Shakumbhari Mandir Saharanpur उत्तर प्रदेश के पश्चिमी छोर पर Saharanpur जिले में गंगा और Yamuna की जलधारा के बीच में स्थित है विश्वेश्वरी maa Shakumbhari का विशाल मंदिर… देशभर से श्रद्धालु इस मंदिर की यात्रा करने और मां के दर्शन करने आते हैं. अगर हम बात करें Maa Shakumbhari के मंदिर की, तो देश में मां के कई बड़े मंदिर स्थित है. Rajasthan के सीकर जिले में Maa Shakumbhari का एक और प्राचीन मंदिर ( Shakumbhari Devi Mandir ) है और यहां की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है. ये उदयपुर शेखावाटी शहर के करीब स्थित है. यहां एक प्राचीन मठ भी है. मंदिर में नवरात्रों का त्योहार बहुत उत्साह के साथ मनाता है.
Rajasthan में सांभर झील के पास स्थित शाकम्भरी मंदिर ( Shakumbhari Devi Mandir ) भी एक बेहद लोकप्रिय धार्मिक स्थल है और इसकी उत्पत्ति लगभग 1300 या उससे भी ज़्यादा वक्त पहले की बताई जाती है. इस प्राचीन मंदिर की देवी पुंडीरों और चौहानों की कुल देवी हैं.
Rajasthan में गोरिया के पास जीन-मां मंदिर भी Shakumbhari Devi से जुड़ा हुआ है और यहां भी देवी को मां के रूप में पूजा जाता है.
Karnataka के बागलकोट जिले के बादामी में भी शाकुंभरी देवी ( Shakumbhari Devi Mandir ) का एक मंदिर है. इस वीडियो में हम आपको Saharanpur के बेहट में स्थित शाकम्भरी मंदिर के बारे में बताएंगे…
इस आर्टिकल में हम जिस Shakumbhari Devi Mandir के बारे में आपको बताने जा रहे हैं… उस मंदिर से जुड़े तीन पक्ष हैं जिन्हें जानना जरूरी है… एक सहारनपुर जिला, दूसरा बेहट तहसील और तीसरा जसमौर रियासत यानी यहां का राणा परिवार…
1211 से 1236 तक, इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान, ये पूरा क्षेत्र दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया था. तब इस क्षेत्र की ज्यादातर जमीनें जंगलों और दलदली इलाकों से भरी थी और यहां से होकर पांवधोई, धमोला और गंदा नाला नदियां बहा करती थीं.
1325 से 1351 तक दिल्ली के सुल्तान रहे मुहम्मद बिन तुगलक ने 1340 में शिवालिक राजाओं के विद्रोह को कुचलने के लिए उत्तरी दोआब में एक अभियान चलाया, इसी दौरान उन्हें पांवधोई नदी के किनारे पर एक सूफी संत की मौजूदगी का पता चला. सूफी संत के दर्शन के बाद उन्होंने आदेश दिया कि अब से इस क्षेत्र को सूफी संत शाह हारून चिश्ती के नाम पर ‘शाह-हारूनपुर’ के नाम से जाना जाएगा. यही नाम आगे चलकर सहारनपुर हो गया.
आगे चलकर भारत में मुगल दौर आया… Mughal rule में 1542 से 1605 तक बादशाह अकबर के शासन दौरान, सहारनपुर दिल्ली प्रांत के तहत एक प्रशासनिक इकाई बन गया. अकबर ने अग्रवाल जैन समाज से आने वाले मुगल खजांची साह रणवीर सिंह को सहारनपुर की सामंती जागीर दी. रणवीर सिंह ने एक सैन्य छावनी की जगह पर ही आज के सहारनपुर शहर की नींव रखी थी.. तब सहारनपुर एक चारदीवारी वाला शहर हुआ करता था. इसके चार दरवाजे थे: सराय गेट, माली गेट, बुरिया गेट और लक्खी गेट. शाह रणवीर सिंह के पुराने किले के खंडहर अभी भी सहारनपुर के चौधरीयान इलाके में देखे जा सकते हैं. उन्होंने मुहल्ला/टोली चौंधरियान में एक बड़ा जैन मंदिर भी बनवाया, इसे अब ‘दिगंबर-जैन पंचायती मंदिर’ के रूप में जाना जाता है.
