Travel Blog

Himachal Pradesh Chamba Tour Blog : एक पत्रकार की बेमिसाल घुमक्कड़ी

Himachal Pradesh Chamba Tour Blog : हिमाचल (Himachal Pradesh) और उत्तराखंड की वादियों में कौन नहीं घूमना चाहता है. सीनियर जर्नलिस्ट प्रमोद रंजन घुमक्कड़ी की इसी सोच को लेकर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में चंबा (Chamba) के दौरे पर गए. सपरिवार हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की उनकी ये यात्रा कई मायनों में खास रही. प्रमोद रंजन ने न सिर्फ अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया बल्कि यात्रा की तस्वीरें भी लोगों तक पहुंचाई. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की यात्रा के इसी अनुभव को ट्रैवल जुनून उनके ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुंचा रहा है…

27 जून, चम्बा ट्रैवल डायरीः चम्बा (Chamba) में मत्स्य विभाग के गेस्ट हाउस में रुका हूं. शिमला में कार्यरत पत्रकार मित्र ब्रह्मानंद देवरानी कदम-कदम पर फोन कर हालचाल ले रहे हैं. वे लगातार हो रही बारिश से चिंतित हैं. उनके पास क्षेत्र में भू-स्खलन की सूचनाएं आ रहीं हैं. इस बीच मैंने पुराने मित्र विनोद भावुक से फोन पर बातचीत की. वे मंडी में हैं.

एक सड़क
चम्बा में मत्स्य विभाग का गेस्ट हाउस

भावुक कमाल के आदमी हैं. हमेशा कुछ नया सोचते-करते रहने वाले. इन दिनों वे एक साप्ताहिक अखबार ‘फ़ोकस हिमाचल’ नाम से चला रहे हैं. यह काम काम किस कदर कठिन है, इसका मैं अनुमान लगा सकता हूं. ब्रह्मानंद देवरानी और विनोद भावुक -दोनों पत्रकार होने के साथ-साथ कवि भी हैं. यह जानकर खुशी हुई कि भावुक की एक कविता-पुस्तक हाल में ही प्रकाशित हुई है.

ब्रह्मानंद देवरानी की कविताओं का भी संकलन अब प्रकाशित होना चाहिए. वे 50 की उम्र पार कर चुके हैं और उन्होंने एक बेहद संघर्षपूर्ण जीवन जिया है. बैठे-बैठे क्या करूं? छोटी बेटी प्रज्ञा बाहर बरामदे में बैठ कर कुछ लिख रही है, शायद कोई कविता ही! सामने बादल नीचे उतर रहे हैं. मुझे बाबा नागार्जुन याद आ रहे हैं.

बाबा की प्रसिद्ध कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ मेरे समक्ष साकार हो रही है. मेघ जैसे मेरे कंघों पर उतर आने को आतुर हो रहे हैं.

“अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त-मधुर विषतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।

बादल को घिरते देखा है।
..

कहाँ गय धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत किन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,

बादल को घिरते देखा है।

27-28-29 जून, 2018

लगातार झमाझम बारिश हो रही है। भूस्खलन से सड़के टूट रही हैं। जगह-जगह मलवा बिखरा है। चट्टानें सड़कों पर उतर आईं हैं। more
लगातार झमाझम बारिश हो रही है। भूस्खलन से सड़के टूट रही हैं। जगह-जगह मलवा बिखरा है। चट्टानें सड़कों पर उतर आईं हैं। more
स्थानीय बच्चे
Himachal Pradesh Chamba Tour Blog : हिमाचल प्रदेश में चंबा की यात्रा का ब्लॉग पढ़िए. इसमें प्रमोद रंजन ने अपनी यात्रा का वृतांत बताया है...more

लगातार झमाझम बारिश हो रही है. भूस्खलन से सड़के टूट रही हैं. जगह-जगह मलवा बिखरा है. चट्टानें सड़कों पर उतर आईं हैं. 28-29 जून की रात को तो हमारी गाड़ी चम्बा (Chamba) से 14 किलोमीटर दूर साहो जाते हुए रास्ते में ही फांसी रह गयी. आगे लैंडस्लाइड हुआ था. कुछ घंटे फंसे रहने के बाद वापस चम्बा (Chamba) की ओर वापस मुड़ना चाहा तो मालूम हुआ कि पीछे भी लैंडस्लाइड हो गया.

