Kangra Tour – ब्लाइंड का नाटक करके ये लड़का पहुंच गया कांगड़ा, सुनिए अद्भुत Travel Story
Kangra Tour – हर किसी को नई-नई जगह घूमने शौक होता है. हम, कभी किसी जगह योजना बनाकर जाते हैं तो कभी अचानक से दोस्तों के साथ घूमने निकल जाते हैं. घूमने के दौरान हमे अच्छे और बुरे दोनों तरह केअनुभवों से गुजरना पड़ता है. जैसे, हमें नई-नई जगह देखने को मिलती है तो कभी हम बीमार भी पड़ जाते हैं. ट्रिप के दौरान हम अलग-अलग लोगों से भी मिलते हैं उनके बारे में जानकारी लेते हैं. लेकिन अलग अलग अनुभवों के दौर के बीच घूमने के अंदाज भी अलग-अलग होते हैं.
कुछ लोग लिफ्ट ले लेकर ट्रिप को पूरा करते हैं, जिसे HitchHiking भी कहते हैं. कुछ लोग ट्रकों में सफर कर लेते हैं. कुछ बुलेट पर फर्राटा मारते हैं. इन सबके बीच अगर कोई नेत्रहीन होने की एक्टिंग करके ट्रेवल करे तो क्या कहेंगे आप?
अगर आपसे कोई यह कहे कि आंख पर पट्टी बांधकर आपको कहीं घूमने जाना हैं, तब आपको कैसा लगेगा? पढ़ने में ये थोड़ा अटपटा जरूर लगा होगा लेकिन यह एकदम सही सवाल है.
हम और आप भले ही इस तरह का ट्रिप न कर सकें लेकिन दिल्ली के एक लड़के ने यह करके दिखा दिया है. यह दिल्ली में भारतीय विद्या भवन का छात्र है.
इस लड़के का अंधे का बहाना करके किसी जगह पहुंचने का अनुभव कैसा था आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानी.
मैं अमन दिल्ली में भारतीय विद्या भवन का छात्र हूं. मेरी स्टोरी का नाम है नो वैयर, आप मुबंई, पुणे गए लेकिन मैं कही नहीं गया पता है. कैसे मैंने कुछ स्टूपिड सा किया. जो मैं आप लोगों से भी सजेस्ट करूंगा की आप लोग भी करो. सोलो ट्रेवल तो बहुत लोग करते हैं. सोल्ड ट्रेवल करे. मैंने बेचर्स खत्म करने के बाद आईआईएमसी का एग्जाम दिया जो मेरी लाइफ का पहला फेलियर था. घर पर बिना बताए मैंने डिसाइड किया फिर मैंने पेरेंट्स को फोन करके कहा कि मैं दो-तीन दिन बाद आऊंगा. किसी दोस्त के पीजी में रुका हूं.
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उसके बाद मैंने डिसाइड किया कि मैं अलग सी जगह पर जाऊंगा. मुझे नहीं पता था कहा जाऊंगा. फिर मैंने यह सोचा कि मुझे जो भी बस या ट्रेन मिलेगी मैं उसमें चढ़ जाउंगा. नाम नहीं देखूगा कहा जा रही है. लेकिन मुझे पता था विज्ञापन का जमाना है मुझे पता चल जाएगा मैं कहा हूं. लेकिन मैं ढोंग करूंगा की मुझे दिखता नहीं है. मैंने एक काला चश्मा खरीदा जिसमें से सच में कुछ दिखता नहीं था. वो पहनने के बाद मैंने कानों में हेडफोन लगा लिया. उसके बाद मैं एक अनजान इंसान के पास गया और उसको बोला मुझे दिखता नहीं है मेरे लिए एक टिकट ले लो. उसने पूछा कहा की टिकट लूं. मैंने उसे कहा कही की भी जहां आपका मन करे,लेकिन मुझे मत बताना की वह टिकट कहां की है.
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आप मुझे बस यह बता देना कि कितने स्टॅाप के बाद ट्रेन रुकेगी जहां पर मुझे उतरना है. फिर उन्होंने टिकट ली मुझे नहीं पता कि टिकट कहां की ली. उन्होंने कहा कि आठ स्टॅाप के बाद उतर जाना है. फिर मैं बैठा और स्टेशन काउंट करता रहा, मैंने किसी से बात नहीं की. हेडफोन लगा लिया था ताकि मैं सून भी ना पाऊं. अनाउंसमेंट हो जाती है न कि कौन सा स्टेशन आने वाला है. फिर मैं आठवें स्टेशन पर उतरा. उसके बाद मैं किसी दूसरी बस मैं चढ़ गया और वहां पर भी मैंने पहले जैसी ही किया. मैं जानना चाहता था कि मेरी जिंदगी मुझे कहा लेकर जाती है.
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रात के 11 बजे मेरी मम्मी का फोन आया वो रोज रात को 11 बजे ही फोन करती हैं. उनका पहला सवाल होता है कहा है? और दूसरी सवाल होता है खाना खाया कि नहीं खाया? मैंने उन्हें बोला मैं पीजी मैं हूं. खाना खा लिया है. उस समय मैं पहाड़ों पर था मुझे एससास हो गया था कि मैं पहाड़ो पर हूं. फिर मैंने सोचा कि सस्पेंस बहुत हो गया 8 और 9 घंटे का वो सस्पेंस था जिसे मैंने सोल ट्रेवल का नाम दिया.
मुझे नहीं पता मैं कहा जा रहा हूं. यह एक ब्यूटी थी ट्रेवल की जो मेरे अंदर का जुनून मुझे वो वहा ले गई. फिर जब मेरी सुबह आंख खुली तो मुझे पता चला कि मैं कागड़ा मैं कही था, कांगड़ा हिमाचल का एक जिला है. फेलियर से लेकर उस जुनून तक ढूढना मेरे लिए वह ट्रेवल है. मैं आपको यही कहूंगा जब भी आपको लगे कि आप लो या डिप्ररेशन फील कर रहे हैं तो घूमने निकल जाइए. सफर करने से हमारा ‘SUFFER’ वाला सफर खत्म हो जाता है.