गालिब की हवेली (Ghalib ki Haveli) में मैंने क्या देखा? ये एक ऐसा सवाल है जिसे मैंने अपने आपसे पूछा, वो भी तब जब गालिब की हवेली गए हुए मुझे 3 दिन बीत चुके थे. मुझे याद आया मैं चांदनी चौक की सड़क पर चलते हुए बल्लीमारान पहुंचा था. जूतियों की एक दुकान पर हवेली का रास्ता मैंने पूछा था.
गालिब की हवेली के बाहर शिलापट्ट पर मैंने गालिब की हवेली लिखा पढ़ा… इसपर उनके जीवन के 9 साल जो गालिब ने यहां बिताए थे, उसका विवरण है. इस संक्षिप्त परिचय के बाद मैंने एक बड़ा लकड़ी का दरवाजा देखा, जिसके एक तरफ सिक्योरिटी गार्ड बैठा हुआ था.
मैंने इसके बाद जब हवेली में प्रवेश किया तब एक कमरा दाहिनी तरफ था, जिसमें गालिब के प्रतिमा थी जिसे मूर्तिकार रामपूरे ने बनाया है और भेंट किया है गुलजार ने. इसी प्रतिमा के दोनों तरफ गालिब के 2 विशाल पुस्तकें शीशे से कवर की गई हैं. प्रतिमा के ही दोनों तरफ गालिब के लिबाह शीशे में टंगे हैं.
इसी कमरे में गालिब की रामपुर और आगरा की हवेली की तस्वीरें हैं. उनके शेरों को भी यहां लिखा गया है. इस कमरे से निकलकर दाहिने तरफ दो कमरे हैं. एक किसी का निजी घर है, जहां दुकानें चलती हैं. और बाईं तरफ वाली जगह एक आंगन है जिसे ढका गया है. यहां आपको थोड़ी गर्मी का अहसास हो सकती है क्योंकि मुझे यहां एक भी पंखा नहीं दिखा जिससे मैं पसीने से पूरी तरह भीग गया.
इसी जगह गालिब की किताबे, चौपड़ उनकी एक और मूर्ति हुक्के के साथ बनी हुई है. इसे देखकर आपको एक बार तो लगेगा कि गालिब सचमुच बैठे हुए हैं. आंगन में एक बड़ी तस्वीर है जिसमें गालिब की लेटे हुए मुद्रा में तस्वीर है. वो आराम फरमा रहे हैं.
इस हवेली में आपको गालिब की यादों का वो झरोखा दिखाई देगा जिसमें से आप 200 साल पहले वाले गालिब की एक तस्वीर तो देख ही सकते हैं. क्यों न सोशल मीडियो से, नेटफ्लिक्स से और वीकेंड की मस्ती से कुछ समय चुराकर इस हवेली को दिया जाए! क्या कहेंगे आप?