1757 में, Maratha forces ने Saharanpur पर कब्ज़ा कर लिया. गनी बहादुर बंदा को यहां का पहला मराठा गवर्नर नियुक्त किया गया था. मराठा शासन के दौरान Saharanpur शहर में Bhuteshwar Temple और Bageshwar Templeबनाए गए. 1803 में, अंग्रेजों के साथ युद्ध में मराठों की हार के साथ ही, सहारनपुर अंग्रेजों के शासन में चला गया..
लेकिन 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम में Saharanpur और Muzaffarnagar से काफी क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया… इस संग्राम के बाद Mughal rule खत्म हुआ तो मुस्लिमों का सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास देवबंद और अलीगढ़ के इर्द-गिर्द घूमने लगा. सामाजिक और राजनीतिक कायाकल्प के लिए सुधारक शाह वलीउल्लाह की विचारधारा के समर्थक मुहम्मद कासिम नानौतवी और रशीद अहमद गंगोही ने 1867 में देवबंद में एक विद्यालय की स्थापना की. इसे दारुल उलूम देवबंद के रूप में दुनिया में प्रसिद्धी मिली… आज जहां कहीं भी सहारनपुर का जिक्र होता है, वहां देवबंद की चर्चा जरूर होती है.
आप देवबंद पर बनाए गए हमारे वी़डियो को ऊपर आई बटन या डिस्क्रिप्शन में जाकर देख सकते हैं. हमने दारूल उलूम देवबंद की लाइब्रेरी को भी कवर किया है, जिसमें रामायण, महाभारत जैसे हिंदू ग्रंथ भी रखे हुए हैं….
अब बात करते हैं बेहट की. बेहट सहारनपुर जिले की नगर पंचायत है. इस शहर के आसपास का क्षेत्र बेहत ऐतिहासिक महत्व वाला है. ये शहर पूर्वी यमुना नहर के तट पर NH-709B पर, सहारनपुर के उत्तर में लगभग 30 किमी, दिल्ली से 190 किमी और हरिद्वार से 77 किमी दूर है. ये इलाका आम, अमरूद, पीतल की घंटियों और फलों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है.
पुरातत्व उत्खनन और सर्वेक्षणों से बेहट और उसके आसपास कई प्राचीन बस्तियों के अस्तित्व के सबूत मिले हैं. इन खुदाई के दौरान खोजी गई कलाकृतियों के आधार पर, इस क्षेत्र में और इसके आसपास मानव निवास 2000 ईसा पूर्व का बताया गया है. ये अनुमान लगाया गया है कि नंद राजवंश के शासनकाल में बेहट को बृहत-वट के नाम से जाना जाता था.
सहारनपुर के पास टोपरा खिदराबाद से निकाला अशोक स्तंभ, सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक दिल्ली लेकर आए और इसे फ़िरोज़ शाह कोटला किले में लगाया गया. मायापुर और बेहट, मौर्य राजवंश में प्रसिद्ध शहर थे.
अब आते हैं Shakumbhari Devi के मंदिर पर… उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से Shakumbhari Devi का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां माता के पावन भवन में माता शाकम्भरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी प्रतिष्ठित हैं. कल कल बहती नदी की जल धारा, ऊंचे पहाड़ और जंगलों के बीच विराजती हैं माता शाकम्भरी.
यहां की पहाड़ियों पर पंच महादेव व भगवान विष्णु के प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं. इस पावन तीर्थ के आसपास गौतम ऋषि की गुफा, बाण गंगा व प्रेतसीला आदि पवित्र स्थल स्थापित हैं. यहां वर्ष में तीन मेले लगते हैं, जिसमें शारदीय नवरात्रि मेला अहम है. शिवालिक घाटी में माता शाकम्भरी आदि शक्ति के रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि सिद्धपीठ पर शीश नवाने वाले भक्त सर्व सुख संपन्न हो जाते हैं. मंदिर के निकट क्षेत्र में बाबा भूरादेव, छिन्मस्तिका मंदिर, रक्तदंतिका मंदिर हैं.