रात होते देख हमने गाड़ी वहीं छोड़ी. आगे जहां लैंड स्लाइड हुआ था, वहां से पैदल पार होना बहुत कठिन था. ऊंची चोटी से मलबा और पत्थर लगातार गिर रहे थे. हमने दौड़ कर वह जगह पार की. पत्नी अर्चना और बड़ी बेटी कीर्ति तो से दौड़ लगा ली, लेकिन छोटी बेटी प्रज्ञा थोड़ा लड़खड़ाई. पार तो हम कर गए लेकिन उसके बाद हमें लगा कि यह फैसला उचित नहीं था. गिर रहे हजारों पत्थरों में से कोई एक भो सर पर गिर जाता, तो मौत तय थी!

हमें लैंडस्लाइड वाली जगह को छोड़ कर ऊपर ऊंचे पहाड़ों को पैदल पार करना चाहिए था. उसमें समय अधिक लगता लगता, लेकिन जान जाने का खतरा तो था. बहरहाल, किसी तरह गाड़ी वहीं छोड़ कर साहो के वन विभाग के विश्राम गृह में पहुंचे. यह एक शानदार जगह है. इसके और उपर खूबसूरत वादियों में बसे कीड़ो और लग्गा नामक गांव हैं लेकिन हमारी मंजिल तो पांगी घाटी है. हमें वहाँ के बौद्ध धर्म और जनजातियों को देखना-समझना है.

जब यह हाल चम्बा (Chamba) में है तो क्या हम 1400 फुट के दुर्गम साच दर्रा को पार कर पांगी पहुंच पाएंगे? चम्बा (Chamba) के जिला क्लेक्टकर ने भारी बरसात के मद्देनजर चेतावनी जारी कर कहा है लोग अपने घरों से बाहर कम निकलें और ऐसी जगहों पर बिल्कुल न जाएं जहां भू-स्खलन का खतरा है. खबर यह भी आ रही है कि चम्बा (Chamba) से तीसा को जोड़ने वाली सड़क भूस्खलन से टूट गयी है. यही सड़क पांगी जाती है.

चम्बा (Chamba) का भरमौर से भी संपर्क टूट चुका है. सिर्फ एक मुख्य सड़क चम्बा (Chamba) से अभी तक जुड़ी है. वह है – कांगड़ा -धर्मशाला -दिल्ली की. उफ्फ, अब क्या करूं? लौट चलूं?

तस्वीरें : चम्बा (Chamba) के आसपास की घाटियों की कुछ तस्वीरें।

—–

चम्बा (Chamba) के आसपास की कुछ और तस्वीरें।

चंबा के आसपास की कुछ और तस्वीरें

हिमाचल प्रदेश के इस जिले में मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है. अन्यथा, प्रदेश में शायद 98 फीसदी संख्या हिंदुओं की है. हिमाचल आने बाद से तीन ड्राइवर बदल चुके हैं. दिल्ली से साथ आए जीतू धर्मशाला से लौट गए. धर्मशाला से कमल को साथ लिया, वे चम्बा (Chamba) तक साथ आये. अब चम्बा (Chamba) जिले के स्थानीय ड्राइवर मोहम्मद रफी हमारे साथ हैं. रफी एक बेहतरीन इंसान और कुशल चालक हैं. इनके साथ आ जाने से उम्मीद जगी है कि हम शायद इस यात्रा में पांगी घाटी देख पाएंगे!

—-

27-28-29 जून, 2018

चम्बा (Chamba) के गेस्ट हाउस में स्थानीय पत्रकार डेनियल मिलने आए थे. वे विनोद भावुक के मित्र और शागिर्द हैं. कई अखबारों में काम कर चुके डेनियल उन लोगों जज़्बाती लोगों में से हैं, जो अपने इस पेशे को प्यार करते हैं. उन्हें अपनी कलम से किसी का भला कर खुशी मिलती है. डेनियल से बात करते हुए तहसील और जिला स्तर पर हिंदी पत्रकारिता की वास्तविक बदहाली का अहसास हुआ. विज्ञापन की होड़ में हिंदी अखबार संस्करण पर संस्करण निकालते गए हैं. इससे इन अख़बारों के मालिकों को अपने दूसरे धंधों में भले ही फायदा मिला हो, लेकिन प्रतिद्वंदिता के कारण किसी भी अखबार को पर्याप्त विज्ञापन नहीं मिल रहे.

