Lopburi Tour Blog : Ayutthaya में यात्रा का तीसरा दिन… गेस्ट हाउस में सामान रखकर मैं इस दिन चल दिया था Lopburi की ओर..
Ayutthaya की मॉर्निंग मार्केट सज चुकी थी… लोग सब्जियां और ब्रेकफास्ट की चीजें खरीद रहे थे… इसी मार्केट में मुझे दिखाई दिया ब्रह्मा जी का मंदिर… भारत में ब्रह्मा जी का एक ही मंदिर बताया जाता है लेकिन Thailand में ब्रह्मा मंदिर और त्रिदेव मंदिर आम हैं…
गेस्ट हाउस से कुछ ही दूरी पर था दिसंबर हाउस (December House Ayutthaya)… यहीं से मिलती है फेयरी सर्विस अयुत्थाया (Ferry Boat Service in Ayutthaya) रेलवे स्टेशन के लिए… किराया होता है सिर्फ 10 Baht… कहां 100 Baht की टुकटुक वाली सवारी और कहां ये 10 Baht वाली फेयरी सर्विस… कमाल का ऑप्शन…
Ayutthaya Railway Station पर दोबारा पहुंचा तो ये जगह अब अपनी सी लग रही थी… Lopburi की ट्रेन सुबह 8 बजकर 38 मिनट पर थी और इसके लोपबुरी पहुंचने का वक्त 9 बजकर 42 मिनट पर था…
नाश्ता मैं गेस्ट हाउस से करके ही निकला था… सो कोई फिक्र नहीं थी… ट्रेन में कई तरह के रंग दिखाई दिए. फ्रूट्स, फूड और ये प्यारी प्यारी दो बच्चियां भी… एक अपनी मम्मा की पूरी बात मान रही थी जबकि दूसरी प्यारी गुड़िया मां को खूब तंग कर रही थी…
ट्रेन ने वक्त पर रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया… लोपबुरी को आज वानरों का शहर कहा जाता है… लोपबुरी रेलवे स्टेशन उतरते ही आपको इसका आभास भी हो जाता है.. यहां जगह जगह वानरों की मूर्तियां आपको दिखाई देती हैं.. Lopburi Railway Station और Ayutthaya Railway Station एक जैसे ही नजर आते हैं… लेकिन लोपबुरी रेलवे स्टेशन पर आपको ऐतिहासिक धरोहरें दिखाई देती हैं और दिखाई देते हैं स्टेशन पर बनाए गए वानर भी…
Lopburi Railway Station पर ही मीटिंग रूम, मिनिमार्ट, फर्स्ट ऐड के फैसिलिटी मिलती है…
स्टेशन के नजदीक कई ऐतिहासिक स्थल हैं… लेकिन मैंने यात्रा की शुरुआत उस मंदिर से की जिसकी वजह से इस शहर को आज भी हनुमान के शहर के रूप में जाना जाता है और यहीं पर हर साल मनाया जाता है मंकी फेस्टिवल (Monkey Festival in Lopburi)… थाई लोग तो हर रोज ही वानरों की खिदमत करते हैं लेकिन इस फेस्टिवल में तो वानरों के फुल मजे होते हैं… थाईलैंड का Lopburi अपने वानर मंदिर के लिए मशहूर है और इसलिए इसे अक्सर बंदरों का शहर कहा जाता है.
मैंने लोपबुरी घूमने के लिए रिक्शा किराये पर बुक किया.. गनीमत थी कि रिक्शा चला रहे अंकल अंग्रेजी जानते थे…
लोप बुरी को ‘Land of White Clay (Dinso Pong)’ और ‘वानरों की जमीन’ कहा जाता है. इस शहर से जुड़ी दो कहानियां हैं और ये भारत का रिश्ता थाईलैंड के साथ जोड़ती हैं… ऐसा कहा जाता है कि जब राम ने रावण को हराया तो हनुमान को पुरस्कार के तौर पर Lawo Thani का राजा बनाया था… थाईलैंड में भगवान राम को फ्रा राम (Phra Ram) और रावण को टॉसकन के नाम से संबोधित किया जाता है. समय बीतने के साथ, वानरों की संख्या भी शहर में बढ़ती गई… और आज यहां इनकी संख्या हजारों में है…
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एक दूसरी कहानी भी है… और वो ये…. कि रावण को हराने के बाद, राम ने हनुमान को पुरस्कार स्वरूप एक भूमि भेंट की… उन्होंने एक बाण चलाया और जहां बाण गिरा वह भूमि हनुमान को दे दी…तब राम का जादुई तीर Thung Phrommat (आज के Lop Buri) पर गिरा और तब इस तीर की वजह से वहां आग भी लग गई थी… हनुमान ने तब इसे अपनी पूंछ से बुझाया था…
वजह जो भी हो लेकिन ये सच है कि यहां वानरों की पूजा भगवान की तरह होती है. हर रोज उन्हें भोग लगाने के लिए खाने पीने की कई चीजें थाई लोग लेकर आते हैं….