मंदिर, धार्मिक ही नहीं एतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. चंद्रगुप्त व चाणक्य भी सेना के गठन के लिए यहां आए थे. इस मंदिर की तमाम व्यवस्थाएं जसमौर रियासत घराना करता है. इस घराना का संबंध कलिंग राज्य से बताया जाता है. इसके अनुसार माता शाकम्भरी उनकी कुलदेवी है. मंदिर की व्यवस्था पहले राणा इंद्रसिंह व उसके बाद उनके पुत्र राणा कुलवीर सिंह तथा उनके देहांत के बाद उनकी पत्नी धर्मपत्नी रानी देवलता व पुत्र कुंवर आदित्य प्रताप राणा, कुंवर सानिध्य प्रताप राणा व कुंवर आतुल्य प्रताप राणा संभाल रहे हैं.
राणा परिवार जसमौर का यहां जिक्र बहुत जरूरी है क्योंकि ये मंदिर उन्ही की संपत्ति है और इसके दान में आया पैसा भी जसमौर के राणा परिवार को ही जाता है. यहां का मेला काफी बड़ा होता है.
सहारनपुर एक दौर में पुंडीर राजपूतों यानी पुरंदरों की रियासत रहा है. यहां उनकी कुलदेवी शाकम्भरी देवी का शक्तिपीठ स्थित है और आज भी यह पुंडीर राजपूतों का ‘प्राइवेट’ मंदिर माना जाता है, इसलिए यहां चढ़ने वाला सारा पैसा सहारनपुर के जसमौर गांव के पुंडीर वंश के सामन्त परिवार को जाता है.
माता के दर्शन से पहले यहां मान्यता है कि भूरा देव के दर्शन करने पड़ते हैं. श्री दुर्गासप्तशती पुस्तक में शाकम्भरी देवी का वर्णन आता है. मंदिर तक का रास्ता बरसाती नदी के बीच में से है जो सूखी पड़ी रहती है… आम दिनों में यहां पहाड़ से रिसकर आता पानी हल्के रूप में बहता रहता है लेकिन बारिश में नदी उफान पर आ जाती है और तब मंदिर तक जाने के लिए ट्रॉलियों का सहारा लेना पड़ता है.
मंदिर में पूरी रात दर्शन नहीं होते हैं. रात को दर्शन बंद हो जाते हैं और सुबह सवेरे से दोबारा खुलते हैं. रात को रुकने के लिये यहां पांच छह धर्मशालाएं हैं. इसके अलावा यहां आसपास में कोई ज्यादा व्यवस्था नहीं है. अगर कोई ज्यादा दूर से आ रहा है, तो सहारनपुर सिटी में ठहरने के लिए अच्छे होटल मिल जाएंगे.
आइए अब जानते हैं कि सहारनपुर में बेहट के जसमौर में स्थित Shakumbhari Devi Mandirकैसे पहुंचे. अगर आप Shakumbhari Devi Mandir के दर्शन करने के लिए जाना चाहते हैं तो बता दें कि मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन Saharanpur Railway Station जो लगभग 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मंदिर के लिए नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो शाकम्भरी देवी मंदिर से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
राजस्थान में सांभर झील के पास स्थित शाकुंभरी देवी मंदिर भी एक बहुत लोकप्रिय धार्मिक स्थान है और इसकी उत्पत्ति लगभग 1300 या उससे अधिक वर्ष पहले की मानी जाती है. इस प्राचीन मंदिर की देवी पुंडीर और चौहानों की कुल देवी हैं. राजस्थान में गोरिया के पास जीण-मां मंदिर भी शाकुंभरी देवी से जुड़ा है और यहां भी देवी को मां के रूप में पूजा जाता है. इस वीडियो में हम आपको सहारनपुर के बेहट में स्थित शाकंभरी मंदिर के बारे में बताएंगे. हम भी जानेंगे सहारनपुर जिले का पूरा इतिहास…
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