परिणामस्वरूप ये स्थानीय संस्करण पीत-पत्रकारिता तो कर ही रहे हैं, पत्रकारों के आर्थिक शोषण के औजार भी बन गए हैं. हिमाचल प्रदेश के अखबार हों या हिंदी पट्टी के अन्य अख़बार. सबकी कहानी एक सी है. डेनियल ने बताया कि चम्बा (Chamba) जैसी छोटी जगह में एक ‘राष्ट्रीय’ दैनिक ने अपने पत्रकारों को इस साल 40 लाख रुपये का विज्ञापन लाने का टारगेट दिया है, जो पिछले साल से तीन गुणा ज्यादा है.

ऐसी स्थितियों में काम कर रहे डेनियल जैसे साथियों का दर्द खूब समझ सकता हूँ. कमोबेश, इन रास्तों से मैं भी तो गुजर ही चुका हूं लेकिन फ़िलहाल तो मेरी मुख्य चिंता यह है कि तीसा-चम्बा मार्ग टूट गया है. क्या यह बंद पड़ा रास्ता खुलेगा? पांगी जा पाऊंगा? डेनियल ने बंद पड़े रास्ते की जो तस्वीरें भेजी हैं, उनसे तो लगता है कि हालात बहुत खराब है.

तस्वीर : बालू पुल के पास टूटे हुए चम्बा (Chamba) -तीसा मार्ग की

बालू पुल के पास टूटे हुए चम्बा (Chamba) -तीसा मार्ग की

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

01 जुलाई, प्रातः 6 बजे, फारेस्ट रेस्ट हाउस देवी कोठी (चम्बा)

अंततः हमने ठान लिया कि चाहे जो हो पांगी घाटी जाएंगे जरूर. चम्बा-तीसा मार्ग टूटा पड़ा है तो क्या हुआ. हम यहां से 300-400 किलोमीटर का सफर तय कर रोहतांग दर्रा जाएंगे और फिर वहां से केलांग होते हुए पांगी आएंगे. जब आप सचमुच कुछ ठान लेते हैं और तबियत से कुछ कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं तो मुश्किलें आसान होने लगती हैं.

इसी बीच पहाड़ी मिनियेचर के लिए मशहूर चित्रकार विजय शर्मा जी का फोन आया. वे कवि तुलसी रमण के मित्र हैं. कल ही उनसे चम्बा के लक्ष्मीनारायण मंदिर (11 वीं शताब्दी) परिसर में मुलाकात हुई थी. भारत सरकार द्वारा दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मानों में से एक ‘पद्मश्री’ से विभूषित इस चित्रकार विनम्रता बरबस ही ध्यान खींचती है.

विजय जी ने फोन पर बताया कि तीसा-चम्बा मार्ग टूटा होने के बाबजूद हम पांगी घाटी के लिए निकल सकते हैं. चम्बा (Chamba) एक और रास्ता गोली नामक जगह से होते हुए गुजरता है. उस रास्ते से तीसा पहुंचने के लिए हमें कोई 70 किलोमीटर घूम कर जाना होगा.

महज 70 किलोमीटर! यहाँ तो हम 400 किलोमीटर घूम कर जाने को ठान बैठे थे। फिर 70 किलोमीटर की क्या बिसात!

30 जून को सुबह हम साहो स्थित फारेस्ट गेस्ट हाउस से पांगी जाने के लिए ज्यों ही निकले, एक परिचित अधिकारी ने सूचना दी कि चम्बा-तीसा मार्ग खुल गया है. गाड़ियां पार होने लगीं हैं. हमारी खुशी का ठिकाना न रहा. कहते हैं हिम्मते मर्दा, मददे खुदा लेकिन यहां तो तीन स्त्रियां की हिम्मत का मामला है. पत्नी अर्चना और दोनों बेटियां कीर्ति व प्रज्ञा. इनकी हिम्मत और धैर्य के सामने तो पहाड़ भी झुक जाएं!

हमारी बुजुर्ग हो चली एसयूवी होंडा सीआरवी की हिम्मत का भी जबाब नहीं. इसन हमें कन्याकुमारी से लेकर किन्नौर-स्पीति तक के गांव-गांव की यात्रा करवाई है. इसका साथ हो तो रास्ते जुनून बन जाते हैं. चम्बा (Chamba) से तीसा की ओर बढ़ते हुए एक ऐसी चीज मेरा और 17 वर्षीय बेटी कीर्ति का ध्यान खींच रही है, जिसने हमें उदास कर दिया है. रास्ते में दर्जनों जगह पर लैंड स्लाइड के निशान हैं, लेकिन कहीं भी अब जाम नहीं है. सभी जगह ट्रैफिक सामान्य है. सरकारी कर्मचारी और मजदूर लगातार काम पर लगे हैं. रातों-रात रास्ते खोल दिये गए हैं.

