Chalal Village Trek – कसौल मार्केट पीछे छूटता जा रहा था और सामने खामोशी में लिपटी सड़क आ रही थी. हम चलते चलते बाईं तरफ़ बह रही पार्वती नदी को भी देखे जा रहे थे. गूगल मैप पर बार बार नज़रें जा रही थीं. रास्ता देखकर ख़्याल आया, सारा मार्केट तो पीछे चला गया, अब न जाने ये कैंप कहां बसा है? चलते चलते हम एक किलोमीटर चल चुके थे. इस एक किलोमीटर के सफ़र में 5 लोगों से CHOJ VIllage के बारे में भी पूछ लिया था. अब इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हो चुकी थीं. सामने जैसे ही हमें कैब्स और गाड़ियों का क़ाफ़िला दिखाई दिया, हम समझ गए कि मंज़िल आ चुकी है. यहाँ पार्वती नदी के ऊपर हमें एक पुल मिला. ये पैदल पुल था. यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको मुश्किलों से भरी ढलान से नीचे आना होता है. सामान का बोझ लेकर ऐसा करना थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है. इस ब्लॉग में, आप CHOJ Village से Chalal Village तक के ट्रेक के हमारे अनुभवों को पढ़ेंगे. इसके साथ ही, रसौल गांव की जानकारी भी हम आपसे शेयर करेंगे.
हमारे लिए भी ये चुनौतीपूर्ण रहा. एक तो बैगपैक, कैमरा, ऊपर से ये जोखिम भरी ढलान. हम थक चुके थे. हाँ, सामने पार्वती नदी की तेज़ धारा देखकर मन में उत्साह भर गया. इस पुल को पार करते करते, हमारी नज़रें पार्वती नदी पर ही टिकी रहीं. हमारे कैंप के केयरटेकर ने एक लड़के को हमें लाने भेज दिया था. वो लड़का हमारे आगे ऐसे भाग रहा था जैसे बस ख़ानापूर्ति करने आया हो. इस पुल को पार करने के बाद, हम CHOJ Village में दाखिल हो चुके थे. गाँव में पहुँचते ही, एक कॉटेज जैसा कैफ़े दिखाई दिया. एक शख़्स, उसकी रंगाई-पुताई में व्यस्त थे. मैंने पूछा- ये आपका कैफ़े है? उन्होंने हाँ, में जवाब दिया. मैं समझ चुका था, ये नौकरी-चाकरी छोड़कर यहीं बस चुके हैं. मैंने तपाक से कहा- आपसे जल्द मिलूँगा मैं. उन्होंने भी हाँ हाँ में सिर हिलाया.
हमें तो लगा था कि पार्वती नदी के ऊपर बने पुल को पार करते ही हमारा कैंप आ जाएगा लेकिन ये क्या, अभी तो ऐसा लगा जैसे सफ़र की शुरुआत हुई हो. टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होते हुए, चढ़ाई-ढलान को पार करते हुए हम इस कैंप तक पहुँचे. कैंप पहुँचकर रूम को लेकर जो झंझट का सिलसिला शुरू हुआ कि पूछिए मत. केयरटेकर ने कहा कि फला रूम ख़ाली हो जाएगा लेकिन शाम तक. हम बोले, अभी क्या उपलब्ध है. उन्होंने कहा – डोर्मेट्री. हम बोले, आप रूम का ही देख लो. सामान कहीं रखवा दो, हम फ़्रेश होकर बस निकल रहे हैं. इसी पर सबकी सहमति हो गई. हमने बाहर बने वॉशरूम में ख़ुद को फ़्रेश किया, ब्रुश किया.
काम से पहले बारी थी पेट पूजा की. हमने मेनू मंगाया. जो चीज सबसे सस्ती थी, वो थी प्लेन मैगी 50 रुपये की. हमने चार एग मैगी मंगाई. अगले कुछ ही पलों में मैगी हमारे हाथ में थी. घर से लाए पराँठे को मैगी में डुबोया और जमकर भूख मिटाई. खाते ही हम कैंप से नौ दो ग्यारह हो गए. हाँ, कैंप वाले केयरटेकर जो हमारे लिए भैया हो चुके थे, उन्होंने हमसे ये कहा था कि हमें Chalal Village Trek को पूरा करने के लिए नदी दोबारा पार करने की ज़रूरत नहीं, हम कैंप के पीछे से जा रहे रास्ते से वहां तक पहुंच सकते हैं. बस हमें और क्या चाहिए था. हां, रुकिए रुकिए, उन्होंने दूसरी बात ये भी कही थी कि छलाल ( Chalal Village Trek ) के ही आगे रसोल गांव है, हम झटपट वहां भी जा जाकर आ सकते हैं. उन महाशय ने तो इसमें मणिकर्ण भी जोड़ दिया और कहा कि आप ये सब करके रात 9 बजे तक कैंप आ जाएंगे.
