने डीग के जाट राजा, नवल सिंह की सबसे उत्तरी चौकी, मैदानगढ़ी पर कब्ज़ा कर लिया – एक विशाल मिट्टी का किला, जो वर्तमान में दिल्ली में शामिल है, इग्नू के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है. यद्यपि जाटों के साथ बाद में हुए संघर्ष में Najaf Khan घायल हो गया, फिर भी वह विजयी हुआ.

इसके बाद, नजफ़ खान ने रामगढ़ के दुर्जेय किले पर विजय प्राप्त की, जिसका नाम बदलकर ‘Aligarh’ रखा गया, जो अब दिल्ली से लगभग 130 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में Aligarh शहर में स्थित है. इसके बाद उन्होंने आगरा के प्राचीन Mughal Fort की घेराबंदी की और उस पर कब्ज़ा कर लिया. चार साल से भी कम समय में, नजफ़ खान ने मुगल साम्राज्य के भीतर लगभग सभी महत्वपूर्ण गढ़ों को पुनः प्राप्त कर लिया, और Delhi के आसपास के कई क्षेत्रों पर नियंत्रण फिर से स्थापित कर लिया.

अपनी उल्लेखनीय उपलब्धियों के बावजूद, Mirza Najaf Khanने जटिल दरबारी साज़िशों को संभाला, विशेष रूप से अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी अब्दुल अहमद खान के साथ टकराव, जो शाह आलम द्वितीय के कश्मीरी सुन्नी मंत्री थे, जो Shia Muslim Najaf Khan के प्रति नाराज़गी रखते थे.

1775 ई. में जाटों ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय और उनके सेनापति नजफ खान के खिलाफ विद्रोह कर दिया. नवंबर 1779 ई. में अपने प्रतिद्वंद्वी अब्दुल अहमद खान के downfall के बाद, मिर्ज़ा नजफ खान 42 वर्ष की आयु में Regent, or Vakil-i-Mutqal के पद पर आसीन हुए. हालांकि, अपने नए अधिकार के बावजूद, नजफ खान का स्वास्थ्य खराब हो गया, बुखार और बीमारी के लंबे दौरों से पीड़ित रहे.

अगस्त 1781 ई. में tuberculosis से पीड़ित होने के कारण, नजफ खान बिस्तर पर पड़ गए, अंततः 6 अप्रैल, 1782 ई. को 46 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई. उन्हें मरणोपरांत Zul-Fiqaru’d-Daula (Ultimate Discriminator of the Kingdom) की उपाधि दी गई.

Najaf Khan का मकबरा दिल्ली के लोधी एस्टेट क्षेत्र में अवध के दूसरे नवाब सफ़दरजंग के मकबरे के पास स्थित है. मकबरे का निर्माण 1782 ई. में उनकी बेटी Fatima की पहल पर शुरू हुआ था, हालांकि, वित्तीय बाधाओं के कारण मकबरा परिसर अधूरा रह गया, जिसमें केवल पहली मंजिल और चारदीवारी का निर्माण पूरा हुआ.

मकबरा 27.5 वर्ग मीटर में फैला है, जो 0.6 मीटर ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है और लाल बलुआ पत्थर से बना है. संरचना की छत 3 मीटर ऊंची है, और इसके चारों कोनों पर 3.6 मीटर व्यास का एक अष्टकोणीय टॉवर है. मकबरे की छत सपाट है, लेकिन आंतरिक कमरों में गुंबददार छतें हैं.

Najaf Khan के निधन के दो साल के भीतर, सम्राट शाह आलम द्वितीय के लिए उनके द्वारा हासिल की गई जीत हार में बदल गई. सभी इलाके मुगलों के आधिपत्य से जाने लगे थे. विडंबना यह है कि उनके सम्मान में एक उपयुक्त मकबरे के निर्माण के लिए अपर्याप्त धन बचा, और मकबरा आज भी अधूरा दिखाई देता है. 1820 ई. में फातिमा के निधन के बाद, उन्हें भी अधूरे मकबरे के परिसर में अपने पिता के साथ दफन किया गया.

Komal Mishra

मैं हूं कोमल... Travel Junoon पर हम अक्षरों से घुमक्कड़ी का रंग जमाते हैं... यानी घुमक्कड़ी अनलिमिटेड टाइप की... हम कुछ किस्से कहते हैं, थोड़ी कहानियां बताते हैं... Travel Junoon पर हमें पढ़िए भी और Facebook पेज-Youtube चैनल से जुड़िए भी... दोस्तों, फॉलो और सब्सक्राइब जरूर करें...

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