मुस्तैदी से किये जा रहे इस काम ने ही हमें – हमारे बिहार की याद दिला दी है – और इसी बात ने हमें उदास कर दिया है. क्या हमारे बिहार में यह संभव था? पिछले कई सालों से पटना में हमारे घर के पास स्थित प्रसिद्ध गांधी सेतु कई-कई दिनों तक जाम रहता है. वहां सरकार और प्रशासन इतने सुस्त क्यों हैं? क्यों उन्हें इन मुद्दों पर जनता की नाराजगी की कोई चिंता नहीं रहती?

कीर्ति का मन अर्थशास्त्र में लगता है. उसने इसी साल दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में नामांकन लिया है. वह बिहार-दिल्ली और हिमाचल के फर्क को अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से देखने की कोशिश कर रही है. मैं उसे बताना चाहता हूं कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश की बदहाली का कारण सिर्फ आर्थिक नहीं है. बहरहाल, कल हम साहो से चलकर देवीकोठी पहुंच गए हैं. आज हमें दुर्गम साच दर्रा पार करना है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो हम आज शाम तक पांगी घाटी में प्रवेश कर जाएंगे.

—–

डायरी, 1 जुलाई, 2018
देवी कोठी, फॉरेस्ट गेस्ट हाउस, अपराह्न 12.30

हिमाचल प्रदेश के चम्बा (Chamba) जिले के सुदूर गांव देवीकोठी स्थित फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में ठहरा हूं. यह दुर्गम पांगी घाटी की ओर निकलने से पूर्व हमारा रात्रि-पड़ाव है. रेस्ट हाउस के कमरे में मोबाइल पर इंटरनेट कनेक्ट होने में दिक्कत आ रही है लेकिन बाहर लॉन में निकलते ही अच्छी-खासी तेज गति मिल रही है. मेरे मोबाइल में दो सिम कार्ड हैं. एक भारत सरकार के महानगर संचार लिमिटेड (एमटीएनएल) का, और दूसरा रिलायन्स जिओ का.

एमटीएनएल का नेट कनेक्ट नहीं हो रहा, जबकि जिओ धड़ाधड़ चल रहा है. देर रात यहाँ लुधियाना के एक बाइकर्स क्लब के कुछ उत्साही युवा ट्रैकिंग के लिए आए हैं. उनके साथ एक स्थानीय गाइड भी है. इन इलाकों के अनेक युवा दुर्गम घटियों के रोमांचक-पर्यटन में इस प्रकार अपना कैरियर तलाश रहे हैं. इनके ग्राहक भारतीय महानगरों के दुःसाहसी युवा तथा ध्यान-योग में रुचि रखने वाले विदेशी होते है. इंटरनेट ने इन युवाओं के काम को काफी बढ़ाया है. बड़ी पर्यटन-कंपनियों के साथ-साथ अब इन्हें भी अच्छी आमदनी हो रही है.

देर रात पहुंचे थके-मांदे ये लोग रेस्ट हाउस के बाहर ही अपने टेंट लगाकर सो गए थे। इनमें से एक जेएनयू में स्पेनिश भाषा का विद्यार्थी रहा है तथा इन दिनों पंजाब के मुकेरियां में किसी स्कूल में पढ़ा रहा है. जेएनयू से पीचडी करने बाबजूद मेरा उस संस्थान से वैसा लगाव नहीं रहा है, जैसा कुछ अन्य साथियों का देखता हूँ लेकिन इतनी दूर जेएनयू के विद्यार्थी से मिलना अच्छा लगा। इसमें कोई शक नहीं कि जेएनयू की अलमस्ती अपने निवासियों में ऊंचाइयों को छूने का साहस भरती है.

