Journey to Dholpur : राजस्थान का धौलपुर (Dholpur) एक प्राचीन शहर है. धौलपुर 1982 में राजस्थान (Rajasthan) का एक अलग जिला बना था.
इस जिले में धौलपुर, राजखेड़ा (Rajakhera), सरमथुरा (Sirmathura), बारी (Bari) और बसेरी (Baseri) तहसील शामिल हैं.
धौलपुर जिला भरतपुर मंडल का एक हिस्सा है. यह उत्तर में राजस्थान के भरतपुर जिले (Bharatpur District) और उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh), दक्षिण में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), पश्चिम में करौली जिले (Karauli District) और पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से घिरा है.
मैंने धौलपुर की यात्रा (Dholpur Tour) की कोई प्लानिंग नहीं की थी. बस ये पता था कि मुरैना का रास्ता इस शहर से होकर गुजरता है.
Google Map से इतना पता चला तो सोचा क्यों न एक रात यहीं ठिकाना बनाया जाए. इस बार तो अपने पास गाड़ी भी थी. सो, फायदा लेने का मूड पूरा था.
27 सितंबर 2022, मंगलवार की सुबह साढ़े नौ बजे मैं Ghaziabad के Sahibabad में स्थित अपने घर से मुरैना (Morena) के लिए निकल चला था.
मेरे साथ दोस्त वासु और गाड़ी चला रहे बबलू भैया थे. दिलशाद गार्डन (Dilshad Garden) से लेफ्ट होकर हम सीधा NH-24 पहुंचे और फिर वहां से नोएडा (Noida) होते हुए ग्रेटर नोएडा (Greater Noida).
ग्रेटर नोएडा में पेट्रोल 96 रुपये/लीटर था, सो हमने टंकी फुल करवा ली. वासु और मैं हंसी मजाक करते ही जा रहे थे.
गाने सुनते और बाहर के नजारों को देखते सफर कटे जा रहा था.
गाड़ी Yamuna Expressway पर चढ़ने को हुई तो बबलू भैया ने Fastag पर ध्यान दिलाया. टोल से कुछ ही पहले ही दो लड़के Fastag लगा रहे थे. 350 में Fastag लगाया गया.
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अब तक सिर्फ Fastag सुनता ही रहा था, पहली बार इस झमेले में उलझा भी… बार बार रिचार्ज. आगे चलकर अहसास हुआ कि ये एक और रिचार्ज जुड़ गया लाइफ में…
पहले ही मोबाइल, टीवी, गैस, बिजली बिल, मोटर इंश्योरेंस जैसे झमेले कम थे क्या. खैर, सफर आगे बढ़ता गया और हम पहुंच गए जेवर से कुछ आगे…
यहां एक होटल में रुके. वहीं चाय ली, लस्सी पी और घर से लेकर आया भोजन किया. यहां ऐसा लगा जैसे मैं भी रिचार्ज हो चुका हूं…
फ्यूल टैंक ने फिर इशारा किया कि उसे पेट्रोल की जरूरत है. Google MaP के बताए समय से 1-डेढ़ घंटे विलंब से हम आगरा पहुंचे.
आगरा में yamuna Expressway से उतरकर पेट्रोल लिया. रेट उत्तर प्रदेश वाला ही था, सो पैसा देकर भी लूट वाली फीलिंग आ रही थी.
ऐसा लगा कि काश टंकी और बड़ी होती तो और पेट्रोल भर लेता. ऐसा इसलिए क्योंकि आगे राजस्थान और मध्य प्रदेश में ये रेट 108 रुपये तक जाने वाला था.
अब 19 लीटर की कैपिसिटी वाली कार के संग मैं करता भी तो क्या.
आगरा से गाड़ी पहुंची धौलपुर में… और हम आ गए सीधा मुचकुंड (Muchkund) में..
धौलपुर से 2 किलोमीटर दूर है मुचकुंड. कहा जाता है कि एक समय मुचकुंड नाम के राजा हुए थे.
