Jaunpur Tour : जौनपुर भारत के महत्वपूर्ण पर्यटन शहरों में से एक है. बनारस से सटा जौनपुर पूर्वांचल की शान है. अयोध्या, गोरखपुर से इसकी नजदीकी भी इसमें चार चांद लगा देती है. उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर की यात्रा करना हमेशा पर्यटकों के लिए खुशी देने वाला अहसास होता है. ऐतिहासिक कलेवर के साथ साथ भविष्य की तरफ बढ़ता ये शहर ढेरों डेस्टिनेशंस को समेटे हुए है. आप जहां भी जौनपुर में घूमने आएंगे तो इसके सुंदर नजारों को देखकर हैरान रह जाएंगे. जौनपुर के बारे में एक ऐतिहासिक तथ्य, जो शायद ही किसी को पता हो कि इस शहर की नींव 1359 में रखी गई थी. दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के चचेरे भाई मोहम्मद बिन तुगलक के नाम पर ये शहर बना है. मोहम्मद बिन तुगलक को जौना खां भी कहा जाता था और इसी जौना खां, नाम की वजह से इस शहर को इसका नाम मिला. Jaunpur एक समय में गोमती की बाढ़ से प्रभावित हुआ था. शहर का काफी बढ़ा हिस्सा बाढ़ के पानी में डूब गया था.
जौनपुर एक जमाने में इत्र की नगरी के रूप में मशहूर रहा है. यह उर्दू और सूफी संगीत की धरती रही है. हिंदू-मुस्लिमों के भाई चारे की धरती रही है. आज की बात करें तो जौनपुर का क्षेत्रफल बनारस से भी खासा बड़ा है. यहां कई अहम रेलवे स्टेशन हैं जो पूर्वोत्तर भारत को देश के अन्य हिस्से से जोड़ते हैं. इस जिले में, जौनपुर जंक्शन, जौनपुर सिटी, जाफराबाद, शाहगंज, जंघई, इत्यादि अहम रेलवे स्टेशन हैं. इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, सुल्तानपुर, गाजीपुर जाने का रेल रास्ता यहीं से होकर गुजरता है. जौनपुर लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, इलाहाबाद और आजमगढ़, मिर्जापुर, जंघई, सुल्तानपुर, केराकत, गाजीपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. Mariahu NH-56, SH-36 ऐसे सड़क मार्ग हैं, जो जौनपुर के सभी बड़े शहरों को जोड़ती हैं. जौनपुर से बाबतपुर का NH-56 अब 4 लेन का हाईवे है. जल्द ही पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, जौनपुर की आधुनिकता में और चमक बढ़ा देगा.
जौनपुर से नजदीकी हवाई अड्डा, लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट, वाराणसी में है, जो शहर से बमुश्किल 39 किलोमीटर दूर है. जौनपुर में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनिवर्सिटी है. इसकी स्थापना 1987 में हुई थी और इसका नामकरण राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के नाम पर किया गया है. जौनपुर की इस कुछ बुनियादी जानकारी को आपसे साझा करने के बाद आइए बढ़ते हैं आगे Jaunpur Tour की सीरीज में. Jaunpur Tour की इस सीरीज में हम इस शहर को जरा करीब से जानेंगे और आपको बताएंगे यहां के ट्रैवल डेस्टिनेशंस के बारे में
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जौनपुर का शानदार शाही पुल निश्चित रूप से मुगलों द्वारा बनाए गए कई चमत्कारों में से एक है. यह पुल गोमती नदी के ऊपर बनाया गया है और इस पुल की बड़ी संरचना और बनावट के साथ साथ, इसकी खासियत है, वो मेहराबों वाले छोटे छोटे कमरे जो इसपर बनाए गए हैं. आज भी इनमें रोजमर्रा की जरूरत की दुकानें लगती हैं. इस शहर में दिल्ली सल्तनत के इतिहास की एक बड़ी झलक ये पुल आपको देता है.
यमदग्नि आश्रम, जौनपुर के पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है. पर्यटक, विशेष रूप से न केवल भारत से बल्कि दुनियाभर से इस आश्रम में अपनी यात्रा के लिए जौनपुर आते हैं. आश्रम के पास इसका कोई धार्मिक पहलू नहीं है; हालांकि, मन की शांति के लिए भक्त यहां आते हैं. इस आश्रम की सुंदरता इसकी बेहतरीन वास्तुकला है, और इस आश्रम में मिलने वाली शांति. आज के दौर में जब अधिकतर लोग तनाव में रहते हैं और हम सभी शांति की तलाश कर रहे होते हैं, तो कुछ दिनों के लिए यहां रहना और अपने आप को थोड़ा आराम देना सबसे अच्छा विकल्प है.
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लाल दरवाजा मस्जिद बनवाने का श्रेय, सुल्तान महमूद शाह की रानी बीबी राजी को जाता है. इस मस्जिद का क्षेत्रफल अटाला मस्जिद से कम है. लाल पत्थर के दरवाजे से बने होने के कारण इसे लाल दरवाजा मस्जिद कहा जाता है. यह खूबसूरत मस्जिद पूरे देश से हर साल हजारों पर्यटकों को आकर्षित करती है. यह मंदिर अपने भक्तों के दिलों में और सभी स्पष्ट कारणों के लिए एक विशेष स्थान रखता है. यह माना जाता है कि मस्जिद वास्तव में आपकी यादों में बस जाती है.
1408 में, इब्राहिम शाह शर्की ने अटाला मस्जिद का निर्माण किया था जिसे जौनपुर की अन्य मस्जिदों के निर्माण के लिए आदर्श माना जाता था. इस मस्जिद के चारों ओर कलात्मक दीवारों के साथ सुंदर गैलरी बनाई गई थीं. इसकी ऊंचाई 100 फीट से अधिक है. प्रवेश के लिए तीन विशाल द्वार हैं. मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 248 फीट है. इसका निर्माण 1393 ईसवी में फीरोज शाह द्वारा शुरू किया गया था.
मां शीतला चौकिया देवी का मंदिर काफी पुराना है. शिव और शक्ति की पूजा आदि काल से चली आ रही है. इतिहास बताता है कि, हिंदू राजाओं के काल में, जौनपुर का शासन अहीर शासकों के हाथों में था. हीरचंद यादव को जौनपुर का पहला अहीर शासक माना जाता है. इस कबीले के वंशज ‘अहीर’ का उपनाम लेते थे. इन लोगों ने चंदवक और गोपालपुर में किले बनाए.
गोमती के बाएं किनारे पर शहर के केंद्र में स्थित, शाही किले को 1362 ईसवी में फ़िरोज़ शाह ने बनवाया था. इस किले का भीतरी द्वार 26.5 फीट ऊंचा और 16 फीट चौड़ा है. केंद्रीय द्वार 36 फीट ऊंचा है. शीर्ष पर एक विशाल गुंबद है. वर्तमान में केवल इसका पूर्वी द्वार और भीतर, कुछ मेहराब आदि बने हुए हैं जो इसके प्राचीन वैभव की कहानी बयान करते हैं. मुनीर खान को सुरक्षा के दृष्टिकोण से निर्मित इसका राजसी फ्रंट गेट मिला था और इसे नीले और पीले पत्थरों से सजाया गया था. अंदर, तुर्की शैली के विज्ञापन में एक मस्जिद भी है. इस किले से गोमती नदी और शहर का अद्भुत दृश्य देखा जा सकता है. इब्राहिम शाह द्वारा बनाई गई मस्जिद, हिंदू और बौद्ध स्थापत्य शैली की छापों को दिखाती है.
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