और हर साल नवंबर में Monkey Festival भी यहीं पर होता है. नवंबर के आखिरी रविवार को ये फेस्टिवल होता है. इस फेस्टिवल में, प्रसाद के रूप में Lopburi के बंदरों के लिए एक विशाल भोज तैयार किया जाता है. इस “ऑल-यू-कैन-ईट” बुफे में, फलों और मिठाइयों की भरमार होती है और ये सब होता है इन्हीं वानरों के लिए.
फेस्टिवल में वानरों की कॉन्ट्यूम पहनकर लोग डांस करते हैं… और इवेंट में शामिल होते हैं…
आधुनिक दौर में 1351 में kingdom of Ayutthaya की स्थापना के बाद यह एक ऐक्टिव सेंटर बन गया और Ayutthaya king Narai के शासनकाल 1657-88 के दौरान यह ग्रीष्मकालीन राजधानी बनी…. लेकिन इसके बाद शहर का पतन हो गया और इसकी सभी धरोहरें इमारतें नष्ट होती चली गईं…
पुराने शहर के चारों ओर घूमते हुए, आपको प्राचीन खमेर शैली (Ancient Khmer Style) के मंदिर के खंडहर, बुद्ध की चमचमाती मूर्तियों के साथ बौद्ध मंदिर मिलेंगे, और आप थाई माहौल और संस्कृति में गहराई से डूब जाएंगे…
Lopburi में वानर मंदिर का नाम Prang Sam Yot है. यह सुबह 8:30am – 6:00pm तक खुलता है और इसकी टिकट है 50 baht per person.
Lopburi में Prang Sam Yot सबसे आकर्षक मंदिर है. यहां 2 पवित्र प्रांग हैं और सामने है San Phra Kann shrine जो कि एक विष्णु मंदिर है… थाईलैंड में किसी दूसरे शहर के बीचोंबीच आपको वानर दिखाई नहीं देते हैं लेकिन Prang Sam Yot में वानरों की भरमार है. 13वीं सदी में बना ये मंदिर एक हिंदू मंदिर है. यहां वैसे तो वानर शांत रहते हैं लेकिन अगर आपके पास खाने पीने की चीजें हैं तो हो सकता है ये आपके पास से उसे छीनकर ले जाएं…
Prang Sam Yot यानी वानर मंदिर के सामने एक और हिंदू मंदिर है… ये रेलवे की पटरियों के दूसरी ओर है और इसका नाम है San Phra Kan…. यहां मंदिर के गेट पर वानरों की मूर्ति है. मंदिर परिसर दो अलग-अलग समय पर बनाया गया था, और इसलिए यहां पुराने और नए दोनों खंड हैं. पहले यह मंदिर खमेर काल में बनाया गया था… 1951 में नया हिस्सा तैयार किया गया.ये एक विष्णु मंदिर है. यहां पूजा का तरीका भारत के मंदिरों से बिल्कुल अलग है. यहां आपको भेंट के रूप में पशुओं के कटे सिर भी दिखाई देते हैं और अंडे भी… हिंदू धर्म का थाईलैंड में एक नया रूप है… और वो यही है…
Wat Phra Sri Ratana Mahathat, Lopburi रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित एक मंदिर है. रेलवे स्टेशन के सामने ही आपको खाने पीने के अच्छे ऑप्शंस मिलते हैं. लेकिन सिर्फ नॉन वेजिटेरियंस के लिए… Wat Phra Sri Ratana Mahathat एक बेहतरीन जगह है. यहां आपको थाई संस्कृति और थाई तरीके से होने वाली पूजा को करीब से देखने का मौका मिलता है… ये जगह रेलवे स्टेशन के सामने ही है तो यहां तक पहुंचने के लिए आपको सिर्फ एक सड़क को ही पार करना होता है…
इस प्राचीन मंदिर में लोपबुरी का सबसे ऊंचा प्रांग या पवित्र शिखर है. मंदिर के सामने लोप बुरी-शैली का प्रांग 1157 ईस्वी के आसपास तब बनाया गया था, जब शहर खमेर शासन के अधीन आया था. कई दूसरे चेडिस और प्रांग्स (स्पीयर) पर सुखोथाई और अयुत्थाया शैली का असर दिखाई देता है. अंदर कक्ष है, यानी वो कमरा जहां खमेर लोग शिवलिंग की पूजा करते थे.