उन्होंने युद्ध में देवताओं के साथ मिलकर राक्षसों पर विजय पाई थी. विजय के बाद देवता उनसे प्रसन्न हुए और कोई वरदान मांगने को कहा.
मुचकुंड राजा युद्ध कर करके थक चुके थे, सो उन्होंने वरदान मांगा सोने का और कहा कि जो उसे नींद से जगाए, जलकर भस्म हो जाए.
देवताओं ने उन्हें वरदान दिया और वह पास ही गुफा में आकर निद्रा में लीन हो गए.
इस बीच कृष्ण का युद्ध कालियावन राक्षस के साथ हुआ. कृष्ण माया जानते हुए, युद्ध से भागकर इसी गुफा में पहुंचे जहां मुचकुंड राजा निद्रा में लीन थे.
कृष्ण ने अपनी पीतांबर उनके ऊपर डाल दी और गुफा में किसी जगह छिप गए.
जब कालियावन राक्षस इस गुफा में आया तो उसने मुचकुंड को कृष्ण समझ लिया और सोचा कि कृष्ण छिपकर यहां सो गए हैं.
उसने यही सोचकर मुचकुंड राजा को पैर से मारा और कहा कि उठ कृष्ण उठ. डरकर भाग आया और यहां सो रहा है.
कई ठोकरें मारने के बाद उसने पीतांबर हटा दी. जैसे ही पीतांबर हटाई राजा मुचकुंड नींद से उठ गए और कालियावन को उन्होंने जैसे ही देखा, वह जलकर भस्म हो गया.
भगवान कृष्ण को रणछोड़ दास भी कहते हैं. कृष्ण को ये नाम तब मिला जब वह कालियावन राक्षस के साथ युद्ध में भाग गए थे.
हालांकि ये सिर्फ एक माया थी. कालियावन की मृत्यु मुचकुंड राजा के हाथ ही लिखी थी और इसीलिए कृष्ण युद्ध भूमि से राक्षण को भगाकर मुचकुंड लाए थे.
मुचकुंड एक पूरे इलाके का नाम है. यहां श्री जगन्नाथ जी का मंदिर है और साथ ही एक सरोवर है.
सरोवर के पास कई लोगों ने अपने पूर्वजों की स्मृति में शिलाएं लगवा रखी हैं.
इस सरोवर के चारों ओर मंदिर, आश्रम बने हुए हैं. आपको यहां आकर ऐसा लगेगा मानों आप पुष्कर आ गए हों.
आप सरोवर की परिक्रमा भी करें. बहुत आनंद आएगा.
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सरोवर के बीच में एक वृक्ष भी है और यहीं पर लगे हैं फव्वारे. रात्रि को ये फव्वारे चलाए जाते हैं.
अगर आप शाम को 8 बजे यहां आते हैं, तो फव्वारे और लाइट शो को देख पाएंगे.
मुचकुंड के पास ही लौहमत्स ऋषि का आश्रम है. ये दरअसल एक पहाड़ी है जिसपर सदियों पहले लौहमत्स ऋषि ने तपस्या की थी.
इसे लौंग पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है.
आश्रम की छत से आप चंबल नदी को देख सकते हैं. चंबल ही वह नदी है जो मुरैना और धौलपुर के बीच सीमा रेखा का काम करती है.
रात्रि विश्राम- लौहमत्स ऋषि के आश्रम में ही हमें रहने का ठिकाना मिल गया. हम रात को वहीं रुके.
गाड़ी मंदिर के अंदर खड़ी की. वहीं भोजन किया और फिर रात को आराम से सोए.
पहले तो वासु ने अपना तखत बाहर ही निकलवा दिया. उसे हवा का अहसास हुआ तो खुद को रोक न सका.
फिर पता चला कि यहां जंगली जानवरों का खतरा रहता है. तब जाकर फिर से बिस्तर भितरवाया.
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