Damoh Waterfall Tour Blog : धौलपुर में यात्रा (Dholpur Tour) के दौरान प्लान तो था सिर्फ 3-4 घंटे ही रुकने का… लेकिन पहले दिन मचकुंड मंदिर (Machkund Mandir) घूमते घूमते रात हो गई थी.
ठिकाना बना लौहमत्स ऋषि का आश्रम (Lauhmats Rishi Ashram). दूसरे दिन सुबह यात्रा पर निकले तो पहला ठिकाना बना सिद्ध बाबा मंदिर (Siddha Baba Mandir Dholpur).
धौलपुर सैनिक स्कूल (Army School Dholpur) के रास्ते केसरबाग (Kesarbagh) के जंगल में सिद्ध बाबा मंदिर पहुंचे.
यहां नागा बाबा से बात की. कैंसर की दवा (Cancer Medicine) को देखा और उन लोगों से मिले जो दूर दूर से बीमारी के इलाज के लिए यहां आए हुए थे.
सिद्ध बाबा के मंदिर पर उनके चबूतरे और गुफा तक भी गए. सिद्ध बाबा के मंदिर के बाद यात्रा का अगला पड़ाव था दमोह झरना (Damoh Waterfall)…
इस यात्रा ब्लॉग (Damoh Waterfall Tour Blog) में आप सिद्ध बाबा मंदिर से दमोह झरने तक की यात्रा के बारे में जानेंगे.
मैंने किस तरह दमोह झरने (Damoh Waterfall) की यात्रा की, आइए जानते हैं इस ब्लॉग (Damoh Waterfall Tour Blog) में…
दमोह झरने की धौलपुर से पूरी दूरी (Dholpur to Damoh Waterfall distance) लगभग 70 किलोमीटर की है.
Damoh Waterfall Tour Blog के इस आर्टिकल में हम बता दें कि सुबह हम सिद्ध बाबा मंदिर से से बाबू महाराज मंदिर (Babu Maharaj Mandir) जाने के लिए निकले थे.
रास्ते में घना जंगल था और सिर्फ हमारी ही कार सड़क पर चल रही थी. अच्छी बात ये थी कि सड़क अच्छी थी.
रास्ते में हमें चरवाहे ही दिखाई दे रहे थे. इसके अलावा कोई दूसरा इंसान दूर तक दिख ही नहीं रहा था.
दमोह झरने के रास्ते में महाराज उदयभान की कोठी दिखाई दी. महाराज को वाइल्ड लाइफ को शौक था और इसीलिए जंगल के बीचों बीच उन्होंने इस कोठी को बनवाया था.
इस कोठी के साथ में एक तलाब भी था. बगल में एक खंडहरनुमा मकान में कुछ लोग भी रह रहे हैं. हालांकि ये हमारी बात नहीं समझ सके. हमने उनसे बात करने की कई मर्तबा कोशिश की लेकिन वे अनजान ही बने रहे.
हमने यहां जैसे ही अपनी कार रोकी उसे बंदरों ने घेर लिया. बंदर हमारी कार से आकर ऐसे लिपट गए मानों उसमें कोई गोंद लगा हो. हालांकि, राहत की बात ये भी कि ये बंदर मथुरा या वृंदावन वाले बंदरों की तरह बदमाश नहीं थे.
ये आपको तंग नहीं करते. चुपचाप रहते हैं. हो सकता है कि जंगल में इंसानों की आबादी से दूर रहने की वजह से ऐसा हो. उदयभान की कोठी अंदर से बंद थी. इसपर सूचना लिखी थी कि पैंथर का शिकार करना मना है.
हम इस कोठी पर आधे घंटे रुके और फिर चल दिए आगे.
हम जिस रास्ते से बढ़ रहे थे वह जंगल के बीच से होकर गुजर रहा था. आजतक मैं कभी ऐसे रास्ते से गुजरा नहीं था. रास्ते में भूख बढ़ती गई. एक पल तो ऐसा लगा कि ये सफर कभी खत्म ही नहीं होगा.
गाड़ी की कमान बब्लू भैया ने थाम रखी थी. बिना माला किए वह सुबह और शाम को कुछ सेवन नहीं करते हैं. अब उनकी माला खत्म हुई, तो वह भी भूख से व्याकुल हो उठे.
हम सभी का एक जैसा हाल था लेकिन जंगल के इस रास्ते में मिले तो क्या मिले. यहां तो इंसान ही नहीं दिखाई दे रहे थे और हमारी पसंद का मटर पनीर कैसे मिलता?
गाड़ी जब कुछ किलोमीटर और चली तब एक गोमटी दिखाई दी. सड़क के किनारे बनी इस गोमटी से हमने बिस्किट्स चिप्स लिए.
गनीमत थी कि गाड़ी में पानी रखा था, सो उसी को पिया. कुछ तो राहत मिली. वहां जो भाई साहब थे उनके पास जो पानी था, वह पत्थरों की वजह से लाल था.
मैंने पूछा तो कहा कि यहां का पानी ऐसा ही होता है. होश तो तब उड़ गए जब सुना कि शेर शाम को वहां आते हैं और वही पानी पीते हैं.
दुकान वाले भाई साहब ने बड़े आराम से कहा- कुछ देर और रुकिए आप लोग- शेर यही पानी पीता मिलेगा आपको.
जब उन्हें पता लगा कि हम डॉक्युमेंट्री मेकर्स हैं, तो अपनी गायों की समस्याएं बताने लगे. गायों को लंपी बीमारी हो गई है.