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मंदिर के परिसर में प्रवेश करते ही विजिटर्स सबसे पहले Sala Plueang Khrueang को देखते हैं, जहां राजा अपनी पोशाक को बदला करते थे… मंडप में अभी सिर्फ स्तंभ ही बाकी हैं…. मंदिर में Wat Phra Si Rattana Mahathat, बुधवार से रविवार तक सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है.
आठ एकड़ के इस कॉम्प्लैक्स में विदेशी टूरिस्ट बहुत कम संख्या में पहुंचते हैं… इस मंदिर का सबसे पुराना मुख्य प्रांग लगभग 800 साल पुराना है. मंदिर पर जीर्णोद्धार Thai Fine Arts Department ने किया था.
राजा नारई के महल (King Narai’s Palace) को आधिकारिक तौर पर फ्रा नारई रतचानिवेट नाम दिया गया है. यह अयुत्थाया साम्राज्य के राजा किंग नारई का महल है. महल के खंडहर को वांग नाराई के रूप में जाना जाता है…
17 वीं शताब्दी के आखिरी दौर में अयुत्थाया के राजा नाराय द ग्रेट ने लोपबुरी को अयुत्थाया साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया था. उन्होंने लोपबुरी नदी के पास एक नए महल का निर्माण करने का आदेश दिया जहां वह साल के ज्यादातर वक्त बिताते थे. महल को फ्रांसीसी वास्तुकारों ने डिजाइन किया गया था. इसका निर्माण 1665 में शुरू हुआ और 12 साल बाद 1677 में पूरा हुआ.
1688 में राजा नाराय की मृत्यु के बाद महल वीरान होता चला गया. लेकिन लगभग दो शताब्दियों के बाद King Mongkut ने महल के जीर्णोद्धार और कई नई इमारतों के निर्माण का आदेश दिया. आज इस बिल्डिंग को Lopburi museum और exhibition hall के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
जिस दिन मैं यहां गया, कॉम्प्लैक्स में कोई इवेंट चल रहा था… आर्टिस्ट परफॉर्मेंस दे रहे थे… थाई लोग इसे इंजॉय कर रहे थे… गार्डन में झांकियों की भरमार थी…
राजा नारई के महल की कई इमारतें Lopburi Museum के exhibition rooms के तौर पर इस्तेमाल होती हैं. म्युजियम को ऑफिशियली Somdet Phra Narai National Museum नाम से जाना जाता है… इसमें प्राचीन काल की ऐसी ऐसी चीजें हैं, जो आपको और हिस्ट्री लवर्स को हैरान कर सकती हैं. इसमें Dvaravati, Khmer, Lopburi और Ayutthaya के दौर की वस्तुएं सहेजी गई हैं…
ये जगह Lopburi train station से लगभग 500 मीटर दूर है. और यहां की एंट्री टिकट है 150 Baht…
विचयेन हाउस, फ्रा नारई रत्चनीवेट के उत्तर में प्रांग खाक से 300 मीटर की दूरी पर विचयेन रोड पर स्थित है. यह लोपबुरी में राजा नाराय द ग्रेट से शिष्टाचार भेंट करने वाले राजदूतों का निवास हुआ करता था. 1685 में पहुंचे फ्रांसीसी राजदूतों का पहला समूह इस स्थान पर रुका था.
इस कंपाउंड में 3 सेक्शन हैं. इस बिल्डिंग में सबसे खास था एक चर्च का होना… इसमें चर्च का निर्माण राजदूतों के लिए किया गया था… इसे बौद्ध मंदिर शैली से सजाया गया था और यह इस तरह का पहला चर्च माना जाता है.
इस प्राचीन हिंदू मंदिर के परिसर के भीतर कई अवशेष हैं: द्वारावती काल का एक भव्य स्तूप है, जिसके सामने लोप बुरी काल का एक प्रांग यानी शिखर है. पहले ये खमेरों द्वारा बनाया गया एक हिंदू मंदिर था लेकिन बाद में अयुत्थाया काल में इसे बौद्ध मंदिर में बदल दिया गया… हॉल में अब सिर्फ दीवारों और ईंटों के अवशेष ही बाकी हैं… यह मंदिर लोपबुरी रेलवे स्टेशन के उत्तर में फ्राकन श्राइन से नजदीक है.