इस बाइकर्स ग्रुप के साथ आए स्थानीय गाइड ने बताया कि जिओ के फोन अब अनेक दुर्गम इलाकों में भी चलने लगे हैं. कंपनी की योजना है कि वह हिमाचल की हर पंचायत में कम से कम एक टावर जरूर लगाएगी. यह साधारण बात नहीं है. देश के अनेक ऐसे हिस्सों में मैं गया हूँ जहाँ सिर्फ बीएसएनल चलता है. अन्य निजी कंपनियों के नेटवर्क वहां नहीं मिलते लेकिन बीएसएनएल की भी पहुंच हिमालय के दुर्गम इलाकों में नहीं है.

जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में सुरक्षा कारणों से सिर्फ पोस्ट-पेड मोबाइल कनेक्शन चलते हैं. प्री-पेड पर वहां प्रतिबंध है. कई अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी सरकार ने मोबाइल, एसएमएस और इंटरनेट के इस्तेमाल पर कई प्रकार की बंदिशें लगा रखी हैं. ऐसे में, जिओ के हर पंचायत में पहुंचने की योजना बिना सुनियिजित सरकारी प्रश्रय के संभव नहीं लगती.

बहरहाल, आज सुबह उठकर हम (मैं, पत्नी अर्चना और दोनों बेटियां -कीर्ति, प्रज्ञा) चौकीदार को साथ लेकर रेस्ट हाउस के ऊपर स्थित देवदार के घने जंगलों की ओर चले गए थे. चौकीदार ने हमें जंगल में मौजूद अनेक औषधीय पौधों के बारे में बताया। तस्वीरें खिंचवाने में जुटी अर्चना व प्रज्ञा को इनमें से सबसे आकर्षक सर्प-बूटी लगी. फन फैलाये गेहुंअन साँप से दिखने वाले इस पौधे से जानवरों का इलाज किया जाता है.

जंगलों के ऊपर चोटी पर खूबसूरत खुली धार थी. वह हमें इतनी अच्छी लगी कि हमने लगभग 2 घंटे वहीं बिता दिये. नतीजा यह हुआ कि साच दर्रा निकलने के लिए देर हो चुकी है. अपराह्न 12.30 हो चुके हैं. अब हम जल्दी से देवीकोठी गांव के प्राचीन मंदिर को देख कर पांगी घाटी की ओर रवाना होंगे. बर्फीला साच दर्रा यहां से कोई 25 किलोमीटर बाद शुरू होता है. उसे पार कर हम यहाँ से 85 किलोमीटर दूर किलाड़ पहुंचेंगे. किलाड़ पांगी तहसील का मुख्यालय और घाटी का एकमात्र कस्बा है.

ध्यान रहे, इस पहाड़ में 85 किलोमोटर का मतलब है कार से लगभग 5-6 घण्टे का सफर. वह भी तब जब रास्ते में भू-स्खलन न हो, ताजी बर्फ न पड़े और मौसम साफ हो.

तस्वीरें : देवीकोठी फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस के आसपास की।

प्रमोद रंजन
देवी कोठी, फॉरेस्ट गेस्ट हाउस
देवी कोठी, फॉरेस्ट गेस्ट हाउस

Recent Posts

Ujjain Mahakal Bhasma Aarti Darshan : जानें,उज्जैन महाकाल भस्म आरती दर्शन,शीतकालीन कार्यक्रम और टिकट की कीमतें

Ujjain Mahakal Bhasma Aarti Darshan :  उज्जैन महाकाल भस्म आरती दर्शन के साथ दिव्य आनंद… Read More

2 days ago

Kulgam Travel Blog : कुलगाम में घूमने की ये जगहें हैं बेहतरीन

Kulgam Travel Blog :  कुलगाम शब्द का अर्थ है "कुल" जिसका अर्थ है "संपूर्ण" और… Read More

2 days ago

Vastu Tips For Glass Items : समृद्धि को आकर्षित करने के लिए घर पर इन नियमों का पालन करें

Vastu Tips For Glass Items : बहुत से लोग अपने रहने की जगह को सजाने… Read More

3 days ago

Travel Tips For Women : महिलाओं के लिए टॉप 3 ट्रैवल-फ्रेंडली टॉयलेट सीट सैनिटाइजर

Travel Tips For Women : महिलाओं के लिए यात्रा करना मज़ेदार और सशक्त बनाने वाला… Read More

3 days ago

Kishtwar Tourist Places : किश्तवाड़ में घूमने की जगहों के बारे में जानें इस आर्टिकल में

Kishtwar Tourist Places : किश्तवाड़ एक फेमस हिल स्टेशन है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध… Read More

3 days ago