सरकार को निश्चित ही इस ओर ध्यान देना चाहिए. लाखों किसान इससे परेशान हैं.
इन्हीं भाई साहब ने हमें ऐसे होटल का पता भी बता दिया जहां हमें लजीज मटर पनीर तो क्या हर तरह के व्यंजन मिल जाते.
बस इसके लिए हमें सीधा बाबू महाराज के मंदिर न जाकर दाहिनी ओर मुड़ना था और लगभग 8 किलोमीटर बाद करौली हाईवे पर ढाबे पर जाना था.
हमें जैसे ही ये पता चला, तुरंत हम चल दिए करौली हाईवे की ओर.
रास्ते में तालाब-ए-शाही (Talab E Shahi) आई. ये विशाल पक्की झील बाड़ी कस्बे से 2 किलोमीटर दूर धौलपुर-बाड़ी रोड पर स्थित है.
तालाब-ए-शाही को बादशाह जहांगीर के मनसबदार सुलेहखां ने 1622 ई. में बनवाया था.
सर्दियों में यहां कई प्रवासी पक्षी आते हैं. साल 1990 में यहीं पर सफेद साइबेरियन सारसों का जोड़ा भी देखा गया था.
झील के किनारे बनी भव्य इमारत धौलपुर नरेश उदयभानसिंह ने मॉडर्न तरीके से बनवाई थी. आज यहां सरकारी विश्राम गृह बना हुआ है.
तालाब-ए-शाही (Talab E Shahi) बेहद सुंदर और आकर्षक लगी लेकिन हम वहां रुक नहीं सके, इसका अफसोस भी है.
लगभग 15 मिनट बाद हम हाईवे के ढाबे पर पहुंच चुके थे. ढाबे पर कोई दूसरा ग्राहक नहीं था, तो सभी काम करने वाले लोगों ने तसल्लीपूर्वक हमें वक्त दिया.
भोजन बेहद शानदार था. 11 बजे हम भोजन कर चुके थे. ये हमारे लिए एक तरह से लंच जैसा था.
400+ के बिल में 4 लोगों ने जी भरकर भोजन किया. आनंद आ गया था दोस्तों.
अब क्योंकि हम बाबू महाराज मंदिर जाने का रास्ता पीछे छोड़ चुके थे, सो अब आगे चलने का फैसला किया.
आगे था दमोह वाटरफॉल. ये झरना धौलपुर की सरमथुरा तहसील (Sarmathura Tehsil Dholpur) में स्थित है.
अब क्योंकि हमारे साथ देवेंद्र जी थे तो उन्हें हर जगह का आइडिया था. लेकिन सटीक जानकारी नहीं थी.
दमोह झरने (Damoh Waterfall) के बारे में रास्ते में कई जगह पूछा. जब हम हाईवे से उतरकर दमोह झरने के रास्ते पर बढ़े, तो रास्ते में लाल पत्थरों की कई खदान (Red Stone Mine in Dholpur) मिली.
ऐसी ही एक खदान में जाकर करीबी से उसका मुआयना किया. खदान में हमने देखा कि किस तरह ब्लास्ट करके पत्थरों को निकाला जाता है.
कमाल की धरोहर है इस धरती में.
आगे हम दमोह झरने के लिए एक गांव से होकर गुजरे. ये जगह बेहद इंटीरियर इलाके में थी.
रास्ते में लाल पत्थरों की खदाने थीं. जमीने लाल रंग से रंगी हुई थीं. यहां एक पल को तो ऐसा लगा कि हम रास्ता भटक चुके हैं…
लेकिन फिर किसी से पूछा तो राहत मिली कि हम सही रास्ते पर थे.. रास्ता पूछकर हम आगे बढ़ते गए.
सच मानिए दोस्तों ये सफर मैं जिस Renault Kwid कार से कर रहा था, वह गाड़ी यहां के लिए नहीं बनी है.
फिर भी, राम भरोसे इस सफर को जैसे तैसे पूरा कर लिया. दमोह झरने का रास्ता बेहद खराब है.
जगह जगह पत्थर मिलते हैं. गाड़ी में जरा सा नुकसान हजारों का बजट बढ़ा देता है. हो सके तो यहां SUV से ही यात्रा करें.
हमें दूर एक छोटी सी ताल दिखाई दी. इसी ताल में जो पानी इकट्ठा किया जाता है वह बहकर आगे दमोह झरने का रूप ले लेता है.
हम जहां थे वह जगह सरमथुरा से 8-10 किलोमीटर अंदर थी.
यहां हमें एक कबीला मिला. ये कबीला जंगल-जंगल भेड़ बकरियां और ऊंट चराता है.
गर्मियों में ये कबीला लखनऊ, एटा तक आता है और सर्दियों और दूसरे मौसम में धौलपुर से जोधपुर के बीच रहता है.
मैंने इस कबीले से बात की और तफ्सील से पूरे हालात को समझा. इन्हें सरकार की ओर से गार्ड भी दिए जाते हैं.
इनके पास बाकायदा लाइसेंस भी होता है. आप अगर यहां आते हैं, तो एक बात जान लें कि इनके पास जंगली कुत्ते रहते हैं.
ये कुत्ते, भेड़ बकरियों को जंगली जानवरों से बचाते हैं और कबीले की भी सुरक्षा करते हैं.
आप दूर से ही आवाज लगा लें क्योंकि ये कुत्ते इंसानों को भी मार सकते हैं. ऐसे में ऐहतियात जरूर बरतें.
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