वाट नखोन कोसा के पास भी युवाओं की एक मंडली दिखाई दी… ये किसी प्रोग्राम की तैयारी कर रहे थे…
वाट इंद्र, भगवान इंद्र का मंदिर है… King Narai के शासनकाल में इसे बनाया गया था. यह इनर सिटी वाल यानी शहर की भीतरी दीवार के अंतर स्थित है. पूर्व में वाट नखोन कोसा है और उत्तर में सैन फ्रा कान है. मिट्टी के टीले के ऊपर केवल एक विहार बचा है. स्थापत्य शैली अयुत्थाया कला की है. साइट को 2 अगस्त 1936 को Fine Arts Department ने रजिस्टर किया था…
Wat Bandai Hin को भी किंग नाराई द ग्रेट के शासनकाल 1656-88 के बीच बनाया गया था… इसमें एक असेंबली हॉल है. एक लंबी छेदी है… लेकिन आज ये भी थाईलैंड के सैंकड़ों ऐतिहासिक मंदिरों की तरह वीराना ही है…
लोपबुरी में शॉपिंग करनी हो तो थाई नाइट मार्केट जरूर जाएं… Na Sanprakan Street पर शाम 4 बजे से नाइट मार्केट लग जाता है… वॉकिंग स्ट्रीट मार्केट भी पर्यटक जाएं…
बैंकॉक से लोपबुरी की दूरी सिर्फ 150 किलोमीटर है और यहां बस या ट्रेन से आसानी से पहुंचा जा सकता है. लोपबुरी थाई उत्तरी रेलवे से जुड़ा हुआ है, और बैंकॉक, अयुत्थाया, Phitsanulok या चियांग माई से ट्रेन के जरिए आप यहां तक पहुंच सकते हैं…. छोटा और सुंदर ट्रेन स्टेशन ठीक पुराने शहर में स्थित है और पैदल दूरी में ही आप कई ऐतिहासिक धरोहरों को देख सकते हैं…
यह सब जगहें घूमकर मैं लोपबुरी रेलवे स्टेशन (Lopburi Railway Station) पहुंच गया… रिक्शेवाले अंकल को 200 ब्हाथ दिए… अब मुझे जोरों की भूख लग गई थी… बड़ी कोशिश के बाद जो हाथ लगा वह था आलू के चिप्स और कोल्डड्रिंक… इसी के सहारे अयुत्थाया तक का सफर गुजरने वाला था… अभी ट्रेन आने में वक्त था तो मैं फिर बाहर गया…
रेलवे स्टेशन के बाहर मुझे झाड़ू लगाती एक महिला दिखाई दी… दोस्तों, थाईलैंड में मैंने एक बात ऑब्जर्व की और वो ये कि… यहां हर कोई अपने काम से खुश दिखाई देता है… और यही चीज मैंने इन मोहतर्मा के चेहरे पर भी देखी…
लोपबुरी रेलवे स्टेशन (Lopburi Railway Station) पर अनाउंसमेंट कर रही महिला की ड्रेस भी कमाल की थी… ये थाई संस्कृति से जुड़ा परिधान है… अनाउंसमेंट कर रही महिला के साथ कुछ और लोगों का ग्रुप था… इन सभी ने एक खास मिशन के लिए तस्वीर क्लिक कराई तो मैंने भी इस पल को कैमरे में सहेज लिया…
लोपबुरी की यात्रा में गर्मी ने बहुत परेशान किया… खैर, ट्रेन आ गई थी और मैं अयुत्थाया जाने के लिए उसमें सवार हो गया..
अयुत्थाया में ट्रेन से उतरकर कुछ फ्रूट खाए और फिर चल दिया गेस्ट हाउस की ओर… हां, रात को भूख लगी तो बड़ी कोशिशों के बाद ये डिश हाथ लगी… ये नूडल्स वाली एक वेजिटेरियन डिश थी जिसे मैंने गूगल ट्रांसलेशन की मदद से कई बार समझाने के बाद तैयार करवाया था… यहां हर कोई टूरिस्ट फ्रेंडली है इसलिए ये मुमकिन भी हो सका….
अब अगले दिन सफर था पटाया के लिए… मैं आपको पटाया की अनसुनी कहानी बताउंगा और ये भी बताउंगा कि पटाया सदियों पहले कैसा था… बने रहें ट्रेवल जुनून के साथ…
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