CHOJ Village to Chalal Village Trek
हम ढाई बजे छलाल ट्रेक ( Chalal Village Trek ) के लिए निकल चुके थे. कैंप के पीछे के रास्ते पर आगे बढ़ते ही, बड़ी बड़ी चट्टानों ने हमारा स्वागत किया. दाहिनी तरफ़ घना जंगल और बाईं तरफ़ पार्वती नदी. आहा, क्या नजारा था. हम चले जा रहे थे, बढ़े जा रहे थे. हाँ सावधान से… आप भी सावधानी रखिएगा. क्योंकि चट्टानों पर पैर फिसलने का ख़तरा यहाँ रहता है. काफ़ी चलने के बाद हमें अहसास हुआ, काश बिस्किट और चिप्स रख लिए होते. कितना अच्छा रहता. बस फिर क्या था, कहते हैं न, जहां चाह वहाँ राह. छलाल ट्रेक ( Chalal Village Trek ) के रास्ते पर कुछ ही दूर हमें चिप्स और बिस्किट की शॉप दिख गई. ख़ुशी तब दोगुनी हुई , जहां यहाँ ये देखा कि हर सामान एमआरपी पर ही है.
चिप्स-बिस्किट लेकर हमने राहत की साँस ली. पानी की हमारे पास कोई कमी नहीं थी. चार बोतलें कैंप से ही भर ली थीं. हम चले जा रहे थे कि एक चीज़ ने हमारा ध्यान खींचा. चिप्स वाली दुकान के पास ही पार्वती नदी भी थी और यंगस्टर्स यहीं ड्रिंक कर रहे थे, ग्रुप्स में. इसमें कोई दिक़्क़त नहीं. लेकिन दिक़्क़त तब हुई जब मैंने उन्हें बोतलों को जहां तहां फेंकते देखा. ये तो वाक़ई हैरान करने वाला था. मैंने कुछ बोतलों की तस्वीरें लीं. ये वो जगह थी जहां से छलाल ट्रेक के कंस्ट्रक्शन का काम शुरू था. हमें ये जानकर ख़ुशी हुई कि कुछ दिनों में लोग बाइक और कार से छलाल गाँव पहुँच सकेंगे. अहम बात ये थी कि ये काम छलाल गाँव की पंचायत करवा रही थी.
अब यहाँ से हम और आगे बढ़े. लगभग दो किलोमीटर के ट्रेक ( Chalal Village Trek ) के बाद हम छलाल गाँव पहुँच चुके थे. गाँव में ही हमें दो बच्चियाँ मिलीं. हमने उनसे बात की. इसके बाद एक हिमाचली घर का काम चलता देखा तो वहाँ भी पहुँच गए और घर में इस्तेमाल की जा रही लकड़ियों की जानकारी ली, घर का पूरा काम देखा और आगे बढ़ गए. यहीं पर हमने अपना ब्रंच किया. जिस कैफ़े में हमने भोजन किया वहाँ अलथी पलथी मारकर बैठने की व्यवस्था थी. हमने खाना खाने के बाद चाय का भी मज़ा लिया.
छलाल गाँव में इस कैफ़े के बग़ल में ही एक स्टे भी था. आप यहाँ रहना चाहें तो आराम से रह सकते हैं. एक रात का इसका किराया एक हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति है. छलाल गाँव में कुछ पल बिताने के बाद हमने पता किया RASOL VILLAGE के बारे में. पता लगा कि अग़र रसोल गाँव जाएँगे तो रात हो जाएगी. ये सुनते ही हमने यूटर्न लेने का फ़ैसला लिया और चल दिए कसौल की तरफ़. अब जरा रास्ता समझिए. छोज गाँव से छलाल गाँव के लिए सीधा ट्रेक है और इसी ट्रेक से एक पुल निकलता है. पार्वती नदी के ऊपर बना ये ऊपर छलाल जाते वक़्त आपके बाईं ओर पड़ता है और ये आपको ले जाता है कसौल की तरफ़.
TOSH CREAM का दीदार
छलाल के ट्रेक पर ही एक जगह हमारी मुलाक़ात कुछ लोगों से हुई जो क्रीम के सेवन में व्यस्त थे. जी हाँ, क्रीम से कन्फ्यूज मत होइएगा. ये सूंघने वाली क्रीम है, सिगरेट के साथ. ऐसा लगा, उन्होंने इसकी पूरी पीएचडी कर रखी थी. ग्रहण गाँव, कसौल, मलाईं, तोष, कहां की क्रीम कैसी है, कितने की है, सब पता था उनको. हमने उनसे जानकारी ली, फ़ोटो खिंचवाई और बढ़ गए आगे.
छलाल ट्रेक के बाद हम पहुँच चुके थे Kasol Village में. आप कसौल की पूरी कहानी वीडियो में भी देख सकते हैं और अगले ब्लॉग में पढ़ भी सकते हैं. मिलते हैं आपसे अगले ब्लॉग में, अपना ध्यान रखिएगा.
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